जादूगर नर : असमिया लोक-कथा

Jadugar Nar : Lok-Katha (Assam)

एक बार की बात है कि लाइथा17 नाम के एक आदमी ने शादी की। कुछ दिनों बाद उसको पता चला कि उसकी पत्नी माँ बनने वाली थी तो यह सुन कर लाइथा बहुत खुश हुआ।

उन लोगों का चावल का खेत था सो वे लोग वहीं काम करते थे। लाइथा की पत्नी भी वहीं काम करती थी सो वे दोनों वहीं काम करते रहे। एक दिन लाइथा की पत्नी जब खेत पर काम करने जा रही थी तो उसका बच्चा उसके पेट में से ही बोला — “माँ, आज बहुत तेज़ बारिश होने वाली है पानी से बचने के लिये तुम खजूर का एक पत्ता साथ लेती जाओ।”

माँ बोली — “तुम तो अभी मेरे पेट के अन्दर ही हो तुम्हें बारिश का क्या पता?”

उसने बच्चे की बातों पर ध्यान नहीं दिया और वह खेत पर काम करने चली गयी। वहाँ पहुँचने के बाद तो इतनी ज़ोर की बारिश हुई कि वह तो वहाँ सारी की सारी भीग गयी।

उसको यह सोच कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उसके पेट में बच्चे को कैसे पता चला कि आज इतनी ज़ोर की बारिश आने वाली है।

अगले दिन जब वह फिर खेत जाने के लिये तैयार हुई तो वह बच्चा फिर बोला — “माँ, आज बहुत गरम होने वाला है, खेत पर अपने साथ पानी ले जाओ पीने के लिये।”

पर माँ ने फिर वही जवाब दिया — “कल तो कितनी तेज़ बारिश हुई थी ओर आज तुम गरमी के बारे में बता रहे हो। तुम मौसम के बारे में इतना सब कैसे जानते हो, तुम तो अभी मेरे पेट के अन्दर ही हो?”

और वह खेतों को पीने का पानी लिये बिना ही चली गयी बल्कि वह खजूर का एक पत्ता साथ में ले गयी।

पर खेतों पर पहुँचने पर वह खजूर का पत्ता तो काम नहीं आया क्योंकि उस दिन दिन वाकई बहुत गरम था पर हाँ क्योंकि वह पानी साथ में ले कर नहीं गयी थी इसलिये वह घर प्यासी जरूर लौटी। कुछ दिनों बाद वह बच्चा पैदा हुआ। उसका नाम रखा गया नर।

खेतों पर इस समय फसल पक चुकी थी उसकी कटाई हो रही थी सो दोनों पति पत्नी खेत काटने में लगे हुए थे। वे नर को कहाँ छोड़ते इसलिये वे उसको अपने साथ ही खेतों पर ले जाते थे। खेत पर ही उनका एक छोटा सा घर था उसके बरामदे में वे उसको लिटा देते थे और खुद खेतों में काम करते रहते थे।

एक दिन नर ने अपने ऊपर एक पतंग उड़ती हुई देखी। वह रो रही थी। उसको रोते देख कर नर ने उससे पूछा — “ओ पतंग़ तुम क्यों रो रही हो? क्या आज बहुत बारिश होने वाली है? या फिर आज का दिन बहुत गरम होने वाला है?”

नर के माता पिता ने जो थोड़ी ही दूर पर काम कर रहे थे किसी आदमी के बात करने की आवाज सुनी तो उनको लगा कि घर में कोई आदमी है जो बोल रहा है सो नर का पिता ज़ोर से बोला — “कौन है, थोड़ा शान्त रहो। इतनी ज़ोर से मत बोलो मेरा बेटा जाग जायेगा।”

पर बच्चे ने पतंग से अपना सवाल फिर से किया तो पिता को फिर से बात करने की आवाज सुनायी दी। वह फिर बोला — “कौन है हमारे घर में जो इतना शोर मचा रहा है? मैं कह रहा हूँ कि शान्त हो जाओ और वह है कि सुनता ही नहीं।”

इतना कहते कहते वह घर की ओर दबे पाँव बढ़ा कि देखूँ तो वहाँ कौन है। पर वहाँ जा कर उसे सिवाय अपने बच्चे के और कोई भी दिखायी नहीं दिया।

