ईश्वरन (अंग्रेज़ी कहानी) : आर. के. नारायण

Ishwaran (English Story in Hindi) : R. K. Narayan

जून महीने की एक शाम जब इन्टरमीडिएट परीक्षा का परिणाम घोषित होने वाला था, मालगुडी कस्बे के सारे विद्यार्थी उत्सुकता से पागल हो रहे थे। लेकिन ईश्वरन कुछ इस तरह निश्चित होकर घूम-फिर रहा था जैसे उसे इससे कोई लेना देना ही नहीं है।

उसकी कस्बे में ख्याति यह थी कि लड़का इन्टर करने में ही बूढ़ा हो जायेगा। उसने एल्बर्ट मिशन कालेज में जब दाखिला लिया था तब वह काफी छोटा ही था, ऊपरी ओठ पर हल्की मूंछे उगने लगी थीं। लेकिन अब भी वह परीक्षा में पास होकर बाहर नहीं निकल सका था। यद्यपि उसका बदन काफी बड़ा और तगड़ा हो गया था, ठोड़ी साँवली और चमड़े की तरह कठोर हो गई थी। कुछ लोग तो यह भी कहते थे कि सिर पर बाल भी सफेद पड़ने लगे हैं। पहली दफा जब वह फेल हुआ, माँ-बाप ने सहानुभूति जताई, दूसरी दफा फेल होने पर उसे कुछ सहानुभूति मिल गई, लेकिन इसके बाद फेल होने पर वह उसकी आलोचना करने लगे, और इसके बाद भी जब वह पास नहीं हुआ, तब लोगों ने उसके नतीजे में रुचि लेना ही खत्म कर दिया। उसके माँ-बाप अक्सर कहते, 'अब तुम पढ़ाई लिखाई बंद करके कोई और काम क्यों नहीं करते?' इस पर वह कहता, 'एक मौका और दो मुझे, बस आखिरी।' इस तरह वह बड़ी निष्ठा से इम्तिहान पास करने में लगा रहता।

और अब पूरा कस्बा नतीजे के इन्तजार में बेचैन था। लड़के सड़कों पर ग्रुप बनाये टहल रहे थे, सरयू के किनारे बैठे चिंता की मुस्कराहट बिखेरते दाँतों से नाखून काटते दिखाई दे रहे थे। बहुत से सीनेट-हाउस के दरवाजे पर खड़े भीतर नजरें डाल रहे थे, जहाँ एक बैठक चल रही थी।

लड़कों की ही तरह, उतने नहीं तो काफी, उनके माँ-बाप भी चिंतित थे। लेकिन ईश्वरन के माँ-बाप निश्चित दिखाई दे रहे थे और अपने पड़ोसियों को अपने बेटों के लिए चिंतित देखकर वे बोले, 'ईश्वरन के लिए कोई चिंता की बात नहीं है। उसका रिजल्ट तो पहले से पता है।' ईश्वरन ने यह सुना तो बोला, 'इस दफा शायद मैं जरूर पास हो जाऊँगा। मैंने बहुत मेहनत की थी।'

'इस वक्त तुम दुनिया के सबसे बड़े आशावादी बन रहे हो। लेकिन पहले भी तो हर साल तुम यही आशा लेकर इम्तिहान देते थे।'

'पिछले साल मैं सिर्फ लॉजिक में फेल हुआ था, वह भी बहुत कम नंबरों से।' उसकी बात सुनकर लोग हँसने लगे। जो हो, अब तुम भी दूसरे लड़कों की तरह वहीं क्यों नहीं पहुँच जाते और नतीजे का इन्तजार करते?' उसकी माँ ने कहा। इस पर ईश्वरन ने जवाब दिया, 'कोई जरूरत नहीं है इसकी। अगर मैं पास हुआ तो खबर घर ही आ जायेगी। मैं पिछले साल भी तो खुद नहीं गया था। उस वक्त मैं सिनेमा देखने चला गया था। पूरे दो शो देखकर बाहर निकला था।'

