जैसे कोई फूल तोड़ा जा रहा हो (मलयालम कहानी) : गौतमन्
Jaise Koi Phool Toda Ja Raha Ho (Malayalam Story in Hindi) : Gauthaman
दोपहर की झपकी से वह धीरे-धीरे मुक्त हो रहा था। होश पूरा नहीं आया था। उसे पूरा होने में थोड़ा समय और लगेगा। आँखें दो-एक बार खोलते-मूंदते और ऊपर पंखे को देखते-देखते ही प्रायः उसकी नींद खुलती है। उस दिन वैसा नहीं हुआ। उसके कंधे को किसी ने जोर से झकझोर दिया था। उसने ऊँघती आँखों को बड़ी मुश्किल से खोल कर पूछा, 'क्या ? यह क्या है ?'
वह पूरा जाग गया था। जगाने वाली उसकी पत्नी थी। बोली, 'विनु ! विनु ! देखो, हमारी सीता को क्या हो गया है ?'
पहले तो वह समझ नहीं पाया। सीता ? सीता को क्या हुआ ? फिर सीता का चेहरा अचानक उसके मन में घिर आया, जो कल बच्चे को बगल में उठाए ड्योढ़ी उतर कर सड़क पर खड़े ऑटो-रिक्शा में चली गई थी। जाते वक्त उसने सीता से कहा था, 'सीते, डोंट डू एनिथिंग ड्रास्टिक।'
सीता एक क्षण उसके सामने सिर झुकाए खड़ी रही थी। उसने उसे ओंठ काटते देखा था। उसका मन सिसक उठा था, पर अगले ही क्षण सीता ने सिर उठाकर कहा था, ' नहीं भैया'। उसने बच्चे को एक बार फिर सीने से लगाते हुए, मानो खुद को समझाते हुए कहा था, 'मैं आत्महत्या नहीं करूंगी।' फिर वह तेजी से सीढ़ियाँ उतर गई थी उसके और उसकी पत्नी के बीच म्लान चेहरा लिए खड़ी उनकी बेटी से विदा लिए बिना। प्रायः ऐसा नहीं करती थी वह।
'सीता को क्या हुआ ?' उसने पूछा।
'बीमार है।'
'क्या बीमारी है ?'
'पता नहीं। फोन पर कँवल ने बताया, उधर बताने के लिए,' वह एकाएक रोने लगी, 'विनु, मुझे डर लगता है। सीता को क्या हो गया ?'
उसने पत्नी के कंधे पर हाथ रखकर उसे ढाँढ़स बँधाने की कोशिश की, 'रोओ मत। सीता को कुछ नहीं होगा। वह शायद बुखार जैसा कुछ".' फिर खुद को समझाता-सा वह बोला, 'नहीं तो बाथरूम में फिसल कर गिर गई होगी।
फिर पूछा, 'तुमने उधर बताया क्या ?'
'नहीं', उसने साड़ी के आँचल से आँखें पोंछकर बाहर जाते हुए कहा, 'मैं जल्दी से बता कर आती हूँ। फोन के पास ही बैठना। शायद कुछ पता चले !'
पत्नी के चले जाने के बाद भी वह कुछ देर उसी तरह बैठा रहा। फिर खाट के सिरहाने की लिखने की मेज के पास जा कर बाहर देखने लगा। न जाने क्यों उसे अपनी बेटी का ख्याल आया। मुड़कर देखा। मीरा अभी तक गहरी नींद सो रही थी। वह उसके ओंठों पर चाँदनी-सी हल्की मुस्कान देख रहा था कि अचानक टेलीफोन घनघना उठा। उसका हृदय तेजी से धड़कने लगा। उसने जाकर फोन उठाया, पर वह कुछ बोल नहीं सका। वैसे ही दो क्षण खड़ा रहा होगा, तब उसने सुना, 'हैलो !'
उसकी प्रतिक्रिया नहीं हुई।
एक क्षण बाद फिर आवाज आई, 'दीदी !'
पथरा-सी गई आवाज में ही सही, उसने कँवल को पहचाना।
'शी इज नॉट हियर।' उसने कहा। उसे लगा कि दूसरी तरफ वाला जैसे साँस रोके खड़ा है। फिर धीरे से आवाज आई, 'मिस्टर मेनन ?'