उसने सोचा कि या तो उसको कुछ वहम हो गया था और वहाँ कोई था ही नहीं और अगर वहाँ कोई था भी तो लगता है कि वह भाग गया।

अगले दिन नर ने पतंग से फिर बात की तो नर के पिता ने फिर किसी के बात करने की आवाज सुनी।

अबकी बार वह घर की तरफ दबे पाँव बढ़ा कि देखूँ तो सही कौन है। पर वहाँ जा कर उसने देखा कि वहाँ तो उसका अपना बच्चा ही बात कर रहा था।

यह देख कर उसको बहुत दुख हुआ और उसे डर लगा कि एक दिन उसका बेटा उसकी सारी जादुई ताकतें उससे ले लेगा क्योंकि वह तो खुद ही एक बहुत अच्छा जादूगर था।

सो इससे बचने के लिये उसने नर की जीभ का एक छोटा सा टुकड़ा काट लिया। लाइथा ने अपना जादू अपनी पीठ पर बने एक गूमड़ में रखा हुआ था जो उसके कन्धे की हड्डी के बिल्कुल नीचे था।

नर जब बारह साल का हो गया तो वह चिड़ियों का शिकार करने लायक हो गया था। एक दिन वह एक गली से जा रहा था कि वहाँ उसने एक लड़की को बैठे कपड़ा बुनते हुए देखा। उसने उसको छेड़ना शुरू कर दिया। उसने उस लड़की की कपड़ा बुनने की शटल फेंक दी। यह सब उस लड़की को अच्छा नहीं लगा।

लड़की बोली — “मुझे तंग मत करो। यदि तुम मुझे तंग नहीं करोगे तो मैं तुम्हें बताऊँगी कि तुम असल में क्या हो।”

नर ने उसको तंग करना बन्द कर दिया और उससे पूछा — “अब बताओ मैं असल में क्या हूँ।”

वह लड़की बोली — “तुम्हारे पिता ने बचपन में ही तुम्हारी जीभ में से एक टुकड़ा काट लिया था ताकि वह तुम्हारा जादू ले सके।”

नर तुरन्त ही घर गया और पेट के दर्दका बहाना बना कर पड़ गया। उसके पिता ने उसके ऊपर बहुत से जादू किये पर उसका कोई जादू उसके पेट के दर्द पर काम नहीं कर सका।

फिर नर ने अपने पिता से कहा कि यदि वह उसको अपनी पीठ पर बिठा कर थोड़ी देर घुमा दे तो शायद उसके पेट का दर्द ठीक हो जाये।

उसके पिता ने उसको उठा तो लिया पर इस डर से कि कहीं वह उसका जादू न चुरा ले उसको अपनी जाँघ पर बिठा कर घुमाने लगा।

पर इससे तो नर का काम नहीं बनता था सो वह बोला — “पिता जी मुझे थोड़ा सा और ऊपर की तरफ कर लीजिये।” अबकी बार उसके पिता ने उसको अपने सिर से भी ऊँचा कर लिया।

नर फिर बोला — “पिता जी अब मैं बहुत ऊपर हो गया। थोड़ा सा और नीचे।”

आखिर उसके पिता ने उसको अपने कन्धे पर बिठा लिया। जैसे ही वह पिता के कन्धे पर बैठा उसने पिता के गूमड़ में काट लिया और उस काटे हुए हिस्से को सारा का सारा निगल गया। हालाँकि उसके पिता ने उससे बहुत कहा कि कम से कम वह थोड़ा सा जादू तो उसके लिये छोड़ दे पर उसने जवाब दिया — “पिता जी अब तो मैंने वह सारा का सारा निगल लिया।”

नर की अक्लमन्दी

जब नर और बड़ा हो गया तो उसने अपनी अक्लमन्दी और ताकत को जाँचना चाहा सो एक दिन उसने अपने पिता से कहा — “पिता जी, आपको क्या लगता है सूअर के ज़्यादा पैसे मिलेंगे या चाव19 के?”

