हयीना जिसने एक लड़की से शादी की : सोमालिया लोक-कथा
Hyena Jisne Ek Ladki Se Shadi Ki : Somalia Folk Tale
एक समय की बात है कि पूर्वीय अफ्रीका के सोमालिया देश में दक्षिण की ओर एक बूढ़ा रहता था। जिस जगह पर वह रहता था वहाँ वह परिवार के साथ अकेला ही रहता था, आस पास में और कोई भी नहीं था क्योंकि वहाँ से दूर दूर तक की जमीन बंजर थी।
उसकी एक पत्नी व दो बेटियाँ थीं जो वहीं उसके साथ ही रहतीं थीं। धीरे धीरे उसकी बेटियाँ बड़ी हुईं। उसकी बड़ी बेटी शादी के लायक हो गयी थी सो उस आदमी को अपनी बेटी के लिये कोई दुलहा ढूँढना था।
यह उसके सामने एक उलझन खड़ी हो गयी क्योंकि वहाँ कोई ऐसा नहीं था जिससे वह अपनी बेटी की शादी कर सके।
उस बूढ़े की पत्नी अपने पति से रोज प्रार्थना करती कि वह भी परिवार सहित किसी ऐसी जगह पर चल कर रहे जहाँ और भी लोग रहते हों पर वह बूढ़ा सुनता ही नहीं था।
एक दिन उसने अपनी पत्नी को साफ साफ बोल दिया — “हमारे पुरखे यहीं रहते चले आ रहे हैं इसलिये मैं यह जगह नहीं छोड़ सकता। ”
पत्नी यह सुन कर चुप हो गयी क्योंकि अब उसके पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं था कि वह वहीं रहे।
उधर दिन पर दिन लड़की बड़ी होती जा रही थी और साथ ही साथ और ज़्यादा सुन्दर भी होती जा रही थी। वह रोज दिन में दस बार अपने पिता से पूछती — “पिता जी, आप मेरी शादी कब करेंगे?”
बूढ़ा पिता अपनी बेटी के इस लगातार सवाल से बड़ा परेशान रहता था पर कर कुछ नहीं सकता था। समय बीतता गया, लड़की बड़ी होती गयी और उसका अपने पिता से यह सवाल पूछना भी जारी रहा।
इसी बीच एक दिन एक अजीब सी घटना घटी। वहाँ कुछ आधे आदमी और आधे हयीना की शक्ल वाले लोग आये और उस जमीन के मालिक के बारे में पूछा।
बूढ़ा आदमी घर से बाहर आया तो क्या देखता है कि कुछ आधे आदमी और आधे हयीना की शक्ल वाले लोग बहुत ही सुन्दर पोशाक पहने खड़े हैं और सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह थी कि वे दूसरे देश के होते हुए भी सोमाली भाषा सोमालियों की तरह ही बोल रहे थे।
उस बूढ़े आदमी ने कहा कि वह जमीन उसी की थी। आश्चर्य के साथ वह उन सबको अन्दर ले आया और उनको वही आदर दिया जो मेहमानों को दिया जाता है। उन सबको आराम से बिठाया और फिर उनसे उनके आने की वजह पूछी।
उनमें से जो सबसे बड़ा हयीना था, वह बोला — “हमें पता चला है कि आपके घर में शादी के लायक एक सुन्दर लड़की है। अगर आप राजी हों तो मैं उसके साथ शादी करना चाहता हूँ। ”
इस अनोखी बात को सुन कर तो वह बूढ़ा बहुत ही ज़्यादा परेशान हुआ कि वह अपनी इतनी सुन्दर बेटी की शादी उस आधे आदमी और आधे हयीना के साथ कैसे कर दे।
दूसरी तरफ उसे अपनी बेटी के दिन में दस बार पूछा जाने वाला सवाल भी याद आया — “पिता जी, आप मेरी शादी कब करेंगे?”
