हॉस्पिटल का इन्स्पेक्सन (व्यंग्य रचना) : डॉ. मुकेश गर्ग ‘असीमित’

Hospital Ka Inspection (Hindi Satire) : Dr. Mukesh Garg Aseemit

डॉ. महेश अपने चैंबर में उलझे हुए थे, इधर बाहर मरीज़ों की लम्बी कतार और अंदर समय की टिक-टिक दोनों ही ओर से घिरे हुए । तीन बज चुके थे और मालती की दो बार की फोन की घंटी उन्हें लंच के लिए बार-बार याद दिला रही थी। चेहरे पर झुंझलाहट साफ झलक रही थी। उनके मन में ख्याल आया, "क्या पूरा शहर ही बीमार पड़ गया है?" जैसे ही उन्होंने बाहर नजर डाली, लंबी कतारें उसकी पुष्टि कर रही थीं।

इसी बीच, तीन पुरुष भीड़ को चीरते हुए उनके चैंबर में धड़धड़ाते हुए घुस आए। डॉ. महेश के समझ में नहीं आया कि माजरा क्या है। उन्होंने बिना अपॉइंटमेंट के आने पर उन्हें डांटा भी, इधर पहले से ही अधीर खडी मरीजों की कतार अब व्याकुल होने लगी थी । तभी उनमें से एक ने कार्ड दिखाया - CMHO के ऑफिस से इंस्पेक्शन टीम .तीनो सदस्य डॉक्टर नहीं थे, साल भर पहले संविदा पर लगे हुए तीन कर्मचारी ,उम्र कोई 25 से 30 वर्ष । डॉ. महेश ने पहली बार उनका चेहरा देखा था। वह अपराधी की भांति काँपने लगे, फोन पर तो कई बार उन तीनों से अपने आपको हडकवा चुके थे , आज पहली बार प्र्त्यक्ष्य रूप से हड़कने की बारी थी ।

नाराज़गी उनके चेहरे पर साफ दिख रही थी, डॉ महेश को आत्मग्लानी हो रही थी, जब पहले इतनी बार फ़ोन पर उनकी डांट फटकार सुन चुके थे तो उनकी छवि मस्तिष्क में अकित हो जानी चाहीये थी । डॉ. महेश ने माफी माँगते हुए कहा, "आपसे बात तो कई बार हुई लेकिन माफ कीजिए, आपने पहले बताया नहीं था कि आप आएंगे।" उनमें से एक ढीठता से कुर्सी और टेबल के नीचे से एक टांग निकालकर उसे टेबल के ऊपर बिछाते हुए बोला-“वाह डॉक् साहब ,मतलब हम अपने आने की खबर भी आपको पहले से दें ,ताकि आप लीपा पोती कर के सारी खामियों को छुपा लो ! “

बाहर मरीजों की भीड़ अधीर हो रही थी ,डॉ महेश ने स्टाफ को बुलाया, “मरीजों को बोलो की एक घंटा वेट करें, अभी इन्स्पेक्सन चल रहा है “ बाहर भीड़ में से कुछ लोग डॉक्टर ,हॉस्पिटल और स्टाफ की मात-भगिनी एकीकरण करते हुए वहां से निकल लिए, कुछ जो बाहर के गाँवों से आये थे वो वहीँ बाहर पडी कुर्सियों पर निढाल से बैठे रहे, इसी बीच मरीजों के परिजनों के बीच “डॉक्टर हॉस्पिटल लुटेरे हैं” विषय पर गहन चर्चा शुरू हो गयी !क्या करें ग़ालिब वक्त काटने का ये ख़याल अच्छा है !