इसके बाद वह गाना गुनगुनाते हुए बाथरूम में घुस गया। धीरे-धीरे देर तक बाल काढ़ता रहा, क्योंकि वह जानता था कि बार-बार फेल होते रहने के कारण उसके साथी उसे विशेष-दृष्टि से देखने लगे हैं। वह जानता था कि उसके पीछे उसका पूरा परिवार और कस्बे के सभी लोग उस पर हँसते रहते हैं। उसे लगता था कि इस कारण वे उसके अच्छे कपड़े पहनने, शानदार ढंग से बाल काढ़ने और बढ़िया इस्तरी किया कोट पहनने को ठीक नहीं समझते। वह एक असफल व्यक्ति था, इसलिए उसे ऐसी शान दिखाने का कोई अधिकार नहीं था। लोग उसे मोटी चमड़ी वाला मूर्ख समझते थे। लेकिन उसे इन बातों की परवाह नहीं थी। वह दूसरों के व्यवहार का जवाब और ज्यादा शान बघार कर देता। लेकिन यह सब एक छलावा ही था। अपने भीतर वह बहुत दुखी रहता था। और प्रार्थना करता रहता था कि उसे सफलता प्राप्त हो। नतीजा निकलने वाले दिन उसके मन में एक जबरदस्त ऊहापोह थी। बाहर निकलते हुए वह बोला, 'माँ रात के खाने पर मेरा इन्तजार मत करना। मैं होटल में ही कुछ खा-पी लेंगा और पैलेस टाकीज में दो शो सिनेमा देखूँगा।'

जब वह विनायक स्ट्रीट से गुजरा, उसने देखा कि बहुत से लड़के कालेज चले जा रहे हैं। वे पूछने लगे, 'तुम भी कालेज चल रहे हो?'

'हाँ-हाँ जाऊँगा," लेकिन अभी तो मैं एक जरूरी काम से जा रहा हूँ।'

'कहाँ?'

'पैलेस टाकीज।' यह सुनकर लड़के हँसने लगे। 'लगता है तुम्हें अपना नतीजा मालूम हो गया है। है न?'

'हाँ हो गया है। नहीं तो मैं इस वक्त सिनेमा देखने क्यों जाता ?'

'तुम्हारा रोल नंबर क्या है?'

'सात-आठ-पाँच', जो भी नंबर उसके दिमाग में आये, उसने बोल दिये। लड़के हँसते हुए आगे बढ़ गये, 'तुम्हें इस बार जरूर पहली श्रेणी प्राप्त होगी।'

चारआने वाला टिकट लेकर वह एक कोने में जा बैठा। फिर चारों तरफ देखा, कहीं कोई लड़का नजर नहीं आया। कस्बे के सब लड़के इस वक्त कालेज के सामने खड़े थे। ईश्वरन को यह देखकर बुरा लगा कि सिनेमाहॉल में एक भी लड़का नहीं है। लगता था, भाग्य ने उसे हर मामले में अपने साथियों से अलग कर दिया है। यह सोचकर वह बहुत उदास हो आया। उसे खुद अपने से वितृष्णा होने लगी।

तभी रोशनी बुझ गई और पिक्चर शुरू हो गई। तमिल की इस फिल्म में दुनिया के सभी देवी-देवता प्रकट होने लगे। उसे स्वर्ग के वे दृश्य दिखाई देने लगे, जो फिल्म के डायरेक्टर ने दर्शकों के लिए विशेष रूप से बनाये थे। देर तक वह अपने अस्तित्व को भूला रहा, लेकिन यह स्थिति आधे घंटे तक ही रही। उसने देखा कि फिल्म की हीरोइन स्वर्ग में खड़े एक पेड़ की डाल पर बैठी है और एक गाना गा रही है। गाना आधे घंटे तक चलता रहा जिससे ईश्वरन बोर होने लगा और फिर अपनी उस दिन की मन:स्थिति में लौट आया। वह फिर उदास हो गया। हीरोइन से बोला, 'देवी, मेरी परेशानी और मत बढ़ाओ। अब यहाँ से कहीं और चली जाओ।"

