इच्छा से गुलाम (अंग्रेज़ी कहानी) : आर. के. नारायण
Ichchha Se Gulaam (English Story in Hindi) : R. K. Narayan
घर में कोई भी उसका नाम नहीं जानता था। कोई यह भी नहीं सोच सकता था कि 'आया' के अलावा भी उसका कोई और नाम है। बच्चों में कोई भी यह नहीं जानता था कि परिवार में वह कब आयी थी। जब वह आयी थी, तब सबसे बड़ा बच्चा छह महीने का था-अब वह सत्रह साल का था और कॉलेज में पढ़ता था। उसके बाद पाँच बच्चे थे, सबसे छोटा चार साल का था।
हर बच्चे के साथ आया फिर अपना बचपन शुरू कर लेती थी। उनके साथ तब तक उनकी उम्र की बराबरी करती जब तक वे बड़े होकर आगे न बढ़ जाते और उसे पीछे छोड़ देते। फिर वह नये बच्चे के साथ उसकी उम्र पर वापस आ जाती और उसके साथ आगे बढ़ने लगती। कहा जा सकता है कि जिस उम्र तक वह आगे जा सकती थी, वह छह वर्ष थी, अगर वह इस सीमा को तोड़ती तो बड़ी परेशानी पैदा कर सकती थी। उदाहरण के लिए, वह नौकरों को दुनिया में, जिनमें एक रसोइया, एक माली, एक उसका सहायक, दो नौकर और एक नौकरानी थे-बहुत अजीब महसूस करती। उनकी बातें उसे बिलकुल अच्छी नहीं लगती थीं और जो भी बातें वे करते, सब अपनी मालकिन को जाकर बता देती थी। माली को एक दफा, मालिक के बारे में उसने जो राय व्यक्त की थी, उसके कारण नौकरी से हाथ धोने की नौबत आ गयी थी, क्योंकि आया ने यह बात जाकर मालकिन को बता दी थी। नौकरों की दुनिया में उसे कोई पसंद नहीं करता था। वह वक्त का भी हिसाब रखती थी और कोई देर से आता तो उसकी नजर से बच नहीं सकता था। जब कभी वह किसी को देर से आते देखती तो इतनी जोर से चीखती कि मालकिन को सुनाई पड़ जाता और उस पर जुरमाना टुक जाता।
यह काम उसने खुद ही अपना लिया था, और वह घर पर बच्चों को पढ़ाने आने वाले मास्टर पर भी नजर रखती-वह हर सवेरे आता और बच्चों को गणित और अंग्रेजी पढ़ाता था। आया, मास्टर जब तक पढ़ाता, उसके इर्द-गिर्द घूमती रहती, क्योंकि उसे डर लगता था कि वह बच्चों से मार-पीट न करे। सब टीचर उसे दुश्मन लगते थे और स्कूल जेलें लगती थीं। उसका विश्वास था कि माँ बाप अपने बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल भेजकर अच्छा नहीं करते। उसे याद था कि कैसे उसके दो बच्चे-जो अब बाबा बन चुके थे-जब स्कूल से घर आते तो उससे एक दवा खरीदने के लिए तीन पैसे माँगते-यह मलहम वह अपने बदन पर लगाते, जिससे उनकी खाल अगले दिन बेंत खाने के लिए तैयार हो जाये। वे कहते थे कि स्कूल का इन्सपेक्टर ही बच्चों को यह मलहम लगाने की सलाह देते थे, और यह एक तरह से पढ़ाई का ही हिस्सा था।
एक-दो दफा उसने पूछा भी था, 'तुम वहाँ बेंत खाने के लिए खड़े क्यों हो जाते हो ?'