उसके पिता ने कहा — “इसमें भी कोई पूछने की बात है, सूअर के पैसे ज़्यादा मिलेंगे।”

“देखते हैं” कह कर यह बताने के लिये कि चाव के पैसे ज़्यादा मिलेंगे वह चाव बेचने के लिये चला गया और अपने पिता को सूअर बेचने के लिये भेज दिया।

लोगों ने सूअर खरीदने की तो हिम्मत नहीं की पर चाव क्योंकि सभी खाते थे इसलिये उसे हर आदमी थोड़ा थोड़ा लेना चाहता था। इस तरह चाव तो जल्दी खत्म हो गया पर उसके पिता का सूअर नहीं बिका।

नर ने अपने पिता से पूछा — “पिता जी, आप ठीक थे या मैं?”

उसके पिता ने जवाब दिया — “बेटा तुम ही ठीक थे। तुम तो टौसौ हो। तुम तो जब अपनी माँ के पेट में थे तुम तभी से बहुत अक्लमन्द हो।”

कुछ दिन बाद नर ने अपने पिता से पूछा — “पिता जी, अगर एक हिरन और एक चूहा दोनों सड़क पर भागे जा रहे हों तो लोग किसका पीछा करेंगे, हिरन का या चूहे का?”

उसके पिता ने तुरन्त जवाब दिया — “यह भी कोई पूछने की बात है लोग हिरन का पीछा करेंगे।”

नर ने अपने पिता को फिर से गलत साबित करने के लिये खुद तो एक चूहा सड़क पर छोड़ दिया और अपने पिता से एक हिरन छुड़वा दिया।

जैसे ही हिरन को छोड़ा गया वह तो तुरन्त ही भाग गया मगर जब चूहा छोड़ा गया तो उसे सबने देखा। वे सब उसके पीछे दौड़े, उसको पकड़ा और उसको मार दिया।

इस प्रकार नर ने यह फिर से साबित कर दिया कि वह सही था और उसका पिता गलत था पर नर के पिता ने उसे फिर से वही जवाब दिया जो उसने उसे पहले दिया था।

नर और नसाईपौ

नर अब बहुत होशियार जादूगर हो गया था और अब वह किसी से डरता भी नहीं था। एक दिन नर का पिता एक गाँव के सरदार नसाईपौ से मिलने गया।

नसाईपौ भी एक बहुत बड़ा और होश्यिार जादूगर था। जब नर का पिता नसाईपौ के पास पहुँचा तो नसाईपौ ने उससे पूछा — “तुम यहाँ तक मौत की नदी पार करके आये हो, है न?”

नर के पिता ने कहा — “हाँ, मैं मौत की नदी पार करके आया हूँ।”

इसके बाद नसाईपौ ने बीयर खोली। उसमें से उसने खुद भी ली और नर के पिता को भी दी। जैसे ही नर के पिता ने बीयर चखी वह मर गया। नसाईपौ ने उस बीयर को नरक के पिता को देने से पहले ही उसके ऊपर जादू कर दिया था।

नर ने जब यह सुना कि नसाईपौ ने उसके पिता को मार डाला तो वह बहुत गुस्सा हो गया और उसने नसाईपौ से बदला लेने का विचार किया। वह नसाईपौ के गाँव चल दिया।

नसाईपौ ने नर को अपने घर की तरफ आते देख लिया था तो उसने अपने जादुओं को बुलाया और उनको खाने पर, पूरे घर में और घर के दरवाजे पर तैनात कर दिया ताकि नर उसको कोई नुकसान न पहुँचा सके। नर भी होशियार था। उसने भी यह सब दूर से ही देख लिया था।

नसाईपौ अपने घर के बाहर पहरा दे रहा था सो नर एक चूहा बन गया और रात के समय नसाईपौ के घर में एक छेद में से हो कर घुस गया। वह एक भट्टी के पास जा कर निकला और वहाँ जा कर वह फिर से आदमी बन गया।

थोड़ी देर में नसाईपौ अपने घर के अन्दर आया तो नर को घर के अन्दर देख कर हैरान रह गया। उसने पूछा — “तुम यहाँ अन्दर कैसे आये? क्या मौत की नदी से हो कर?”

