बेवकूफ इवान और जादुई पाइक मछली : रूसी लोक-कथा

Ivan the Fool and the Magic Pike : Russian Folk Tale

एक बार की बात है कि रूस में एक जगह तीन भाई रहते थे। उनमें से दो भाई तो बहुत अक्लमन्द थे पर तीसरा भाई कुछ बेवकूफ सा था। इस तीसरे भाई का नाम था इवान31। इवान सारा दिन अँगीठी के पास बैठा बैठा अँगूठा चूसता रहता और सपने देखता रहता।

जाड़े के मौसम के एक दिन जब दोनों बड़े भाई बाजार जाने के लिये तैयार हो रहे थे तो उन्होंने अपने छोटे भाई से कहा कि वे बाजार जा रहे हैं। उनके पीछे वह उनकी पत्नियों का कहना माने।

उन्होंने साथ में यह भी कहा — “अगर तुम ऐसा करोगे तो हम तुम्हारे लिये लाल रंग के जूते ला कर देंगे।”

यह सुन कर वह बेवकूफ मुस्कुराया और जा कर अँगीठी पर लेट गया। जब उसके भाई लोग चले गये तो उसके उन बड़े भाइयों की पत्नियों ने उससे कहा — “जाओ और ज़रा हमारे लिये नदी से पानी ला दो।”

बेवकूफ बोला — “बाहर बहुत ठंडा है। मैं पानी नहीं ला सकता।”

पत्नियों ने कहा — “अगर तुम नहीं जाओगे तो हम अपने पतियों से कह देंगी और फिर तुमको नये जूते नहीं मिलेंगे।”

इवान कुछ भुनभुनाते हुए बोला — “अच्छा अच्छा ठीक है। मैं अभी आपके लिये पानी लाने जाता हूँ।”

वह अँगीठी से नीचे उतरा, उसने अपना पुराना कोट पहना और दो बालटी और एक कुल्हाड़ी ले कर जमी हुई नदी की तरफ पानी लाने चल दिया।

वहाँ जा कर उसने जमी हुई नदी की बर्फ में एक छेद किया और उसमें से दो बालटी पानी निकाला और उनको ले कर घर चला।

उसने बस ऐसे ही पानी की तरफ एक निगाह डाली तो उसको बड़ा आश्चर्य हुआ। उनमें से एक बालटी में तो एक बहुत बड़ी मछली तैर रही थी – एक पाइक मछली।

उस मछली को देख कर इवान को बहुत खुशी हुई। वह बोला
— “वाह मेरी कितनी अच्छी किस्मत है। आज रात तो मैं खाने में इस मछली का सूप खाऊँगा।”

पर तभी एक दूसरे आश्चर्य ने उसको आश्चर्य में डाल दिया। वह मछली आदमी की आवाज में बोली — “मुझे जाने दो इवान, मुझे जाने दो। मैं एक दिन तुमको इसका बदला जरूर दूँगी।”

बेवकूफ इवान हँस पड़ा — “तुम मेरे लिये क्या अच्छा काम कर सकती हो? इससे अच्छा तो यह है कि मैं तुमको घर ले जाऊँ और शाम को खाने में खाऊँ।”

पर मछली ने उससे फिर से प्रार्थना की — “मुझे जाने दो इवान, मुझे जाने दो। मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूँगी।”

यह सुन कर इवान अपना सिर खुजाता हुआ बोला — “अगर मैं तुमको जाने दूँ तो तुम साबित करो कि जो कुछ तुम कह रही हो सच कह रही हो। तुम मेरी बालटियों को बिना एक बूँद पानी बिखेरे घर तक पैदल चला कर भेज दो।”

मछली बोली — “ठीक है। बस तुमको यह कहना है “पाइक की इच्छा से जो मैं चाहूँ वह तुम करो।”

सो वह बेवकूफ इवान तुरन्त ही बोला — “पाइक की इच्छा से जो मैं चाहूँ वह तुम करो। ओ बालटियों तुम अपने आप घर चली जाओ।”