'यस,' उसने पूछा, 'इज इट यू कँवल ?'
'यस सर।'
'वाट इज इट ?'
थोड़ी देर के लिए जवाब नहीं आया। सिगरेट से उँगलियाँ जलने लगीं तो उसे फेंककर वह क्रोध से गरजा, 'आई से वाट इज इट ?'
'सीता...'
'सीता ? वाट हैप्पंड टु हर ?'
'सर, सीता कमिटेड सूइसाइड।'
वह जड़ हो गया। सीता कमिटेड सूइसाइड। सीता ने आत्महत्या कर ली। क्षण भर के लिए वह दृश्य उसकी आँखों के सामने कौंध गया, जब उसने सीता को आखिरी बार देखा था। बच्चे को छाती से लगा के सीता ने कहा था कि वह आत्महत्या नहीं करेगी। उसे लगा कि उसका हृदय जल रहा है। तभी टेलीफोन से कँवल की आवाज अटक-अटककर आती सुनाई दी, 'मिस्टर मेनन, आर यू स्टिल देयर ?'
उसने धीरे से कहा, 'यस।' फिर अनजाने ही वह चिल्लाया, 'यू बास्टर्ड। आई एम स्टिल एलाइव आफ्टर दिस मॉर्टल ब्लो।' ।
'सर,' कँवल बोला, 'आई ट्राइड टू सेव हर। बटबट इज वाज लेट।'
कँवल को पूरा कहने का मौका दिए बिना उसने रिसीवर जोर से पटक दिया। मेज पर कुहनियों के बल वह साँस की गति सँभाल रहा था। तभी कंधे पर किसी का हाथ लगा। वह उसकी पत्नी थी। उसके पीछे थके-हारे शंकर वारियर का चेहरा और उसके पीछे मिसेज वारियर का पीला चेहरा।
'क्या है विनु ?' पत्नी ने पूछा, "फिर फोन आया क्या ?'
उसने बस सिर हिलाया।
'कोई नई खबर ?' पत्नी ने उसका कंधा झिंझोड़ते हुए पूछा, 'सीता कैसी है ? इज देयर एनी इंप्रूवमेंट ?'
उसने धीरे-धीरे कहा, 'सरला, सीता ने आत्महत्या कर ली।'
एक क्षण के लिए उसे लगा कि वातावरण सर्द पड़ा है। फिर मिसेज वारियर की चीख सुनाई दी। उसने उस पर ध्यान नहीं दिया। वे एकदम नीचे गिर पड़ीं, तिस पर भी उस ओर देखा नहीं। वह अपने को नियंत्रित कर रहा था। वह पूछना चाहता था, 'अब संतुष्ट हो गईं मिसेज वारियर ?'
उसने डाइनिंग रूम में जा कर कैबिनेट खोल के बोतल निकाली, गिलास में तीन-चौथाई उँडेली और एकसाथ पी गया। फिर कैबिनेट बंद करके एक कुर्सी खींच ली और अंदर की रुलाई को निस्संग हो के सुनने लगा।
आखिर जब वह उठा, तो अंदर के कमरे में कोई आवाज थी। कमरे में गया तो खाट पर मिसेज वारियर पड़ी हुई थीं सीलिंग पर आँखें गड़ाए निश्चल। कपोलों पर आँसू बहकर सूख जाने के निशान। छाती रह-रह कर जोर-जोर से उठ-गिर रही थी। उनके पास बैठ के उनका ललाट सहला रहे थे शंकर वारियर। वह उन्हें देख कर खिड़की की तरफ बढ़ा। वहाँ से बाहर को देखते हुए वह एक बार फिर सहम गया। सामने के घर की सीमा पर खड़ी चौदह वर्ष की लड़की पड़ोस के घर की चंपा की डाली खींच रही थी। उसका फूल तोड़ने की असफल कोशिश कर रही थी। उसे लगा कि अगले क्षण हौज के पार एक युवक दिखाई देगा और लड़की से पूछेगा—क्या तुम्हें चम्पा का फूल चाहिए। आठ साल पहले उसने सीता को इसी तरह एक स्थान पर पहली बार देखा था इसी प्रकार की रेशमी जैकेट में, इसी प्रकार पैरों को छिपाते आकर्षक रेशमी लहँगे में। उसने सिंद्री से उसी दिन आकर वहाँ काम सँभाला था।
