जादुई मयूर : लोक-कथा (बंगाल)

Jadui Mayur : Lok-Katha (Bangla/Bengal)

बहुत दिनों पहले की बात है। एक शहर की ओर जानेवाले पथ के किनारे एक सरायखाना था। उस पथ से शहर जल्दी पहुँचा जा सकता था, परंतु उस पथ पर कम लोग ही आते-जाते थे। कारण यह कि उस पथ में एक घना जंगल पड़ता था। कभी-कभी हिंसक पशु पथ पर चलनेवालों पर आक्रमण कर देते थे, जिससे पथिकों की मृत्यु भी हो जाती थी। इसीलिए प्राण-भय से लोग उस पथ से शहर जाने में हिचाकिचाते थे। जिन्हें जरूरी या जल्दी होती थी, वे ही उस पथ से जान को हथेली पर लेकर शहर जाते थे।

उस सड़क पर अधिक आवागमन नहीं था, इसलिए सरायखाने में बहुत कम लोग आते थे। सरायखाने का मालिक अकसर बैठकर मक्खी मारा करता था।

सरायखाने का मालिक अच्छा आदमी था। उसका हृदय दया का सागर था। सरायखाने में आनेवालों से वह बहुत अच्छा व्यवहार करता था। उनके आदर-सत्कार में कोई कमी नहीं करता था। सरायखाने में रहने-खाने के उपरांत अगर किसी के पास पूरा पैसा नहीं होता था, तब भी वह कभी उसके साथ खराब व्यवहार नहीं करता था। अनेक गरीब वहाँ आते। वे सब जब समय पर उचित पैसा नहीं दे पाते, तब सरायखाने का मालिक उनसे कुछ काम करवा लेता।

एक दिन एक पथिक सरायखाने में रहने के लिए आया। उसका नाम था सामंत। वह जाति का कुम्हार था। मिट्टी की हाँड़ी, भाड़, कलसी इत्यादि बनाकर वह बेचा करता था। वह सरायखाने में आकर भोजनादि कर रात में वहीं सो गया। सुबह लोग चलने से पहले सरायवाले को पैसे देते थे, परंतु उसके पास पैसे तो थे नहीं। सामंत ने सुना था कि सरायवाला अत्यंत उदार व्यक्ति है। कोई उसका गुणगान करे तो वह बहुत खुश हो जाता है। तब रुपए-पैसे के लिए जुल्म नहीं करता है। सुबह सराय से निकलने के समय सामंत ने सरायवाले से कहा, "सब लोग आपका गुणगाण करते हैं। मैंने भी देखा है कि आप बहुत अच्छे आदमी हैं। ग्राहकों की सेवा अपने लोगों की तरह करते हैं। साधारणत: ऐसा कहीं नहीं देखा जाता है। आपको देने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं, पर कुछ कम दामी मिट्टी के पात्र हैं। लेकिन उनसे आपका पैसा पूरा नहीं होगा। मेरे पास कुछ रंगीन खड़िया मिट्टी के टुकड़े हैं। वे सब मैं आपको दे सकता हूँ।"

सामंत के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर सरायवाला मुग्ध हो गया। उसने कहा, "मुझे इन सब चीजों की जरूरत नहीं है भाई! तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं तो क्या हुआ? तुम जा सकते हो।"

सामंत ने कहा, "रंगीन खड़िया मिट्टी आप रख लें। ये जादुई खड़िया मिट्टी हैं। बहुत अद्भुत कार्य होते हैं इसके द्वारा।" यह कहकर उसने रंगीन खड़िया मिट्टी से दीवार पर एक पक्षी का चित्र बनाया। पक्षी की देह पर विभिन्न प्रकार रंग लगाने से देखा गया कि वह एक मयूर बन गया है।

तसवीर देखकर सरायवाला बोला, “बहुत सुंदर तसवीर बनाई है तुमने। बिल्कुल मयूर जैसी तसवीर है।

सामंत बोला, “और क्या-क्या हो सकता है आगे देखिए! इस तसवीरवाले मयूर को मैं जीवित कर दूंगा।" यह कहकर उसने तसवीर की ओर देखकर दो बार ताली बजाई। आश्चर्य! ताली बजाने के साथ ही तसवीर जीवित हो उठी। मयूर अपनी गरदन को इधर-उधर घुमाने लगा। उसके बाद दीवार से नीचे उतरकर अपने पंखों को फैलाकर नाचने लगा।

तसवीरवाले मयूर की नाच देखकर सब आश्चर्यचकित हो गए। तसवीर भी जीवित हो सकती है, किसी ने जाना-सुना नहीं था। सभी लोग सामंत की अद्भुत क्षमता की तारीफ करने लगे। तब सामंत ने कहा, “अब देखिए, तसवीर का जीवित मयूर पुनः तसवीर बन जाएगा!" यह कहकर उसने तीन बार ताली बजाई। देखते-ही-देखते मयूर पहले की तरह दीवार में समाकर चित्र बन गया।

सामंत ने सरायवाले को कहा, "यह जादूवाला मयूर मैं आपको देकर जा रहा हूँ। आप जब दो बार ताली बजाइएगा, तब मयूर दीवार से नीचे उतरकर नाचने लगेगा। जब तीन ताली बजाइएगा, तब मयूर पुनः पहले जैसी तसवीर बन जाएगा। यह मयूर आपका बहुत उपकार करेगा। मयूर का नाच देखने के लिए लोगों की भीड़ लग जाएगी आपके सरायखाने में। तब एक बात याद रखिएगा। इस कमरे में मात्र एक व्यक्ति हो, तो विपद होगा। मयूर जिंदा तो होगा, परंतु तुरंत मर जाएगा।"

