जादूगर का नाम : परी कहानी

Jadugar Ka Naam : Fairy Tale

एक समय की बात है कि एक राजा के राज्य में एक गरीब आदमी रहता था। उसकी अपनी एक छोटी-सी चक्की थी। किसी तरह आटा पीसकर वह अपना काम चलाता था। उसके एक लड़की थी। वह बहुत ही सुन्दर थी। यह लड़की जितनी सुन्दर थी, उतनी ही समझदार और होशियार भी थी। वह काम-काज में अपने पिता का हाथ बंटाती थी। चक्की वाले को उससे बड़ी मदद मिलती थी। वह रात-दिन अपनी लड़की के गुण गाया करता था। कोई भी मिलता था तो वह उससे अपनी बेटी की तारीफ किए बिना नहीं रहता था।

एक दिन ऐसा हआ कि चक्कीवाले को किसी काम से महल में जाना पड़ा। जब वह अपना काम खत्म करके महल से लौट रहा था तो अचानक इधर से राजा आ निकला। राजा चक्की वाले को जानता था। उसने वैसे ही उससे पूछ लिया, 'कहो भाई, क्या हाल है ? आजकल तुम्हारा काम कैसे चल रहा है ?"

चक्कीवाले ने आदर से रुककर कहा, "सरकार, सब आपकी कृपा है। किसी तरह गुज़र हो रही है। वैसे मुझे किसी बात की फिक्र नहीं है। मेरी बेटी सारा काम संभाल लेती है।"
राजा बोला, "अच्छा, तब तो बड़ी खुशी की बात है।"

इस पर चक्कीवाला राजा के सामने ज़रा डींग मारते हए बोला, "जी हां, ऐसी लड़की आपने देखी नहीं होगी। कम-से-कम इस शहर में तो ऐसी समझदार लड़की कहीं नहीं मिलेगी। बड़ी होशियार है। उसे कई तरह के काम आते हैं।"
राजा बोला, “अच्छा, उसे कौन-कौन से काम आते हैं ?"

चक्कीवाला बोला, "अरे हज़ूर, यह पूछिए कि उसे-कौन-सा काम नहीं आता ! अब देखिए ना, आपके महल के गोदामों में यह जो रूई रखी हुई है, मेरी बेटी चाहे तो इसे कातकर सोना बना सकती है !"

राजा ने आश्चर्य से कहा, "अच्छा, ऐसी बात है ! तब तो तुम ऐसा करना, ज़रा उसको जल्दी ही हमारे महल में भेज देना । मैं देखना चाहता हूं कि वह रूई को कातकर सोना कैसे बनाती है !"

राजा सोने का बहुत शौकीन था। उसे रात-दिन सोना बटोरने की फिक्र रहती थी। वह मन ही मन बड़ा खुश हुआ कि चलो इस तरह सारी रूई सोने में बदल जाएगी।

जब राजा चला गया तो चक्की वाले को अपनी गलती मालूम हुई। वह पछताने लगा कि मैंने राजा के सामने इस तरह बढ़ाचढाकर बातें क्यों की ! लेकिन अब क्या हो सकता था ! वह राजा को यह नहीं कह सकता था कि उसने झूठ बोला था। वह चुपचाप घर पहुंचा । घर जाकर उसने अपनी लड़की से कहा, "बेटी, तुम्हारी होशियारी और समझदारी की खबर राजा तक पहुंच चुकी है। वे तुमसे मिलना चाहते हैं । जल्दी तैयारी हो जाओ। तुम्हें इसी समय मेरे साथ महल में चलना है।"