हयीना ने देखा कि वह बूढ़ा आदमी कुछ पशोपेश में पड़ा है सो उसने कहा — “आप सोच लीजिये हम फिर आ जायेंगे। हमें कोई जल्दी नहीं है। ”
उस बूढ़े ने उन सबको पक्के जवाब के लिये अगले दिन आने को कहा और वे सब अगले दिन आने का वायदा करके राजी खुशी घर चले गये।
उन सबको विदा करके उस बूढ़े ने ये सब बातें अपनी पत्नी और बेटी को बतायीं और यह भी बताया कि उसने उनको अभी तक पक्की हाँ या ना नहीं की है। आखिरी जवाब के लिये वे लोग कल आयेंगे।
तो लड़की तो यह सुनते ही बहुत ज़ोर से रो पड़ी और माँ तो बहुत ही उदास हो गयी।
पिता ने अपनी बेटी को किसी प्रकार समझा बुझा कर चुप किया और समझाया कि वे लोग सब अपनी ही भाषा में बात कर रहे थे और वे आदमी के रूप में ही थे इसलिये उसको कल उससे शादी कर लेनी चाहिये।
लड़की बहुत दुखी थी और वह उस आधे आदमी और आधे हयीना से शादी करने के लिये कतई तैयार नहीं थी। पर अन्त में उसके पिता ने उसको समझा बुझा कर शादी करने पर राजी कर ही लिया।
उसने अपनी बेटी को यह भी तसल्ली दी कि अगर वह आदमी बेकार निकला तो वह उसका उससे तलाक का इन्तजाम भी कर देगा।
उसने उसको यह भी समझाया कि मुसलमान होने की वजह से उन लोगों को और भी आजादी है। वे चार शादियाँ तक कर सकते हैं और यह तो उसकी पहली शादी है अभी तो वह तीन शादियाँ और भी कर सकती थी। सो आखिर वह लड़की मान गयी।
अगले दिन जब वे आधे आदमी और आधे हयीना फिर से उसके घर आये तो बूढ़े ने उनको बताया कि वह अपनी बेटी की शादी उससे करने के लिये राजी है। शादी की सारी रस्में उसी के घर में उसी दिन पूरी की जायेंगी।
यह सुन कर वह हयीना तो बहुत ही खुश हुआ। वह यह सोच कर फूला नहीं समा रहा था कि उसकी शादी एक आदमी की लड़की से हो रही थी।
दहेज आदि तय किया गया और फिर कुछ दिनों तक दोनों तरफ शादी की तैयारियाँ ही चलतीं रहीं। इस बीच उस हयीना को आदमियों वाला खाना खाना पड़ा और वह अपने प्रिय खाने नहीं खा सका।
शादी की रस्में पूरी होने के बाद हयीना के दोस्त अपने अपने घरों को वापस चले गये। हयीना को शादी के बाद अपनी पत्नी के घर में ही रहना था। उन दोनों के लिये उनका घर बहुत ही सुन्दर सजाया गया था। बेटी को भी खूब सजाया गया था।
पत्नी ने जब पति को सजे हुए पलंग पर बैठने को कहा तो पति बोला — “यह पलंग मेरा नहीं है। ”
पत्नी यह सुन कर हैरान रह गयी। फिर वह कुछ सोच कर कमरे में रखी एक कुरसी उठा लायी और उसको पल्ांग के पास रखते हुए बोली — “तो आप यहाँ बैठें। ” पर उसका पति वहाँ भी नहीं बैठा।
पत्नी फिर एक चटाई ले आयी और उसको जमीन पर बिछाते हुए बोली — “तो आप यहाँ बैठें। ”
लेकिन पति ने फिर वही दोहराया — “यह चटाई मेरी नहीं है। ”
यह सुन कर पत्नी को बड़ा गुस्सा आया। वह गुस्से में भर कर पति को मकान के बाहर वाले दरवाजे के पास ले गयी और उसको मकान के बाहर बैठने को कहा।