लगा कि हीरोइन ने सचमुच उसकी प्रार्थना सुन ली और वहाँ से चली गई। अब गाने में ज्यादा रोचक चीजें पर्दे पर आने लगीं। लड़ाई, बाढ़, आसमान से कोई जमीन पर गिरा, समुद्र के भीतर से कोई बाहर निकल आया, आग बरसने लगी, फूल झरने लगे, लोग मरने लगे, कुछ फिर जिन्दा होकर उठ खड़े हुए, इत्यादि, इत्यादि। सिगरेट-बीड़ी के धुएँ के बीच से ये मजेदार दृश्य दिखाई दिये। पर्दे के भीतर से और सामने बैठे लोगों की आवाजें ही आवाजें, नाच-गाने, सोडा बेचने वालों के नारे, दर्शकों की मनोरंजक टीका-टिप्पणियाँ इन सबके बीच ईश्वरन अपनी परीक्षा की परेशानियों को कई घंटों तक भूला रहा।

रात को दस बजे शो खत्म हुआ। दूसरा शो देखने के लिए बाहर भीड़ जमा थी-ईश्वरन बाहर निकला और सिनेमा के सामने बने रेस्त्राँ'आनंद भवन' में घुस गया। इसका मालिक, एक बंबई का आदमी, उसे जानता था, देखते ही पूछने लगा, 'ईश्वर साब, आज कालेज का रिजल्ट निकलने वाला था। आप का क्या हुआ?'

'मैंने इस साल इम्तिहान दिया ही नहीं, ' ईश्वरन ने जवाब दिया।

'क्यों भई, मेरा ख्याल है कि आपने फीस तो जमा की थी।'

ईश्वरन हँस कर बोला, 'आप ठीक कहते हैं। मैं इन्टर में पास हो गया।'

'कितनी खुशी की बात है। आप तो काफी तेज हैं। हनुमान जी की प्रार्थना करने से हमेशा सफलता मिलती है। अब क्या करने का विचार है ?'

'अब अगली क्लास में जाऊँगा। और क्या?' उसने कहा। फिर खाने के लिए कुछ और एक कप कॉफी मैंगाई, और जल्दी से खा-पीकर बाहर निकल आया। जब बिल के पैसे दे रहा था तो मालिक बोला, 'पास होने की खुशी में जब दावत दें तो मुझे जरूर याद कर लें।'

ईश्वरन ने फिर एक टिकट खरीदी और दोबारा सिनेमा में घुस गया। एक बार फिर देवी-देवताओं के वे ही लड़ाई-झगड़े और गाने पर्दे पर दिखाई देने लगे। फिर वह इनमें उसी तरह खो गया। जब उसने अपने ही बराबर जवान लड़कों को स्वर्ग में नाचते-गाते और पानी में उछल-कूद करते देखा, तो वह बोला, 'तुम यह सब मजे ले सकते हो, क्योंकि तुम्हें इम्तिहान के नतीजे का इन्तजार नहीं है.' और वह सोचने लगा कि काश! वह भी इस दुनिया में पहुँच पाता!

इसके बाद फिर फिल्म की हीरोइन उसी तरह पेड़ की डाल पर बैठकर गाना गाने लगी तो फिर उसका मन फिल्म से उखड़ गया। उसने पहली दफा सिर उठाकर हाल में इधर-उधर नजर डाली। उसने देखा कि कालेज के बहुत से लड़के जगह-जगह टोलियाँ बनाये बैठे हैं और मजे से फिल्म देख रहे हैं। कुल मिलाकर पचास के करीब लड़के थे। वह समझ गया कि रिजल्ट निकल गया है और ये सब पास होने की खुशी में पान खाकर आये हैं और अब मौज कर रहे हैं। उसे लगा कि जैसे ही हाल में रोशनी होगी, ये सब उसे देखेंगे और परेशान करेंगे। पहले की तरह वे सब उससे वही मजाक करेंगे, जिन्हें वह सह नहीं पायेगा। इन बातों से अब उसे बहुत चिढ़ होने लगी थी। उसने तय किया कि इन बातों को अब वह और ज्यादा बर्दाश्त नहीं करेगा।

