जादूगर मलकान (ब्रिटिश कहानी) : उर्सुला मोरे विलियम्स
Jadugar Malkaan (British Story) : Ursula Moray Williams
रुडी एक छोटे से गाँव में रहता था। फिर भी उसका नाम दूर-दूर तक मशहूर था। कारण, रुडी बहुत अच्छे खिलौने बनाता था। उसके बनाए कई खिलौने राजमहल की शोभा बढ़ाते थे। राजा ने उसे अनेक बार पुरस्कार दिए थे। एक बार नगर में खिलौनों की प्रतियोगिता हुई। रुडी राजा के लिए ‘गानेवाली पिटारी’ बनाकर ले गया। राजा को वह खिलौना बहुत पसंद आया। सब सोच रहे थे, पहला पुरस्कार रुडी को ही मिलेगा। राजा पुरस्कार की घोषणा करने खड़े हुए। तभी एक व्यक्ति दरबार में आया। उसके साथ एक लड़की थी। वह अत्यंत सुंदर थी और राजसी पोशाक पहने हुए थी।
उस व्यक्ति ने राजा से कहा, ‘‘महाराज, मेरा नाम मलकान है। मैं खिलौने बनाया करता हूँ। मैं चाहता हूँ, आप मेरा बनाया खिलौना देख लें। उसके बाद पुरस्कार का निर्णय करें।’’
राजा ने कहा, ‘‘ठीक है, दिखाओ अपना खिलौना।’’
मलकान ने हँसकर उस लड़की की ओर संकेत किया। बोला, ‘‘महाराज, मैंने ही इस बोलनेवाली गुडि़या को बनाया है।’’
‘‘बोलनेवाली गुडि़या!’’ राजा ने आश्चर्य से कहा। दरबार में सभी चकित रह गए।
मलकान ने कहा, ‘‘महाराज, मैं जादू जानता हूँ। उसी जादू से मैंने यह बोलनेवाली गुडि़या बनाई है।’’
कई दरबारियों ने गुडि़या को छूकर देखा। वह हाड़-मांस की जीवित लड़की दिखाई दे रही थी। अद्भुत बात थी। कोई इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहा था कि वह लड़की वास्तव में गुडि़या है।
‘‘महाराज, मैं अपने जादू से और भी बढि़या खिलौने तैयार कर सकता हूँ।’’ मलकान बोला।
राजा कुछ पल सोचते रहे। फिर बोले, ‘‘मलकान, यह खिलौना बनाने की प्रतियोगिता है, जादू की नहीं। तुम अपने हाथ से बना कोई खिलौना दिखाओ, तो हम विचार करेंगे।’’
मलकान ने मुँह बिचका दिया। बोला, ‘‘जादू से मैं मनचाहा काम कर सकता हूँ, फिर मुझे बेकार के खिलौने बनाने की क्या आवश्यकता है?’’
यह कहकर वह गुडि़या को ले, दरबार से चला गया। जहाँ-जहाँ जादुई गुडि़या ने पैर रखे थे, वहाँ काले-काले निशान पड़ गए और धुआँ उठने लगा।
राजा ने रुडी के खिलौने को प्रथम पुरस्कार दिया। प्रतियोगिता समाप्त हुई। लेकिन सबके मन में एक शंका थी—मलकान कोई-न-कोई शरारत जरूर करेगा।
हुआ भी ऐसा ही। मलकान ने रुडी को सबक सिखाने का फैसला कर लिया था। इस घटना के बाद उसने रुडी के गाँव के पास काफी जमीन खरीद ली। वहाँ एक ऊँची पहाड़ी थी। पहाड़ी के अंदर एक गुप्त जादुई महल बनाया। उसी महल में रहकर उसने अपने जादू से लकड़ी के खिलौना-सैनिक बनाए और पहाड़ी पर जगह-जगह तैनात कर दिए।
रुडी को इस बारे में कुछ पता नहीं था। वह गाँववालों के साथ पहाड़ी पर लकड़ी काटने जाता था। उस लकड़ी से बहुत अच्छे खिलौने बनते थे।
एक दिन गाँववाले लकड़ी काटने गए तो पहाड़ी के अंदर तरह-तरह की आवाजें सुनाई दीं। पत्थर लुढ़कने लगे। वहाँ बहती नदी का पानी खौलने लगा। जमीन में दरारें पड़ गईं।
सब लोग डरकर भाग आए। सोचने लगे, ‘न जाने पहाड़ी के अंदर क्या हो रहा है?’
