होशियार गीदड़ : कश्मीरी लोक-कथा

Hoshiyar Geedar : Lok-Katha (Kashmir)

यह समय खेतों में हल चलाने का था सो एक किसान जल्दी ही अपने खेतों में हल चलाने के लिये घर से निकला और अपनी पत्नी से कहता गया कि वह जल्दी से उसका खाना ले कर खेत पर आ जाये।

सो जब उसका चावल तैयार हो गया तो वह उसको अपने पति के लिये ले कर खेत की तरफ चल दी। खेत पर पहुँच कर उसने खाना उससे कुछ दूरी पर रखा और बोली — “यह रहा तुम्हारा खाना। मैं अभी यहाँ ठहर नहीं सकती सो मैं जा रही हूँ।”

किसान बोला “ठीक है।” और अपने काम में लग गया। कुछ देर बाद वह खाना खाने आया तो उसने देखा कि उसके खाने का बरतन तो खाली पड़ा है। वह इस बात पर बहुत गुस्सा हुआ। जब वह शाम को अपने घर वापस पहुँचा तो उसने अपनी पत्नी को इस तरह की चाल खेलने पर बहुत डाँटा। पर उसने सोचा कि शायद वह उससे झूठ बोल रहा होगा। यह सोच कर वह बहुत दुखी हुई।

अगले दिन जब किसान फिर से खेत पर जाने लगा तो उसने फिर अपनी पत्नी से वही कहा कि वह उसका खाना खेत पर ले आये और उसको कुत्ते की तरह भूखा न मारे।

उस दिन वह एक बड़ी सी हँडिया में पिछले दिन से दुगुना चावल उसके लिये ले कर गयी और फिर से खेत में रख कर बोली — “देखो यह तुम्हारा खाना रखा है। अब मत कहना कि मैं तुम्हारे लिये खाना ले कर नहीं आयी। मैं यहाँ ठहर नहीं सकती क्योंकि मुझे घर भी देखना है। घर में कोई नहीं है।” कह कर वह घर वापस लौट गयी।

कुछ ही देर में एक गीदड़ आया – वही गीदड़ जो पिछले दिन भी आया था और उसका खाना खा गया था, और उसने खाने के बरतन में अपना मुँह डाला। वह जानवर चावल खाने के लिये इतना उतावला हो रहा था कि उसने अपनी गरदन उस बरतन की तंग गरदन में जबरदस्ती डाल दी। असल में यह बरतन पिछले दिन वाला बरतन नहीं था यह उससे बड़ा था और इसकी गरदन कल वाले बरतन से तंग थी। यह बात गीदड़ को पता नहीं थी।

जबरदस्ती अपनी गरदन बरतन में घुसाने की वजह से उसकी गरदन उसमें फँस गयी और वह उसको उसमें से बाहर नहीं निकाल सका। इस तरह से वह इस समय बड़ी भयानक हालत में था। वह अपना सिर इधर उधर हिलाता हुआ और बरतन को जमीन से मारता हुआ चारों तरफ को भागने लगा ताकि वह बरतन फूट जाये और उसका सिर उसमें से बाहर निकल आये।

जमीन पर बरतन मारने की आवाज काफी हो रही थी सो उससे किसान का ध्यान उधर आकर्षित हुआ। यह देखने के लिये कि यह आवाज कहाँ से आ रही थी किसान ने इधर उधर देखा तो देखा कि एक गीदड़ उसके खाने के बरतन को लिये हुए इधर से उधर घूम रहा है और उसे जमीन पर पटक रहा है।

उसने तुरन्त अपना बड़ा वाला चाकू उठाया और गीदड़ की तरफ भागा — “अरे तू ठहर जा ज़रा। तो तू है चोर मेरे खाने का। तूने ही कल मेरा खाना चुराया और तू ही उसे आज भी चुराना चाह रहा है।”

गीदड़ चिल्लाया — “मुझे जाने दो किसान भाई मुझे जाने दो। मुझे इस बरतन में से बाहर निकाल दो तो मैं तुम्हें वही दूँगा जो तुम चाहोगे।”

किसान बोला — “ठीक है।” और यह कह कर उसने अपने खाने का बरतन तोड़ दिया और गीदड़ को आजाद कर दिया।

गीदड़ चैन की साँस लेते हुए बोला — “धन्यवाद किसान भाई धन्यवाद। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद। पर तुम आज का यह दिन कभी नहीं भूलोगे।”

कह कर गीदड़ ने उसे गुड डे कहा और राजा के महल की तरफ चल दिया जो वहाँ से कुछ दूरी पर था।