वह हॉल के एक सबसे दूर के कोने में जाकर बैठ गया। परदे की तरफ देखा, वहाँ कोई भी मनोरंजक दृश्य नहीं आ रहा था। हीरोइन अब तक वहीं बैठी थी और करीब दस मिनट तक उसे यही गाना गाते रहना था। निराश होकर वह उठा, किनारे-किनारे लोगों से बचते हुए दरवाजे तक आया और चुपचाप बाहर निकल गया। इन सफल लड़कों को देखकर उसे अपने आप से चिढ़ हो रही थी। वह सोचने लगा, मैं जिन्दा रहने लायक नहीं हूँ।. जो आदमी एक मामूली-सा इम्तिहान भी पास नहीं कर सकता...।

यह विचार उसके दिमाग में पनपने लगा। इन परेशानियों का कोई हल जरूर होना चाहिए, और है...। मर जाना और ऐसी नई दुनिया में पहुँच जाना, जहाँ उसी की उम्र के इम्तिहान के संकट से मुक्त लड़के नाच-गा रहे हैं, कमल से भरे तालाबों में तैर रहे हैं। उस स्वर्ग में कोई परेशानियाँ नहीं हैं, न सीनेट हाउस की दीवारें हैं जिन पर लगे नतीजों को साल-दर-साल देखना है।

समस्या का यह हल सोचकर उसे काफी चैन महसूस हुआ। उसका दिमाग हलका हो गया था। वह होटल की तरफ लौटा। मालिक बंद करके घर जाने की तैयारी कर रहा था। ईश्वरन ने उससे कहा, 'सेठ जी, इस वक्त तकलीफ दे रहा हूँ माफ़ करना। क्या आप मुझे एक कागज और पेंसिल दे सकते हैं? मुझे कुछ बहुत जरूरी लिखना है।'

'बहुत देर हो गई है', मालिक ने कहा और मेज से उठाकर एक कागज और पेंसिल का टुकड़ा दे दिया। ईश्वरन ने पिता के लिए उस पर एक संदेश लिखा और कागज को सावधानी से मोड़कर कोट की भीतरी जेब में रख लिया।

फिर पेंसिल वापस देकर होटल से बाहर आ गया। सामने रेसकोर्स रोड थी, उसे पार कर वह मार्केट रोड पर आया और दायें मुड़ कर एलामन रोड होते हुए सरयू नदी के तट पर आ पहुँचा...। इसका हरहराता जल शीघ्र ही उसे अपने भीतर समा लेगा और उसकी तकलीफों का अंत हो जायेगा। 'मुझे अपना कोट उतारकर नदी के किनारे रख देना चाहिए, उसमें खत रखा ही हुआ है...।"

वह रेत पर चलने लगा। फिर वह घाट की सीढ़ियों पर पहुँचा और कोट उतारकर नीचे उतरने लगा। हाथ जोड़कर ऊपर सितारों की तरफ देखकर कहने लगा, 'हे भगवान्! अगर मैं दसवीं दफा भी एक इम्तहान पास नहीं कर सकता तो दुनिया में मुझे रहने का क्या अधिकार है?' उसके पैर अब पानी में थे। उसने पीछे मुड़कर देखा, दूर यूनिवर्सिटी की इमारतें दिखाई दे रही थीं। सीनेट हाउस में एक रोशनी जल रही थी। आधी रात बीत रही थी। कालेज पंद्रह मिनट की दूरी पर था। उसने सोचा, 'क्यों न एक बार वहाँ जाकर नतीजों की सूची देख ले? उसे मरना तो है ही, अब बोर्ड को देखने से डरने की क्या जरूरत है?'

