जादू की सारंगी : जर्मन लोक-कथा
Jadu Ki Sarangi : Lok-Katha (German)
एक बार जर्मनी के एक साहूकार ने एक नौकर रखा। वह नौकर बड़ा परिश्रमी और ईमानदार था। सुबह सबसे पहले उठता और रात को सबसे पीछे सोता । जो कठिन काम कोई न कर सकता था, उसे वह चुटकियों में कर देता। किसी ने कभी उसके चेहरे पर दुःख की एक शिकन तक न देखी थी। वह सदा खुश और मुस्कराता रहता ।
उसे नौकरी करते-करते एक साल पूरा हो गया, पर साहूकार ने उसका वेतन नहीं दिया। सोचा कि वेतन पाने पर कहीं नौकरी छोड़कर न चला जाए। नौकर ने भी वेतन नहीं मांगा और पहले की तरह ईमानदारी और मेहनत से नौकरी करता रहा ।
दूसरा साल भी बीत गया, पर साहूकार ने तब भी उसे कुछ नहीं दिया। इस बार नौकर के मन में कुछ असंतोष तो जरूर पैदा हुआ, पर कहा उसने कुछ नहीं, और उसी तरह मेहनत से नौकरी करता रहा।
पर जब तीसरा बरस भी गुज़र गया और साहूकार ने वेतन नहीं दिया तो नौकर के मन में खलबली हुई। आखिर कब तक चुप रहता? एक दिन उसने साहूकार से कहा- “हुजूर, मैंने तीन साल तक बड़े परिश्रम और ईमानदारी से आपकी सेवा की है। इन तीन वर्षों में न मैंने कभी आपसे वेतन मांगा और न आपने दिया। अब मैं नौकरी छोड़ना चाहता हूं। मेरा हिसाब कर दीजिए । "
साहूकार अव्वल दर्जे का कंजूस था । उसे मालूम था कि नौकर बहुत सीधा-सादा है और उसे बड़ी आसानी से बहुत थोड़े पैसे देकर बहकाया जा सकता है। साहूकार ने जेब में हाथ डाला और एक पैसा प्रति वर्ष के हिसाब से वेतन के रूप में तीन पैसे नौकर के हाथ पर रख दिए और कहा - " लो अपना वेतन और मुझे धन्यवाद दो। बहुत थोड़े मालिक इतना अधिक वेतन देंगे ।"
भोले-भाले नौकर ने बिना कुछ हील हुज्जत किए तीनों पैसे लेकर जेब में डाल लिए और मन में सोचा - 'मेरी जेब में मेरी तीन बरस की कमाई है। अब मुझे मेहनत करने की क्या जरूरत है? मैं क्यों तरह-तरह के दुःख उठाऊं ? अब मुझे सब चिंताएं छोड़कर मजे से जिंदगी बितानी चाहिए।"
जब नौकर उछलता कूदता हुआ जंगल में से गुजर रहा था, तो उसकी भेंट एक बौने से हुई। बौने ने उसे बेतरह खुश देखकर पूछा - "भाई, तुम इतने खुश क्यों हो? लगता है कि संसार का कोई भी दुःख और चिंता तुम्हें नहीं है ?"
"मेरे खुश न होने का कोई कारण नहीं है," नौकर ने बौने के प्रश्न के उत्तर में कहा - " मैं स्वस्थ हूं, जवान हूं और मेरी जेब में मेरी तीन साल की कमाई है। फिर मुझे चिंता और दुःख क्यों हो?”
“तीन साल की कमाई!” बौने ने आश्चर्य से पूछा, “कितनी है ?”
