जंगली भैंस : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा
Jangli Bhains : Lok-Katha (Oriya/Odisha)
एक गाँव में एक माँ-बेटा रहते थे। काम करके बहुत मुश्किल से गुज़ारा कर रहे थे। माँ विधवा तो बेटा बिन बाप का। उनका अपना और कोई था नहीं। बूढ़ी माँ इसके-उसके घर में काम करके जो कुछ कमाकर लाती, उसी में उनका गुज़ारा होता। एक दिन बेटा बोला, “माँ पोड़पिठा (चावल के आटे से बनाई गई एक तरह की मोटी रोटी) खाने का मन हो रहा है।” तब माँ महाजन के घर जाकर एक मुट्ठी खुद्दी माँगकर ले आई और बेटे के लिए एक बड़ा सा पोड़पिठा बनाया। बेटे ने उस पोड़पिठा को लेकर लुढ़का दिया।
पिठा लुढ़कता गया और उसके पीछे-पीछे लड़का भी चला। पिठा लुढ़कता गया, लुढ़कता गया और बीहड़ जंगल के भीतर जाकर एक पेड़ से टकराकर वहीं गिर गया। तब लड़के ने पिठा को तोड़ा और उसका एक टुकड़ा खाया। पिठा जाकर जहाँ अटका था वहीं जंगली भैंसों का घर था। दिनभर घूम-फिरकर रात को लौटकर जंगली भैंसें वहीं सोतीं। लड़के ने सोचा, “जंगली भैंस तो मुझे देखते ही मार डालेंगी।” तब उसने क्या किया कि उसी के पास एक बड़ा पेड़ था। उस पेड़ से बोला, “अरे पेड़ अगर तू सच में है तो दो हिस्से में बँट जा, मैं तेरे अंदर रहूँगा और उन जंगली भैंसों की जगह को साफ़ करूँगा।” उसके उतना कहते ही पेड़ दो भाग हो गया, लड़का उसके अंदर घुस गया। पेड़ फिर पहले की तरह जुड़ गया।
उसी दिन से वह लड़का उस पेड़ के अंदर रहता। हर दिन रात में उठकर जंगली भैंसों के गोबर साफ़ करता। जंगली भैंसों ने देखा कि कोई रोज़ उनके रहने की जगह की साफ़-सफ़ाई कर रहा है। तब आपस में तय किया कि उसे पकड़ेंगे। बारी-बारी से सबने छुपकर पहरा दिया, पर कोई भी उसे पकड़ नहीं पाया। आख़िर में एक काली भैंस की बारी आई।
काली भैंस सतर्क थी। जैसे ही लड़का निकला, उसने उसे पकड़ लिया। फिर सारी भैंसों को बुलाकर लड़के को दिखाया। सभी ने उससे पूछा, “तू क्यों छुपकर हमारा काम कर रहा है?” तब लड़का बोला, “तुम सब तो आदमी को देखकर मारने के लिए दौड़ती हो, इसलिए डरकर मैं छुप-छुपकर तुम सब की साफ़-सफ़ाई करता हूँ।'' तब एक ने कहा, “नहीं तूने हमारी बहुत सेवा की है, तुझे नहीं मारेंगी। तू हमारा बेटा बनकर रहना।” इतना कहकर उसे एक सोने और चाँदी की बाँसुरी देकर कहा, “सोने की बंशी बजाएगा, तो जानेंगे कि तू ठीक से है, और चाँदी की बंशी बजाएगा तो तुझ पर कोई संकट आया है ऐसा जानकर हम दौड़ी चली आएँगी।”
उस दिन से लड़का रात को पेड़ की खोह में रहता और सुबह होने पर जंगली भैंसों की जगह को साफ़ करके पेड़ के ऊपर बैठा रहता। एक दिन लड़के ने नहाने जाने की इच्छा ज़ाहिर की और बोला, “माँ, मैं आज ज़रा नदी में नहाने जाऊँगा।” माँ के हामी भरने पर लड़का नदी में नहाने गया। बारह, पंद्रह साल हो गए थे किंतु न तो बाल कटवाए थे न ही सिर धोया था, इसलिए बाल काफ़ी लंबे और मैले हो गए थे।
लड़का बाल साफ़ करने के लिए थोड़ी सी मिट्टी साथ लेकर गया। पानी में नहाते, बाल साफ़ करते समय कुछ बाल टूट गए। तब लड़के ने उन बालों को लेकर एक बेल के अंदर भरकर बेल को नदी में बहा दिया और घर वापस चला आया। बेल बहती हुई चली।
