जादुई किताब / रूपान्तर : हीरालाल नागर

राजकुमार खमवास सेतना सम्राट यूसेर मातरा के पुत्र थे। वह अपना अधिकांश समय पुरातात्विक भाषा, जादू-टोने और अतिप्राचीन वस्तुओं के संग्रह में लगाते थे। एक दिन उन्हें पता चला कि साक्षात् भगवान थोट के हाथों लिखी कोई किताब है जो पूर्व सम्राट नानेफर का प्ताह के मकबरे में बन्द है।

काफी खोजबीन के बाद राजकुमार खमवास सेतना ने नानेफर का प्ताह के मकबरे को ढूँढ़ निकाला। इसमें उसके भाई इनारोज ने उनकी मदद की। राजकुमार खमवास वहाँ पहुँचे और मकबरे को खोल दिया। उन्होंने देखा कि जादुई किताब रखी है जिसके चारों ओर रोशनी की किरणें फैली हुई हैं। उन्होंने उस किताब को लेना चाहा तो मकबरे के आसपास नानेफर का प्ताह की पत्नी अशवर (अहूरा) की रूह जाग पड़ी। अशवर की रूह खमवास के सामने प्रकट हुई और उसने किताब छूने से मना किया।

खमवास जब नहीं माना तो अशवर ने कहा, “किताब यदि तुमने लेने की कोशिश की तो तुम भयंकर मुसीबत में फँस जाओगे, जिस तरह नानेफर का प्ताह को अपनी पत्नी तथा बेटे से हाथ धोना पड़ा।”

आगे की कहानी अशवर ने इस प्रकार बयान की -

हम पिता मरनेब का प्ताह की दो सन्तानें थीं - एक मैं और दूसरे मेरे पति नानेफर का प्ताह। हम दोनों भाई-बहिन थे। बचपन से हम एक-दूसरे को बेहद प्यार करते थे। जब हम युवावस्था में पहुँचे, पिता मरनेब का प्ताह ने हमारी शादियाँ जनरल के परिवार में करने की इच्छा प्रकट की। यह सुनकर मुझे बुरा लगा। मैंने सम्राट मरनेब का प्ताह के विश्वसनीय सलाहकार से नानेफर का प्ताह से शादी करने की इच्छा प्रकट कर दी।

सम्राट मरनेब का प्ताह सोच में डूब गये। सलाहकार ने कहा - “आप इतने चिन्तित क्यों हैं?”

“मेरी दो ही सन्तानें हैं - एक पुत्र और दूसरी पुत्री, क्या इन्हें आपस में वैवाहिक बन्धन में बाँधना उचित है? मैं नानेफर का प्ताह का विवाह जनरल की पुत्री के साथ और अशवर का विवाह, जनरल के पुत्र के साथ करने का इच्छुक हूँ। ताकि हमारा परिवार फले-फूले।” मरनेब का प्ताह ने अपनी चिन्ता प्रकट कर दी।

दूसरे दिन रात्रिभोज में मैं प्ताह के सामने जाने की इच्छुक नहीं थी। लेकिन उन्होंने मुझे बुलाया और कहा-”तुम अपने भाई नानेफर का प्ताह के साथ शादी रचाओगी, यह सुनकर मुझे दुःख है।”

मैंने प्ताह से निवेदन किया-”नहीं! आप जनरल के यहाँ हमारी शादी करें। ताकि आपका परिवार फले-फूले।”

राजा चुप रहे फिर उन्होंने सलाहकार को बुलाया और आज्ञा दी कि आज रात अशवर को दुल्हन बनाकर नानेफर का प्ताह के कमरे में ले जाया जाए। और उसे बहुमूल्य उपहारों से नवाजा जाए।

उस रात मुझे दुल्हन के वेश में नानेफर का प्ताह के पास ले जाया गया। परिवार के लोगों ने हमें कीमती सोने-चाँदी और हीरे-जवाहरात के परिधानों से अलंकृत किया। उस रात मैं और नानेफर का प्ताह एक ही कमरे में रहे। जितना हो सकता था - हमने एक-दूसरे को प्यार किया।

