ईर्ष्या : सिक्किम की लोक-कथा
Irshya : Lok-Katha (Sikkim)
गिनू मूंग नाम की एक ईर्ष्यालु शैतान थी। वह वहाँ जाती, जहाँ अपार वैभव और समृद्धि देखती। उसके इस व्यवहार से परिचित होने के कारण लोग-बाग उसे अपनी संपत्ति दिखाने से घबराते। उससे इतना भय खाते कि लोग अपनी तो क्या, किसी अन्य की संपत्ति की चर्चा भी नहीं करते; क्योंकि उनकी बात को गिनू मूंग सुन लेगी तो उस व्यक्ति की संपत्ति का नाश तय है। यह कहानी ईर्ष्यालु गिनू मूंग की उत्पत्ति से संबंधित है। उसके शैतान बनने से पूर्व वह लिंग्ठेम की गिनू परिवार की एक सदस्य थी। गिनू परिवार में सात भाइयों के मध्य एक बहन थी। सातों भाई एक ही घर में अपनी पत्नियों के साथ रहते थे। सभी भाइयों के एक बेटा और एक बेटी थी। वे सभी बच्चे अपने पति और पत्नियों के संग उसी घर में साथ रहते। एक तरह से वह पूरा घर भरा-पूरा था।
वे सभी बहुत गरीब थे, पर संख्या में बहुत ज्यादा थे, जिसके कारण एक वक्त के खाने में एक पूरा बकरा खप जाता था। वे समय-समय पर जंगली फल-फूल खाकर गुजारा करते थे। उनके पास पशुपालन के लिए न जानवर थे और न ही सूअर पाल सकते थे। उनके पास न ही कृषि के लिए उपजाऊ जमीन ही थी। वे घूम-घूमकर परती जमीन में खेती करते। खेतों में जाते समय भी दो लोगों को घर पर छोड़कर जाते, ताकि इतने जन का खाना बन सके। एक व्यक्ति सबके लिए भोजन की व्यवस्था करता और एक जन लकड़ियाँ इकट्ठी कर भोजन बनाने में उसकी मदद करता। दूसरी ओर उनकी इकलौती बहन थी, जो घाटी में नीचे रहती थी, जो बहुत ही संपन्न थी। उसके पास साठ बैल और कई सूअर थे। उसके पास गले के भारी हार, हीरे-जवाहरात थे, जिसका वजन छह किलो के आसपास था। पर बहन विधवा थी, उसका ध्यान रखने के लिए उसकी एकमात्र बेटी थी। संपन्नता के साथ बहन तंत्र-विद्या भी जानती थी, जो बहुत ही शक्तिसंपन्न थी। वह बहुत चमत्कारपूर्ण कारनामे कर सकती थी। भाइयों की तांत्रिक बहन कमरे में सोती और उसकी बेटी बाहर माँ की रखवाली करती।
सातों भाई अपनी बहन की संपन्नता से जलते थे। अपनी गरीबी और बहन की अमीरी की तुलना करते और जल-भुनकर कहते, “ईश्वर का यह कैसा न्याय है? हमारे पास कुछ भी नहीं है, न पशु हैं, न सूअर हैं, न कृषि योग्य भूमि है और न हमारे पास हीरे-जवाहरात हैं। जिन चीजों को असल में हमारा होना चाहिए, वे बहन के पास हैं, जबकि बहन विधवा, उस पर उसकी एक ही बेटी, पर उसके पास अपार संपत्ति का संग्रह! वह इस संपत्ति का करेगी क्या?” अंत में भाइयों ने यह निर्णय लिया कि बहन से उसकी संपत्ति छीनी जाए, तभी तंगी से मुक्ति मिल सकती है। उन्होंने इस बारे में योजना बनाना शुरू किया और देर रात उसके घर की ओर गए, जहाँ उन्होंने अपनी बहन के टुकड़े–टुकड़े कर दिए और धीरे से उसके घर से निकल गए। बाहर सोई बेटी ने भीतर कुछ आवाजें सुनीं तो वह उठकर भीतर गई, जहाँ उसने देखा कि पूरा बरामदा खून