'हमें यह करना पड़ता है," लड़कों ने जवाब दिया था। 'यह हमारी पढ़ाई का हिस्सा है। शायद टीचरों को तब तक उनकी तनख्वाह नहीं मिलती, जब तक वे हर रोज बच्चों को कई बेंत मार न लें।'
बुढ़िया को अध्यापकों के बारे में इससे ज्यादा जानने का मौका ही नहीं मिला था। इसलिए वह ट्यूटर के पढ़ाते वक्त पूरी निगरानी रखती थी। अगर वह जरा जोर से भी बोलता तो वह एकदम कहती, 'इन फूल से बच्चों पर कोई ज्यादती मत करना। ये आम बच्चे नहीं हैं। इनके साथ अगर कुछ करोगे तो मालिक तुम्हें जेल पहुँचा देंगे। समझ लेना।' उसने जो काम खुद अपने सिर पर उठा रखे थे, उनमें से एक यह था कि नानबाई का लड़का लॉन पर साइकिल न चलाये, अखबार वाला नसरी में अखबार न फेंके, दोपहर को नौकर सोने न चले जायें; वह मेहमानों की देखभाल भी करती थी, उनके कपड़ों को उठाती-धरती और जब धोबी आता, उन्हें धोने के लिए पकड़ा देती; और इस सबके अलावा, जब घर के सब लोग बाहर चले जाते तो दरवाजे पर ताला लगाकर सामने पहरेदार की तरह बैठी रहती। ये सब उसके मुख्य काम नहीं थे, जिस काम के लिए उसे दो दफ़ा रोज खाना, पंद्रह रुपये महीना और साल भर में तीन साड़ियाँ मिलती थीं, इसमें वह दिनभर बारहों घंटे व्यस्त रहती थी।
सवेरे छह बजे राधा, सब से छोटी बच्ची, ऊपर के सोने वाले कमरे से चिल्लाती, 'आया,' और आया सब काम छोड़कर बड़ी तेजी से सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर भागती, क्योंकि जब तक वह पहुँच न जाती, राधा की पुकार बंद नहीं होती थी। और जब आया उसकी चारपाई पर पहुँचकर मसहरी खोलती, वह पूछती, 'राधा, कहाँ थीं अब तक?'
'बिटिया, यहीं तो थी, तुम्हारे पास।'
'सारी रात तुम मेरे पास ही थीं?'
'हाँ और क्या!"
'तुम सो रही थीं या बैठी थीं?'
'अरे, मेरी राधा बिटिया सो रही हो तो मैं कैसे सो सकती हूँ? मैं चाकू हाथ में लिये बैठी रही-अगर कोई बुरा आदमी आता तो मैं उसकी गर्दन काट लेती।'
'चाकू दिखाओ, कहाँ है?"
'उसे तो मैं नीचे रख आयी हूँ।'
'मुझे वह चाकू जरूर दिखाना।"
'अरे-बच्चे चाकू थोड़े ही देखते हैं। जब तुम बड़ी हो जाओगी, इतनी लंबी कि अलमारी का ताला छू सकी, तब देखना चाकू। तुम कितनी बड़ी होना चाहोगी?"
'इतनी कि अलमारी तक पहुँच सकूँ। तब मैं खुद बिस्कुट ले सकूँगी, ठीक है न ?'
'बिलकुल ठीक है। लेकिन अगर तुम सवेरे देर तक सोती रहोगी तो लंबी नहीं होओगी। जल्दी उठो, हाथ-मुँह धोकर दूध पिओ, तो देखना कितनी जल्दी बड़ी होती हो। तीन दिन पहले तुम बहुत बड़ी हो गयी थी क्योंकि मुझे बुलाये बिना तुम जगकर तैयार हो गयी थीं।'
दूध का गिलास पीकर वह बगीचे में दौड़ जाती और आया से कहती, अब ट्रेनट्रेन खेलें! राधा एक गुड़िया और तीन पहिए की गाड़ी निकालती। राधा गुड़िया को छाती से लगाये गाड़ी पर बैठती और आया बिलकुल दोहरी होकर पीछे से गाड़ी धकेलती। अब गाड़ी ही ट्रेन बन जाती, फूलों के गमले स्टेशन होतेऔर गोलाकार फार्म हाउस बंगलोर शहर हो जाता। आया इंजन-ड्राइवर का काम करती, गुड़िया राधा का रोल अदा करती और राधा कभी उसकी माँ बनती, कभी गार्ड बनकर ट्रेन को चलने या रुकने का हुक्म देती। आया कभी-कभी रुककर थैली में से तंबाकू निकालती और उसकी एक चुटकी मुँह में डालती, तो राधा पूछती, 'ट्रेन क्यों रुक गयी?"
'इसका पेंच ढीला हो गया है। मैं उसे कस रही हूँ।'
'तुम कुछ खा रही हो?'
'लेकिन यह तम्बाकू नहीं है। सिर दर्द की दवा है। मैंने स्टेशन से इसे खरीदा है।
'वहाँ दवा की दुकान है?"