नर बोला — “नहीं, मैं तो ज़िन्दगी की नदी से हो कर तुम्हारे घर चावल और माँस खाने आया हूँ।”

नसाईपौ ने उसका स्वागत किया और अगले दिन सुबह नर के आने की खुशी में बीयर की एक दावत दी। उसने नर की बीयर की नली में जिससे वह बीयर पीने वाला था एक बड़ा सा साँप घुसा दिया।

नर को भी पता चल गया कि उसकी बीयर पीने वाली नली में एक साँप है सो उसने नसाईपौ को सामने वाले दो पहाड़ों की तरफ देखने के लिये कहा जो आपस में लड़ते से दिखायी दे रहे थे। जब नसाईपौ उधर देख रहा था तो उसने खुद चील बन कर उस नली में से साँप को बाहर निकाल कर फेंक दिया और वह फिर से नर बन कर बैठ गया।

उसने अपनी बीयर पीनी शुरू कर दी और नसाईपौ की बीयर पर जादू डाल दिया।

नसाईपौ ने अपनी बीयर पी तो उसके होठ बीयर पीने वाली नली से चिपक गये और उसका पेट बीयर के बरतन से चिपक गया।

अब तो वह हिल भी नहीं सकता था। थोड़ी देर में ही वह मर गया। नर ने उसका सारा सामान लिया, उसके सारे दास लिये और घर वापस आ गया।

नर की चीता आदमी से मुलाकात

एक बार नर मछली पकड़ने के लिये नदी पर गया। वहाँ उसने मछली पकड़ने के लिये नदी के ऊपर की तरफ जाल फेंका तो उसका जाल एक चीता आदमी के जाल में फँस गया क्योंकि उस समय चीता आदमी ने भी अपना मछली पकड़ने वाला जाल नदी में फेंक रखा था। वह उसने नदी के नीचे की तरफ फेंका था।

नर ने चीता आदमी को मारना चाहा और चीता आदमी ने नर को खाना चाहा पर दोनों ही अपनी अपनी कोशिशों में नाकामयाब रहे।

दोनों ने एक दूसरे के नाम पूछे। नर ने बताया कि उसका नाम नर था और चीता आदमी ने बताया कि उसका नाम कियाथ्यू था। दोनों दोस्त बन गये और दोस्ती के तौर पर उन्होंने अपनी अपनी पकड़ी हुईं मछलियाँ एक दूसरे से बदल लीं।

पर नर ने देखा कि कियाथ्यू की मछलियों के तो सिर ही नहीं थे क्योंकि कियाथ्यू ने जैसे ही अपनी मछलियाँ पकड़ीं वैसे ही उनके सिर खा लिये थे। वह चीता आदमी था न? सो नर को बिना सिर की मछलियाँ ही अपने घर ले जानी पड़ीं।

कियाथ्यू भी एक बहुत बड़ा जादूगर था। वह एक मधुमक्खी बन गया और नर के पीछे उड़ चला। नर भी पहचान गया कि कियाथ्यू उसके पीछे मधुमक्खी बना चला आ रहा था। जब नर घर पहुँचा तो उसने अपनी सारी मछलियाँ माँ को दे दीं।

माँ ने उनको देखते ही कहा — “अरे बेटा, आज यह कैसे हुआ कि आज जितनी भी मछलियाँ तुमने पकड़ीं उनका किसी का भी सिर नहीं है?”

नर बोला —“माँ, आज मैंने उन सबके सिर काट दिये थे और उनको पका कर खा गया हूँ।” उसकी माँ यह सुन कर चुप हो गयी।

जब कियाथ्यू ने देखा कि नर ने अपनी माँ को सच बात नहीं बतायी कि वह एक चीता आदमी का दोस्त बन गया था तो वह बहुत खुश हुआ और मन ही मन नर की तारीफ करते हुए अपने घर चला गया।

कियाथ्यू नर से बहुत खुश था सो एक दिन उसने नर को कहलवाया कि वह उससे मिलना चाहता था और वह बहुत खुश होगा अगर वह उसके पास आ कर कुछ दिन उसके पास ही ठहरे। नर ने भी कियाथ्यू को कहला भेजा कि वह जरूर आयेगा और उसको अपने आने का दिन भी बता दिया।

कियाथ्यू के गाँव के सारे लोग चीता आदमी थे इसलिये उसने उन सब लोगों से कह दिया कि उसका एक दोस्त उससे मिलने आ रहा था इसलिये वे सब आदमियों की शक्ल में दिखायी देने चाहिये, चीते की शक्ल में नहीं।

नर अपने बताये दिन पर कियाथ्यू के गाँव आ पहुँचा।

नर ने आते ही पहला सवाल कियाथ्यू से यह पूछा — “मेरे दोस्त, तुम्हारे माता पिता कहाँ हैं?”