वह मुड़ कर न जाने किस से पूछ बैठा, 'जाएँगे नहीं क्या ?' जब वह कपड़े बदल रहा था तब मिसेज वारियर की आवाज गर्जन की तरह गूंज उठी, 'मैं उसे मार डालूँगी।'
जब तक वह दौड़कर पहुँचता मिसेज वारियर को उसकी पत्नी और शंकर वारियर ने मिलकर पकड़ लिया था। वारियर की क्षीण पुकार 'देवकी, देवकी' पर ध्यान दिए बिना वे गरज रही थीं, 'मेरी बेटी को उसने मारा, मैं उसे मारूंगी। फिर मैं भी मर जाऊँगी।'
वह क्षण भर उन्हें देखता रहा, फिर उसने एक दृश्य देखा, जिसे उन लोगों ने नहीं देखा था। उसकी बेटी अपनी माँ से लिपटी सिसक-सिसक कर रो रही थी और 'माँ, माँ' पुकार रही थी, पर उस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था सिवाय उसके। उसने जा कर अपनी बेटी को गले से लगा लिया। फिर धीरे से पुकारा, 'मिसेज वारियर।'
सिर्फ एक बार उसने पुकारा था, पर उसका असर हुआ। मिसेज वारियर चुप हो गई। हालाँकि जंगली भाव उनकी आँखों में तब भी जल रहा था।
उसने कहा, 'मिसेज वारियर, सीता को कोई नहीं मार सकता था। आप उसे बचा सकती थीं। देखिए इस प्रकार।' कहकर उसने अपनी बेटी को दोनों हाथों के कवच के बीच छिपा लिया। 'पर आपने उसे भेड़िये के सामने फेंक दिया था।'
उसने आँखें मूंद लीं, फिर बेटी को बार-बार चूमने लगा, 'बेटी, तुझे ऐसी हालत में नहीं पहुँचने देगा यह बाप।'
वह याद कर रहा था वह दिन, जब सीता वहाँ से आखिरी बार गई थी। बेडरूम की खिड़की पर खड़े उसने थोड़ा-बहुत सुना था।
पचास नाप के गहने दिये थे। इतना ही नहीं, उस घर का भी सामान उसने अपने पैसे से नहीं खरीदा था और अब तू वह सब छोड़ के चली आई है ?'
उसने बेटी को पत्नी के हाथों में दे कर पूछा, 'तुम नहीं आओगी ?'
पत्नी ने सिर्फ सिर हिलाया था नहीं।
उसने उसी प्रतिक्रिया की आशा भी की थी। फिर भी पूछा, 'आखिरी बार देखोगी नहीं ?'
'नहीं,' उसकी आवाज पथरा रही थी, 'सीता का जीवंत चेहरा मेरे मन में है। मैं उसी की याद करना चाहूँगी।'
एक क्षण वह उसे देखता रहा। फिर धीमी आवाज में कहा, जो सिर्फ वही सुन सकती थी। 'यस यू आर राइट।'
जब वह गाड़ी चला रहा था, तो उसने हफ्ते पहले जवाहर नगर की यात्रा का स्मरण किया। वह पत्नी और बेटी समेत महीने में एक बार सीता को देखने जरूर जाया करता था। सीता के घर का घुटन-भरा वातावरण उससे पहले भी उसे महसूस हुआ था, पर उस दिन वह बेहद असह्य लगा था उसे। जब वे वहाँ पहुँचे, तब कँवल ड्यूटी पर गया हुआ था। पर घर पर होने के बावजूद कँवल की माँ और बहन बाहर नहीं आई थीं। सीता ने खाने में उसके सामने उसका प्रिय साग परोसा, तो उसने पूछा, 'सीता, अपनी सास और ननद को भी तो बुलाओ?'