उसी शाम एक अजनबी गाँव में आया। वह मलकान को जानता था। उसे यह भी पता था कि मलकान की योजना क्या है। उसने रुडी को बताया, ‘‘मलकान ने तुमसे बदला लेने की योजना बनाई है। वह पहाड़ी को जादू के जोर से तुम्हारे गाँव से परे खिसका रहा है। वह चाहता है, तुम्हें खिलौनों के लिए बढि़या लकड़ी न मिल सके। सावधान हो जाओ।’’
उस रात पहाड़ी के अंदर से जोर की आवाजें आती रहीं। रुडी ने गाँववालों को इकट्ठा किया। तय हुआ कि जल्दी-से-जल्दी पहाड़ी पर लगे पेड़ काट लिये जाएँ। लकड़ी गाँव में इकट्ठी कर ली जाए। फिर दिक्कत नहीं होगी। रुडी और गाँववाले रात को ही पहाड़ी पर जाकर लकडि़याँ काटने लगे। जल्दी ही उन्होंने काफी लकडि़याँ गाँव में इकट्ठी कर लीं। इस बीच पहाड़ी का खिसकना भी जारी रहा।
एक दिन गाँववाले पहाड़ी पर लकड़ी काटने गए तो वहाँ लकड़ी के बने सिपाही दिखाई दिए। गाँववालों को शरारत सूझी। उन्होंने लकड़ी का एक संदूक बनाया। उसे पहाड़ी पर रख दिया। संदूक का ढक्कन खुला हुआ था।
लकड़ी के दो सिपाही उछलते-कूदते वहाँ आए और संदूक में घुसकर देखने लगे। तभी छिपकर गाँववालों ने रस्सी से संदूक का ढक्कन बंद कर दिया। लकड़ी के सिपाही कैद हो गए।
गाँववाले संदूक को अपने गाँव में ले आए। रात काफी हो रही थी। लकड़ी के पुतलों को एक कोठरी में बंद कर दिया गया। रात को गाँव के लोग सो गए। लेकिन वे यह भूल गए थे कि खिलौने जादुई हैं।
गाँववालों के सो जाने के बाद लकड़ी के पुतले संदूक से बाहर निकल आए। वे इधर-उधर घूमने लगे। उन्होंने देख लिया कि गाँव में लकडि़यों का बहुत बड़ा ढेर लगा हुआ था। पुतलों ने माचिस उठाई। कुछ फूस इकट्ठा किया और लकडि़यों में आग लगा दी। लकडि़याँ धू-धू करके जल उठीं। गाँववालों की नींद खुली तो काफी लकडि़याँ जल चुकी थीं।
पहले तो कोई कुछ समझ नहीं पाया। फिर लकड़ी के पुतलों की तलाश शुरू हुई तो वे नजर न आए। अब पता चला, वह मलकान के जादू की शरारत थी।
इस घटना से रुडी बहुत दुखी हुआ। उसे लगा जैसे यह सब उसी की गलती से हुआ है। सुबह-सुबह वह कुल्हाड़ी लेकर पहाड़ी पर चढ़ गया। इतने दिनों में मलकान ने पहाड़ी को गाँव से काफी दूर खिसका दिया था। अब जमीन में जगह-जगह दरारें नजर आती थीं। ठीक उसी समय मलकान पहाड़ी के अंदर अपने महल में बैठा था। दोनों पुतले उसे अपनी करतूत सुना रहे थे। तभी मलकान ने अपने जादू के जोर से जान लिया, रुडी अकेला पहाड़ी पर आया है। उसने हाथ हिलाया तो पहाड़ी में एक गहरी दरार पड़ गई। रुडी फिसलकर उस दरार में गिर पड़ा।
जब रुडी नहीं लौटा तो गाँववाले उसे ढूँढ़ने निकले। उसका पता कैसे चलता? मलकान के बनाए लकड़ी के पुतलों ने रुडी को पकड़ा और एक गुफा में कैद कर दिया। वे सब एक ऐसी भाषा बोल रहे थे, जिसे रुडी बिल्कुल नहीं समझ पा रहा था। तभी लकड़ी के पुतले एकदम सीधे खड़े हो गए। वे दरवाजे की ओर देखने लगे। रुडी ने देखा, सामने से जादूगर मलकान आ रहा था।