कियाथ्यू ने उसको टालने के लिये कहा — “मेरे माता पिता बहुत गरीब हैं और वे इस लायक नहीं हैं कि उनसे मिला जाये।”

नर बोला — “ऐसा नहीं हो सकता कि किसी के भी माता पिता चाहे वे कितने भी गरीब क्यों न हों कि वे मिलने के लायक न हों। तुम मुझे उनसे मिलाओ मुझे उनसे मिल कर बहुत खुशी होगी।”

जब नर ने बहुत जिद की तो कियाथ्यू ने नर को बता दिया कि वे कहाँ थे और फिर वह उसको उनसे मिलाने ले गया।

वे एक टोकरी में बैठे थे। नर ने उनको जब टोकरी में देखा तो वहाँ तो दो चीते बैठे हुए थे।

उन्होंने तुरन्त ही नर को काटने की कोशिश की तो तुरन्त ही नर ने कहा — “तुम्हारे माता पिता कितने सुन्दर हैं, कियाथ्यू।”

यह सुन कर कियाथ्यू के माता पिता बहुत खुश हुए और तुरन्त ही एक आदमी और एक औरत के रूप में आ कर नर के साथ बैठ गये।

नर ने उनको कुछ कपड़े दिये और उन लोगों ने नर के लिये एक दावत का इन्तजाम किया। नर के आदर में और उसके आने की खुशी में एक सूअर भी मारा गया।

कियाथ्यू के पास एक पेड़ था जिस पर बजाय फल और फूल लगने के बहुत सारे तरह के मोती लगते थे। उसने नर को वह पेड़ दिखाते हुए कहा कि वह उस पेड़ पर से जितने जी चाहे मोती ले सकता था।

नर ने 10 थैले मोती से भर लिये और फिर उनको अपने जादू के ज़ोर से थोड़े से मोतियों में बदल कर उनको अपने तम्बाकू वाले डिब्बे में रख लिया ताकि उनको ले जाने में आसानी हो।

नर कियाथ्यू के पास पाँच दिन रहा और फिर घर वापस आ गया। नर के वहाँ से चलने से पहले कियाथ्यू ने उसको सावधान कर दिया था कि जब वह घर जाये तो रास्ते में पाँच दिन तक कहीं न रुके। और यदि उसे टट्टी पेशाब भी जाना हो तो उसको वह खमीर से ढक दे।

उसने नर को यह भी बताया कि — “मैं अपने गाँव वालों को बता दूँगा कि तुम अभी यहीं हो। मैं अपना ढोल भी पाँच दिन तक बजाऊँगा क्योंकि अगर उनको पता चल गया कि तुम यहाँ से चले गये हो तो वे तुम्हारा पीछा करेंगे और तुम्हें खा जायेंगे।”

नर ने उसको उसकी इस सलाह के लिये धन्यवाद दिया और अपने घर चल दिया पर अपनी बेवकूफी की वजह से वह रास्ते में एक दिन के लिये रुक गया।

इधर जब नर को गये पाँच दिन बीत गये तब कियाथ्यू ने अपने गाँव वालों को बताया कि नर चला गया है। यह सुनते ही गाँव वाले नर के पीछे दौड़ पड़े।

मगर कियाथ्यू को डर लगा कि यदि कहीं रास्ते में किसी भी वजह से नर को रुकना पड़ा तो मुश्किल हो जायेगी इसलिये वह खुद भी उनके साथ ही भाग लिया।

कियाथ्यू का शक सही था। नर बीच में एक दिन के लिये रुक गया था सो उन लोगों ने नर को जल्दी ही पकड़ लिया।

नर को पहले ही पता चल गया कि गाँव वाले उसके पीछे आ रहे थे सो वह जंगली सूअर के इक{े किये हुए पत्तों के एक ढेर में छिप कर बैठ गया।

कियाथ्यू को भी पता चल गया कि नर पत्तों के ढेर में छिपा हुआ था सो वह उसी पत्तों के ढेर पर बैठ गया और गाँव वालों को थोड़ी देर आराम करने को कहा। गाँव वाले भी आराम करने बैठ गये।

कुछ देर बाद वह उनसे बोला — “मेरे भाइयो, तुम लोग सबसे ज़्यादा किससे डरते हो?”

