जैसी करनी, वैसी भरनी : मॉरिशस की लोक-कथा
Jaisi Karni Waisi Bharni : Lok-Katha (Mauritius)
एक गांव में रमीना अपने पति व चार बेटों के साथ रहती थी । वह अपने व अपने परिवार के साथ खूब खुशहाल थी । वह मध्यम आय वाला परिवार था । अत: रमीना परिवार की कमाई का अधिकांश भाग बच्चों की शिक्षा पर खर्च करती थी । पिता भी बच्चों को खूब प्यार करता था ।
एक दिन अचानक रमीना का पति बीमार हो गया । डॉक्टरों व वैद्य को दिखाया परंतु उन्हें उसकी बीमारी का पता नहीं लग सका । फिर अचानक उसकी मृत्यु हो गई ।
रमीना जैसे-तैसे अपने बेटों को बड़ा करने लगी । परंतु जैसे-जैसे वे बड़े होते गए उन्हें शहर जाने का भूत सवार होने लगा । धीरे-धीरे वे गांव छोड़कर शहर चले गए । शहर में ही विवाह कर वही रहने लगे ।
रमीना बूढ़ी हो चुकी थी, परंतु उसने हिम्मत नहीं हारी थी । सिलाई-बुनाई का कार्य करके अकेली ही रहती थी और अपने घर का गुजारा चलाती थी । एक दिन वह रसोई में खीर बना रही थी । खीर कई घंटों से पक रही थी । तभी रमीना को थकान महसूस होने लगी । वह रसोई के पास आंगन में चारपाई डालकर उस पर लेट गई ।
रमीना की अचानक आंख लग गई, क्योंकि वह दिन भर की थकी हुई थी । उसके पास घर के नाम पर एक कमरे का किराए का मकान था । उसका अपना मकान कब का बिक चुका था । उसे बेटों से शिकायत थी, परंतु वह कुछ कर नहीं सकती थी ।
उसके चारों बेटे गांव छोड़कर जा चुके थे । उन्हें वहां से गए वर्षों बीत गए थे और वे गांव के बारे में सब कुछ भूल चुके थे । परंतु वे वहां जाकर बेईमान बन गए थे ।
चारों बेटे मिलकर घरों में चोरी करते थे, फिर माल बांट कर उसी से अपने परिवार का गुजारा करते थे । उन्हें न तो मां की फिक्र थी, न ही कोई सुध । मां का क्या हाल होगा, यह वे नहीं जानना चाहते थे ।
चारों बेटे चोरी में इतने माहिर हो चुके थे कि वे कभी पकड़े न जाते थे । एक दिन उन्होंने एक सर्राफ के यहां चोरी की और खूब मालामाल हो गए ।
लेकिन चोर को तो चोरी के सिवा कुछ करना आता ही नहीं है अत: वे आलसी बनकर उस माल पर ऐश करने लगे । कुछ ही दिनों में सारा धन और माल समाप्त हो गया । अब उन्हें फिर से धन पाने की चिंता सताने लगी ।
एक दिन वे चोरी के इरादे से शाम को घर से निकले । तभी उन्हें एक युवक मिला । वह बोला - "तुम कहां जा रहे हो, मुझे भी साथ ले लो ।"
चारों ने उसे इन्कार कर दिया । परंतु वह युवक उनकी खुशामद करने लगा और बोला, "अच्छा भैया, तुम यह बता दो कि तुम कहां जा रहे हो ?"
एक बेटा क्रोधित होकर बोला - "चोरी करने, चलोगे ?"