शाही कमरे में पहुँच कर गीदड़ बोला — “राजा साहब आप मुझे हुकुम करें तो मैं आपकी बेटी की शादी तय करा दूँ। आप मुझसे गुस्सा मत होइयेगा। मुझे इस मामले पर योर मैजेस्टी से बोलना तो नहीं चाहिये था अगर मैंने राजकुमारी के लायक एक लड़का अभी हाल में न देखा होता तो।”

राजा बोला — “तुम उसको यहाँ ले कर आओ तो फिर हम उसको देखते हैं।”

सो गीदड़ तुरन्त ही उलटे पैरों वापस लौट गया और किसान के घर पहुँचा। उससे उसने तुरन्त ही पड़ोसी राज्य के राजा के पास तैयार हो कर चलने के लिये कहा। उसने कहा कि वह उसको अपना दामाद बनाने के लिये उसको देखना चाहता था।

पहले तो किसान अपने बे पढ़े लिखे और गरीब होने की वजह से कुछ सकुचाया। वह एक राजा से कैसे बात करनी चाहिये वह इस बारे में क्या जानता था। इतने बड़े लोगों के बीच में कैसे उठना बैठना और बात करना चाहिये यह भी उसको आता नहीं था। और फिर राजा के पास जाने के लिये उसके पास ठीक से कपड़े भी तो नहीं थे।

पर गीदड़ ने उसको राजा के महल जाने के लिये मना ही लिया और उसकी हर हाल में सहायता करने का वायदा किया। सो गीदड़ और किसान राजा के महल की तरफ चल दिये।

जब वे राजा के महल पहुँचे तो गीदड़ तो योर मैजेस्टी को ढूँढने चला गया और किसान महल में घुसने वाले कमरे में जूते रखने की जगह के पास वहीं फर्श पर उकड़ूँ बैठ गया और राजा का इन्तजार करने लगा।

गीदड़ राजा के पास पहुँचा और बोला — “योर मैजेस्टी मैं उस लड़के को ले आया हूँ जिसके बारे में मैं उस दिन आपसे बात कर रहा था। वह बहुत ही मामूली कपड़ों में आया है और न कुछ दिखावा ही किया है। वह अपने साथ बहुत सारे आदमी भी नहीं लाया ताकि योर मैजेस्टी को उनको ठहराने की कोई परेशानी न हो।

योर मैजेस्टी को इस बात का बुरा नहीं मानना चाहिये बल्कि उसकी समझदारी की तारीफ करनी चाहिये।”

राजा ने उठते हुए कहा — “बिल्कुल बिल्कुल। चलो मुझे उसके पास ले चलो।”

गीदड़ राजा को वहाँ ले आया जहाँ वह किसान को छोड़ गया था और बोला — “यह यहाँ है।”

राजा गीदड़ से बोला — “क्या? यह जो जूतों के पास उकड़ूँ बैठा है?”

फिर राजा किसान से बोला — “अरे दोस्त तुम वहाँ ऐसी जगह क्यों बैठे हो?”

किसान बोला — “यह एक अच्छी और साफ सुथरी जगह है योर मैजेस्टी और यह जगह मेरे जैसे गरीब के बैठने के लिये ठीक है।”

गीदड़ ने कहा — “आप ज़रा इसकी विनम्रता तो देखिये महाराज कि यह कितना विनम्र है।”

राजा बोला — “तुम आज की रात हमारे महल में रहोगे। कुछ मामले हैं जिनके बारे में मैं तुमसे बात करना चाहूँगा। कल अगर सुविधा हुई तो फिर मैं तुम्हारा घर देख कर आऊँगा।”

उस शाम राजा किसान और गीदड़ तीनों बात करते रहे। जैसी कि किसान से उम्मीद की जाती थी किसान बार बार धोखा देता रहा और चालाक गीदड़ बेचारा मामलों को सँभालता रहा। आखिर राजा इस रिश्ते के लिये तैयार हो ही गया।

पर कल क्या होगा। गीदड़ रात भर अपने दिमाग में इसी बात पर विचार करता रहा। जैसे ही राजा और किसान अगले दिन सुबह उठे तो गीदड़ ने उनसे शादी की इजाज़त माँगी और राजा ने हाँ कर दी।

तुरन्त ही गीदड़ किसान के घर की तरफ गया और उसके घर में आग लगा दी।

और जब वे वहाँ आये तो वह रोता हुआ दौड़ कर उनके पास गया और बोला — “राजा साहब मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप लोग और पास मत आइये। इस आदमी की जायदाद और मकान सब कुछ जल गया है। लगता है कि यह इसके किसी दुश्मन का काम है। मैं आप लोगों से प्रार्थना करता कि अभी आप लोग यहाँ से चले जाइये।”

सो बेचारा सीधा सादा राजा वहाँ से लौट गया। कुछ समय बाद राजा ने अपनी बेटी की शादी गँवार बे पढ़े लिखे किसान से कर दी।

(सुषमा गुप्ता)

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