भालू ने अपनी पूँछ कैसे खोयी ? : अमरीकी लोक-कथा
How Bear Lost His Tail ? : American Lok-Katha
(Folktale from Native Americans, Iroquois Tribe/मूल अमेरिकी, इरक्वॉइ जनजाति की लोककथा)
बहुत पहले भालू की भी बहुत बड़ी सी पूँछ हुआ करती थी और वह उसकी बहुत ही कीमती चीज़ थी। वह उसको जब तब इधर उधर हिलाता रहता ताकि लोग उसकी उस शानदार पूँछ को देखें। एक दिन एक लोमड़े ने इसे देखा। और जैसा कि सभी जानते हैं कि लोमड़ा तो बहुत चालाक होता है और उसको दूसरे को बेवकूफ बनाने में बहुत मजा आता है सो उसने इस भालू के साथ भी एक चाल खेलने की सोची।
यह साल का वह समय था जब पाले (frost) की आत्मा हैथो (Hatho, the Spirit of Frost) सारे देश में फैली हुई थी। उसने सारी झीलों को बर्फ से ढक रखा था और सारे पेड़ों पर बर्फ की चादर फैलायी हुई थी।
लोमड़े ने बर्फ में उस जगह एक छेद बनाया जहाँ वह अक्सर घूमने जाया करता था। वहाँ जा कर वह उस छेद के ऊपर बैठ गया और अपनी पूँछ उस छेद में डाल दी। कुछ ही देर में उसकी पूँछ में बहुत सारी मछलियाँ चिपक गयीं और उसने बहुत सारी मछलियाँ पकड़ लीं।
घूमते घूमते भालू भी उधर आ निकला। जब तक भालू उसके पास आया तब तक उसके चारों तरफ बहुत सारी मछलियों का ढेर लग चुका था।
इससे पहले कि भालू लोमड़े से यह पूछता कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो लोमड़े ने उस छेद में पड़ी अपनी पूँछ इधर उधर घुमायी और एक बड़ी सी मछली निकाल ली। वह मछली उसने दूसरी मछलियों के साथ रखी और भालू की तरफ देखा।
लोमड़ा बोला — “भालू भाई नमस्ते। आज तुम कैसे हो?”
भालू उसके चारों तरफ लगे मोटी मोटी मछलियों के ढेर की तरफ देखता हुआ बोला — “नमस्ते लोमड़े भाई। मैं तो ठीक हूँ पर तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”
लोमड़ा बोला — “मैं तो मछलियाँ पकड़ रहा हूँ। क्या तुम भी अपने लिये मछलियाँ पकड़ने की कोशिश करना चाहते हो?”
भालू ने लोमड़े के मछली पकड़ने वाले छेद के ऊपर झुकते हुए कहा — “हाँ हाँ. क्यों नहीं?”
लेकिन लोमड़े ने उसको वहीं रोक दिया और बोला — “अभी रुको भाई। यह जगह अब ठीक नहीं है। जैसा कि तुम देख रहे हो मैंने यहाँ से करीब करीब सारी मछलियाँ पकड़ लीं हैं। अब हमको मछली पकड़ने के लिये कोई नयी जगह ढूँढनी चाहिये जहाँ तुम बहुत सारी मछलियाँ पकड़ सको।”
और यह कह कर लोमड़ा वहाँ से उठा और चल दिया तो भालू भी उसके पीछे पीछे हो लिया।
लोमड़ा वहाँ की जगहों को खूब अच्छी तरह जानता था सो वह भालू को वहाँ ले गया जहाँ वह झील बहुत ही उथली थी और वहाँ जाड़ों की मछलियाँ नहीं पकड़ी जा सकती थीं क्योंकि जाड़ों की मछलियाँ तो हमेशा गहरे पानी में ही मिलती थीं।
भालू ने देखा कि लोमड़े ने वहाँ पहुँच कर बर्फ में एक छेद किया और जल्दी ही उसमें से एक मछली पकड़ कर खाने लगा। फिर वह भालू से बोला — “अब तुम वैसा ही करो जैसा मैं तुमसे कहता हूँ। पहले तो अपने दिमाग से मछली का विचार बिल्कुल ही निकाल दो।
और कोई गाना भी नहीं गाना क्योंकि अगर तुमने कोई गाना गाया तो कोई मछली उसे सुन सकती है। और तुम्हारा गाना सुनते ही वह यहाँ से चली जायेगी।
फिर अपनी पीठ इस छेद की तरफ कर लो और अपनी पूँछ इस छेद के अन्दर डाल दो। जल्दी ही कोई मछली आ कर तुम्हारी पूँछ पकड़ लेगी और फिर तुम उसको ऊपर खींच लेना।”
भालू ने पूछा — “पर जब मेरी पीठ इस छेद की तरफ है तब मुझे कैसे पता चलेगा कि किसी मछली ने मेरी पूँछ पकड़ ली है?”