यह सुनकर लड़की बड़ी खुश हुई। थोड़ी देर में वह सजधजकर महल में जाने के लिए तैयार हो गई। चक्कीवाला अपनी लड़की को लेकर राजा के पास पहुंचा। राजा फौरन लड़की को उस बड़े-से गोदाम में ले गया, जहां रूई भरी हुई थी। राजा ने लड़की के लिए एक चर्खा मंगवा दिया और कहा, "लो, यह चर्खा है । यहां बैठो। इससे रूई कातकर मेरे लिए सोना बना डालो। तुम्हारे पिता ने मुझे बताया है कि तुम रूई को कातकर सोना बना सकती हो। मैं कल सुबह आकर देखूंगा कि तुमने क्या काम किया है । अगर तुमने सोना नहीं बनाया तो मैं तुम्हारी गर्दन कटवा दूंगा।"

यह कहकर राजा वापस महल में लौट गया। बेचारी लड़की! उसकी तो समझ में ही नहीं आया कि क्या हो गया। वह तो बड़ी खुशी-खुशी अपने पिता के साथ महल में आई थी। उसने सोचा था कि राजा जी उसकी तारीफ करेंगे और उसे इनाम देंगे। यहां तो बात ही उल्टी हो गई । उसने कभी सपने में भी नहीं सूना था कि रूई को कातकर सोना बनाया जा सकता है और अब राजा ने उसको ऐसा ही करने का हुक्म दिया था! वह फूट-फूटकर रोने लगी और अपनी तकदीर को कोसने लगी।

धीरे-धीरे शाम हो गई । लड़की हाथों से अपना मुंह छिपाए रोती रही। आंसूओं से जमीन गीली हो गई। उस बडे-से गोदाम में वह अकेली बैठी रो रही थी। वहां उसे मनाने वाला कोई नहीं था। अचानक थोड़ी देर बाद गोदाम का दरवाज़ा कुछ चरमराया। लड़की ने आवाज़ सुनकर सिर उठाया तो देखा कि एक दुबला-पतला नाटा और बहुत भद्दा-सा बूढ़ा लंगड़ाता हुआ उसकी ओर आ रहा है । लड़की ने समझा कि राजा का कोई बूढ़ा नौकर है और उसे रोते हुए देखकर उसे मनाने के लिए यहां आ गया है ।

बूढ़े ने पास आकर कहा, “बेटी, तुम क्यों रो रही हो? इस तरह रो-रोकर तो तुम अपनी आंखें ही फोड़ लोगी। मुझे बताओ, क्या बात है ! मैं-तुम्हारी मदद करूंगा।"

लड़की सिसकते हुए बोली, "बाबा, क्या बताऊं ! मेरी तो तकदीर ही फूट गई। राजा ने कहा है कि मैं इस सारी रूई को कातकर इसका सोना बना दूं । अगर कल सुबह तक मैंने यह काम खत्म नहीं किया तो वह मेरा सिर कटवा देगा। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं कैसे यह काम करूँ ।"

बूढ़े ने मुस्कराते हुए कहा, "तो तुम घबराती क्यों हो ! मैंने कहा न कि मैं तुम्हारी मदद करूंगा । अब बताओ, मैं अगर तुम्हारा काम कर दूं तो तुम मुझे क्या दोगी?"
लड़की बोली, "अगर तुम मेरे लिए यह काम कर दो तो मैं तुम्हें अपना यह सोने का हार दे दूंगी।"

वह नाटा बूढा राजी हो गया और चर्खे के पास बैठकर रूई कातने लगा। 'भन्न-भन्न' की आवाज़ होने लगी और उसकी उंगलियों में से चमचमाते हुए सोने के धागे निकलने लगे। देखते ही देखते वहां सोने के धागों का ढेर लग गया। सवेरा होने से पहले ही बूढ़ा सारी रूई कात चुका था। फिर वह अपना इनाम लेकर वहां से चुपचाप चला गया।