वह नदी से बाहर निकल आया और सीढ़ियाँ चढ़कर फिर रेत पर आ गया। दूर घड़ी ने बारह के घंटे बजाये। आसमान पर सितारे चमक रहे थे, सामने नदी बह रही थी और पेड़-पौधों से सर्र-सर्र की आवाजें निकल रही थी। रेत से गीले उसके पैरों को हवा ठंडी लग रही थी। वह अकड़कर सीनेट हाउस के बरामदे में घुसा और बुड़बुड़ाया, 'यहाँ मुझे किसी का डर नहीं है।' वहाँ कोई नहीं था, कहीं कोई आवाज नहीं आ रही थी। सारी इमारत में अँधेरा था, सिवा उन सीढ़ियों के, जिनके ऊपर एक बल्ब जल रहा था। उसके नीचे दीवार पर नोटिस बोर्ड लगा हुआ था।

जब उसने लिस्ट पास से देखने के लिए पैर ऊपर किये, तो उसका दिल धक्धक् कर रहा था। बल्ब की रोशनी में वह रोल नंबर देखने लगा। उसका गला सूख रहा था। पहले उसने तीसरी श्रेणी में पास होने वालों के नंबर देखे। उसका अपना नंबर 501 था। इससे पहले पास होने वाला नंबर था 498 और इसके बाद एकदम 703 नंबर आ गया था। मेरे पीछे और आगे बहुत से लोग हैं, उसने सोचा। जब वह सीनेट हाउस में घुस रहा था तो उसे बहुत उम्मीद थी कि पास हुए लोगों में उसका नंबर जरूर होगा। वह सोच रहा था कि अपना नंबर देखकर उसे कैसा लगेगा । वह दौड़कर घर पहुँचेगा और सबसे कहेगा कि उन्होंने जो कुछ भी अब तक मेरे खिलाफ बोला है, उसके लिए माफी माँगें। लेकिन अब ध्यान से सब नंबर देख लेने के बाद उसकी असफलता उसके सामने आकर खड़ी हो गई, उसका नंबर सूची में नहीं था। 'अब नदी...," वह निराश होकर सोचने लगा। सजा पाये व्यक्ति की तरह, जिसे झूठी ही सही, उम्मीद तो थी, वह अब बिलकुल टूट गया। 'नदी.,' नोटिस बोर्ड को संबोधित करते हुए उसने कहा, 'मैं जा रहा हूँ।' यह कहकर वह पीछे मुड़ने को हुआ।

'लेकिन मैंने अच्छी श्रेणी में पास लोगों के नंबर तो नहीं देखे !' यह सोचकर वह फिर नोटिस बोर्ड को देखने लगा। प्रथम श्रेणी-इसमें पहला नंबर भी एक ही था, और भी छह लोगों के नंबर थे। 'पता नहीं ये कैसे इतने आगे निकल जाते हैं, ' वह सोचने लगा।

इसके बाद उसने द्वितीय श्रेणी के नंबरों पर नजर दौड़ाई, ये दो लाइनों में लिखे थे। पहला नंबर था 98, कुल मिलाकर पंद्रह नंबर थे। एक-एक नंबर को बड़े ध्यान से देखता वह आगे बढ़ने लगा, वह नंबर 350 पर आया, फिर 400 था. इसके बाद 501 और फिर 600 ।

'दूसरी श्रेणी में पाँच-जीरो-एक, क्या वह सच हो सकता है?" वह चीखा। फिर रुक गया और बार-बार इस नंबर को देखने लगा। 'हाँ यही नंबर है। उसे दूसरी श्रेणी मिली है। अगर यह सही है तो अगले बरस मैं बी.ए. में बैदूंगा।' यह बात उसने इतने जोर से चिल्लाकर कही कि सारी इमारत गूंज उठी।

'अब जो भी मुझे बेवकूफ कहेगा, उसे मैं जान से मार दूंगा..., 'उसने घोषणा की।

उसे बेहोशी आने लगी। उसने दीवार का सहारा लिया। सालों का संशय और निराशा एकाएक हटनी शुरू हो गई थी और मुक्ति का यह झटका इतना शक्तिशाली था कि उसे वह सहन नहीं कर पा रहा था। उसकी नाड़ियों में खून तेजी से दौड़ने लगा था और खोपड़ी के भीतर समा नहीं पा रहा था।