गाँव वाले बोले — “हम वही सोचते हैं जो तुम सोचते हो और हम भी सबसे ज़्यादा उसी से डरते हैं जिससे तुम डरते हो।”

कियाथ्यू बोला — “मैं अपनी बात बताऊँ तुम्हें? मुझे लगता है कि मैं तो सबसे ज़्यादा बादल से डरता हूँ। यदि बादल मेरे चारों तरफ आ जायें तो मैं तो बहुत ही डर जाऊँ और जिस पत्ते के ढेर पर मैं बैठा हूँ यदि उसमें से कोई बहुत ज़ोर की आवाज आ जाये तब तो मैं बहुत ही डर जाऊँ।”

नर यह सब बातें सुन रहा था। उसने अपने जादू से चारों तरफ बादल फैला दिये और जितनी ज़ोर से वह चिल्ला सकता था उतनी ज़ोर से वह चिल्ला दिया।

चारों तरफ बादल देख कर और वह ज़ोर की आवाज सुन कर सारे चीता आदमी डर के मारे वहाँ से भाग लिये केवल कियाथ्यू रह गया। कियाथ्यू ने तो उनसे यह सब केवल इसी लिये कहा था ताकि वे लोग वहाँ से भाग जायें सो वो भाग गये।

उनके जाने के बाद कियाथ्यू ने नर से कहा — “तुमने यह क्या बेवकूफी की कि तुम रास्ते में रुक गये?”

नर बोला — “हाँ, वाकई यह मेरी बेवकूफी थी। मुझे माफ कर दो।”

फिर वह अपने घर वापस आ गया। वहाँ आ कर उसने अपने उन थोड़े से मोतियों को दस थैले मोतियों में बदल लिया और काफी सारे मोती उसने अपने दोस्तों में बाँट दिये।

नर का भाई

इसके बाद नर के बड़े भाई ने भी, जो थोड़ा सा बेवकूफ था, सोचा कि वह भी नर की तरह जायेगा और मोती इक{े करके लायेगा। सो वह भी कियाथ्यू के गाँव की तरफ चल दिया। जब वह कियाथ्यू के घर पहुँचा तो नर की तरह से उसने भी कियाथ्यू के माता पिता के बारे में पूछा।

कियाथ्यू ने उसको टालने के लिये कहा — “मेरे माता पिता बहुत गरीब हैं और वे इस लायक नहीं हैं कि उनसे मिला जाये।”

नर के भाई ने भी नर की ही तरह ही जवाब दिया — “दुनियाँ में किसी के भी माता पिता ऐसे नहीं हो सकते जिनसे न मिला जाये चाहे वे कितने भी गरीब क्यों न हों। तुम मुझे उनसे मिलाओ, मुझे उनसे मिलने में अच्छा लगेगा।”

जब नर के भाई ने बहुत जिद की तो कियाथ्यू उसको उनसे मिलाने ले गया पर जब उसने टोकरी में देखा तो वहाँ तो दो चीते बैठे हुए थे।

उनको देख कर वह डर गया और बोला — “मुझे तो डर लगता है।”

कियाथ्यू के माता पिता ने नर के भाई को झूठ मूठ काटने का बहाना किया पर यह सोच कर कि वह एक बेवकूफ है उसे माफ कर दिया।

कियाथ्यू ने नर के भाई को भी अपना वह पेड़ दिखाया जिस पर बजाय फल और फूलों के कई तरह के मोती आते थे और उससे कहा कि वह उस पेड़ पर से जितने चाहे उतने मोती ले ले। नर के भाई ने उस पेड़ पर से जितने मोती वह आसानी से ले जा सकता था उतने मोती ले कर घर जाने को तैयार हुआ।

कियाथ्यू ने उससे भी कहा — “तुम सीधे घर जाना। रास्ते में कहीं रुकना नहीं नहीं तो मेरे गाँव वाले जो चीते हैं तुम्हारा पीछा करेंगे और तुम्हें खा जायेंगे। मैं पाँच दिन तक ढोल बजाऊँगा और उस बीच में तुम अपने घर ठीक से पहुँच जाओगे।”