जब सीता कुछ बोले बिना सिर झुकाए बैठी रही तब उसने मजाक किया, 'कहीं तूने आज उनसे झगड़ा तो नहीं किया ?'
सीता के जवाब न देने पर उसने पत्नी से कहा, 'सरला, तुम जा कर उन्हें बुला लाओ।'
तब सीता बोली, 'नहीं दीदी, बुलाने पर भी वे नहीं आएँगी।'
सीता की बात की परवाह किए बिना उसकी पत्नी अंदर गई और जल्दी ही लौट भी आई, पर कुछ बोली नहीं। चाहकर भी कि उससे पूछे कि क्या हुआ, उसने कुछ पूछा नहीं। धीरे-धीरे खाना खाते हुए उसने दो-एक बार सीता को देखा, तो वह सिर झुकाए बैठी थी।
'सीते।' उसने पुकारा।
सीता जैसे झपकी से जाग रही हो। हाथ से आँखों को पोंछते हुए उसने देखा। उसने हौले से पूछा, 'क्या कँवल भी उनके साथ है ?'
जब सीता कुछ नहीं बोली, तो उसने कहा, 'अगर पति साथ हो तो किसी लड़की का कोई कुछ नहीं कर सकता।'
सीता ने उसका भी जवाब न दिया था।
उसने कार को सड़क के किनारे खड़ा किया। पहले वही उतरा, पर शंकर वारियर और मिसेज वारियर के उतर कर गेट पार करने के बाद ही वह आगे बढ़ा।
गेट पार किया तो बाहर सिट-आउट में घुटनों के बल खेलती सीता की बिटिया पर नजर पड़ी। पास कहीं कोई नहीं था। मिसेज वारियर ने लपककर बच्ची को उठाया और उसे बार-बार चूमने लगी। उसे देख वह सोचने लगा कि कुछ लोग कितने चालाक होते हैं, कितनी चतुरता से योजना बनाते हैं। उसे यकीन था कि अंदर से आने वाला अगला व्यक्ति कँवल ही होगा। तभी वह अंदर से आया। सूखा-उड़ती रंगत वाला चेहरा और लाल-लाल आँखें। उसने आते ही पहले मिसेज वारियर, फिर शंकर वारियर के पैर छुए। फिर जोर-जोर से रोनेबिलखने लगा। 'सीता, हम सबको छोड़ गई, माँजी। मैं इसे कैसे बर्दाश्त करूँगा?
एक क्षण को उसकी आँखें कँवल की आँखों से जा टकराईं। लगा कि उसके हाथ गरम हो रहे हैं। वह सँभल कर उसके पास से होता हुआ अंदर गया। बैठक में सोफे पर बैठी स्त्रियों ने नजर उठाई। एक कँवल की माँ, दूसरी बहन।
उसने पूछा : 'सीता कहाँ है ?'
'सीता ?' कँवल की बहन बोली, 'सीता तो मर गई।'
'दैट आई नो। उसकी लाश कहाँ है ?'