"हां भैया, सब कुछ करूंगा । मैंने 5 दिन से खाना नहीं खाया है, जैसा कहोगे वैसा ही करूंगा । जो दोगे वही ले लूंगा । अपना हिस्सा भी नहीं मागूंगा ।"
चारों भाइयों को बात जंच गई कि मुफ्त में नौकर मिल रहा है जो चोरी में भी साथ देने को तैयार है । फिर वह अपना हिस्सा भी नहीं मांगेगा । उन्होंने युवक को साथ ले लिया, परंतु उसे समझाया - "देखो, तुम पहली बार चोरी करने जा रहे हो, अत: कोई बेवकूफी मत करना ।"
युवक तैयार हो गया और उन चारों के साथ चल दिया । चारों भाई चोरी के लिए मकान तलाश करने लगे । उन्होंने कई मकानों में घुसने का प्रयास किया परंतु हर घर में कोई न कोई जाग रहा था । अचानक उन्हें एक घर का दरवाजा खुला दिखाई दिया, वे उसमें घुस गए । वहां उन्होंने खूब जमकर चोरी की । घर का हर सामान एक चादर में बांध लिया, हालांकि घर में कोई भी कीमती सामान न था । परंतु वे चोरी करने निकले थे तो उन्हें कुछ न कुछ तो चुराना ही था ।
तभी एक बेटे की रसोई की ओर नजर गई । वहां खीर पक रही थी चारों को लगा कि चलने से पहले गर्मागर्म खीर का मजा ले लेना चाहिए ।
पांचों लोग खीर खाने में व्यस्त थे, तभी उनकी निगाह आंगन में सोई बुढ़िया की ओर गई ।
चारों बेटे अपनी मां को पहचान न सके, क्योंकि इतने वर्षों में वह बूढ़ी हो चुकी थी । नया चोर युवक बोला - "भैया, यह बुढ़िया कैसे हाथ पसारे सो रही है । लगता है कि यह कह रही है कि सारी खीर अकेले खा जाओगे, मुझे नहीं खिलाओगे ।"
दूसरा बोला - "हां, और क्या, यह अपने लिए खीर पका रही है और हमने खत्म कर दी तो यह क्या खाएगी ?"
तभी युवक तेजी से उठा और एक चम्मच खीर बुढ़िया के हाथ पर रख दी । गर्म खीर हाथ पर रखते ही बुढ़िया चिल्लाते हुए उठ बैठी । वह चिल्लाई - "बचाओ, मैं मर गई ।"
उसकी आवाज सुनकर पांचों चोर घर के अलग-अलग कोनों में छिप गए । रमीना के चिल्लाने से बहुत सारे पड़ोसी दौड़े आए और पूछने लगे कि क्या हुआ । वह क्यों चिल्ला रही थी ।
अचानक हाथ पर गर्म खीर रखने से और भीड़ इकट्ठी होने से रमीना कुछ समझ ही न सकी कि क्या हुआ । वह नींद में थी । तभी एक पड़ोसी ने पूछा - "अम्मां क्या हुआ ?"
रमीना बोली - "पता नहीं क्या हुआ, मैं तो सो रही थी । यह खीर मेरे हाथ पर कहां से आई, यह तो ऊपर वाला ही जाने ।"
सभी चोर अलग कोनों में छिपे बुढ़िया की बातें सुन रहे थे और घबरा रहे थे कि वे कहीं पकड़े न जाएं । युवक, जो नया चोर था और पहली बार चोरी करने निकला था, इत्तेफाक से ऊपर छत के किनारे छिपा बैठा था । रमीना की बात सुन कर उसे यूं लगा कि बुढ़िया ने उसे देख लिया है तभी कह रही है कि ऊपर वाला जाने । वह ऊपर छिपे-छिपे ही जोर से बोला - "मैं क्या जानूं, यह तो बाथरूम वाला जाने कि क्या हुआ ।"
युवक की बात सुनकर बाथरूम में छिपा चोर घबरा गया कि वह पकड़ा जाएगा तो उसकी पिटाई होगी, वह स्वयं को बचाने के प्रयास में बोला - "मैं क्या जानूं, चारपाई के पीछे वाला जाने ।"
तभी चारपाई के पीछे वाला बोल उठा - वाह ! मुझे क्यों फंसा रहे हो, मैं क्या जानूं सीढ़ियों वाला जानता है कि क्या हुआ ।"
सीढ़ियों वाले ने भी तुरंत इसी तरह चिल्लाकर कहा - "मुझे क्यों फंसाते हो, मैं क्या जानूं कि क्या हुआ, यह तो बिस्तर के पीछे वाला जानता है ।"
सारे अड़ोसी-पड़ोसी व रमीना हैरान थे कि आवाज कहां-कहां से आ रही है । वे सब एक साथ झपट पड़े और पांचों चोरों को पकड़ लिया ।
पांचों चोरों को जेल में डाल दिया गया । वहां पुलिस ने उनका अता-पता पूछा तो पता लगा कि उनमें से चार चोर तो रमीना के ही बेटे थे । चारों ने बहुत मिन्नत कि उन्हें बख्श दिया जाए, परंतु रमीना ने कहा - "मैं बचाने वाली कौन होती हूं । जैसी करनी, वैसी भरनी ।"
(रुचि मिश्रा मिन्की)