सुन कर नर का भाई अपने घर चला गया।

पर वह बेवकूफ रास्ते में दो दिन रुका। इसलिये कि वह मोतियों को एक साथ रखने के लिये धागा ढूँढता रहा। पाँच दिन के बाद कियाथ्यू के गाँव वालों ने उसका पीछा किया और उसको पकड़ लिया और खा लिया।

कियाथ्यू ने गाँव वालों से कहा — “तुमने मेरे दोस्त नर के भाई को खाया अब नर बहुत गुस्सा होगा। तुम उसको उगल दो।” सारे चीतों ने मिल कर कियाथ्यू का कहना माना और नर के भाई को उगल दिया।

कियाथ्यू ने उसके शरीर के सारे टुकड़े जमा करके जोड़ दिये पर उसके शरीर का एक टुकड़ा एक बूढ़े चीते की दाढ़ में फँसा रह गया। उस टुकड़े को वह किसी तरह भी नहीं निकाल सका। इसलिये नर के भाई का शरीर पूरा नहीं हो सका और उसकी एक बगल में एक छेद रह गया। उस छेद को उन्होंने मधुमक्खी का मोम भर कर पूरा कर दिया और उसको घर भेज दिया।

नर का भाई जब घर पहुँचा तो उसने नर से कहा — “देखो, मैं भी थोड़े से मोती ले आया हूँ।”

पर नर ने कहा — “नहीं भाई , यह तुम नहीं हो यह तो तुम्हारी लाश है जो घर वापस आयी है क्योंकि चीतों ने तो तुम्हें खा ही लिया था।”

नर के भाई ने कहा — “नहीं, यह झूठ है। मैं तो अभी ज़िन्दा हूँ मुझे क्यों मरना चाहिये?”

नर बोला — “यदि तुम मेरी बात नहीं मानते तो तुम अपनी बगल देखो उसमें मधुमक्खी का मोम भरा है। अगर तुम इस मोम को निकाल दोगे तो ज़िन्दा नहीं रहोगे।”

नर के भाई ने जैसे ही वह मोम अपनी बगल से निकाला कि वह मरा हुआ जमीन पर गिर गया।

नर अपने भाई की मौत पर बहुत गुस्सा था उसने कियाथ्यू से पूछा — “तुमने मेरे भाई को क्यों मारा? अब हमको लड़ना पड़ेगा।”

कियाथ्यू ने जवाब दिया — “मैंने कुछ नहीं किया, मैंने तो उसको मोती भी दिये, उसको ठीक से रखा भी। तुम्हारे भाई की मौत उसकी अपनी गलती से हुई है पर इस पर भी यदि तुम लड़ना चाहो तो लड़ सकते हो मैं तैयार हूँ।”

लड़ने से पहले दोनों ने आपस में यह तय किया कि लड़ाई में जो भी मरेगा दूसरा आदमी उसके सिर को ट्रोफी की तरह से अपने घर के बरामदे में नहीं लगायेगा। हाँ, वह अपने शत्रु के ऊपर जीतने की रस्म जरूर पूरी कर सकता है। और इस प्रकार वे दोनों लड़ने के लिये तैयार हो गये।

कियाथ्यू नर को नहीं देख पा रहा था और नर कियाथ्यू को नहीं देख पा रहा था। सो नर ने अपनी मोम की एक मूर्ति बनायी और उसको खेत में बने एक घर के चबूतरे पर रख दिया। उस मूर्तिको चबूतरे पर रख कर वह खुद उस घर के अन्दर अपना तीर कमान ले कर बैठ गया।

कियाथ्यू भी नर के पीछे पीछे गया और चबूतरे पर रखी मूर्तिको नर समझा और उसको मार डाला। जैसे ही कियाथ्यू ने नर की मूर्ति को मारा, नर ने उसे दो तीर मारे और घायल कर दिया। कियाथ्यू नीचे गिर गया और लेटे लेटे नर से बोला — “मेरे दोस्त, तुम मुझसे ज़्यादा ताकतवर हो मैं तुमसे हार गया।” और यह कह कर वह मर गया।

नर ने कियाथ्यू का सिर तो ले लिया पर उसने उसके एक दास को मार कर उस पर अपनी जीत की रस्म पूरी की। अपने वायदे के मुताबिक उसने कियाथ्यू का सिर अपने घर के बरामदे में दूसरी ट्रोफियों के साथ नहीं टाँगा। इसी लिये आज भी लखेर जनजाति के लोग चीते या आदमी का सिर अपने घरों में नहीं लटकाते।