जब मेरे प्रमाणीकरण का वक्त आया तो नानेफर का प्ताह ने खुद यह सूचना प्रसारित कर दी कि हम खुश हैं। इस शुभ सूचना से सम्राट ने हमारे लिए बेशकीमती वस्तुओं का खजाना खोल दिया और गरीबों को धन लुटाया।

इसके बाद सम्राट ने हमें पूजा के लिए मन्दिर भेजा। युवराज नानेफर का प्ताह मन्दिर में दीवारों पर खुदी आयतें पढ़ने लगे तो मन्दिर का बूढ़ा पुजारी हँसा। युवराज ने उसके हँसने का कारण पूछा। बूढ़ा पुजारी बोला - “आपको इन आयतों के पढ़ने से क्या फायदा। यदि आप सचमुच कुछ पढ़ना चाहते हैं तो वह जादुई किताब पढ़ो, जिसके पाते ही पृथ्वी-आकाश सब बस हो जाते हैं।”

“वह जादुई किताब कहाँ है?” युवराज ने पूछा।

पुजारी ने निवेदनपूर्वक कहा - “आपको इस काम के बदले चाँदी की सौ गिन्नियाँ देनी होंगी और दक्षिणा में दो कररहित-जीवन वृत्तियाँ देना स्वीकार करना पड़ेगा।”

युवराज मान गया और उसने पुजारी को मनोवांछित धन से मालामाल कर दिया।

पुजारी ने उस जादुई किताब के बारे में विस्तार से बताया - “कैप्टोज के पास एक बड़ी नदी है। जिसके अथाह जल के नीचे एक लौह-सन्दूक रखा हुआ है। जिसके चारों ओर जल-जीवधारी लगातार पहरा देते हैं। और फिर एक विशाल सर्प उसे अपने गुंजलक में समेटे रहता है। करीब छः मील की परिधि में विषैले सर्पों का डेरा है। लोहे के उस बक्से के अन्दर ताँबई रंग का मजबूत बक्स है। ताँबई बक्से में हाथी दाँत से मढ़ा आबनूस का एक छोटा सन्दूक है और उसके अन्दर चाँदी का बक्स मौजूद है। चाँदी के बक्स के अन्दर रखे सोने के बक्स में मौजूद है, वह जादुई किताब!”

युवराज नानेफर का प्ताह घर वापस हुए और उन्होंने उस जादुई किताब का जिक्र किया। सम्राट मरनेब का प्ताह ने पूछा कि तुम अपना मन्तव्य प्रकट करो। इस पर युवराज ने अपने निश्चय को दुहराया - “मैं हर परिस्थिति में उस किताब को पाना चाहता हूँ। इसके लिए अपना बेड़ा और कुछ कुशल मल्लाह देकर मेरी मदद कीजिए।”

सम्राट ने फौरन युवराज की इच्छा के मुताबिक ‘जल-यात्रा’ के सारे प्रबन्ध कर दिये।

सबसे पहले हम कैप्टोज के निकट आइसिस द्वीप पहुँचे। आइसिस द्वीप के पुजारियों ने हमारा स्वागत किया और हमारे रहने-खाने की उत्तम व्यवस्था की। तीन-चार दिन हम पुजारियों और उनकी पत्नियों की आवभगत में रहे। पाँचवें दिन हमने कैप्टोज के लिए कूच किया।

रात-दिन की यात्रा के बाद हम विशाल सागर-सी नदी के बीचों-बीच पहुँच गये। हमें बेड़े में छोड़कर-नानेफर का प्ताह अकेले उस गहरी जल-सतह पर उतर गये। अन्दर पहुँचकर युवराज को विषैले सर्पों से जूझना पड़ा। बाधा पार करते हुए बक्से के नजदीक पहुँचे। उन्होंने देखा कि बक्सा एक अजदहे की गिरफ्त में है। राजा ने तलवार से उसका सिर, धड़ से अलग कर दिया। मगर सिर अलग होते ही फिर जुड़ गया। यह दो-चार बार हुआ। युवराज ने युक्ति से पाँचवीं बार उसके सिर को नीचे रेत में गाड़ दिया। और वह सर्प मर गया। उन्होंने वह सन्दूक पा लिया। सन्दूक से वह जादुई किताब निकाली और ऊपर आ गये।