" पूरे तीन पैसे!” नौकर ने उत्तर दिया ।
बौना बोला -- "भाई, मैं बहुत गरीब हूं। मेरे पास कानी - कौड़ी भी नहीं है। बूढ़ा होने के कारण मैं कुछ कमा भी नहीं सकता। तुम जवान और स्वस्थ हो । जितना चाहो, कमा सकते हो। पैसा तुम्हारे हाथ का मैल है। ये तीनों पैसे मुझे दे दो।”
नौकर दयालु था। उसने तीनों पैसे बौने को दे दिए। उसकी इस उदारता पर बौना बहुत प्रसन्न हुआ। बोला- “भगवान तुम्हारा भला करे। तुम्हारा हृदय बहुत दयालु और पवित्र है । मैं तुम्हें तीन वरदान देना चाहता हूं - हर पैसे के लिए एक वरदान। जो जी चाहे मांग लो।"
नौकर मन-ही-मन बहुत खुश हुआ। कुछ देर सोचने के बाद वह बोला- “यदि तुम मुझसे खुश हो, और तुममें वर देने की शक्ति है, तो मुझे एक ऐसी गुलेल दो, जिसका निशाना कभी न चूके।"
बौने ने नौकर को उसकी मनचाही गुलेल दे दी।
अब नौकर ने कहा-“दूसरे वरदान में मुझे एक ऐसी सारंगी दो, जिसे सुनते ही लोग नाचने लगें । "
जब सारंगी भी मिल गई, तो नौकर ने तीसरा वरदान मांगा - "तीसरा वरदान मुझे यह दो कि यदि मैं किसी व्यक्ति से कोई प्रार्थना करूं तो वह उसे ठुकराए नहीं ।"
"ऐसा ही होगा ।" बौने ने कहा, और देखते-ही-देखते वह न जाने कहां लोप हो गया।
नौकर खुशी-खुशी आगे बढ़ा। अभी वह कुछ ही दूर गया होगा कि उसकी भेंट एक यहूदी से हुई जो एक पेड़ के नीचे खड़ा था जिसकी शाखा पर एक चिड़िया बैठी चहचहा रही थी। नौकर को देखकर यहूदी ने कहा - "देखो, कितनी प्यारी चिड़िया है! यदि तुम इस चिड़िया को पकड़ दो तो मैं तुम्हें मुंहमांगा पुरस्कार दूंगा। "
"ओह, यह बात है! मैं अभी चिड़िया को नीचे गिरा देता हूं।"
और नौकर ने ज्योंही गुलेल से चिड़िया का निशाना लगाया, चिड़िया जख्मी होकर कांटेदार झाड़ी में गिर पड़ी।
यहूदी नौकर से पहले चिड़िया को पकड़ने के लिए पेट के बल जमीन पर लेट गया और रेंगकर झाड़ी में घुस गया।
जब यहूदी झाड़ी के बीच में पहुंचा तो नौकर ने एकाएक सारंगी बजानी शुरू कर दी। सारंगी की धुन का कान में पड़ना था कि यहूदी झाड़ी के अंदर उछल-उछलकर नाचने लगा। कांटों के चुभने से उसके कपड़े चिथड़े - चिथड़े हो गए और शरीर से खून बहने लगा। यहूदी झाड़ी में से ही चीखने-चिल्लाने लगा-
'हाय, मैं मरा...खुदा के लिए सारंगी बजाना बंद कर दो मैं हाथ जोड़ता हूं..."
पर नौकर ने सारंगी बजाना बंद नहीं किया और दूसरी धुन छेड़ दी। सारंगी की आवाज़ धीरे-धीरे तेज होती जाती थी और जैसे-जैसे सारंगी की आवाज़ तेज़ होती गई, यहूदी की उछलने की गति भी बढ़ती गई। आखिर जब यहूदी का बदन छलनी- छलनी हो गया तो वह तड़पकर बोला- “मैं हाथ जोड़ता हूं। खुदा के लिए मुझ पर रहम करो। मेरी मुहरों की थैली ले लो, पर सारंगी न बजाओ। मैं मर जाऊंगा।"
आखिर जब यहूदी ने बहुत हाथ-पैर जोड़े तो नौकर ने सारंगी बजाना बंद कर दिया और मुहरों की थैली लेकर चलता बना।
जब नौकर कुछ दूर पहुंच गया तो यहूदी अधनंगा और परेशान हालत में झाड़ी में से निकला और चिल्लाकर बोला- “ठहर जा बदमाश सारंगीवाले! मुझसे बचकर तू कहां जाएगा? तुझे मज़ा न चखाया तो मूंछें मुड़वा दूंगा, हां!”
क्रोध से भरा हुआ यहूदी कचहरी में पहुंचा और हाकिम से रोकर बोला- "मैं लुट गया, हुजूर, मैं लुट गया! एक बदमाश ने रास्ते में मुझे लूट लिया ! मेरी मुहरों को थैली - मेरी उमर भर की कमाई - छीन ली ! मुझ पर दया दिखाइए, हुजूर और उस डाकू को पकड़ मंगाइए।"
हाकिम ने पूछा - "कौन है वह बदमाश, जिसने तुम्हें सताया है? क्या तुम उसे पहचान सकते हो?"