'हाँ है, ' यह कहकर वह फूलों की झाड़ी की ओर इशारा करती।
राधा झाड़ी को देखकर कहती, 'डॉक्टर साहब, आया को सिर दर्द की अच्छी दवा देना। उसे बहुत तकलीफ हो रही है।'
बंगलोर पहुँचकर ट्रेन देर तक रुकती। वहाँ आया को थोड़ी देर रेत पर लेट कर आराम करने के लिए कहकर राधा गुड़िया गोद में लेकर शहर घूमने निकल जाती. खेल तब तक चलता रहता, जब तक राधा की माँ नहाने के लिए उसे आवाज न देती, इसके बाद आया एकाध घंटे की छुट्टी पा जाती।
दोपहर को वह नर्सरी में ढेर सारे खिलौनों के बीच बैठती, छोटे-छोटे हाथी, घोड़ों, गुड़े-गुड़ियों और खाने-पकाने के छोटे-छोटे बर्तनों के बीच वह इन सबसे बहुत ज्यादा बड़ी, उसके एक गज दूर राधा, दोनों के अलग-अलग अपने घर थे, जिनमें वे अपना खाना पकातीं, पूजा करतीं, एक-दूसरे से गपशप करतीं। राधा के लिए खट से उठकर उसके घर पहुँच जाना आसान होता, लेकिन उसे उठने-बैठने में तकलीफ होती थी, इसलिए उसका सामने जरा-सा झुक जाना ही राधा के घर आना मान लिया जाता। घंटे भर यह खेल खेलने के बाद आया थक जाती और कहती, 'राधा रात हो गयी, अब सो जाना चाहिए। सवेरे भी तो जल्दी उठना है।'
'रात हो गयी ?'
'हो गयी, मैंने तो घंटों पहले रोशनी जला दी थी।' यह कहकर आया किसी चीज की ओर इशारा करती, जिसे लैम्प मान लिया जाता।
'गुडनाइट, आया. अब तुम भी सो जाओ।" राधा थोड़ी-सी जगह साफ करके वहीं लेट जाती।
'तुम सो गयी, आया?'
'तुम सचमुच में मत सो जाना, खेल की तरह सोना., ' वह हर पाँच मिनट में यह कहती लेकिन राधा एकदम सो जाती।
चार बजे फिर आया का काम शुरू हो जाता। राधा रात को आठ बजे तक उसे दौड़ाती रहती, इसके बाद उसे सुला दिया जाता। बिस्तर पर लेटकर वह कहानियाँ सुनती। आया जमीन पर बैठकर उसे बंदर की कहानी सुनाती, जो सफेद खड़िया के बोरे में लोट-पीट कर राजकुमार बन गया और एक राजकुमारी से शादी कर ली, फिर किसी ने उसके बदन पर पानी उड़ेल दिया जिससे उसकी सफेदी धुल गयी और असलियत निकल आयी, तब उसे निकाल दिया गया; इसके बाद किसी धोबी को उस पर दया हो आयी तो उसने उसे नहला-धुलाकर, रंग पोतकर और बढ़िया इस्तरी करके फिर राजकुमार बना दिया, और राजकुमारी फिर उसके साथ रहने लगी।
जब कहानी खत्म हो गयी, राधा ने कहा, 'मुझे नींद नहीं आ रही। कुछ खेलें।' इस पर आया ने कहा, 'अब मैं बुड़े को बुलाती हूँ।' बुड़े के नाम का एकदम असर होता, जो हमेशा से बच्चों पर होता आया है। वह घर के मैदान में कुत्ते के लिए बने घर में रहता माना गया है। वह हमेशा आया को आवाज लगाता रहता है, और दरवाजा तोड़कर भीतर घुस आता है और उसे उठा ले जाता है। आया हमेशा कड़े शब्दों में उसकी बात करती थी। 'मैं पीट-पीटकर उसका भुरता बना दूंगी। बड़ा खरतनाक है बंदर की तरह। मुझे बिलकुल चैन नहीं लेने देता। तुम सोओगी नहीं तो में कैसे उसे भगाऊँगी ?'
तीन महीने में एक दिन आया अपने बालों में तेल डालती, कंघी करती, साफसुथरी साड़ी पहनती, सबको नमस्कार करती और साइदापेट जाती। यहाँ उसका घर था। इतनी दूर उसके घर होने का सबूत हर महीने के पहले हफ्ते में मिलता, जब दो गुंडेनुमा आदमी बंगले के पीछे खाली पड़े मैदान में उससे मिलने आते। इन्हें आया 'साइदापेट के डाकू' कहती थी।
उसकी मालकिन कभी-कभी पूछती, 'तुम इन्हें बढ़ावा क्यों देती हो?'