डॉ महेश के सामने तीनों बैठे थे,तीनों की कुर्सी की हाइट थोड़ी सी कम थी,उनमें से एक को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा था ,वह बार बार अपनी कुर्सी के पाए के साइड में लगे हत्थे से कुर्सी की हाइट ऊँची करने की कोशिश में लग गया,डॉ महेश ने वक्त की नजाकत को समझा ,और अपनी कुर्सी की हाइट नीचे कर ली !तब तक स्टाफ नाश्ते की प्लेटें और चाय ला चुका था. महेश अपनी हाथ से एक एक प्लेट उठाकर तीनों की खातिरदारी करने में लग गये , तभी एक बोला-“अरे डॉक् साहब ये सब तो ठीक है,वो आपका मेनेजर दिखाई नहीं दे रहा ,कागजात तो दिखाओ,हॉस्पिटल का इन्स्पेक्सन कौन करवाएगा? बहुत शिकायतें आ रही है डॉक् साहब,पोर्टल भरा रहता है ,वो तो हम है की मामला ऊपर जाने नहीं देते ,अपने स्तर से ही रफा दफा कर देते हैं ,लेकिन आप तो हमारा ख्याल ही नहीं रखते. आपने तो पहचाना ही नहीं हमें बताओ ! “ एक बार पुनह महेश को लगा की आज जो भैंस बैठी है पानी में ये ऐसे नहीं उठने वाली. महेश इस मामले में बिलकुल बनिया के बैल ही थे, वो तो मेनेजर राकेश कुछ संभाल लेता था,महेश बार बार उसी को फ़ोन लगा रहे थे की एक बार फ़ोन उठा ले तो इस बला से कोई निजात मिले !

हॉस्पिटल का इंस्पेक्शन अब बहुत कुछ लड़की दिखाने जैसा ही होता है, लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि लड़की देखने आने वाले कम से कम आने से पहले बता तो देते हैं कि हम आ रहे हैं तो उनके स्वागत की पूरी तैयारी हो जाती है, लेकिन इंस्पेक्शन वाले सीधे धमकते हैं और तब आते हैं जब अस्पताल और डॉक्टर का चरित्र, व्यवहार और अस्पताल के लोगों का आचार-विचार सब जान लेना चाहते हैं। कमियाँ होती नहीं है कमिया ढूंढी जाती है ,इन्स्पेकसन वालों को सिखाया ही ये जाता है ,बचपन से ही दो तश्वीरों में अंतर ढूँढने की कला में जो माहिर होता है उसे ही इंस्पेक्शन टीम में रखा जाता है !

डॉ. महेश का एक छोटा सा 15 बेड का हॉस्पिटल था, २ साल लगी सरकारी स्कीम की फॉर्मेलिटी पूरी करने में, तब जाकर स्कीम मिली थी ,हालाँकि बेड २ से ज्यादा कभी नहीं भरे गए और कोढ़ में खाज तो जब हुई तब हाल ही में सरकार ने 30 बेड की न्यूनतम आवश्यकता कर दी थी। अब तो डॉ. महेश बौखला गए थे। कई बार स्कीम को सरेंडर करने की भी सोची, लेकिन हर बार उनकी पत्नी मालती अड़ जाती थी,शहर के होस्पिटलों द्वारा सरकारी स्कीमों से खाए जाने वाली मलाई की दुहाई देती ,’अपने फूटे करम की ऐसे निठल्ले डॉक्टर से शादी हुई ,’ ये एक राम बाण दलील जिसके आगे डॉ महेश घायल थे ! “आज तो बुरे फंसे ओबामा “ डॉ महेश मन ही मन बुदबुदा रहे थे ,वो कहते हैं न मर्फी लॉ –जब बुरा होना होता है तो वो सब होता है जो हो सकता है ,इसलिए आज उनका मैनेजर भी नहीं था, इधर डॉ. महेश खुद फॉर्मालिटीज की बारीकियों से अनजान इस मुसीबत से निजात पाने के लिए तड़प रहे थे । अभी तो नाश्ता होना है,फिर इन्स्पेक्सन, एक एक दीवारें,खिड़कियाँ,पलंग के नीचे कोने में घुस कर देखा जायेगा, विडियो ग्राफी होगी,मरीजों से फीडबैक लिया जायेगा, मरीज तो बाहर वैसे ही भरे पड़े हैं ,उनका स्क्रिप्टेड वक्तव्य तैयार है—“सभी हॉस्पिटल और डॉक्टर एक जैसे हैं साहब ,सिर्फ लूटने को बने हैं “ फिर कल आएगी बड़ी सी हैडलाइन –हॉस्पिटल में पायी गयी भारी अनियमितताए ,सी एम् एच ओ ऑफिस ने जारी किया –शो कॉज नोटिस , डॉ महेश अभी भी डर से काँप रहे थे , एक मुजरिम की तरह जो इन बाबुओं की रहमो करम पर पला हुआ एक कीड़ा जैसा, जिसकी डिग्री, ज्ञान और मरीजों का विश्वास सब दांव पर लगा हुआ था।

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