कोशिश करके उसने अपने को सँभाला। मन में गाने की एक धुन अपने आप उभर आई। उसे लगने लगा कि वह दुनिया का अकेला बाशिंदा है, उसका मालिक भी है। उसने अपनी छाती ठोंकी और नोटिस बोर्ड को संबोधित करके बोला, 'जानते हो, मैं कौन हूँ?" कल्पना में अपनी मूंछ ऐंठी, खुद हो-हो कर हँसा और पूछने लगा, 'दूल्हे के लिए घोड़ा तैयार किया?"

फिर नोटिस बोर्ड पर एक और नजर डालकर वह बाहर निकल आया और राजा की तरह आगे बढ़ा। आखिरी सीढ़ी पर एक क्षण रुका और घोड़े का इन्तजार किया। घोड़ा पास आया तो हुक्म दिया, 'घोड़ा और पास ले आओ। सुनते हो!" घोड़ा और पास आ गया। उसने उस पर सवार होने का भाव दिखाया और उसे चाबुक लगाई। उसकी आवाज नदी के किनारे तक गूंज गई, घोड़ा तेजी से आगे बढ़ा जा रहा था। उसने अपने बाजू घुमाये और घोड़ा रेत पर दौड़ने लगा। वह जोर से चिल्लाकर कहने लगा, 'सामने से हट जाओ, राजा की सवारी आ रही है। जो भी रास्ते में आयेगा, दबकर खत्म हो जायेगा।'

'मेरे पास पाँच सौ एक घोड़े हैं," वह रात से कहने लगा। रोल नंबर उसके दिमाग में अटक गया था और बार-बार आ-जा रहा था। वह नदी के किनारे कई दफा आगे-पीछे दौड़ता रहा। लेकिन उसे संतोष नहीं हो रहा था। वह बोला, 'प्रधान मंत्री! यह घोड़ा अच्छा नहीं है। और पाँच सौ एक घोड़े मुझे लाकर दो, सब द्वितीय श्रेणी में पास हुए हैं.।" इसके बाद इसी घोड़े को चाबुक मारकर वह वापस लौट गया।

शीघ्र ही प्रधानमंत्री उसके लिए एक दूसरा घोड़ा ले आया। वह शान से उस पर सवार हुआ और बोला, 'यह ज्यादा अच्छा है।' अब वह इस घोड़े पर चक्कर लगाने लगा। यह अद्भुत नजारा था। तारों की हलकी रोशनी में, सन्नाटे में अकेला, वह अपनी ही जीभ से घोड़े की टप-टप आवाजें करता रेत में दौड़ रहा था। एक हाथ से बागडोर थामे, घोड़े को इधर-उधर भगाते, दूसरे से कल्पना की मूंछों को मरोड़ते वह घोड़े को इस तेजी से दौड़ाने लगा, मानो तूफान आ गया है। उसे लगा कि अब उसने जीत हासिल कर ली है। शीघ्र ही वह रेत का पूरा मैदान पार कर गया। वह पानी के किनारे आया, एक क्षण रुका और घोड़े से फुसफुसाकर पूछा, 'तुम्हें पानी से डर तो नहीं लगता। तुम्हें यह नदी पार करनी है. वरना मैं पाँच सौ एक रुपये कभी नहीं चुकाऊँगा।' उसे लगा कि घोड़ा पानी में कूद गया है।

दूसरे दिन दोपहर के बाद उसका शरीर नदी में आधा मील आगे पड़ा मिला। इससे पहले लोगों को नदी के किनारे उसका कोट मिल गया था जिसमें रखी पर्ची भी पढ़ ली गई थी :

'पूज्य पिताजी, जब आपको मेरा यह पत्र मिलेगा, मैं नदी के तल में पहुँच चुका होऊँगा। मैं जिन्दा नहीं रहना चाहता। मेरी चिन्ता मत कीजियेगा। आपके और भी बेटे हैं जो मेरी तरह बेवकूफ नहीं हैं...।"

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