होशियार चरवाहा : इथियोपिया की लोक-कथा

Hoshiyar Charwaha : Ethiopia Folk Tale

एक बार इथियोपिया में एक जगह एक होशियार चरवाहा रहता था। वह अक्सर दूसरे चरवाहों को पीट देता था। यह उनको अच्छा नहीं लगता था सो एक दिन दूसरे चरवाहों ने उस चरवाहे को मारने की योजना बनायी।

उन्होंने एक दस फुट गहरा गड्ढा खोदा और उसमें एक टोकरी में इन्जिरा और वत रख दिया।

जब वह चरवाहा आया तो वे बोले - "आओ, तुम्हारे लिये हमने इस गड्ढे में इन्जिरा और वत रखा है, जा कर निकाल लो।"

जैसे ही उसने उस गड्ढे में झाँका तो दूसरे चरवाहों ने उसको धक्का दे दिया और वह उस गड्ढे में गिर पड़ा। ऊपर से सबने मिल कर उसके ऊपर मिट्टी डाल दी।

इस होशियार चरवाहे के पास हमेशा दो सोने की सलाइयाँ रहतीं थीं। उन सलाइयों की सहायता से उसने बड़ी मेहनत से एक सुरंग खोद ली और बाहर निकल आया।

लेकिन जब वह बाहर निकला तो वह एक ऐसी जगह पर निकला जहाँ के लोग आदमखोर थे। वह सारा दिन तो इधर से उधर घूमता रहा पर आखिर रात हो गयी तो उसको किसी घर में शरण ढूँढनी ही पड़ी।

घर की स्त्री ने कहा - "अन्दर आ जाओ।"

अन्दर आने पर उसको पता चला कि वे लोग तो आदमखोर हैं। उस स्त्री के एक लड़की भी थी।

चरवाहा यह सब देख कर डर गया। उसको पूरा विश्वास हो गया कि वह उस गड्ढे में से तो किसी तरह बच गया परन्तु अब वह यहाँ से नहीं बच पायेगा। ये दोनों ही मिल कर उसे खा जायेंगी। वह इतना ज़्यादा घबरा गया कि उसे रात भर नींद नहीं आयी।

सुबह नाश्ते में उन्होंने उसे खाने के लिये रोटी दी। जब वह रोटी खा रहा था तो उसने उस स्त्री को अपनी बेटी से यह कहते सुना - "आज दोपहर के लिये यह बड़ा अच्छा खाना आ गया है।

तुम इसके सब बाल और नाखून आदि काट कर रखना और इसको ठीक से पका कर रखना। मैं अभी बाजार जा रही हूँ। अभी थोड़ी देर में लौट कर आती हूँ तब हम दोनों इसे खायेंगे।"

स्त्री के चले जाने के बाद उसकी लड़की आयी और बोली - "आओ, तुम्हारे सिर के बाल साफ कर दूँ और नाखून आदि काट दूँ।"

चरवाहा बोला - "पहले तुम अपना सिर मुँड़वाओ फिर मैं अपना सिर मुँड़वाऊँगा।"

सो पहले लड़की का सिर मुँड़वाया गया बाद में चरवाहे का।

लड़की ने कहा - "लाओ, अब तुम्हारे नाखून काट दूँ।"

चरवाहे ने फिर कहा - "पहले तुम अपने नाखून कटवाओ फिर मैं अपने नाखून कटवाऊँगा।"

सो पहले लड़की के नाखून कटवाये गये बाद में चरवाहे के।

इसके बाद लड़की बोली - "अच्छा अब जरा देखो कि पानी उबल गया कि नहीं।"

चरवाहा होशियार था बोला - "तुम खुद जा कर देख लो न।"

लड़की ने सोचा कि चरवाहा तो ऐसे ही कह रहा होगा सो वह पानी देखने लगी। इतने में चरवाहे ने उस लड़की को पानी की तरफ धक्का दे दिया और वह उस उबलते पानी में गिर पड़ी। अब चरवाहे ने बेटी को माँ के लिये पकाया।

फिर उसने लड़की के कपड़े पहन लिये और उस स्त्री के आने का इन्तजार करने लगा। जब वह स्त्री बाजार से आयी तो उसने अपनी लड़की से पूछा - "क्या तुमने उस आदमी को पका लिया?"