उसके बाद सामंत सरायवाले से विदा लेकर चला गया।

उस दिन से सरायवाले ने अपने ग्राहकों को मयूर का नाच दिखाना शुरू कर दिया। ग्राहक जब भोजन करने बैठते तो वह कहता, “देखिए, आप लोगों के आनंद के लिए मैं एक जादू का खेल दिखाता हूँ। ऐसा खेल आप किसी भी सरायखाने में नहीं देख पाइएगा।" यह कहकर वह दीवार की तसवीर के सामने खड़े होकर दो बार ताली बजाता। तुरंत तसवीर का मयूर जीवित हो जाता एवं धीरे से जमीन पर उतरकर नाच दिखाने लगता। ग्राहक भोजन करना भूलकर आश्चर्यचकित होकर मयूर का नाच देखते रहते थे। कुछ देर बार सरायवाला तीन ताली बजाता। देखते-ही-देखते नाचता हुआ मयूर दीवार में समाकर तसवीर बन जाता।

ऐसी आश्चर्य वाली घटना को फैलने में देर नहीं लगती है। जो सुनता, अवाक् रह जाता। दिनप्रतिदिन सरायखाने में लोगों की भीड़ बढ़ने लगी। सब जादुई मयूर का नाच देखने के लिए आते। वे लोग जल्दी-जल्दी भोजन कर लेते। भोजन का पैसा भी पूरा चुका देते, फिर मयूर का नाच देखने का आग्रह करते। सरायवाला तब अपने ग्राहकों को संतुष्ट करने के लिए मयूर का नाच दिखाता। देखते-देखते उस उपेक्षित सरायखाने में लोगों का जमघट लगने लगा। सरायवाले का भाग्य जाग उठा। अब वह बहुत अमीर बन गया था।

एक दिन रात में एक व्यक्ति सरायखाने में आया। वह दूसरे देश का एक धनी व्यापारी था। उसने सरायवाले को कहा, "मैंने सुना है कि तुम्हारे इस सरायखाने में एक जादू के मयूर का नाच होता है! क्या यह सच है?"

सरायवाले ने कहा, "जी, बिल्कुल सच है।"

व्यापारी बोला, "मैं मयूर का नाच देखूँगा। इसके लिए मैं तुम्हें एक थैली सोने की मोहर दूंगा।"

सरायवाले ने कहा, "आप थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए। और कुछ लोग आ जाएँ तो एक साथ सबको नाच दिखाऊँगा।"

व्यापारी बोला, "नहीं-नहीं। कोई आदमी नहीं रहेगा। जादुई मयूर का नाच मैं अकेले देखना चाहता हूँ। यह लो सोने की मोहर की थैली।"

एक थैली सोने की मोहर पाकर सरायवाला बहुत खुश हो गया। कुम्हार सामंत की बात उसे याद नहीं रही। उसने कहा, "आप बैठिए। अभी आपको मयूर का नाच दिखाता हूँ। यह जो आप दीवार पर मयूर की तसवीर देख रहे हैं, मैं उसे जिंदा कर दूंगा। उसके बाद वह घूम-घूमकर नाच दिखाएगा।" यह कहकर उसने दो बार ताली बजाई। तभी तसवीरवाला मयूर हिलने-डुलने लगा, लेकिन वह कूदकर जमीन पर नहीं उतरा। ऐसा लग रहा था मानो हिलने-डुलने में उसे बहुत कष्ट हो रहा है। धीरे-धीरे अत्यंत कष्टपूर्वक वह जमीन पर उतरा, परंतु नाच नहीं सका। खड़े-खड़े वह थर-थर काँपने लगा, फिर एक तरफ लुढ़ककर उसने प्राण त्याग दिए। पलभर में सारी घटनाएँ घट गईं। मयूर जमीन में समाकर एक तसवीर बनकर रह गया।

व्यापारी ने झट से सरायवाले के हाथ से मोहरवाली थैली छीन ली और क्रोध से गर्जन करते हुए कहा, "यही है तुम्हारा मयूर-नाच? यही दिखाने के लिए एक थैली सोने की मोहर लिया था? मुझे क्या तुमने अहमक समझा है? एकदम मूर्ख समझा है ?" यह कहकर वह सरायखाने से निकलकर तेज कदमों से चलने लगा।

सरायवाले को कुम्हार सामंत की बातें याद आईं। वह अपना सिर पीट-पीटकर कहने लगा, “हाय! हाय! क्यों मैं सोने की मोहर के लोभ में पड़ गया? कुम्हार सामंत ने मुझे एक व्यक्ति के सामने मयूर का नाच दिखाने से मना किया था। उसकी बात अनसुनी कर क्यों मैंने सर्वनाश को आमंत्रित किया? हाय! हाय! अब कोई ग्राहक मेरे सरायखाने में नहीं आएगा।"

सरायवाले ने बड़ी आशा के साथ कई बार तालियाँ बजाईं, पर तसवीरवाला मयूर जीवित नहीं हुआ।

रात बहुत बीत गई थी। सरायवाला घनघोर नींद में था। तभी हठात् एक बाँसुरी की आवाज सुनकर उसकी नींद टूट गई। इतनी रात को उसके दरवाजे पर कौन बाँसुरी बजा रहा है, यह देखने के लिए वह दरवाजा खोलकर बाहर निकला। देखा, वही सामंत बाँसुरी बजा रहा है। खुले दरवाजे से वह भीतर आया और मयूर की तसवीर के पास खड़े होकर बाँसुरी बजाने लगा। कुछ ही देर में वह मयूर जीवित हो उठा। वह सामंत के पीछे-पीछे चलते-चलते रात्रि के अंधकार में विलीन हो गया। उसके बाद उन्हें फिर किसी ने नहीं देखा।

  • बंगाली/बांग्ला कहानियां और लोक कथाएँ
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां