हिन्दी और हिन्दिंगलिश (व्यंग्य) : हरिशंकर परसाई
Hindi Aur Hindinglish (Hindi Satire) : Harishankar Parsai
उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री मुलायमसिंह यादव के इस आदेश से कि सरकारी कामकाज में अनिवार्य रूप से हिन्दी का प्रयोग हो, अंगरेजी को त्याग दिया जाए, प्रशासन के लोगों में कुछ डर पैदा हुआ होगा। जो आदमी शंकराचार्य को जेल में रख सकता है, वह हम पर भी कार्यवाही कर सकता है। चलो निकालो शब्दकोश और लिखो हिन्दी में। जिसे यह कागज जाएगा, वह शब्दकोश में सिर मारेगा। मध्य प्रदेश के भूतपूर्व प्रधान सचिव र० प० नरोन्हा ने अपने संस्मरण में लिखा है : मैं पूरी रिपोर्ट अँगरेजी में लिखता था और उसके साथ एक कागज नत्थी करता जिस पर हिन्दी में लिखता - महोदय प्रतिवेदन संलग्न है । विनीत र० प० नरोन्हा। इस प्रतिवेदन को मुख्यमन्त्री द्वारकाप्रसाद मिश्र को सौंप देता । हो गया हिन्दी में काम । एक बार मैंने पूरी लम्बी टिप्पणी हिन्दी में लिखी और मिश्र जी को सौंपी। मिश्र जी ने पढ़ा। मैंने पूछा- सर, आपको मेरी हिन्दी कैसी लगी? मिश्रजी ने कहा- तुम्हारी हिन्दी पढ़कर तो मैं अपनी हिन्दी भूले जा रहा हूँ ।
इस बात को तीस साल हो गये होंगे। नरोन्हा आई० सी० एस० थे, गोवा- निवासी थे। तब से अब तक शासकीय कार्यों में हिन्दी का प्रयोग बहुत बढ़ा है। और क्षेत्रों में भी हिन्दी पत्रकारिता की भाषा लगातार समृद्ध हुई है। मगर यह बात निस्संकोच कही जा सकती है कि जिस ईमानदारी से तमिलनाडु में काम तमिल में होता है या तेलगु में आन्ध्र प्रदेश में होता है, उस ईमानदारी से हिन्दी प्रदेशों में हिन्दीवाला काम नहीं करता। वास्तव में हिन्दीभाषी कुछ भी ईमान- दारी से नहीं करता । सिर्फ शिकायत करने में माहिर है। हिन्दीभाषी से अच्छी हिन्दी दक्षिण भारतीय बोलता है। वह मेहनत से हिन्दी सीखता है। हिन्दी- भाषी हिन्दी सीखता नहीं है। उसे हिन्दी 'आ जाती' है। इन 'आ जाती' हिन्दी- वालों से हिन्दी के लिए मेहनत करने, नये शब्द सीखने, अपना शब्द भण्डार बढ़ाने, पारिभाषिक मुहावरे ग्रहण करने की आशा करके मुलायमसिंह उन्हें तकलीफ दे रहे हैं। वे क्यों सीखें ? हिन्दी तो उनकी मातृभाषा है।
मगर मुलायमसिंह का जोर हिन्दी लाने पर उतना नहीं है, जितना अंग- रेजी हटाने पर। वे देश की सब भाषाओं को बराबर मानते हैं। वे डॉ० लोहिया के चेले हैं, जो अंगरेजी हटाओ आन्दोलन चलाते थे। ठीक करते थे समाजवादी कार्यकर्ता - बाजार में घूमते और अंगरेजी के बोर्ड हटाते । दूकान का नाम साईन-बोर्ड पर लिखा है (अंगरेजी में) मोडर्न स्टोर्स । इस नाम से बैंक खाता है, रजिस्ट्रेशन है, लेना-देना है। दूकानदार कैसे बदले ? होशियार दूकानदार ने रातू कोही बोर्ड पर लिखवा दिया 'मार्डन स्टोर्स' । 'आधुनिक भण्डार' नहीं । लिपि बदल दी, देवनागरी कर दी। हिन्दी के उफान का दौर जब-तब आता है। कुकर की सब्जी पक जाती है और भाप निकलने लगती है, तब एकाध आन्दोलन एक- दो दिन चल जाता है । भावुक वक्तव्य दे दिये जाते हैं, हिन्दी की स्तुति गायी जाती है। समझना चाहिए कि हिन्दी सिर्फ भावना की चीज नहीं है, व्यवहार की चीज भी है ।
मुलायमसिंह ने एक जाति को फिर प्रोत्साहन दे दिया । यह 'हिन्दी सेवक' की जाति है, जिसका गोत्र 'हिन्दी भक्ति' है । यह जाति 'गो-सेवक' या 'गो-भक्त' जैसी है । हिन्दी भक्त के लिए हिन्दी भावना की चीज है, उपयोगिता की नहीं । संविधान बनते ही यह जाति पैदा हो गयी थी। यह जाति अभी भी है । वंश चल रहा है । हिन्दी-सेवकों के उद्गार हैं-
—हिन्दी भारत माता भाल की बिन्दी है ।
—हिन्दी अपने ही घर में निर्वासिता है ।
—हाय, हिन्दी को उसका अधिकार अभी तक नहीं मिला । - हाय, हिन्दी आज अनाथ है ।
—हाय, हिन्दी जिसे रानी होना था, वह अभी भी चेरी है ।
ठीक गो भक्तों की शैली में-
—गाय हमारी माता है ।
—जिसे पूजना चाहिए उसे काटा जाता है ।
—गौ माता की जय !