बस तुरन्त ही उन बालटियों के लकड़ी के पैर निकल आये और वे उन लकड़ी के पैरों से पहाड़ों पर चढ़ने लगीं। इवान ने भी उस मछली को तुरन्त ही नदी में छोड़ दिया और अपनी बालटियों के पीछे भाग लिया।

इस बीच वे बालटियाँ गाँव के बाजार की सड़क से हो कर जा रही थीं। गाँव के लोग उन बालटियों को चलता देख कर आश्चर्य से उनको घूर रहे थे। उनका मुँह तो बस खुला का खुला ही रह गया था।

इवान मुस्कुराता हुआ उन बालटियों के पीछे पीछे भागा जा रहा था। बालटियाँ जा कर सीधी उसके लकड़ी के मकान में घुस गयीं और जा कर एक बैन्च पर बैठ गयीं। जबकि वह बेवकूफ इवान अपनी गर्म अँगीठी के पीछे जा कर बैठ गया।

जब उसकी भाभियों ने यह देखा कि इवान पानी ले आया तो वे इवान से बोलीं — “जाओ अँगीठी के लिये थोड़ी लकड़ी और काट लाओ।”

बेवकूफ अपनी जगह से हिला भी नहीं बस ज़रा सा फुसफुसाया — “पाइक की इच्छा से जो मैं चाहूँ वह तुम करो। ओ कुल्हाड़ी तुम आलमारी में से नीचे उतरो और अपने आप लकड़ी काट कर लाओ।”

जैसे ही इवान यह फुसफुसाया कि उसकी कुल्हाड़ी आलमारी पर से कूदी और मकान के पीछे की तरफ भाग कर अपने आप ही लकड़ी काटने लगी। कटे हुए लकड़ी के लठ्ठे भी एक एक कर के घर में आ कर जमा होने लगे और फिर अँगीठी में जा कर कूद गये।

फिर उसके भाइयों की पत्नियों ने उससे जंगल से लकड़ी काटने के लिये जाने के लिये कहा। अब उसके करने के लिये कुछ नहीं था बस वह अँगीठी से नीचे उतरा और अपने जूते पहने। इस बार उसने एक कुल्हाड़ी और एक लम्बी सी रस्सी और साथ में ले ली। फिर उसने मकान के कम्पाउंड में से स्ले उठायी और बोला — “भाभियों दरवाजा खोलो।”

यह देख कर उसकी भाभियाँ चिल्लायीं — “अरे, यह क्या? तुमने तो स्ले में घोड़े भी नहीं जोते। कैसे जाओगे?”

इवान मुस्कुरा कर बोला — “मुझे घोड़ों की जरूरत नहीं है।”

उसकी भाभियों ने घर का दरवाजा खोल दिया और वह चिल्लाया — “पाइक की इच्छा से जो मैं चाहूँ वह तुम करो। ओ स्ले तुम पेड़ों की तरफ भाग चलो और वही करो जो मुझे अच्छा लगे।”

यह कहते ही उसकी स्ले दरवाजे में से हो कर इतनी तेज़ी से उड़ चली कि उसकी दोनों भाभियाँ तो उसको आश्चर्य से देखती हुई वहीं बर्फ पर गिर पड़ीं। उस स्ले को उड़ता देख कर और दूसरे गाँव वाले भी आश्चर्य से नीचे गिर पड़े।

वे चिल्लाये — “पकड़ लो इसको, पकड़ लो इसको।” पर बेवकूफ ने उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया बल्कि अपनी स्ले को और ज़्यादा तेज़ भगा दिया।

जब वह जंगल पहुँचा तब उसने अपनी स्ले को रुक जाने को कहा — “पाइक की इच्छा से जो मैं चाहूँ वह तुम करो। मुझे और चालें दिखाओ और मेरे लिये लकड़ी काटो।”

तुरन्त ही कुल्हाड़ी ने लकड़ी काटनी शुरू कर दी। एक एक कर के लकड़ी कट कर इवान की स्ले में इकठ्ठी होने लगी और अपने आप ही बँध कर उनके गठ्ठर भी बनने लगे।