रुडी को कैद में देखकर मलकान जोर-जोर से हँसने लगा। बोला, ‘‘रुडी, राजा तुम्हारे खिलौने को प्रथम पुरस्कार तो दे सकते हैं, पर तुम्हें मेरे जादू से नहीं बचा सकते। तुम अपने प्राण बचाना चाहते हो तो मेरा कहना मानो। वरना मैं पूरे गाँव को तहस-नहस कर दूँगा।’’
रुडी ने हिम्मत नहीं हारी। बोला, ‘‘मलकान, मैं तुम्हारी धमकियों से डरनेवाला नहीं! मेरे हाथों की ताकत तुम्हारे जादू से बढ़कर है।’’
‘‘ऐसा!’’ मलकान हँस पड़ा। फिर बोला, ‘‘आओ, तुम्हें एक अजूबा दिखाऊँ!’’ रुडी को वह एक विशाल कमरे में ले गया। वहाँ सतरंगा प्रकाश फैला हुआ था। धम-धम की आवाज भी हो रही थी। गुफा की दीवार में एक बहुत बड़ा ताला बना हुआ था। आवाज उसी से आ रही थी।
मलकान ने कहा, ‘‘रुडी, इस ताले के पीछे एक घड़ी है। यह घड़ी की आवाज है। जब तक घड़ी चलती रहेगी, पहाड़ी तुम्हारे गाँव से परे खिसकती रहेगी। धीरे-धीरे गाँव की फसल मुरझा जाएगी। कुओं और तालाबों का पानी सूख जाएगा। गाँव में बीमारियाँ फैल जाएँगी। मैं तुम सबसे ऐसा बदला लूँगा कि तुम कभी न भूल सकोगे।’’
उधर गाँव के लोग परेशान थे। रुडी का कहीं पता नहीं चल रहा था।
गाँव की जमीन के नीचे कुछ बौने रहते थे। उन्हें भी मलकान की शरारत का पता था। वे गाँववालों की मदद करना चाहते थे, लेकिन मलकान के जादुई महल में जाते हुए डरते थे।
एक दिन रुडी के जुड़वाँ बेटे पाल और पीटरकिन पिता की खोज में चले। वे काफी छोटे थे। पाल और पीटरकिन से बौने मिले। उन्होंने कहा, ‘‘बच्चो, हमें मालूम है, रुडी पहाड़ी के अंदर कैद है; पर हम अंदर नहीं जा सकते। हाँ, अंदर पहुँचने का रास्ता खोजने में तुम्हारी मदद जरूर कर सकते हैं।’’
वे सब मिलकर रास्ता ढूँढ़ने लगे। पहाड़ी खिसकने से उसमें जगह-जगह दरारें पड़ गई थीं। बौने हर दरार में जाकर देखते थे। एकाएक उन्हें एक दरार में से रोशनी की झलक मिली। इसका मतलब था, दरार एकदम अंदर तक थी। बौनों ने पाल और पीटरकिन से कहा, ‘‘तुम उस दरार में से आगे बढ़ने की कोशिश करो।’’
दोनों भाई उस दरार में घुस गए और सँकरे रास्ते पर बढ़ते रहे। पीछे से बौने उन्हें हिम्मत बँधाते रहे।
रास्ता इतना सँकरा था कि बच्चों को अपनी साँस घुटती हुई लगती थी। फिर भी वे सामने दिखती हलकी रोशनी के सहारे बढ़े जा रहे थे। तभी उस दरार से उन्हें अपने पिता रुडी की झलक मिली। दोनों चिल्ला उठे, ‘‘पिताजी!’’
आवाज सुनकर रुडी चौंक उठा और इधर-उधर देखने लगा। तभी पाल ने फिर पुकारा। अब रुडी को पता चल गया कि आवाज कहाँ से आ रही थी। उसे दरार में से झाँकते हुए दो चेहरे दिखाई दिए और वह अपने बेटों को पहचान गया। रुडी की आँखों से आँसू टपकने लगे। किसी तरह अपने को सँभालकर उसने बच्चों से पूछा कि वे किस तरह वहाँ तक आ गए थे?