यह सुन कर पति बहुत खुश हुआ और वह वहीं जा कर बैठ गया। उसने अपनी पत्नी से कहा — “हाँ अब तुम मुझको समझी हो। ”
पत्नी बहुत ही अक्लमन्द थी। हालाँकि वह पति की इस बात पर ज़रा भी परेशान नहीं हुई पर फिर भी उसको वह सब अच्छा नहीं लगा।
वह उसको वहाँ बाहर बिठाने के बाद पति के लिये शादी में बने खास स्वाददार खाने ले कर आयी और उसको खाना खाने के लिये कहा तो पति ने फिर पहले की तरह ही कहा — “यह मेरा खाना नहीं है। ”
इस बात पर पत्नी को फिर बड़ा गुस्सा आया। वह सोचती थी कि शादी के बाद का जीवन बहुत अच्छा होगा परन्तु यहाँ तो सब कुछ उलटा ही हो रहा था।
फिर उसने सोचा कि हयीना की पसन्द का खाना कौन सा हो सकता है। यह सोचते हुए वह अन्दर गयी, उसने कच्चे माँस का एक बड़ा टुकड़ा लिया, उसको मिट्टी में लपेटा और राख से भरे बरतन में रख कर उसके सामने रख दिया।
पति वह खाना देख कर बहुत ही खुश हुआ और उसने वह खाना बड़े प्रेम से खाया।
पत्नी को अब पूरा विश्वास हो गया कि उसके पति के अन्दर भाषा के अलावा और कोई भी गुण आदमी का नहीं है। वह ऐसे पति के साथ और अधिक नहीं रह सकती थी और अब उससे पीछा छुड़ाना चाहती थी।
वह तुरन्त ही अपने पिता के पास गयी और बोली — “पिता जी, आपने मेरी शादी एक जंगली हयीना से कर दी है। वह तो बिल्कुल ही जंगली हयीना है। ”
ऐसा कह कर उसने अब तक की घटी सब घटनाएँ अपने पिता को बता दीं। यह सब सुन कर घर के सब लोग इस मामले पर विचार करने के लिये इकठ्ठा हुए कि लड़की का तलाक कैसे कराया जाये।
उस मीटिंग में वह हयीना भी शामिल था जिससे उस लड़की की शादी हुई थी। बूढ़ा उस मीटिंग का सरदार था।
बूढ़े ने हयीना से पूछा — “मैने अपनी बेटी की शादी तुमसे की है इसलिये मुझे यह जानने का पूरा पूरा हक है कि तुम लोगों के बीच क्या झगड़ा है। ”
हयीना बोला — “मैं आदमियों के तौर तरीके अपना कर अपने तौर तरीके नहीं बदल सकता क्योंकि वे हमारे पुरखों ने हमारे लिये बनाये हैं। और न ही मैं अपना जीवन आदमियों की तरह से जी सकता हूँ। ”
बूढ़ा बोला — “तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। और अगर ऐसा है तो अब तुमको दोनों में से एक को चुनना होगा। या तो अपने रीति रिवाजों को और या मेरी बेटी को। बोलो तुम किसको चुनना चाहते हो। ”
यह सुन कर हयीना गुस्से में भर गया और वहाँ से उठ खड़ा हुआ और बोला — “आदरणीय ससुर जी, यह मेरे लिये बड़े अपमान की बात होगी अगर मैं अपने पुरखों के बनाये रीति रिवाज छोड़ दूँ इसलिये मैं अपनी पत्नी को छोड़ता हूँ। ”
और ऐसा कह कर वह वहाँ से उठ कर जंगल की तरफ भाग गया कि कहीं वे लोग उसे पकड़ कर वापस घर न ले आयें।
यह कहानी हमें जीवन के दो सच बताती है। एक तो यह कि कोई भी जीव अपने वातावरण में ही ठीक रहता है।
दूसरा यह कि कोई भी हो, चाहे वह आदमी हो या जानवर, अपने आपको बहुत ज़्यादा नहीं बदल सकता इसलिये किसी को भी दूसरी तरह के आदमी के साथ सोच समझ कर रहना चाहिये।
(साभार : सुषमा गुप्ता)