जब सवेरा हुआ तो राजा वहां आ पहुंचा। गोदाम में पैर रखते ही राजा की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं। उसने देखा कि लड़की ने सारी रूई कात डाली है और वहां सोने के धागों का ढेर लगा है। राजा को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसने देखा तो सचमुच सोने के धागे थे। राजा बड़ा खुश हुआ, लेकिन साथ ही उसके मन में लालच हो आया । वह लड़की को रूई के दूसरे गोदाम में ले गया और वहां उसे बन्द करते हुए बोला, "तुम यहां बैठो । तुम्हारे खाने-पीने के लिए मैं बहुत अच्छी-अच्छी चीजें भिजवाता हूं। मैं तुम्हारे काम से बहुत खुश हूं, लेकिन आज तुम्हें इस गोदाम की रूई कातनी पड़ेगी। कल फिर मैं सूबह आऊंगा और देखूँगा। अगर काम पूरा नहीं होगा तो तुम्हें फांसी दे दी जाएगी।" यह कहकर राजा वहां से चला गया।

राजा के जाने के बाद लड़की ने बाहर झांककर देखा तो वहां सिपाही लोग तलवारें लिए पहरा दे रहे थे । वह वहां से भाग भी नहीं सकती थी। वह निराश होकर फिर से अन्दर आकर बैठ गई। इतने में दासियां उसके लिए खाने की बहुत-सी बढ़िया-बढ़िया चीजें लाकर उसके सामने रख गईं। लेकिन लड़की ने उसमें से किसी चीज़ को छुआ तक नहीं। वह फिर से उदास हो गई थी। रोते-रोते वह सोचने लगी हे भगवान ! यह कैसी मुसीबत मेरे गले आ पड़ी है। इतनी सारी रूई को कौन कातेगा, और भला कौन इससे सोना बनाएगा? वह दिन-भर इसी तरह सोचती रही और उदास बैठी रही। शाम होने पर जब वह रोने लगी तो उसी तरह दरवाज़ा चरमराया और वही बूढ़ा आदमी अपने टेढ़े-मेढ़े पैरों से चलता हुआ उसके सामने आ खड़ा हुआ। उसने आते ही कहा, "अरे-अरे, तुम फिर रोने लगीं ! रोती क्यों हो? बताओ, मैं तुम्हारा काम कर दूं तो आज मुझे क्या दोगी?"
लड़की ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा, "मैं तुम्हें अपनी यह हीरे की अंगूठी दे दूंगी।"

वह नाटा बूढ़ा राजी हो गया और बैठकर बड़ी तेज़ी से चर्खा कातने लगा। देखते-देखते उसने सारी रूई कात डाली और सोने के धागों का ढेर लगा दिया। सवेरा होने से पहले ही बूढ़ा अपना काम खत्म करके और इनाम लेकर वहां से चलता बना।

सवेरा होने पर राजा वहां पहुंचा। रूई की जगह सोने के धागों का ढेर देखकर उसकी खुशी की सीमा न रही । अब उसे और भी लालच हो आया। वह उस लड़की को उससे भी बड़े गोदाम में ले गया और बोला, "देखो, मैं तुमसे बहुत खुश हूं; लेकिन आज तुम्हें इतनी रूई और कातनी पड़ेगी और इसका सोना बनाना पड़ेगा। अगर कल सुबह तक यह काम कर दोगी तो मैं तुमसे शादी कर लूंगा और तुम्हें अपनी रानी बना लूंगा।"

राजा के जाने पर लड़की फिर उदास हो गई। वह रोना शुरू करने ही वाली थी कि इतने में फिर से दरवाज़ा चरमराया और वह नाटा बूढ़ा आदमी अपनी भद्दी चाल से फुदकता हुआ उसके सामने आ खड़ा हुआ। बूढ़ा बोला, "तुम चिन्ता क्यों करती हो? मैं शाम को आकर तुम्हारा यह काम कर दूंगा, लेकिन बताओ, तुम आज इस काम के बदले में मुझे क्या इनाम दोगी?"

