ईर्ष्यालु चाचा : असमिया लोक-कथा
Irshyalu Chacha : Lok-Katha (Assam)
आसाम के डुमडुमा गाँव में होमेन नामक युवक रहता था। उसके पिता मर चुके
थे। माँ ने ही उसे पाल-पोसकर बड़ा किया था।
होमेन के चार चाचा थे। वे उससे बहुत जलते थे। एक दिन उन्होंने होमेन के
घर से उसका प्यारा बछड़ा चुराया और उसे मार दिया। होमेन को पता चला तो वह
बहत दुखी हुआ। फिर न जाने उसे क्या सूझी। बछड़े का सिर काटकर शेष शरीर को
दफना दिया। पास के गाँव में एक ब्राह्मण रहता था। बछड़े का कटा सिर उसके आँगन
में छिपाकर होमेन ने बाह्मण से कहा-
'आपके घर से तो गौमांस की बदबू आ रही है।'
“ब्राह्मण गरजकर बोला-
'असंभव, यदि ऐसा है तो मुझे गाय का मांस ढूँढ़कर दिखा।'
होमेन ने बछड़े का सिर उसके आगे ला रखा। ब्राह्मण के तो हाथों के तोते उड़ गए।
उसने होमेने को बहुत-सा धन दिया ताकि वह गाँववालों को उस बात के बारे में न बताए।
होमेन ने थैली भर धन लिया और अपने चाचाओं को दिखाकर बोला, 'पास के
गाँव वालों ने मुँहमाँगे दामों पर गौ माँस खरीद लिया। वे लोग तो और भी माँग रहे थे।
मैंने कहा, कल लाऊँगा।'
चाचा बहुत खुश हुए। उन सबने भी अपने-अपनी गाय बछड़े मारे और उनका
मांस पड़ोसवाले गाँव में ले गए। बस, गाँववालों ने उन्हें गाय का मांस लिए देखा तो
जमकर पिटाई की।
बौखलाए हुए चाचाओं ने होमेन की झोंपड़ी में आग लगा दी। होमेन और
उसकी माँ बेघर हो गए। बेचारी माँ के आँसू देखकर होमेन तिलमिला उठा। उसने राख
इकट्ठी की और एक दूसरे गाँव में जा पहुँचा-
'ले लो, आँख का सुरमा ले लो, इसे लगाकर गड़ा धन मिल जाता है। जिसका
ब्याह न होता हो, जल्दी ब्याह हो जाता है।'
हाथ की हाथ एक थैली सुरमा बिक गया। शेष
राख होमेन ने छिपा दी। अपने चाचा के पास जाकर
बोला, 'मेरी तो झोपड़ी की सारी राख बिक गई।'
चाचा ने हैरानी से पूछा, 'राख बिक गई?'
'हाँ, इसमें क्या शक है?' कहकर उसने पैसे
दिखाए। फिर होमेन ने उन्हें उकसाया कि वे भी अपनी
झोंपड़ी जलाकर उस गाँव में राख बेच आएँ। बड़ी झोंपड़ी
की तो राख भी ज्यादा होगी।'
उसके सारे चाचा बातों में आ गए। चारों ने
अपने-अपने घर फूँक दिए और राख ले जाने की तैयारी
करने लगे। होमेन ने कहा, 'गाँववालों से कह देना कि हमें
सुरमे वाले ने भेजा है।' ज्यों-ही चारों गाँव में पहुँचे और
सुरमेवाले का नाम लिया तो सारा गाँव उनके पास पहुँच
गया। देखते ही देखते बाँस की लाठियाँ उन
पर पड़ने लगीं। बेचारे पिटते-पिटते घर लौटे।
चारों ने गुस्से के मारे होमेन को मारने की योजना बना ली।
उन्होंने होमेन को नदी किनारे रस्सी से बाँधा और खुद भात खाने घर
चले गए। उनके जाते ही वहाँ से एक सौदागर गुजरा। उसने होमेन से
पूछा, 'क्यों भई, तुम्हें यहाँ क्यों बाँधा हुआ है?'
होमेन ने बात बनाई, 'जी, मेरे चाचा मेरी शादी एक खूबसूरत
लड़की से करना चाहते हैं। मेरे मना करने पर मुझे बाँध दिया।'
सौदागर बोला, 'मैं शादी कर लेता हूँ उस लड़की से, क्या ऐसा
हो सकता है?'
होमेन ने झट से उसे बाँधा और उसका घोड़ा लेकर रफूचक्कर
हो गया। चारों चाचा खा-पीकर लेट गए। आलस के मारे उठा न गया।
पिटाई के कारण पोर-पोर दुख रहा था। नौकर से बोले, 'जा तू होमेन को
नदी में फेंक आ, हमसे तो उठा नहीं जाता।'
नौकर भी कम नहीं था। उसने अपने रिश्तेदार को यह काम सौंप दिया।
रिश्तेदार ने सौदागर को ही होमेन समझकर नदी में फेंक दिया।
बेचारा सौदागर चिल्लाता ही रह गया। नौकर ने चाचा को सूचना दी, जी, काम
हो गया।
चारों मिलकर होमेन की मौत की खुशी मनाने लगे। होमेन ने पेड़ के पीछे
छिपकर सब देखा और घोड़ा लेकर चाचाओं के पास जा पहुँचा सबको प्रणाम कर
बोला, 'नौकर ने गहरा धक्का नहीं दिया इसलिए केवल घोड़ा मिला। यदि गहरा डूबता
तो शायद बैल, गाय व हाथी भी लाता। चारों चाचा फिर उसकी बातों में आ गए।
होमेन को पुचकारकर पूछा- 'क्या सचमुच नदी में पशु मिल रहे हैं?'
'हाँ, हाँ, आप लोग भी ले आओ।' होमेन ने कहा।
चारों चाचा आलस छोड़कर नदी की तरफ लपके। नौकर को भी साथ ले
लिया। तट पर पहुँचकर नौकर को आदेश दिया, 'हम चारों को जोर से पानी में धकेल
दो।'
नौकर ने आज्ञा का पालन किया। होमेन को सदा के लिए ईर्ष्यालु और दुष्ट
चाचाओं से मुक्ति मिल गई।
(रचना भोला 'यामिनी')