जब उसकी स्ले भर गयी तब वह उन गठ्ठरों के ऊपर चढ ,कर बैठ गया और बोला — “पाइक की इच्छा से जो मैं चाहूँ वह तुम करो। हमारा काम खत्म हो गया अब घर की तरफ चलो।”

उसकी स्ले तुरन्त ही उसके घर की तरफ उड़ चली। घर पहुँच कर वह फिर अपनी अँगीठी पर जा कर लेट गया और सो गया।

कुछ दिन बीत गये, जल्दी से या देर से यह तो पता नहीं, पर एक दिन ज़ार को इस बेवकूफ के बारे में पता चला तो उसने अपना एक नौकर इसको अपने महल में लाने के लिये भेजा।

जब शाही नौकर गाँव में आया तो वह इन भाइयों के मकान में आया और इस बेवकूफ को महल चलने के लिये कहा। पर बेवकूफ इवान ने अँगीठी के ऊपर से सोते हुए नींद में कहा — “चले जाओ यहाँ से और मुझे सोने दो।”

यह सुन कर ज़ार का नौकर बहुत गुस्सा हो गया। उसने उसकी पीठ पर एक डंडा मारा। पर डंडा मार कर तो उसको पछताना पड़ा क्योंकि तुरन्त ही इवान बुड़बुड़ाया — “पाइक की इच्छा से जो मैं चाहूँ वह तुम करो। ओ डंडे, इस आदमी को बताओ कि इसने मुझे मार कर क्या हासिल किया है।”

बस फिर क्या था उस शाही नौकर का मोटा लकड़ी का डंडा उसी नौकर को मारने लगा। वह बेचारा नौकर वहाँ से सिवाय महल की तरफ भागने के और कुछ नहीं कर सका।

जब वह ज़ार के पास पहुँचा और उसको सब बताया तो ज़ार को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने अपने सलाहकार को बुलाया और उससे कहा — “उस बेवकूफ लड़के को ढूँढो और उसको यहाँ ले कर आओ।”

उस अक्लमन्द सलाहकार ने एक टोकरी में शहद के केक़ सूरजमुखी के बीज और बिलबैरीज़ भरीं और उस बेवकूफ के गाँव चल दिया।

उसने उस बेवकूफ के भाइयों को ढूँढा और उनसे पूछा कि उनके भाई को सबसे ज़्यादा क्या पसन्द था। भाइयों ने जवाब दिया
— “वह तुम्हारे लिये कुछ भी करेगा अगर तुम उसके साथ दया का बर्ताव करो तो। और उसको अगर सबसे ज़्यादा चमकीले लाल रंग के कपड़े देने का वायदा करो तो।”

सो उस अक्लमन्द सलाहकार ने उस बेवकूफ को वह खाने की टोकरी दी और कहा — “अगर तुम मेरे साथ महल चलोगे तो ज़ार तुमको बहुत बढ़िया लाल रंग की पोशाक देगा। लाल रंग के जूते देगा और एक लाल रंग का काफ्तान भी देगा।”

बेवकूफ ने इसका जवाब देखने से पहले कुछ सोचा फिर बोला
— “ठीक है। तो फिर मैं चलता हूँ। पर जब मैं चाहूँगा मैं तभी आऊँगा और अपने रास्ते से ही आऊँगा।”

यह सुन कर सलाहकार चला गया। उधर इवान भी अपनी अँगीठी पर फिर से सो गया। जब वह जागा तो वह बोला —
“पाइक की इच्छा से जो मैं चाहूँ वह तुम करो। ओ अँगीठी, जैसे हम यहाँ बैठे हुए हैं उसी हालत में तुम अपनी पूरी गति के साथ ज़ार के घर चलो।”

बस इवान के मुँह से शब्द निकलने की देर थी कि अँगीठी अपने आप उठी, दरवाजे में से बाहर निकली, बाहर कम्पाउंड में आयी, गाँव की सड़क पर गयी और ज़ार के महल की तरफ चल पड़ी। बेवकूफ इवान उस अँगीठी के ऊपर बैठा हुआ था।

