जादुई चिड़े, का मीठा गाना : तनज़ानिया लोक-कथा

Jadui Chide Ka Meetha Gana : Tanzania Folk Tale

एक दिन एक अजीब सा चिड़ा एक छोटे से गाँव में आया और नीची पहाड़ियों की तलहटी में अपना घोंसला बना कर रहने लगा। तब से वहाँ कुछ भी सुरक्षित नहीं रहा। सब कुछ बदल गया।

गाँव वाले जो कुछ भी अपने खेतों में बोते थे वह सब रात भर में गायब हो जाता था। रोज भेड़ों, बकरियों और मुर्गों की गिनती कम होती जा रही थी।

दिन में भी जब वहाँ लोग खेतों पर काम कर रहे होते थे तो वहाँ बहुत बड़ी बड़ी चिड़ियें आतीं और उनके भंडारघर और अनाजघर तोड़ देतीं और उनमें से उनका जाड़ों के लिये रखा हुआ अनाज चुरा कर ले जातीं।

इस सबसे बेचारे गाँव वाले बहुत परेशान थे। सारे देश में दुख ही दुख था। सारे लोग रो रहे थे और गुस्से के मारे दाँत पीस रहे थे। कोई भी ऐसा नहीं था, कोई सबसे बहादुर आदमी भी नहीं, जो उस चिड़े को पकड़ सकता क्योंकि वह इन सब लोगों के लिये बहुत तेज़ था।

किसी ने उसको देखा भी नहीं था। बस केवल उसके उड़ने की आवाज सुनी थी जब वह पीली लकड़ी वाले पेड़ पर उसके घने पत्तों में बैठने आता था। इस सबसे तंग आ कर उस गाँव के सरदार ने तो अपने सिर के बाल भी नोचने शुरू कर दिये थे।

एक दिन जब उस चिड़े ने अपने हिस्से के जानवर और अनाज ले लिया तो सरदार ने सब लोगों को अपनी अपनी कुल्हाड़ियाँ और बड़े वाले चाकू तेज़ करने के लिये कहा और एक हो कर उस चिड़े के खिलाफ लड़ने के लिये कहा।

उसने उन लोगों से कहा कि उस चिड़े का एक ही इलाज हो सकता था कि वे लोग उस पेड़ को ही काट डालें जिस पर वह बैठता था।

सो सरदार की बात मान कर लोगों ने अपनी अपनी कुल्हाड़ियाँ और बड़े वाले चाकू पैने किये और उस बड़े पेड़ की तरफ उसको काटने के लिये चल दिये।

उनका पहला वार उस पेड़ के तने पर बहुत गहरा पड़ा। इससे पेड़ के ऊपर की पत्तियाँ बहुत ज़ोर से हिल गयीं और उसमें से वह बड़ा चिड़ा निकला।

उस चिड़े के वहाँ से उड़ने के साथ साथ उसके गले से एक बहुत ही मीठा गीत भी निकला जो सब लोगों के दिलों में जा कर बैठ गया।

उस गीत ने उनको दूर की जगहों की बहुत सारी बातें बतायीं जो कभी वापस नहीं आतीं। उसकी आवाज में ऐसा जादू था कि एक के बाद एक उन सारे आदमियों के हाथों से उनकी कुल्हाड़ियाँ और बड़े चाकू नीचे गिर पड़े।

वे अपने घुटनों पर बैठ गये और ऊपर की तरफ उस चिड़े की तरफ इस तरह देखने लगे जैसे उससे कुछ माँग रहे हों और वह चिड़ा तो बस अपनी पूरी शान से गाये जा रहा था और गाये जा रहा था।

लोगों के हाथ कमजोर पड़ गये थे और उनके दिल भी बहुत प्रेम भरे हो गये थे। वे सोच रहे थे कि इतना सुन्दर चिड़ा उनका इतना सारा नुकसान कैसे कर सकता था।

और जब सूरज पश्चिम में लाल हो कर डूबा तो वे नींद में चलने वालों की तरह से बेहोशी में चल कर गाँव के सरदार के पास वापस आ गये और उससे कहा कि वहाँ तो कुछ भी नहीं था और जब वहाँ कुछ था ही नहीं तो वह उस चिड़े का क्या बिगाड़ सकते थे।

यह सुन कर सरदार बहुत गुस्सा हुआ। वह बोला — “अब मुझे अपने कबीले के जवानों की सहायता लेनी पड़ेगी। वही इस चिड़े की ताकत को नाकामयाब करेंगे। ”