'अंदर के कमरे में।'
वह उस कमरे के दरवाजे तक उसके साथ आई। जब वह कमरे में घुसने लगा तो उसने कहा, 'कुछ छूना मत। अभी पुलिस आएगी।'
'मालूम है।' उसने कहा।
कमरे में प्रवेश करते ही सबसे पहले उसकी नजर सीता की शादी की तसवीर पर पड़ी, जो दीवार पर झूल रही थी। वह हँस रही थी, अपने सुंदर और हँसमुख प्रेमी से शादी कर सकने के आनंद में। सीता ने कैसे लड़ाई लड़ी थी अपनी इच्छा की सिद्धि के लिए। सभी एतराजों को उसने जीता था। उसे अपराध-बोध हुआ कि उस शादी में उसकी भूमिका रही थी। शंकर वारियर चाहते थे कि उसी वक्त सीता को अपने गाँव ले जाकर किसी दूसरे से उसकी शादी करा दें, पर उसी ने रोका था उन्हें। उस शादी में आया एकमात्र मलयाली वही था।
सीता गले तक झुकी थी, मानो आँखें मूंदे सो रही हो। वह अनजाने ही पुकार उठा, 'सीते।' उसे आशा थी कि सीता आँखें खोलेगी और उसकी पुकार सुनेगी।
क्षण-भर की बेसुधी में से जाग कर उसने ध्यान से दरवाजा देखा और सीता के माथे पर हाथ रखा, जैसे बर्फ को छुआ हो। फिर सीता के गले में बँधी साड़ी को देखा। उसके फटे टुकड़े के लिए सीलिंग की हुक की तरफ नजर घुमाई, पर वहाँ साड़ी का फटा टुकड़ा नहीं था। उसे कँवल के अंतिम शब्द याद आने लगे। 'मैंने सीता को बचाने की कोशिश की।' बचानेवाला क्या साड़ी की गाँठ खोलेगा ? या तो साड़ी फाड़ डालेगा या उसे काट देगा। सीता के आखिरी शब्द भी उसने याद किए : 'मैं आत्महत्या नहीं करूँगी भैया।'
तभी सीता की खाट के पास रखे एयर-कूलर पर उसकी नजर पड़ी। एयर-कूलर को खाट के इतने करीब रख के कोई नहीं सोता। उसने तुरंत कूलर के एक ओर का शटर खोल के अलग किया। फैन-मोटर पर अपना हाथ रख तुरंत हटा लिया। जली उँगली को जीभ से भिगोकर शटर को दुबारा बंद कर दिया। सीता पर एक बार फिर नजर डाल वह बाहर चला आया।
जब वह बैठक में पहुँचा तो पुलिस आई गई थी। कँवल की माँ दबी आवाज में कुछ बोले जा रही थी। उसे देखते ही वह रुक गई, फिर उसे सुनाने के लिए थोड़ा जोर से कहा, 'उसने क्यों यह ज्यादती की, मेरी समझ में नहीं आता।'
उस स्त्री को घूरकर देखने के बाद उसने मुड़कर शंकर वारियर से कहा, 'मिस्टर वारियर, कुछ देर के लिए मेरे साथ चलें।'
वे कार के अंदर जा बैठे। उसने कागज और कलम उठाई। 'मैं एस. पी. के लिए पैटीशन तैयार कर रहा हूँ,' उसने कहा, 'वारियरजी, दस्तखत कर दें।'
'एस०पी० के लिए,' वारियर ने थके-माँदे स्वर में पूछा, 'यह सब क्यों ? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा।' ।
उसने कहा, 'अगर सीता ने आत्महत्या की है तो उसे उसके लिए प्रेरित करने वालों को हम यूँ ही नहीं छोड़ सकते।'
'मेरी बेटी तो गई।' भारी आवाज में वारियर ने कहा, 'अब इस सबसे क्या वह वापस मिलेगी?'
'ठीक है वारियरजी,' वह सहमत था, 'सीता वापस नहीं आ सकती। पर हाथ पर हाथ धर के बैठना कि जो हो गया, सो हो गया, सीता के प्रति हमारा सबसे बड़ा अपराध होगा। मोर ओवर, अगर सीता ने आत्महत्या नहीं की तो? अगर उसे इन लोगों ने मारा हो तो?'
'मेनन ?' वारियर की आवाज सख्त थी।
'यस मिस्टर वारियर, आई एम डैड श्योर।'
क्षण-भर के आघात से छुटकारा पा कर वारियर ने कहा, 'लिखिए।'
शंकर वारियर को लड़खड़ाते चलते देख उसने अकेले ही कार स्टार्ट की।
एस. पी. से मिल कर बात करने के बाद पैटीशन दे कर आध घंटे में जब वह लौटा तो पुलिस पार्टी जा चुकी थी। शंकर वारियर और मिसेज वारियर ही बैठक में बचे थे। सीता की बच्ची नानी की गोद में सो रही थी।
वारियर बोले, 'पुलिस अस्पताल ले जाने के लिए कह कर गई है।'
उसने पूछा, 'उन्होंने क्या कहा ?'