उधर मणिपुर के राजा की बेटी अपनी सखियों के साथ पानी में खेल रही थी। बेल बहकर राजकुमारी के पास पहुँची तो राजकुमारी बेल को लेकर घर आ गई। घर पहुँचकर जैसे ही बेल को तोड़ा तो उसमें लंबे-लंबे तीन-चार बाल थे। उसने बाल को अपने बाल से मिलाकर देखा तो उसके बाल से भी एक हाथ लंबा और उससे भी अधिक काले रंग का था। तब अपने माता-पिता के पास जाकर बोली, “इस व्यक्ति को कहीं से भी ढुँढ़वाकर ले आएँ।” तब राजा ने अपने सैनिकों को चारों तरफ़ भिजवाकर आदेश दिया कि वह बाल वाला जहाँ भी हो, उसे ढूँढ़कर ले आइए। चारों तरफ़ सैनिक फैल गए। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते आख़िर में लड़के को पा गए। जब उसे लेने के लिए उसके पास पहुँचे तो वह चाँदी की बंशी बजाने लगा। बंशी बजते हुए बोलने लगी, “दौड़कर आओ जंगली भैंसों। तुम्हारे लड़के को बाघ ले जा रहा है।”
जैसे ही बंशी की आवाज़ जंगली भैंसों के कानों में पड़ी सभी दौड़कर वहाँ पहुँचीं और सैनिकों को मार भगाया। वहाँ से सैनिक भागकर राजा के पास पहुँचे। राजा ने पूछा, “जंगली भैंसों को पता कैसे चला?” तब सैनिक बोले, “हुज़ूर, उसके पास दो बंशी हैं। एक सोने की और एक चाँदी की। चाँदी की बंशी बजाने पर जंगली भैंसें चली आती हैं, सोने की बंशी बजाने पर नहीं आतीं। जैसे भी हो उसकी चाँदी की बंशी को ले आने पर ही लड़के को हम अपने साथ ला पाएँगे।”
तब राजा ने अपने तोते को भेजा। तोता जाकर पेड़ पर बैठकर लड़के पर नज़र रखे रहा। जैसे ही लड़का बंशी को रखकर उससे थोड़ा दूर हटा, तोता बंशी लेकर चला गया। लड़का कुछ देर बाद बंशी लाने गया तो देखा कि बंशी नहीं थी वहाँ। तब वह सोने की बंशी बजाने लगा। सोने की बंशी की आवाज़ सुनकर जंगली भैंसें आराम से चरती रहीं।
उस समय राजा के सिपाही आकर लड़के को उठा ले गए। लड़के को जैसे ही राजा के पास ले गए, राजा ने उसकी देखभाल करने के लिए दास-दासियों को लगा दिया। फिर कुछ दिन के बाद अपनी बेटी से उसका विवाह करवा दिया। लड़का तो आराम से राजा के घर रहने लगा, जंगली भैंसों को वह भूल गया। उधर जंगली भैंसों ने वापस लौटकर देखा तो लड़का वहाँ नहीं था। उसके बाद सभी ने लड़के को हर जगह ढूँढ़ा, पर उसे न पाकर निराश होकर चुप रहे। चार-छह महीने बीते तब लड़के को जंगली भैंसों की याद आई और उसने राजकुमारी से पूछा, “तुमने चाँदी की बंशी रखी है क्या?” तब राजकुमारी ने जाकर चाँदी की बंशी लाकर लड़के को दी। लड़के ने जैसे ही चाँदी की बंशी को बजाया, बंशी की आवाज़ जंगली भैंसों के कान में पड़ी। तब बंशी की आवाज़ जिस दिशा से आ रही थी, उसी दिशा की तरफ़ सूँ-सूँ करते जंगली भैंसें दौड़ने लगीं। राजमहल में जब वे पहुँचीं तो लड़के ने बाहर निकलकर उन्हें सारी बातें समझा दीं। जंगली भैंसों ने लड़के और बहू को आशीर्वाद दिया और राजा के घर एक रात रुककर वापस चली गईं। फिर सब मज़े में रहने लगे।
(साभार : ओड़िशा की लोककथाएँ, संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र)