लोमड़ा बोला — “मैं यहाँ छिप जाता हूँ। यहाँ मुझे कोई मछली नहीं देख सकती। जब कोई मछली तुम्हारी पूँछ पकड़ेगी तो मैं ज़ोर से चिल्ला दूँगा तब तुम मछली को बाहर निकालने के लिये अपनी पूँछ तुरन्त ही खींच लेना। पर तुमको थोड़ा धीरज रखना पड़ेगा। जब तक मैं न कहूँ तुम बिल्कुल हिलना नहीं।”
भालू ने हाँ में सिर हिलाया और बोला — “ठीक है मैं वैसा ही करूँगा जैसा तुमने कहा है।” सो वह उस छेद के पास छेद की तरफ पीठ कर के बैठ गया।
उसने अपनी सुन्दर लम्बी घनी पूँछ उस छेद में ठंडे पानी में डाल दी और अब वह मछली का इन्तजार करने लगा।
लोमड़े ने थोड़ी देर तो भालू को देखा कि वह वैसा ही कर रहा है या नहीं जैसा कि उसने उसको बताया था फिर वह धीरे से उठ कर अपने घर चला गया और जा कर सो गया।
जब वह सुबह उठा तो उसको भालू की याद आयी — “पता नहीं वह भालू बेचारा अभी भी वहीं बैठा है या नहीं। मुझे जा कर उसको देखना चाहिये।” सो वह उस बर्फ से ढकी झील की तरफ चल दिया।
वहाँ पहुँच कर तुमको क्या लगता है बच्चों कि उसने क्या देखा होगा? उसने देखा कि उस झील के ऊपर एक छोटी सी बर्फ की पहाड़ी बनी हुई है। रात को बहुत बर्फ पड़ी थी और उसने भालू को ढक लिया था। उधर भालू भी लोमड़े की आवाज का इन्तजार करते करते कि लोमड़ा कब कहेगा “अब मछली ने तुम्हारी पूँछ पकड़ ली है अपनी पूँछ खींच लो” सो गया था।
भालू इतने ज़ोर से खर्राटे भर रहा था कि उसकी आवाज से
झील की सारी बर्फ हिल रही थी। लोमड़े को यह सब देखने में
इतना मजा आया कि वह तो हँसते हँसते लोट पोट ही हो गया।
जब लोमड़ा काफी हँस चुका तो उसको लगा कि अब समय आ
गया है जब मुझे इस बेचारे भालू को जगाना चाहिये। वह धीरे से
भालू के कान के पास पहुँचा और एक गहरी साँस ली और चिल्लाया
— “भालू अब तुम अपनी पूँछ खींचो।”
भालू चौंक कर जाग गया और उसने जितनी ज़ोर से वह खींच सकता था उतना ज़ोर लगा कर अपनी पूँछ खींच ली। पर रात भर में तो ठंड में उसकी पूँछ उस झील के पानी में जम गयी थी सो वह उसके खींचते ही टूट गयी।
भालू ने पीछे की तरफ देखा कि उसकी पूँछ में कोई मछली है या नहीं पर यह देख कर तो वह रो पड़ा कि उसकी तो पूँछ ही चली गयी थी।
वह रोते रोते चिल्लाया — “ओ लोमड़े के बच्चे, मैं तुझे इसके लिये देख लूँगा।” पर लोमड़ा तो भालू के झपटने से पहले ही वहाँ से कूद कर भाग चुका था।
इसी लिये आज तक भालू की छोटी ही पूँछ है और वे लोमड़ों को भी पसन्द नहीं करते।
अगर कभी तुम किसी भालू को कराहते हुए सुनो तो शायद वह इसी लिये कराह रहा होगा कि उसको उसके साथ बहुत दिन पहले की गयी लोमड़े की वह चाल याद आ गयी जिसमें लोमड़े ने उसकी पूँछ तोड़ दी थी।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)