ईश्वर और उनके जीव : तमिल लोक-कथा
Ishwar Aur Unke Jeev : Lok-Katha (Tamil)
दादा-दादी, नाना-नानी की प्रसिद्ध कहानियों में यह भी एक रोचक लोककथा है। एक नन्ही सी बालिका अपनी दादी से पूछती है, 'दादीजी! दादी! हम लोगों के सिर पर जूं कैसे आया?' बहुत भोलेपन से बालिका ने पूछा।
दादीजी ने हँसते हुए कहा, 'अभी बताती हूँ, ईश्वर ने संसर के सभी जीवों को किस उद्देश्य से बनाया है।' मुन्नी उत्सुकता से कहानी सुनने बैठ गई। दादीजी यों कहने लगी-
बहुत समय पहले जब भगवान् ने जीवों का निर्माण किया, तब अपनी कृतज्ञता प्रकट करने सब जंतु बारी बारी से उनके सामने प्रकट हुए।
सबसे पहले मानव, ईश्वर के सामने हाथ जोड़कर धन्यवाद देने आए। ईश्वर ने उन्हें देखते ही कहा, 'देखो मानव! तुम लोगों को कठिन परिश्रम करना होगा। पुरुष लोग महिलाओं को आदर देंगे। और तुम महिलाओं को अपने वंश वृद्धि के लिए बच्चों को पैदा करना होगा। संतानों को शिक्षित करना और आदर्श मानव बनाना तुम दोनों का कर्तव्य है। जाओ अपना कर्म करो।'
अब धन्यवाद देने ईश्वर के सामने गाय आ कर खड़ी हो गई। ईश्वर ने भोली गायों को देखकर उन्हें यह कहकर धरती पर भेज दिया कि 'जाओ, तुम लोग सभी मानव और अन्य आवश्यक लोगों को दूध पिलाओगी। और जो दूध देने में असमर्थ हैं, वे गाड़ी खींचने का काम करेंगी।'
गाय के पीछे-पीछे बैल, ईश्वर के सामने प्रकट होकर उन्हें अपनी कृतज्ञता ज्ञापित की।
ईश्वर ने बैलों को देखकर कहा, 'जाओ! तुम पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ेगा। लोग तुम्हें 'बैल' कह कर पुकारेंगे।'
अब गधे की बारी थी। उसे देखते ही ईश्वर बोले, 'मानव जाति तुम्हें 'गधा' कहकर पुकारेंगी। तुम उनके कपड़े अपने पीठ पर ढोकर चलोगे। इसका कोई असर तुम पर नहीं पड़ेगा। कभी-कभी लोग प्यार से तुम्हें पुकारेंगे।'
प्राय: दोपहर का वक्त था। बहुत जोरों से ईश्वर को भूख सता रही थी। अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करने की लंबी कतार देखकर ईश्वर परेशान हो गए। उन्हें गुस्सा भी आ रहा था, तभी अपनी खुशी को प्रकट करते हुए गधे ने जोर से आवाज दी। ईश्वर झल्ला उठे, 'अबे गधे! यहाँ भूख से हम मर रहे हैं और तुम्हें प्रसन्नता हो रही है क्या?'
ईश्वर के मुख से 'गधा' शब्द सुनकर उसने और खुश होकर जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया। ईश्वर से रहा न गया। उन्होंने उसे सावधान करते हुए आज्ञा दी, "जाओ, हम तुम्हें शाप देते हैं, याद रखना, मानव तुम्हारे पीठ पर भारी बोझ ढोने को कहेंगे। तुम अपने पीठ भार को ढोए चलने में असमर्थ पाओगे। तुम भाग भी नहीं सकते, जाओ! मेरे सामने से तुरंत हट जाओ।'
ईश्वर का क्रोध देखकर डर के मारे गधा रोने लगा। अब ईश्वर को उस पर दया आ गई और कहा, 'अच्छा, ठीक है ! रो मत। लोग तुम्हारी आवाज को सुनकर 'अच्छा 'शकुन' है ' कहकर खुश होंगे। और तुम्हारी जय-जयकार करेंगे।' गधा खुश, तसल्ली पाकर चला गया।
तुरंत लोमड़ी आकर खड़ी हो गई ईश्वर के सामने–'तुम हमेशा चालाकी का काम करोगी। कोई तुम्हें पसंद नहीं करेगा।'
उसी समय ईश्वर के सिर पर एक जूं काटने लगा और पूछने लगा-
'मुझे कहाँ जाना है ? मुझे कहाँ जाना है, बताइए?'
ईश्वर को थोड़ा गुस्सा आया, पर बोले, 'जरा रुको, मैं अभी बताता हूँ।' प्रभु अपने काम में लग गए। थोड़ी देर बाद फिर से लूँ उनके कान के पास आकर पूछने लगा, 'मैं कहाँ जाऊँ ? प्रभु जरा बताइए, मैं कहा जाऊँ?'
ईश्वर फिर झल्ला उठे। और गुस्से में भरकर कहा, 'जाओ, बालों में घुस जाओ।'
'ठीक है, प्रभु!' कहकर वह पास बैठी देवी के बालों में घुस गई। देवी उसे देखकर हँसी और उठाकर नीचे फेंक दिया। प्रभु और देवी उसे भूमि में गिरते देख चिंतित हो गए। देवी और ईश्वर ने सोचा, पता नहीं कहाँ गिरी होगी। चोट गहरी होगी।
उसी समय उन्हें सूचना मिली कि जूं एक महिला के बालों में गिरी है और सुरक्षित है। तसल्ली हुई ईश्वर और देवी को।
अब पता चला कैसे महिलाओं के सिर में जूं आई। है न रोचक!
(साभार : डॉ. ए. भवानी)