नर की मौत

इस घटना के बाद नर ने अनजाने में एक चीता लड़की वौरी से शादी कर ली। वौरी जब नर घर पर नहीं होता था तो उसके दोस्तों को खा जाती थी।

उसके दोस्तों ने एक बार उससे कहा — “नर, तुम्हारी पत्नी चीता लड़की है। जब तुम नहीं होते तो वह हमको मार देती है और खा जाती है। तुमको उसे मार देना चाहिये नहीं तो एक दिन वह हम सबको खा जायेगी।”

यह सुन कर नर बहुत दुखी हुआ क्योंकि वह वौरी को अपने हाथों से नहीं मारना चाहता था पर वह उस चीता लड़की के साथ रह भी नहीं सकता था।

सो एक दिन उसने बाँस के पानी भरने के एक बरतन में छेद कर दिया और अपनी पत्नी पर जादू डाल कर उससे कहा कि वह नदी से उस बाँस के बरतन में पानी भर लाये।

नर के जादू की वजह से वौरी उस बरतन का छेद नहीं देख पायी और उसने उस बरतन में पानी भरना शुरू किया। जब वह पानी भर रही थी तो नर ने नदी पर अपना जादू फेंका। उसके जादू की वजह से उस नदी में ऊपर से बहुत सारा पानी आ गया और उसकी पत्नी को अपने साथ बहा कर ले गया। जब नर उस पानी के बहाव का इन्तजार कर रहा था तो वह रो पड़ा। उसको रोते हुए देख कर उसकी पत्नी ने पूछा “नर, तुम क्यों रो रहे हो?”

नर बोला — “बहुत तेज़ बारिश आने वाली है तुम जल्दी से पानी भर लो और फिर घर चलो।”

कह कर उसने जादू के कुछ शब्द बोले और तुरन्त ही ज़ोर की बारिश,, हवा और नदी का पानी सब एक साथ आ गये और वौरी को बहा कर ले गये।

यह सब देख कर नर बहुत दुखी हो कर अपने घर चला आया। वह इतना दुखी हुआ कि वह दस दिन तक कुछ खा ही नहीं सका।

उसके सम्बन्धियों को लगा कि वह अपनी पत्नी की वजह से बीमार हो गया है इसलिये उन्होंने उसको सलाह दी कि वहीं जा कर अपनी जान दे दे जहाँ उसकी पत्नी की जान गयी थी।

नर यह सुन कर बहुत खुश हुआ उसने एक तुम्बा और एक सूत लपेटने वाली एक अटेरन ली और नदी की ओर चल दिया। उसने तुम्बा और अटेरन दोनों नदी में फेंक दीं और बोला — “ओ तुम्बे और अटेरन, तुम तैर कर वहाँ जाओ जहाँ मेरी पत्नी है।”

तुम्बा और अटेरन तैरते हुए चले और समुद्र के पास आ कर रुक गये। इससे नर को पता चल गया कि उसकी पत्नी वहीं थी। वह अपने आपको समुद्र में फेंकने जा ही रहा था कि उसने किनारे पर बहुत सारे सिपाही खड़े देखे। उसने उनसे कहा — “ओ छोटे बालों वाले विदेशियों, तुम मेरी तलवार ले लो।”

यह कह कर उसने अपनी तलवार पानी में फेंक दी। सिपाहियों ने वह तलवार पकड़ ली और रख ली और बोले — “ओ लाइथा के बेटे, तुम्हारी ताकत तो बिजली की तरह है।”

नर फिर बोला — “मैं अब पानी के अन्दर जा रहा हूँ लेकिन उससे पहले जो कुछ मेरे पास है वह मैं बाहर फेंकना चाहता हूँ – मेरी अक्लमन्दी, मेरी ताकत, मेरा जादू। जो कोई चाहे वह इन्हें ले सकता है।” और ऐसा कह कर उसने अपना सब कुछ बाहर फेंक दिया और पानी में कूद गया।

कहते हैं कि उन सिपाहियों ने अपनी अपनी पगड़ी फैला कर नर की सब चीज़ें ले लीं इसी लिये आज की सारी अक्लमन्दी, ताकत, जादू और लिखने की कला भी सब नर से ही आयी है।

(सुषमा गुप्ता)

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