'क्या कहेंगे ?' आँसू पोंछते हुए वारियर ने कहा कि, 'आत्महत्या है।'
'आत्महत्या ! नहीं !' मिसेज वारियर रुंधे गले से बोलीं, 'मुझे मालूम है। मेरी बेटी में इतनी शक्ति नहीं थी। उसे इन दुष्टों ने मारा है।' फिर वे ऊपर देखकर बोलीं, 'मेरे भगवान ! इन्हें इसकी सजा देना।'
उन्हें करुण दृष्टि से एक बार देख कर वारियर से कहा, 'मिस्टर वारियर, आप आइए। हम सीता को ले चलते हैं।' फिर उसने मुड़ कर मिसेज वारियर से पूछा, 'बच्ची का क्या होगा ?'
मिसेज वारियर बिना हिचक बोली, 'बच्ची को मैं ले जाऊँगी।'
'दैट्स बैटर।' मात्र इतना कह कर वह अंदर चला गया। वह सोच रहा था कि बच्ची को ले जाना ही ठीक होगा, नहीं तो एक दिन वह इस नन्ही-सी जान को भी मार देंगे। बच्ची के रहने पर शादी मार्केट में कँवल की मार्केट वैल्यू कम-से-कम आधी रह जाएगी।
उसने सीता को सिर की तरफ से उठाया। उसके पैर उठा के अपने कंधे पर रखने वाले वारियर को देख वह सोचने लगा, भाग्य का खेल ! वे कमरे के बाहर आए तो, न जाने कहाँ से कँवल वहाँ आ गया। दोनों का उठाया भार बीच में से वह भी बाँटने लगा तो, बड़ी कठिनाई से उसने अपना क्रोध दबाया।
पर कार की पिछली सीट पर सीता की लाश रखने के बाद कँवल उसके पीछे बैठा तो उसने पूछा, 'कँवल, सीता कब मरी थी—आज कि कल ?'
उस अप्रत्याशित सवाल के समक्ष स्तंभित बैठे कँवल को देख उसने कहा, 'यू नीड नॉट आन्सर दैट। पर इतना तो बताओ कि लाश को एयर-कूलर ऑन करके एक दिन और एक रात कहाँ रखा था। इस पुलिस को वश में करने गए थे न तुम लोग ? तुम नहीं जानते तो मैं बताता हूँ। पोस्टमार्टम से सच्चाई साफ हो जाएगी। कब मरी, कैसे मरी ! या तुमने डॉक्टरों को भी पैसा दे दिया है ? कँवल, क्यों बेचारी उस लड़की को मारा ?'
उसने कँवल को सहम कर काँपते देखा। फिर वह बोला, 'नहीं-नहीं, मैंने नहीं मारा।'
'दैट इज एनफ।' उसने कार का पिछला दरवाजा खोल कर कहा, 'नाऊ गेट डाउन फ्रॉम द कार। यू मे कम बाई योर ओन।' वारियर ने 'मेनन' को पुकारा था, पर उसने उसे सुना नहीं था, 'आई से गेट आउट।' एक क्षण बाद कँवल बाहर उतरा तो उसने दरवाजा जोर से बंद करके कार आगे बढ़ाई। मन में कुछ छायाएँ-सी तैरने लगीं।
वह दिन, जब उसने पहली बार सीता को देखा था। प्रीमियर पद्मिनी में प्रथम सवारी के लिए सीता निकली थी उमंग के साथ। अब सीता अपनी अंतिम सवारी कर रही है। विंड स्क्रीन पर सीता के लगाए स्टिकर पर उसकी नजर पड़ी। 'डोंट टच मी आई एम वेरी सेक्सुअला' उसने फौरन अपनी भीग गई आँखें पोंछ लीं।
उसे लगा मानो अस्पताल में उनकी प्रतीक्षा की जा रही थी। कार का इंजन ऑफ करते ही दो चपरासी स्ट्रैचर लिए आए। उनके पीछे डॉक्टरनुमा लंबे कद का एक व्यक्ति कार के पास आया।
'आई एम डॉक्टर अग्रवाला' अपना परिचय देते हुए उसने पूछा, 'आर यू दैट पार्टी हु गेव ए पैटीशन टु एस० पी० ?'