पाल और पीटरकिन ने पिता को पूरी बात बता दी। कहा कि गाँव में सब कितने परेशान हैं। अपने बच्चों को निकट पाकर रुडी खुश भी था और उदास भी। वह उन्हें देख सकता था, पर छू नहीं सकता था। वे पास होकर भी दूर थे। बच्चों के कानों में भी धम-धम की आवाजें आ रही थीं। उन्होंने पूछा, तो रुडी ने कहा, ‘‘इस आवाज को नहीं रोका गया तो सबकुछ नष्ट हो जाएगा। यह एक घड़ी की आवाज है। वह एक ताले में बंद है। ताले की चाबी जादूगर मलकान ने नष्ट कर दी है। मैं इस ताले की चाबी बनाऊँगा। तुम माँ के पास जाओ। उनसे सोना माँगकर लाओ। चाबी के लिए सोना चाहिए। सोने की चाबी से ही जादुई ताला खुल सकेगा।’’
रुडी ने बच्चों को पूरी बात समझा दी। पाल और पीटरकिन वहाँ से गाँव लौट आए। बौनों ने उनसे कह दिया, ‘‘तुम लोग आराम से जाओ। हम इस रास्ते की पहरेदारी करते रहेंगे। जब भी आओगे, हम यहीं मिलेंगे।’’
दोनों भाई माँ के पास पहुँचे। जल्दी ही पूरा गाँव जान गया कि रुडी का पता चल गया है और वह जादूगर मलकान की कैद में है। जादुई ताले की चाबी बनाने के लिए सोने की तलाश हुई। अब सबको उम्मीद हो गई थी कि रुडी को मलकान की कैद से मुक्त कराया जा सकेगा।
उसी दरार की राह से जाकर पाल और पीटरकिन ने अपने पिता को सोना दे दिया। जब वे उस दरार की राह पिता से बात कर रहे थे तो जादूगर मलकान वहाँ आ गया। उसी समय दरार के आगे का पत्थर गिर पड़ा। दोनों बच्चे मलकान को दिखाई दे गए। उसने झट उन्हें पकड़ लिया। जब शाम हो गई और बच्चे नहीं लौटे तो गाँववाले चिंतित हो उठे। वे समझ गए कि पाल और पीटरकिन जरूर किसी मुसीबत में फँस गए हैं।
मलकान ने रुडी को उस कमरे में बंद कर दिया, जहाँ विशाल जादुई ताला लगा था और घड़ी की आवाज गूँज रही थी। उस ताले की चाबी मलकान ने कहीं फेंक दी थी। मलकान ने सोचा था, रुडी इस तरह डर जाएगा; लेकिन रुडी को अपना काम करने का अच्छा मौका मिल गया था। वह ताले को देख-देखकर सोने की चाबी बनाने की कोशिश में लगा रहता। मलकान का जादू सोने पर नहीं चल सकता था, इसलिए उसे पता न चल सका कि रुडी क्या करता रहता है।
रुडी जानता था कि अगर समय पर जादुई ताला न खुला तो पूरा गाँव नष्ट हो जाएगा। दोनों बच्चे मलकान के चंगुल में फँस गए हैं, यह बात उसे हर समय परेशान करती रहती थी; लेकिन फिर भी वह चाबी बनाने में जुटा रहता, क्योंकि वही अंतिम आशा थी।
पहाड़ी अब पहले से ज्यादा काँपने लगी थी। रुडी ने आखिर रात-दिन मेहनत करके सोने की चाबी तैयार कर ही ली। उस समय वह कमरे में अकेला था। सामने विशाल ताला था—उसके पीछे घड़ी की आवाज सुनाई दे रही थी। रुडी ने सावधानी से इधर-उधर देखा और सोने की चाबी ताले में लगा दी। पर चाबी को घुमाने का मौका न मिला। उसी समय जादूगर मलकान अंदर आ गया।
मलकान ने ताले में सोने की चाबी लगी देखी तो आगबबूला हो उठा। वह रुडी की योजना समझ गया। उसने अपना जादुई डंडा उठाया और रुडी के शरीर से छुआ दिया। जादू के प्रभाव से रुडी का शरीर पत्थर जैसा हो गया। वह देख-सुन तो सकता था, पर चाहकर भी हाथ-पैर नहीं हिला सकता था।
रुडी का यह हाल देखकर मलकान जोर से हँस पड़ा। फिर उसने ताले में से चाबी निकालनी चाही, पर चाबी ताले के अंदर फँस गई थी। उसने और जोर लगाया तो चाबी ताले में घूम गई। ताला खुल गया। अब घड़ी की आवाज जोर-जोर से सुनाई पड़ने लगी। यह देखकर मलकान चीख उठा। ताला खुलते ही मलकान का जादू टूट गया। रुडी के हाथ-पैरों की शक्ति लौट आई। उसने उछलकर मलकान को धक्का दिया। मलकान दूर जा गिरा। रुडी ने बढ़कर घड़ी को परे फेंक दिया। आवाज थम गई। पहाड़ी का खिसकना रुक गया।
मलकान के जादुई खिलौने टूटकर गिर पड़े। खुद मलकान का शरीर जैसे अंदर से जला जा रहा था। वह वहाँ से भाग चला। भागता गया। कहाँ गया, कोई न जान सका।
रुडी पाल और पीटरकिन के साथ पहाड़ी महल से बाहर निकला और गाँव की तरफ चल दिया। पहाड़ी अब शांत थी। उसकी सब दरारें भर गई थीं। गाँव के मुरझाए खेत हरे हो गए। सूखे हुए कुओं और तालाबों में पानी आ गया। सबकुछ पहले जैसा हो गया था।
उस दिन काफी समय बाद गाँववालों के चेहरों पर हँसी दिखाई दी थी। वे जीत गए थे।