अब लड़की कुछ चक्कर में पड़ गई। उसकी समझ में नहीं आया कि क्या जवाब दे । अब तो उसके पास इनाम देने के लिए कुछ भी नहीं बचा था। लेकिन इतने में बूढ़े ने एक चाल सोच ली और कहा, “चलो, तुम्हारे पास देने के लिए अभी कुछ न हो तो कोई बात नहीं । लेकिन तुम्हें एक प्रतिज्ञा करनी पड़ेगी। जब तुम रानी बन जाओगी और जब तुम्हारे कोई बच्चा होगा तो तुम अपना पहला बच्चा इनाम में मुझे दे दोगी।"
लड़की को यह शर्त कुछ अजीब-सी लगी, लेकिन फिर उसने सोचा कि प्रतिज्ञा करने के अलावा और कोई चारा नहीं । वह राजी हो गई।

शाम को आकर बूढ़ा फिर से रूई कातने के लिए बैठ गया। आज वह बहुत खुश था और बड़ी तेजी से चर्खा चला रहा था। थोडी देर में उसने सारी रूई कात डाली और सोने के धागों का ढेर लगा दिया। आज ढेर इतना ऊंचा था कि छत को छू रहा था। काम खत्म करके बूढ़ा बोला, "अच्छा, अब मैं जाता हूं। लेकिन याद रखना, अपनी प्रतिज्ञा मत भूलना।" यह कहकर वह वहां से चला गया।
सवेरा होते ही राजा वहां पहुंचा । सोने के ढेर को देखकर उसका मन नाचने लगा। उसने लड़की को शाबाशी दी और उसे महल में ले गया।

दूसरे ही दिन राजा ने धूम-धाम के साथ उस लड़की को अपनी रानी बना लिया। चक्कीवाले की लड़की अब रानी बन गई और बड़ी शान के साथ महल में रहने लगी। वह अपने सारे दुःख भूल गई । कुछ ही दिनों में उसे यह भी याद नहीं रहा कि उसने उस नाटे बूढ़े से कोई वादा किया था। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे।

कुछ दिनों बाद रानी के एक बच्चा हुआ। बड़ा सुन्दर नन्हा-मुन्ना, गोल-मटोल-सा बच्चा! रानी की खशी की सीमा न थी। वह दिन-भर बच्चे को खिलाती और लोरियां गाकर सुलाती थी। एक दिन वह आराम से बैठकर सोच रही थी कि उसके जैसी भाग्यवान लड़की दुनिया में और कौन होगी। उसे किसी बात की कमी नहीं थी। वह इतने बड़े राज्य की रानी थी। हीरे-जवाहरात, हाथी-घोडे, नौकर-चाकर सभी कुछ तो था उसके पास । वह इसी तरह सोच रही थी कि अचानक दरवाज़ा चरमराया । और वही नाटा बूढ़ा शरारत से मुस्कराता हुआ रानी के सामने आ खड़ा हुआ।

"तुम क्यों आए हो? क्या चाहिए तुम्हें ?" रानी ने घबराकर पूछा और बच्चे को कसकर अपनी छाती से चिपटा लिया। रानी डर के मारे थर-थर कांप रही थी।
बूढ़े ने मुस्कराते हुए कहा, "मुझे तुम्हारा यह बच्चा चाहिए। जल्दी से इसे मुझे सौंप दो। क्या तुम अपना वादा भूल गईं ?"

यह सुनकर रानी फूट-फूटकर रोने लगी। उसने रोते सिसकते कहा, "बाबा, मुझ पर दया करो। तुमने मेरी बड़ी मदद की है। मैं कभी तुम्हारा उपकार नहीं भूलूंगी। इस बार तो मुझे माफ कर दो। मेरा बच्चा मुझसे मत छीनों । इसक बदले तुम जो चाहे मांग लो, लेकिन इसे मेरे पास रहने दो।"

उसको इस तरह रोते हए देखकर बूढ़ा थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गया। फिर वह बोला, "अच्छा, मैं तुम्हें तीन दिन का समय देता हूं। तुम सोचकर बताओ कि मेरा नाम क्या है । अगर तुम ठीक-ठीक मेरा नाम बता दोगी तो मैं तुम्हें माफ कर दूँगा और तुमसे बच्चा नहीं लूँगा।"