चरवाहा लड़की की आवाज में बोला "हाँ माँ पका लिया।"

उसने उस स्त्री को पहले उसकी बेटी का रसा परसा, फिर उसकी बाँह परसी। बाँह देख कर वह स्त्री चिल्लायी - "अरे, यह बाँह तो मेरी लड़की की बाँह लगती है।"

यह सुन कर चरवाहे ने लड़की की पोशाक उतार दी और पानी में पिसे हुए अलसी के बीज बिखेरता हुआ बाहर की तरफ भागता हुआ बोला - "मैं वह चरवाहा हूँ जिसने एक माँ को उसकी बेटी खिला दी।"

वह स्त्री गुस्से में भर कर उसके पीछे भागी परन्तु अलसी के बीजों पर फिसल कर गिर पड़ी। बड़ी कोशिश के बाद वह कहीं उठ पायी तो फिर उस चरवाहे के पीछे भागी।

चरवाहा भागते भागते एक ऐसी जगह पहुँच गया जहाँ कुछ लोग खुदाई कर रहे थे। स्त्री पीछे पीछे भागी चली आ रही थी, वह वहीं से चिल्लायी - "इसको तुम पकड़ कर रखना, जाने मत देना।"

पर खुदाई करते लोगों को ठीक से सुनायी ही नहीं दिया कि वह क्या कह रही है। उन्होंने चरवाहे से पूछा कि वह क्या कह रही थी तो चरवाहा बोला - "वह कह रही है कि यह मेरा बेटा है इसे हाथ भी मत लगाना।" ऐसा कह कर वह आगे भाग गया।

भागते भागते अब वह एक खेत के पास जा पहुँचा जहाँ कुछ आदमी दाल की पकी फसल काट रहे थे। वह स्त्री अभी भी चरवाहे के पीछे पीछे भागी आ रही थी। वह फिर चिल्लायी - "इसको तुम पकड़ कर रखना, जाने मत देना।"

पर उन लोगों को भी इतनी दूर से कुछ सुनायी नहीं दिया सो उन्होंने भी चरवाहे से पूछा कि वह क्या कह रही है।

चरवाहा बोला - "यह कह रही है कि यह मेरा बेटा है, इसे हाथ भी मत लगाना, बल्कि इसे कुछ दाल दे दो।"

सो उन लोगों ने उसको कुछ दाल की फलियाँ दे दीं और वह चरवाहा वहाँ से फिर भाग लिया।

इस बार भागते भागते वह एक बन्दरों के झुंड के पास जा पहुँचा। वह स्त्री फिर चिल्लायी - "बन्दरों, इस आदमी को पकड़ कर रखो यह जाने न पाये।"

बन्दर भी इतनी दूर से उसकी आवाज नहीं सुन पाये तो वे आपस में पूछने लगे कि वह स्त्री क्या कह रही है। चरवाहा बोला - "वह कह रही है कि यह मेरा बेटा है इसे रोकना नहीं।" इतना कह कर वह फिर आगे भाग लिया।

पर उन बन्दरों में से एक बन्दर अलग बैठा था उसने वह सुन लिया था जो उस स्त्री ने कहा था। उसने यह दूसरे बन्दरों को भी बताया तो सारे बन्दर उस चरवाहे के पीछे दौड़ लिये।

दौड़ते दौड़ते वे एक गन्ने के खेत के पास आ पहुँचे। चरवाहे ने कुछ गन्ने उस खेत से तोड ़कर उन बन्दरों की तरफ फेंक दिये। बन्दर गन्ने खाने में लग गये और चरवाहा फिर भाग लिया।

भागते भागते वह एक झील के किनारे पहुँचा। वहाँ आ कर उसने भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवान, तू इस झील को दो हिस्सों में बाँट दे ताकि मैं इसे पार कर सकूँ। झील तुरन्त ही दो हिस्सों में बँट गयी और चरवाहा बीच की सूखी जमीन पर दौड़ कर वह झील पार कर गया।

झील पार करके फिर उसने प्रार्थना की कि वह झील फिर से वैसी की वैसी हो जाये जैसी कि वह पहले थी। वह झील फिर से वैसी की वैसी हो गयी। अब जब वह स्त्री वहाँ पहुँची तो वह झील पार ही नहीं कर सकी।

उस स्त्री ने चरवाहे से पूछा कि इस झील को पार करने का क्या तरीका है तो चरवाहा बोला - "इस झील को पार करने के लिये मुझे अपनी एक आँख निकालनी पड़ी, एक हाथ काटना पड़ा और एक पैर काटना पड़ा।"

स्त्री ने सोचा कि चरवाहा सच कह रहा है सो उसने भी अपनी एक आँख निकाल दी, एक हाथ काट दिया और एक पैर काट दिया और झील में कूद पड़ी।

हाथ पैर न होने की वजह से वह तैर भी न सकी और वहीं झील में डूब कर मर गयी और चरवाहा खुशी खुशी अपने घर चला गया।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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