क्या करूं मालकिन। यह इन्हें नौ महीने पेट में रखने की सजा भुगत रही हूँ।' हर महीने की अपनी तनख्वाह वह दोनों में बाँट देती थी।
वह इतनी बूढ़ी, बीमार और लाचार हो चली थी कि लोग ताज्जुब करते कि वह कैसे बसों में चढ़ती-उतरती है और कैसे घूम-फिरकर वापस चली आती है। लेकिन शाम को ही वह वापस भी आ जाती और राधा के लिए गुप्त रूप से पिपरामिंट की गोलियों की एक पुड़िया लाती थी, गुप्त रूप से इसलिए क्योंकि उसे अक्सर हिदायत दी जाती थी कि बच्चों को कोई गंदी-सड़ी खाने की चीज न दी जाये।
एक दिन वह साइदापेट गयी लेकिन शाम को वापस नहीं लौटी। राधा छज्जे पर खड़ी उसका इन्तजार करती रही। दूसरे दिन भी वह नहीं लौटी। राधा ने रोना शुरू किया। उसकी माँ और घर के अन्य लोग भी बहुत परेशान हुए। कहने लगे, 'वह कहीं गिर-गिरा पड़ी है और मर गयी है। बहुत बेवकूफ है न! ताज्जुब यही है कि इससे पहले यह क्यों नहीं हुआ! या उसने अचानक लंबी छुट्टी करने का इरादा कर लिया होगा। उसे निकाल देंगे। उसके बिना भी काम चलता रहेगा। पुराने नौकर अपने को बहुत ज्यादा समझने लग जाते हैं, उन्हें सबक सिखाया ही जाना चाहिए।
तीन दिन बाद आया घर की मालकिन के सामने आकर खड़ी हो गयी और नमस्कार किया। मालकिन उसे देखकर आधी खुश और आधी नाराज होने लगी। 'अब तुम्हें फिर कभी छुट्टी नहीं मिलेगी या तुम हमेशा के लिए चली जाओ। तुम वक्त पर क्यों नहीं लौटीं?..."
आया जोर से हँसने लगी, उसका काला चेहरा लाल पड़ गया और आँखों में चमक आ गयी।
'बेवकूफ! हँस क्यों रही है? ऐसी क्या बात हुई?'
आया ने चेहरा साड़ी से ढक लिया और कहने लगी, 'वह आ गया है.। ' यह कहकर वह फिर खिलखिलाने लगी।
'कौन आ गया है?'
'मेरा बूढ़ा.।" यह शब्द सुनते ही राधा ने, जो आकर उससे लिपट गयी थी, उसे छोड़ दिया और डरकर रसोई में घुसकर दरवाजा बंद कर लिया।
'अरे, कौन बूढ़ा?' मालकिन ने फिर पूछा।
'मैं उसका नाम नहीं ले सकती.,' आया ने शर्माते हुए कहा।
'तेरा पति ?'
'हाँ " यह कहकर आया कसमसाई। 'वह चाहता है कि मैं उसकी देखभाल करूं और पकाकर खिलाऊँ। जब मैं घर गयी तो वहीं था। इस तरह बैठा था जैसे कभी घर छोड़कर गया ही न हो। पहले तो, मालकिन, मैं एकदम डर गयी। वह बाहर बगीचे में बैठा है। मालकिन, आप उससे बात नहीं करेंगी?'
मालकिन उठकर बाहर गयीं, देखा कि रास्ते पर एक काफी बूढ़ा आदमी खड़ा है।
'मालकिन को सलाम कर, बेवकूफ की तरह आँखें मत मिचमिचा. " आया ने डपटकर कहा।
बूढ़े ने हाथ उठाकर सलाम किया और कहा, 'मुझे थामी चाहिए।' आया को नाम से पुकारना सबको अजीब-सा लगा। 'अब मैं बुड़ा हुआ। वह मेरे लिए पकायेगी। उसे जाने दें. ।'
'तुम जाना चाहती हो, आया?'
आया ने चेहरा घुमा लिया और फिर हँसने लगी। 'बहुत साल पहले चला गया था। लंका के चाय बागानों में काम करता रहा। क्या पता था, वह लौट आयेगा! सरकार ने उसे वापस भेज दिया। अब उसकी देखभाल कौन करेगा ?'
आधा घंटे बाद वह घर से बाहर आयी, पति गुलाम की तरह उसे ले जा रहा था। उसने सबसे बड़ी हार्दिकता से विदा ली लेकिन राधा रसोई से बाहर नहीं आयी।
आया रसोई के पास आकर उससे बाहर आने की मिन्नत करने लगी। राधा ने पूछा, 'क्या बूढ़ा तुम्हें लिये जा रहा है?"
'हाँ बिटिया, बुरा आदमी है वह।'
'कुत्ते का घर किसने खोला?"
'किसी ने नहीं। उसने तोड़ डाला।'
'वह क्या चाहता है ?'
'मुझे ले जाना चाहता है।'
'जब तक वह चला नहीं जाता, मैं बाहर नहीं निकलूँगी। तुम जाओ, उसके आने से पहले चली जाओ।”
आया आधे घंटे तक राधा के बाहर निकलने का इन्तजार करती रही, फिर चली गयी।