यहूदी ने कहा- "हुजूर, उसके पास एक सारंगी और एक गुलेल है। इन्हीं दो चीज़ों से वह पहचाना जा सकता है।"
अभी नौकर कुछ ही दूर गया था कि सिपाहियों ने उसे जा पकड़ा और हाकिम के सामने ले गए।
हाकिम ने पूछा - "क्यों बे बदमाश, तूने यहूदी की मुहरों की थैली क्यों छीनी ?"
"यह झूठ है, हुजूर!” नौकर ने कहा- "मैंने तो यहूदी को हाथ भी नहीं लगाया, न इसकी मुहरों की थैली छीनी। इसने अपनी इच्छा से ही मुझे मुहरों की थैली भेंट की थी ताकि मैं सारंगी बजाना बंद कर दूं, क्योंकि यह इसकी आवाज़ को सह नहीं सकता था।"
यहूदी ने इस बात से साफ इनकार कर दिया। हाकिम ने भी यह समझकर कि यहूदी अव्वल दरजे का कंजूस मालूम होता है, भला मुहरों की थैली कैसे भेंट कर सकता है, नौकर को ही दोषी ठहराया।
नौकर की इस लूट का परिणाम लोगों के सामने सदा एक मिसाल के रूप में रहे और कोई फिर ऐसा बुरा काम करने का दुस्साहस न करे, इसलिए हाकिम ने उसे फांसी की सजा दी।
नौकर खूब रोया-चिल्लाया, पर हाकिम ने एक न सुनी। सिपाहियों ने नौकर को जेल में बंद कर दिया।
जब दूसरे दिन नौकर को सजा देने के लिए फांसीघर में ले जाया गया तो फांसी के तख्ते पर चढ़ते हुए नौकर को एकाएक बौने का दिया हुआ तीसरा वरदान याद आया। उसने मुड़कर हाकिम से प्रार्थना की- "हुजूर, मरने से पहले मेरी एक इच्छा है।”
हाकिम ने कहा-“तुम्हारी क्या इच्छा है, कहो ? हम तुम्हें विश्वास दिलाते हैं कि प्राणों को छोड़कर इस समय तुम जो भी मांगोगे, वह तुम्हें मिल जाएगा।"
नौकर ने कहा- "तो हुजूर, मुझे आखिरी बार थोड़ी देर के लिए अपनी सारंगी बजाने की आज्ञा दी जाए।"
इससे पहले कि हाकिम कुछ कहे, यहूदी चिल्ला उठा - "नहीं-नहीं, हुजूर, खुदा के लिए उसे सारंगी बजाने की आज्ञा न दीजिए गजब हो जाएगा, हुजूर!”
हाकिम चिल्लाया- "बको मत! क्या तू चाहता है कि मैं ऐसी मामूली-सी प्रार्थना को भी नामंजूर कर दूं, जबकि यह इसकी आखिरी इच्छा है। यह कभी न होगा ।"
अब क्या था ! नौकर ने सारंगी पर धुन छेड़ दी। सारंगी की पहली आवाज पर सब लोग - हाकिम वगैरह हिलने लगे। दूसरी आवाज़ पर वे सब उछलने लगे। जल्लाद भी कैदी को छोड़कर नाचने लगा ।
इस तमाशे को देखने के लिए बहुत से लोग वहां दौड़े आए, पर सारंगी की आवाज़ सुनते ही वे भी सब-के-सब नाचने ओर उछलने लगे। सारंगी की आवाज़ ज्यों-ज्यों तेज़ होती जाती थी, त्यों-त्यों वे और भी उछलने लगते थे। यहां तक कि एक-दूसरे के साथ टकराने से उनके चोटें लगने लगीं।
आखिर हाकिम ने चिल्लाकर कहा- 'खुदा के लिए सारंगी बजाना बंद कर दो! मैं तुम्हें प्राणदान देता हूं।”
अंधे को क्या चाहिए, दो आंखें! नौकर ने सारंगी बजाना बंद कर दिया और यहूदी के पास जाकर कहा- "सच बता तूने यह धन कहां से पाया है? नहीं तो अब मैं सिर्फ तेरे लिए सारंगी बजाऊंगा।"
यहूदी मारे डर के झट बोल उठा - " मैंने चुराया था, पर तुमने ईमानदारी से लिया है।"
हाकिम ने यहूदी को चोर ठहराकर उसे जेल में डाल दिया और वह निर्दोष नौकर खुशी-खुशी अपने घर चला गया।