सो अगली सुबह उसके कबीले के जवान अपनी अपनी कुल्हाड़ियाँ और बड़े बड़े चाकू ले कर उस पेड़ की तरफ चल दिये। उनके पहले कुछ वार पेड़ के तने के ऊपर बहुत ज़ोर से पड़े जो उसमें बहुत गहरे घुस गये।

फिर पहले की तरह पेड़ के ऊपर की घनी पत्तियों में से वह रंग बिरंगा चिड़ा निकला और फिर पहले की तरह उसके गले से एक मीठा गीत पहाड़ियों के चाराें तरफ गूँज गया।

उन जवान लोगों ने उसका वह गाना सुना तो वे भी उसमें खो गये। उस गाने में उनको प्यार साहस और बहादुरी के उन कामों को बताया गया था जो उनको करने थे।

उनको भी ऐसा ही लगा कि यह चिड़ा बुरा नहीं हो सकता था। उन जवानों के भी हाथ कमजोर हो गये और उनके हाथों से उनकी कुल्हाड़ी और बड़े चाकू गिर गये। वे भी उस चिड़े के सामने पहले आदमियों की तरह से झुक कर बैठ गये और उस चिड़े के गाने को सुनते रहे।

जब रात हुई तो वे भी नींद से जागे हुओं की तरह से वहाँ से उठे और सरदार के पास पहुँचे। उनके कानों में उस भेदभरे चिड़े का वह मीठा गीत अभी भी गूँज रहा था।

उनके समूह के नेता ने कहा कि यह वाकई नामुमकिन है कि कोई इस चिड़े की जादुई ताकत का सामना कर सके।

उनकी बात सुन कर सरदार फिर बहुत गुस्सा हुआ। वह बोला — “अब तो बस बच्चे ही रह जाते हैं। बच्चे सच सुनते हैं और उनकी आँखें भी साफ साफ देखती हैं। मैं खुद बच्चों को ले कर वहाँ जाऊँगा और देखता हूँ कि क्या होता है। ”

सो अगली सुबह सरदार खुद अपने कबीले के बच्चों को ले कर उस पेड़ के पास गया जहाँ वह चिड़ा रहता था। जैसे ही बच्चों ने पेड़ को कुल्हाड़ी से छुआ, पहले की तरह से पेड़ के ऊपर लगे पत्ते हिले और वह चिड़ा उनमें से बाहर निकला।

वह चिड़ा इतना सुन्दर लग रहा था कि बच्चों की आँखें चौंधिया गयीं। पर बच्चों ने ऊपर नहीं देखा उनकी आँखें अपनी कुल्हाड़ियों और बड़े चाकुओं पर ही लगी रहीं। वे अपना गीत गाते जा रहे थे और पेड़ काटते जा रहे थे।

वे अपने गीत की ताल पर उस पेड़ को काटते रहे, काटते रहे और काटते रहे। चिड़े ने अपना गाना शुरू किया। सरदार ने उसके गाने को सुना और मान गया कि उसके गाने का वाकई कोई मुकाबला नहीं था।

यहाँ तक कि उसके अपने हाथ भी कमजोर पड़ने लगे पर बच्चों के कान तो अपने कुल्हाड़ी और बड़े चाकू से लकड़ी के काटने की ही आवाज सुन रहे थे। इसी लिये वे चिड़े का मीठा गाना न सुन कर उस पेड़ को काटते रहे काटते रहे।

आखिर वह पेड़ चरचराया और चरचरा कर नीचे गिर पड़ा और उस पेड़ के साथ गिर पड़ा वह अजीबो गरीब भेदभरा चिड़ा। सरदार ने उस चिड़े को वहाँ से उठा लिया जहाँ वह गिर कर पेड़ों की शाखों के बोझ के नीचे आ कर मर गया था।

सब जगह से लोग खुशियाँ मनाते हुए वहाँ चले आये। बड़े बुड्ढे और मजबूत जवान लोगों को तो विश्वास ही नहीं हुआ कि छोटे छोटे बच्चे अपने पतले पतले हाथों से यह काम कर देंगे।

उस रात सरदार ने उन बच्चों को इनाम देने के लिये एक दावत का इन्तजाम किया। वह बोला — “तुम ही लोग हो जो सच सुनते हो और साफ देखते हो। तुम ही हमारी जाति की कान और आँख हो। ”

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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