गो-भक्त और हिन्दी भक्त एक जैसी भक्ति करते हैं । भावोद्गार निकालते हैं, प्रदर्शन करते हैं, कडुआहट पैदा करते हैं । चन्दे का पैसा खा जाते हैं । गो-सेवक 'माता' को डंडा मार-मारकर भगा देता है । गौशाला में अपंग और बेकार बूढ़ी गायों के लिए आनेवाले घास को गाय के सपूत, प्रबन्धक खा जाते हैं ।
गोभक्ति की भावना का उपयोग साम्प्रदायिक राजनीतिवालों ने खूब किया । संसद पर साधुओं से हमला करवा दिया। इस पर गोली चली और एक गौ- गृहमन्त्री गुलजारीलाल नन्दा - मारी गयी। बाद में जब राजनीति वालों ने देखा कि गाय का दूध पूरा हम निचोड़ चुके, यह बूढ़ी हो गयी तो उसे विनोबा भावे को सौंप दिया।
हिन्दी का हाल यह रहा । संविधान में हिन्दी को भारत की राजभाषा और अन्तर्राज्यीय सम्पर्क भाषा मानने के बाद हिन्दी उन्मादी खड़े हो गये-
—हिन्दी की विजय !
—हिन्दी राष्ट्र भाषा हो गयी ।
—हिन्दी की भारत विजय !
—जो हिन्दी-विरोधी है, वह राष्ट्र-विरोधी है ।
ये उन्मादी नारे लगने लगे, तो दूसरी भाषाओं के लोग चौंके : 'यह तो हिन्दी साम्राज्यवाद है ।' 'हिन्दी साम्राज्यवाद स्वीकार नहीं करेंगे ।'
इन हिन्दी उन्मादियों के अपने बच्चे अंगरेजी माध्यम के पब्लिक स्कूल, कान्वेंट में पढ़ते थे । अब भी हिन्दी की जय बोलने वाले, हिन्दी का माल खाने वाले के बेटे अंगरेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ते हैं । हिन्दी उनके लिए विदेशी भाषा है । बाप हिन्दी माता की गोशाला खोलकर हिन्दी का घास चरे और बेटे हिन्दी की हत्या करें ! मैं नहीं जानता - मुलायमसिंह यादव के बेटा-बेटी कौन- से स्कूल में पढ़ते हैं। पर उनकी सरकार के सचिवों, आई० ए० एस० और आई० पी० एस० अफसरों के बेटा-बेटी अंगरेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ते हैं। मैंने एक हिन्दी की मलाई चाटने वाले हिन्दी सेवक से कहा- मगर अपने बेटों को तो आप अंगरेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाते हैं । उन्होंने कहा - लड़कों को हिन्दी पढ़ाकर क्या उनकी जिन्दगी खराब करना है ?