से सना हुआ है। उसने जब अपनी माँ को देखा तो माँ अपने पलंग पर बैठी थी और डर से थर-थर काँप रही थी। अपनी चमत्कारपूर्ण शक्ति के बलबूते पर वह अपने टुकड़ों को जोड़कर पुनः जीवित हो गई थी। अपनी बेटी को सामने देखकर वह रोने लगी, उसने अपनी बेटी से कहा, “देख, तेरे मामा ने मेरे साथ क्या किया? उन्होंने मुझे मार डाला! बेटी, जाओ, उस चट्टान के पास पेड़ों की जो टहनियाँ हैं, जाकर उन्हें इकट्ठा करो। ध्यान रहे कि टहनियाँ एक ही पेड़ की हों, किसी अन्य पेड़ की नहीं।”
बेटी ने पेड़ों की टहनियाँ इकट्ठा करना शुरू किया और उन लकड़ियों को घर ले आई। माँ उन लकड़ियों को बरामदे में लेकर आई। उसने लकड़ियों को सूर्य की ओर फेंका, ताकि वह ढक जाए। तब उसने अपनी बेटी से कहा, “देखो, मैंने अपनी शक्ति से सूर्य को ढक दिया है, अब मैं एक आत्मा हूँ और पूरे संसार में कहीं भी आ-जा सकती हूँ।” माँ ने अपनी बेटी से कहा, “अब तुम बाहर जाकर सो जाओ, क्योंकि मेरे भाई मेरा शरीर देखने के लिए यहाँ आ रहे हैं। वे यहाँ से तीन थैले हीरे-जवाहरात ले जाएँगे, तुम्हारे लिए केवल तीन छोटे टुकड़े छोड़ जाएँगे, उन्हें तुम पहनना। वे हमारे सारे पशु ले जाएँगे, तुम्हारे लिए केवल एक बछड़ी छोड़ जाएँगे, पर तुम चिंता मत करना। सात दिनों के भीतर एक आदमी आएगा, जिसके साथ ब्याह कर तुम्हारी जिंदगी सुधर जाएगी। उससे उत्पन्न संतान इस क्षेत्र की प्रधान होगी।” ऐसा कहकर माँ ने बेटी से बाहर जाने को कहा।
कुछ समय बाद उसके भाई लोग मृतक का शरीर देखने आए, पर उन्हें वहाँ खून के धब्बे मिले। मृतक का शरीर उन्हें कहीं नहीं दिखा, जबकि माँ गुफा के भीतर चट्टान के पीछे जप करने लगी थी। सात दिनों की इस तपस्या में वह अपनी शक्ति का विस्तार करने के निमित्त ध्यान में लीन रही। इस बीच भाइयों ने उसकी पूरी संपत्ति का विभाजन कर लिया। उन्होंने उस बेटी के लिए वही चीजें छोड़ीं, जैसा माँ ने कहा था। उसने उस बारे कोई शिकायत नहीं की, बल्कि उन दी गई वस्तुओं को ग्रहण कर अपने दिन बिताने लगी। सात दिनों में उस ओर एक शिकारी आया, जिससे ब्याह कर वह अपना जीवन व्यतीत करने लगी। सात दिनों के पश्चात् जब माँ गुफा से बाहर निकली तो वह एक शक्तिशाली शैतान गिनू मूंग में बदल चुकी थी। उसने प्रतिशोध में यह प्रतिज्ञा ली कि जिसके पास अपार संपत्ति होगी, जो जन धन-धान्य से संपन्न होगा, वह उसका नाश करेगी। एक साल के भीतर ही उस क्षेत्र में धन-जन से संपन्न परिवार पूरी तरह बरबाद हो गए। अब उस जगह कोई संपन्न व्यक्ति शेष नहीं रह गया था।
गिनू मूंग अब भी लोगों को बरबाद करने में लगी हुई है, इसलिए लोग यह मानते हैं कि इस ईर्ष्यालु शैतान स्त्री से बचें, क्योंकि वह किसी को भी संपन्न नहीं देख सकती। धन ने ही उसके जीवन का अंत किया था, इसलिए उसे धन का अस्तित्व खत्म करना है।
(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)