जब अँगीठी महल के पास आयी तो ज़ार ने खिड़की के बाहर झाँका तो उसको अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि एक अँगीठी उड़ कर उसके महल की तरफ आ रही थी।

जब इवान महल में आया तो ज़ार महल के दरवाजे पर खड़ा हुआ था।

ज़ार चिल्लाया — “ओ बेवकूफ इधर देखो। मैंने तुम्हारे बारे में कई शिकायतें सुनी हैं कि तुमने बहुत सारे भले लोगों को नीचे गिराया है। अब मैं तुमको जेल में बन्द करने वाला हूँ।”

उसी पल ज़ार की बहुत सुन्दर बेटी लुडमिला महल की खिड़की पर खड़ी हुई थी और नीचे का दृश्य देख रही थी। जब बेवकूफ ने उसको देखा तो वह उससे तुरन्त ही प्यार करने लगा।

वह फुसफुसाया — “पाइक की इच्छा से जो मैं चाहूँ वह तुम करो। मैं चाहता हूँ कि यह सुन्दर लड़की इस बेवकूफ के प्यार में पड़ जाये।”

इसके बाद में उसने यह भी कहा — “ओ अँगीठी, जल्दी से घर चलो।”

अँगीठी घूमी और बर्फ के ऊपर फिसलती हुई इवान के गाँव की तरफ चल दी। वह घर पहुँच गयी और अपनी जगह जा कर खड़ी हो गयी। वह बेवकूफ भी घर पहुँच कर सो गया।

इस बीच महल में एक और हल्ला गुल्ला मच गया। राजकुमारी लुडमिला बीमार पड़ गयी। वह अपने प्रेमी के लिये रोती रही और चिल्लाती रही। उसने अपने पिता से कहा कि वह उसको उस बेवकूफ से शादी करने दे।

ज़ार को अपनी बेटी पर बहुत गुस्सा आया कि उसकी बेटी एक बेवकूफ से शादी करना चाहती है पर वह क्या करता सो उसने अपने सलाहकार को फिर से उस बेवकूफ को महल लाने के लिये भेजा।

तो एक बार फिर वह अक्लमन्द सलाहकार उस बेवकूफ के गाँव कई तरह की केक और मीठी शराब ले कर चला। वहाँ पहुँच कर उसने इवान को बहुत अच्छे अच्छे खाने का लालच दे कर ललचाया।

जब इवान पेट भर कर खा चुका तो वह फिर से सो गया। सलाहकार ने उसको अपनी गाड़ी में रखा और महल ले गया। नाराज ज़ार ने तुरन्त ही एक ऐसे बहुत बड़े बैरल को बनाने का हुक्म दिया जिसमें दो लोग बन्द किये जा सकें और उसको लोहे की पत्तियों से बाँधा जा सके।

जब वह बैरल बन गया तो उसने बेवकूफ इवान और राजकुमारी लुडमिला दोनों बदकिस्मत प्रेमियों को इस बैरल में बन्द कर दिया और समुद्र में फेंक दिया।

जब इवान जागा तो राजकुमारी ने रो कर उससे अपनी बदकिस्मती के बारे में कहा पर इवान को तो कोई डर ही नहीं था। उसने साफ साफ ज़ोर से कहा — “पाइक की इच्छा से जो मैं चाहूँ वह तुम करो। हवा तुम बह कर इस बैरल को जमीन पर ले चलो और सूखे रेत पर ले जा कर ठहरा दो।”

अचानक एक बहुत बड़ा तूफान आया, बहुत ऊँची ऊँची लहरें उठीं और वे बैरल को किनारे पर ले जा कर सूखे रेत पर छोड़ आयीं।

जब वे बैरल से बाहर निकले तो राजकुमारी बोली — “यहाँ हम रहेंगे कहाँ? इस ठंडी रेत पर तो हम मर ही जायेंगे।”

इस पर इवान बोला — “तुम चिन्ता न करो राजकुमारी।”