‘मैंने’ - अशवर ने कहा - उस किताब को युवराज के हाथ से छीना और पढ़ने लगी। उसका एक मन्त्र पढ़ते ही मेरे सामने आसमान खुल गया। धरती, पहाड़, नदी, झरने फैल गये। असंख्य पक्षियों का कलरव सुनाई देने लगा। मैंने जब दूसरा मन्त्र पढ़ा तो आसमान और जमीन के क्षितिज से चाँद निकलता दिखाई दिया। आकाश के असंख्य तारे भी नजर आने लगे। मुझे समुद्र में वह मछली भी दिखाई दी - जिस पर कई घन फुट पानी उछल रहा था। फिर धीरे-धीरे वह अद्भुत आसमान, झरने, पहाड़, नदियाँ गायब हो गयीं। मैंने जब इस दृश्य का वर्णन किया तो नानेफर का प्ताह खुशी से झूम उठे। लेकिन उनकी यह खुशी ज्यादा देर तक न टिक सकी।

हम आइसिस द्वीप लौटे।

भगवान थोट ने जब यह सुना कि नानेफर का प्ताह उनकी किताब कैप्टोज के उस गुह्य-तल से उठा लाया है तो उसने तमाम दैवी शक्तियों को हमारे खिलाफ उद्दीप्त कर दिया। उन दैवी-शक्तियों ने हमारे बेटे मेरिब की जान ले ली। मेरिब बेड़े से निकला और पानी में गिर गया। किसी तरह नानेफर का प्ताह ने उसकी लाश को पाने में सफलता हासिल कर ली। आगे चले तो नानेफर का प्ताह पानी में डूब गये। फिर मेरे जिन्दा रहने की कोई उम्मीद नहीं थी।

सम्राट मरनेब का प्ताह ने जब यह समाचार सुना तो दुःख से पागल हो गये। उन्होंने अपने बेटे नानेफर का प्ताह की लाश हासिल कर इस मकबरे में दफन किया। और जादुई-किताब को भी यहाँ रखा। जिसे तुम पाना चाहते हो।

मगर खमवास सेतना ने यह कहानी सुनकर भी परवाह नहीं की। उसने कहा-वह इस किताब को हासिल करके रहेंगे। जब वह नहीं माना तो नानेफर का प्ताह की रूह भी जिन्दा हो उठी। और खमवास के सामने एक शर्त रखी - यदि तुम चौबीस कड़ियों के खेल में मुझे हरा दो तो यह किताब ले जा सकते हो।

खमवास तैयार हो गया। दोनों की बाजी बिछ गयी। नानेफर का प्ताह ने पहला गेम जीत लिया। उन्होंने खमवास को जमीन पर घुटने के बल बैठने के लिए कहा। खमवास बैठ गया। बैठते ही उसके घुटने जमीन में धँस गये। दूसरा गेम भी नानेफर का प्ताह ने खमवास को हरा दिया। और खमवास का धड़ जमीन में धँस गया। तीसरे और अन्तिम गेम में खमवास को जमीन में बिला जाना था लेकिन उसके भाई इनारोज ने उसे बचा लिया। इनारोज ने बड़ी चालाकी से जादुई किताब को हासिल कर खमवास सेतना को बाहर निकाला और मकबरे से निकल आये। खमवास सेतना उस किताब को पाकर बहुत खुश हुआ। उसके अधीन अब आसमान था और धरती भी। परन्तु इस किताब को पाने के बाद खमवास सेतना पर जो मुसीबत के बादल टूटे - उसकी कहानी अलग है। उसकी सारी सन्तानें मर गयीं। खमवास जब बहुत व्याकुल हुआ तो उसने भगवान थोट को याद किया। भगवान थोट ने कहा - उस जादुई किताब का सच्चा अधिकारी नानेफर का प्ताह ही है - इसलिए उसे वहीं पहुँचा दो। खमवास ने वैसा ही किया। उसके सर पर मँडराते मुसीबत के बादलों के साये हट गये। उसने अपना सारा जीवन प्राचीन चीजों के संग्रह करने में ही व्यतीत कर दिया।

खमवास सेतना जीवित नहीं है लेकिन उसके द्वारा इकट्ठी की गयी प्राचीन चीजें अब भी मौजूद हैं -ऐसा लोगों का कहना है।

ग्रीस (यूनान)

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