उसने शंकर वारियर को एक बार देख के धीरे से सिर हिलाया।
स्ट्रेचर में लिटा दी गई सीता का चेहरा देखके डॉक्टर ने पूछा, 'योर डॉटर ?'
उसने अनजाने ही सिर हिलाया। अगर सीता ने यह सुना होता तो ठहाका लगा के हँसती। परिचित होने के बाद सीता उसे अंकिल बोला करती थी। सरला ने उसे टोका था, 'सीता, भैया बोला करो। हमारी उम्र इतनी ज्यादा नहीं है।' सीता ने उसका जवाब दिया, 'वैसे बाबूजी पुकारना चाहिए।' यह उसके पके हुए बालों पर टिप्पणी थी।
डॉक्टर बोला, 'ईवन इन डेथ शी अपियर्स लाइक ए फ्लावर।'
'यस डॉक्टर,' उसने बताया, 'ए फ्लावर प्लक्ड अगेंस्ट द विल ऑफ द नेचर।'
वे अस्पताल के अंदर पहुँच गए। छोटे कद के एक मोटे सज्जन को दिखाते हुए डॉक्टर अग्रवाल बोले, 'डॉक्टर आचार्य। सीनियर सर्जन।'
पर 'गुड ईवनिंग' वाले उसके अभिवादन के जवाब में उन्होंने सिर्फ सिर हिलाया था 'सो यू आर द पार्टी।' वाले कमेंट के साथ। फिर एक सुझाव भी 'यू मे वेट आउटसाइड।'
उसने डॉक्टर अग्रवाल को मुड़ कर देखा तो उसे बदले में एक सहानुभूतिपूर्ण अजीब हँसी मिली। तब वह समझा कि घूस के हाथ वहाँ भी पहुँच गए हैं।
जब चिता की अंतिम चिंगारी बुझने लगी तो उसने घड़ी देखी। आठ बजने में पाँच मिनट थे। उसने न जाने किस से कहा, 'चलें।'
दो कदम आगे बढ़ा कर उसने मुड़ कर देखा तो वारियर और मिसेज वारियर उसी तरह खड़े थे। पीछे जा कर वारियर के कंधे पर हाथ रख के उसने कहा, 'मिस्टर वारियर !'
फौरन मिसेज वारियर के कंधे पर सोई पड़ी बच्ची जग कर रोने लगी। 'अम्मा, अम्मा'। मिसेज वारियर की प्रतिक्रिया भी जल्दी हुई, 'बेटी बेटी...' फिर वह फूट-फूट कर रोने लगी।
एक क्षण हिचक कर वह खड़ा रहा। फिर उसने कहा, 'आइए मिसेज वारियर। अब यहां खड़े रहने से फायदा नहीं।'
'मेरी बिटिया यहाँ सो रही है।' वह रुलाई के बीच बोलीं, 'उसे अकेले छोड़ कर मैं कैसे जाऊँ ?'
उसने जवाब दिए बगैर जरा-सा बल दे कर उन्हें चलाया और कार के पीछे की सीट पर बिठाया। वारियर के भी अंदर बैठने के बाद, दरवाजा बंद करके, कार के पीछे से वह चला और अचानक रुका। दो फुट पीछे स्कूटर पकड़े खड़े कँवल को देखा। वह आगे बढ़ा तो कँवल ने पुकारा, 'मिस्टर मेनन !'
उसने उसकी उपेक्षा करके कार का दरवाजा खोला और कार स्टार्ट कर दी, पर कँवल पास आ चुका था।
कँवल ने कहा, 'मेरी बच्ची मुझे देने को कहिएगा। मिस्टर मेनन।'
मिसेज वारियर ने ही उसका जवाब दिया था, 'क्यों ? इस नन्हे को भी मारने के लिए। महापापी, तूने मेरी बेटी को मारा। अब इस नन्ही बच्ची को भी मारना चाहता है तू?'
'माँजी, मैंने उसे नहीं मारा।' कँवल ने उसकी तरफ देख के कहा, 'मिस्टर मेनन, प्लीज बिलीव मी। आई लव्ड हर बट आई कुड नॉट आई कुड नॉट".'