और फिर वह बोला — “पाइक की इच्छा से जो मैं चाहूँ वह तुम करो। यहाँ एक सोने का महल बन जाये।”

तुरन्त ही एक सोने के गुम्बद वाला महल रेत पर आ कर खड़ा हो गया। उसके चारों तरफ हरे हरे पत्तों के बागीचे थे जिनमें खुशबूदार फूल लगे हुए थे और उनमें बहुत सारी चिड़ियें चहचहा रही थीं।

राजकुमारी और वह बेवकूफ उस सोने के महल के सोने के दरवाजे से उस महल के अन्दर गये। वे उसके संगमरमर के बने हुए कमरों मे घूमे और फिर उसमें रखे साटिन के काउचों पर बैठ गये।

राजकुमारी ने अपने प्रेमी को प्यार से देखा तो उसने एक गहरी साँस ली। वह बोली — “ओह इवान, काश तुम इतने सीधे न होते। काश तुम्हारी नाक इतनी लम्बी न होती। काश तुम्हारे बाल इतने लाल न होते।”

इवान को इस बारे में तय करने कोई देर नहीं लगी।

वह बोला — “पाइक की इच्छा से जो मैं चाहूँ वह तुम करो। मैं एक लम्बा सुन्दर आदमी बन जाऊँ जो अपनी प्यारी राजकुमारी को खुश रख सकूँ।”

और वह एक बहुत ही सुन्दर नौजवान बन गया जैसे सुबह का आसमान। एक इतना सुन्दर आदमी जो शायद ही कभी इस धरती पर पैदा हुआ हो। और दोनों उस सोने के महल में रहने लगे।

कुछ समय बाद एक दिन ज़ार शिकार खेलने के लिये बाहर निकला तो यह देख कर हैरान रह गया कि समुद्र के किनारे रेत पर एक सोने का महल खड़ा था जो वहाँ पहले कभी नहीं था।

वह चिल्लाया — “मेरी जमीन पर यह इतना बड़ा महल बनाने की हिम्मत किसने की?”

इवान ज़ार को अपने महल के दरवाजे पर मिला और उसको अपने महल में अन्दर ले गया। वहाँ जा कर उसको एक ऐसी मेज पर बिठाया जिस पर बहुत सारे खाने लगे हुए थे। ज़ार ने वहाँ खाया पिया और उसके खाने पीने की बहुत तारीफ की।

आखिर ज़ार ने इवान से पूछा — “पर तुम कौन से इतने बड़े ज़ार या ड्यूक हो जिसने इतना बड़ा महल यहाँ बनवा लिया?”

इवान बोला — “क्या आपको उस बेवकूफ की याद है जो एक अँगीठी के ऊपर सवार हो कर आपके घर आया था? क्या आपको उस बेवकूफ की याद है जिसको आपने अपनी बेटी राजकुमारी लुडमिला के साथ बैरल में बन्द कर के समुद्र में फिंकवा दिया था? मैं वही बेवकूफ इवान हूँ।

अगर मैं चाहूँ तो अभी इसी समय आपको और आपके पूरे राज्य को इस समुद्र की तली में पहुँचा सकता हूँ।”

ज़ार ने डर के मारे अपने हाथ ऊपर कर दिये और उससे माफी माँगी। वह बोला — “तुम मेरी बेटी को मेरे आशीर्वाद के साथ ले सकते हो। और साथ ही मेरा आधा राज्य भी। पर तुम मेरी ज़िन्दगी बख्श दो। मैं तुमसे अपनी ज़िन्दगी की भीख माँगता हूँ।”

इवान ने ज़ार को माफ कर दिया और राजकुमारी से शादी कर ली। अपनी इस शादी की उसने इतनी बड़ी दावत की जितनी कि रूस में शायद ही कभी हुई हो। इसमें उसने बहुत सारे लोगों को बुलाया था।

जब पुराना ज़ार मर गया तो इवान रूस का इतना अच्छा राजा हो गया जितना कि रूस ने पहले कभी शायद ही देखा हो।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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