यह कहकर वह बूढ़ा जिस तरह आया था, उसी तरह चुपचाप वहां से चला गया।
रानी को रात-भर नींद नहीं आई। वह कोई ऐसा तरीका खोजना चाहती थी जिससे बच्चा उसी के पास रहे। वह नाटा बूढ़ा इसके लिए बड़ी टेढ़ी शर्त रख गयां था। भला रानी कैसे बता सकती थी कि उसका नाम क्या है ! वह रात-भर तरह-तरह के नाम सोचती रही। उसने वे सारे ही नाम याद कर डाले जो अब तक उसने सुने थे। सुबह जब बूढ़ा आया तो वह एक-एक करके नाम गिनाने लगी, लेकिन हर नाम पर बूढ़ा इन्कार कर देता था। वह मुस्कराकर कहता था, "नहीं, यह मेरा नाम नहीं है।"

दूसरे दिन रानी ने अपने कई नौकरों को शहर में इधर-उधर दौड़ाया और उनसे तरह-तरह के अजीब से नाम ढूंढकर लाने के लिए कहा। दूसरे दिन जब वह बूढ़ा आया तो रानी उसे फिर नाम गिनाने लगी। आज उसने बहुत टेढ़े-मेढ़े और अजीब से नाम सुनाए, जैसे 'कुबड़ा', 'ऐचकताना,' 'डेढटंगा, वगैरह-वगैरह।

रानी ने सोचा कि इस तरह बूढ़ा चिढ़ जाएगा और अपना असली नाम बता देगा । लेकिन वह शरारत से मुस्कराते हुए बोला, "नहीं-नहीं, इनमें से एक भी मेरा नाम नहीं है। मैं जाता हूँ । कल ज़रूर मेरा नाम ठीक-ठीक बता देना, वरना मैं तुम्हारा बच्चा ले जाऊंगा।"

रानी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे । दुनिया भर के अच्छे और बुरे नाम वह उसको सुना चुकी थी। बूढ़े का असली नाम क्या हो सकता है, इस सम्बन्ध में उसका दिमाग ही काम नहीं कर रहा था। उसने बहुत सोचा, बहुत सोचा और अन्त में हार मान ली। उसने तय किया कि अब वह अपने वादे के अनुसार बूढ़े को अपना बच्चा सौंप देगी। इसके अलावा और कोई चारा नहीं था।

वह इस तरह उदास बैठो हुई थी कि अचानक उसका एक नौकर दौड़ता हआ उसके पास आया। वह भी उसके लिए नये से नये नाम खोजने के लिए गया था। उसने आकर कहा, "रानी जी, नाम तो मुझे कोई नहीं मिला, लेकिन मैं आपको एक बात बताने आया हूं। मैं नये नामों की खोज में दूर गांवों में गया था। लौटते वक्त पहाड़ के पास ही घने जंगल में मैं रास्ता भूल गया । जंगल में भटकते-भटकते मैं ऐसी घनी झाड़ियों में पहुंचा, जिनमें से कोई जंगली जानवर भी नहीं निकल सकता था। वहां मैंने एक अजीब से नाटे बूढ़े को अपने लंगड़े पैरों पे नाचते हुए देखा । उसने एक झाड़ी के पास अपने लिए एक छोटी-सी कुटिया बना रखी थी । उस कुटिया के सामने उसका चूल्हा जल रहा था और वहां वह नाच रहा था। उसने अपने सिर पर ताज़ी सिकी हई कूछ बड़ी-छोटी रोटियां एक तसले में ले रखी थीं। जब वह नाचता था तो रोटियां तसले से नीचे गिरने को हो आती थीं, लेकिन एक भी रोटी गिरी नहीं । वह मगन होकर नाच रहा था और खुशी से गाना गा रहा था।

"उसके गाने का मतलब था : आज मैंने बढ़िया खाना बनाया है, और मैं भरपेट खाऊंगा । कल तो मुझे रानी का बच्चा लेने जाना है ही। बच्चा मुझे मिल ही जाएगा. क्योंकि रानी को पता ही नहीं है और न कभी पता चलेगा कि मेरा नाम है-रम्पलस्टिल्ट्स-किन !"