'यू कुड नॉट सेव हर' उसने वाक्य पूरा किया।
एक क्षण संकोचवश खड़े रहकर कँवल ने धीरे से सिर हिलाया।
उसने उससे कहा, 'कँवल, यू आर ए कावर्ड।'
उसने तुरंत एक्सेलेरेटर पर पैर का दबाव बढ़ाया। कार तीर के समान आगे बढ़ी।
कुछ देर बाद उसने कहा, 'मिस्टर वारियर, एस०पी० को दिए पैटीशन के अलावा चीफ मिनिस्टर और प्राइम मिनिस्टर को भी एक रिप्रसेंटेशन भिजवाना चाहिए। ऐसा नहीं करेंगे तो हमें न्याय नहीं मिलेगा। इधर इन लोगों ने सबको वश में कर लिया है। पुलिस, डॉक्टर और सबको'
कुछ देर तक कोई कुछ नहीं बोला।
फिर मिसेज वारियर बोलीं, 'मैंने भाई दिवाकर से फोन पर बात की है। नाई कहता है कि मुकदमेबाजी और झगड़े में मत पड़ना। कोर्ट गए बिना समझौता करना ही ठीक होगा।'
उसने आश्चर्य से कहा, 'मिसेज वारियर...'
उसने कार की तेजी कम करके और मुड़कर देखा, पर वे उसे नहीं देख रही थीं। गोद में सोई बच्ची को सहलाते हुए, मानो सपने में मिसेज वारियर कह रही थीं, 'हम अब चाहे जो कुछ भी करें, सीता नहीं लौटेगी, मेनन। हम इस बच्ची का पालन-पोषण करेंगे। इसे सीता समझ कर.' उन्हें पूरा बोलने नहीं दिया उसने, 'फिर इक्कीस वर्ष की उम्र में एक और कापालिक से इसकी शादी कर देंगे। है न ?'
'कृपा करके मजाक न करें, मेनन,' शंकर वारियार ने कहा, 'तुम्हारे अनुसार चलें तो सारा जीवन कोर्ट में बिताएँगे। यह कहना आसान है कि ऐस करो, वैसा करो, पर क्या यह व्यावहारिक है ? इन बातों में तुमसे भी जानकार दिवाकर वारियर की राय मानना ही ठीक होगा ?'
उसने कड़वेपन से कहा, 'ठीक है ! अगर दिवाकर वारियर ने ऐसा कहा है तो वैसा ही करें। वे तो वकील ठहरे।'
पर शंकर वारियर उस पर ध्यान नही दे पा रहे थे। उन्होंने कहा, 'अगले वर्ष में मैं रिटायर हो रहा हूँ। मुकदमे वगैरह में फस गए तो शेष जीवन में चैन नहीं मिलेगा।'
उसने पूछा, 'अगर ऐसा न किया तो क्या आपको चैन मिल सकेगा, वारियरजी ?'
उनका जवाब नहीं आया।
वे घर पहुँचे गए थे। वह इंजन ऑन किए बिना बैठा बैठा रहा, मानो उसे कुछ देर से किसी का इंतजार कर रहा हो। उसके बाद पति-पत्नी कार से उतरे। वह उस समय तक उन्हें देखता रहा जब तक वे अपना गेट खोल के अंदर पहुँच गायब नहीं हो गए। फिर कार गैराज में जा कर खड़ी कर दी।
उसकी पत्नी फाटक पर खड़ी थी। उसने पूछा, 'क्या हुआ ?'
'कवार्ड्स,' उसने कहा, 'ऑल आर कावर्ड्स'
नहाके सिर्फ एक गिलास दूध पी कर उसने आलमारी से एलबम निकाला। उसके पृष्ठ हटाते-हटाते सीता की फुलसाइज फोटो पर आ रुका। ब्राह्मणी नदी के किनारे वे सब एक बार पिकनिक के लिए गए थे। तब उसने वह फोटो खींची थी। पाँव तक लंबा रेशमी लहँगा पानी में भिगो के मुख को एक तरफ मोड़ के सीता उसे देख हँस रही थी।
एक लंबी साँस के साथ उसने एलबम बंद कर दी।
(अनुवाद : वी० डी० कृष्णन् नंपियार)