हिन्दी माध्यम से पढ़ने से जिन्दगी खराब होती है, ऐसा कौन मानते हैं ? हिन्दी के त्यागी तपस्वी सेवक, हाय हिन्दी करके रोने वाले और हिन्दी के नाम पर लूटने वाले । इस संकट नस्ल का क्या करेंगे मुलायमसिंह ।
मेरा घर मुख्य मार्ग पर नहीं है पर मेरे सामने के रास्ते से रोज चार रिक्शे भरकर - टाई और यूनीफार्म पहने बच्चे अँगरेजी माध्यम की नर्सरी को जाते हैं । कारवालों के कार से जाते होंगे। ये नर्सरी शहरों में कई हैं। इनमें अभिभावक को एक लड़के पर पाँच-छः सौ रुपये खर्च आता है। मध्यम वर्ग के लोग पेट काटकर यह पैसा खर्च करते हैं। यदि पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं तो वे बच्चों को नर्सरी में डाल जाते हैं। उच्चवर्गीयों के लिए जो ईसाई सन्तों ने अपने नाम से स्कूल खोल रखे हैं, उनमें तो प्रतिमाह हजारों रुपये लगते हैं । ये स्कूल छोटे-छोटे कस्बों तक में खुल गये हैं। 'जैक ऐण्ड जिल वेंट आप द हिल, टु फेच ए फेल ऑफ वाटर' भजन गाया जाता है। और 'डम्पटी डम्पटी सैट ऑन ए वाल' - कीर्तन होता है। मैं मध्यमवर्गीय से पूछता हूँ- इतना खर्च करके लड़के को वहाँ क्यों भेजते हो ? उसका जवाब होता है- वहाँ पढ़ाई अच्छी होगी ।
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जाता है । हिन्दी में इन विषयों की समस्त पुस्तकें बननी चाहिए ।
बोलचाल की भाषा में अछूत प्रथा नहीं मानना चाहिए। बोलचाल की भाषा में जो अंगरेजी शब्द आ गये हैं, उन्हें हिन्दी मान लेना चाहिए। हिन्दी को अधिक से अधिक दूसरी भाषाओं के शब्द ले लेना चाहिए । तब हिन्दी समृद्ध होगी ।
विज्ञानों के तकनीकी शब्द लगभग अन्तर्राष्ट्रीय होते हैं। पूरे यूरोप के तकनीकी शब्द लैटिन या ग्रीक धातु से बने हैं। ये पूरे यूरोप अमेरिका, लॅटिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में माने जाते हैं। भारत में संस्कृत धातु से शब्द बने हैं। कुछ अच्छे हैं, कुछ बिलकुल बेकार। 'एंजिन' डॉ० रघुवीर के बावजूद एंजिन ही कहलाएगा। अंगरेजी के जो शब्द धातु नहीं बनने को हैं, वे अगर बोलचाल में हैं तो उन्हें हिन्दी मान लेना चाहिए। सरकार यदि यह समझती है। कि पुलिस लोगों से हिन्दी बुलवा लेगी, तो यह उतना ही बड़ा भ्रम है, जितना बड़ा यह कि पुलिस साम्प्रदायिक एकता कायम कर देगी ।
हिन्दी को ही भारत की भाषा होना चाहिए। जब 1946 में पूर्ण स्वाधी- नता के पहले मध्यावधि सरकार बनी थी, तब पंडित नेहरू ने विजयलक्ष्मी पंडित को रूस में राजदूत बनाकर जून 1947 में ही भेज दिया था। विजयलक्ष्मी - पंडित ने लिखा है कि मेरा परिचय और अधिकार-पत्र हिन्दी में था । यह संवि- धान बनने के पहले की बात है। मगर हिन्दी फिर भी विश्व भाषा नहीं है । विश्व-भाषा अंगरेजी है । दुनिया से हमारा सम्पर्क अभी भी अंगरेजी के माध्यम से है । पश्चिम का ज्ञान, विज्ञान हमें अँगरेजी के माध्यम से प्राप्त होता है । यदि अंगरेजी की पढ़ाई हमने पूरी तरह खत्म कर दी तो हम पूरी तरह फिर से कूपमंडूक हो जाएँगे । 'रानी' और 'चेरी' शब्दों का प्रयोग करनेवाले भावुक मूर्ख हैं। अंगरेजी भाषा पढ़ना अनिवार्य नहीं होना चाहिए, पर ऐच्छिक रूप से अंगरेजी की पढ़ाई उच्चतम स्तर तक होनी चाहिए। वैसे भी संविधान की आठवीं सूची में अंगरेजी है ।