यह सुनकर रानी खुशी से नाच उठी । उसे अब विश्वास हो गया था कि जंगल में नाचने वाला बूढ़ा वही था और यही उसका असली नाम है। उसने दो-तीन बार रटकर यह नाम अच्छी तरह याद कर लिया। और फिर नौकर को इनाम देकर वहां से विदा कर दिया।

दूसरे दिन सवेरे वह नाटा बूढ़ा उसी तरह फुदकता हुआ उसके कमरे में आ पहुंचा । आज वह बहुत खुश था। वह बच्चे को अपने घर ले जाने के लिए एक खुबसूरत-सा कंबल भी अपने साथ लाया था।
कमरे में आते ही उसने उस छोटे-से कंबल को रानी के सामने बिछा दिया और फिर रानी से कहा-"हां, तो बताओ, मेरा असली नाम क्या है ?

आज तीसरा दिन है। अगर तुम ठीक-ठीक मेरा नाम न बता सको तो चुपचाप बच्चे को मेरे कंबल पर लिटा दो। मैं इसी में लपेटकर उसे ले जाऊंगा, ताकि उसे ठंड न लगे।"
रानी को उसका असली नाम तो मालूम हो ही गया था, लेकिन वह इस तरह देखने लगी जैसे उसे अभी नाम मालूम नहीं हुआ था। उसने कहा,
"तुम्हारा नाम विलियम है।"
"नहीं, मेरा नाम यह नहीं है !" बूढ़े ने खिलखिलाते हुए कहा।
"तो फिर जार्ज होगा?"
"नहीं, यह भी मेरा नाम नहीं है !" और वह कमरे में खुशी से उछलने लगा। " रानी ने फिर कहा, "अगर जार्ज नहीं है तो जॉन होगा।"
"नहीं, यह भी मेरा नहीं है।" बूढ़े ने खूब ज़ोर से कहा और फिर कंबल की ओर इशारा करता हुआ बोला, "लाओ अब बेकार का बहाना न बनाओ और बच्चे को कंबल पर लिटा दो।"
अब मौका देखकर रानी बोली, "तो फिर तुम्हारा नाम रम्पल-स्टिल्ट्स-किन है।"

यह सुनते ही बूढ़ा चौंक पड़ा । उसे उम्मीद भी नहीं थी कि रानी को उसका असली नाम भी कभी मालूम हो सकेगा। उसे बहुत बुरा लगा। लेकिन अब वह कर ही क्या सकता था ! वह मारे गुस्से के ज़मीन पर ज़ोर-ज़ोर से पैर पटकने लगा और बोला, "तुमने जादू किया है ! तुम्हें किसी भूत या जादूगर ने मेरा नाम बताया है । मैं उन लोगों को ठीक कर दूंगा!" बूढ़ा बहुत ज़ोर ज़ोर से चीख रहा था और ज़मीन पर पैर पटकता जा रहा था। इसी बीच उसने एक बार इतने ज़ोर से पैर पटका कि उसका पैर ज़मीन में धंस गया।

बड़ी मुश्किल से ज़ोर लगाकर बूढ़े ने अपना पैर जमीन में से बाहर निकला। उसे बहुत चोट आई थी। वह जोर-जोर से बड़बड़ाता हआ और एक पैर से लंगड़ाता हआ उस कमरे से बाहर भाग गया। जाते-जाते वह अपना कंबल भी उठा ले गया।

इसके बाद वह बूढ़ा फिर कभी नहीं आया और रानी आराम से रहने लगी।

(ग्रिम्स फेयरी टेल्स में से : अनुवादक - श्रीकान्त व्यास)

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