हायबन्द और ज़ोहरा खातून : कश्मीरी लोक-कथा

Hayaband Aur Zohra Khatun : Lok-Katha (Kashmir)

किसी के अगर कोई बेटा न हो तो यह एक बड़े दुख और शरम की बात है। यह बहुत दिनों पहले की बात है कि एक बहुत ही अमीर सौदागर बहुत दुखी रहता था क्योंकि उसके कोई बेटा नहीं था। वह यही सोचता रहता था कि कौन उसका नाम आगे चलायेगा। कौन उसका व्यापार सँभालेगा। वह किसको अपना इतना सारा पैसा दे कर जायेगा।

ऐसे ही सवाल उसके दिमाग में हमेशा घूमते रहते थे और उसकी नाउम्मीद आत्मा से एक ही दुख भरा जवाब बार बार आता “मेरे कोई बेटा नहीं है।” “मेरे कोई बेटा नहीं है।”

उसने बताये गये समय पर बहुत प्रार्थनाऐं की। उसने बताये गये दिनों पर बहुत उपवास किये। उसने बतायी गयी चीज़ों के बहुत दान दिये। पर ऐसा लगता था जैसे भगवान की कॄपा दॄष्टि उसके ऊपर थी ही नहीं। उसके कान उसकी तरफ से खुले ही नहीं थे। ऐसा उसको लगता था।

भगवान जो सोचता है वह आदमी के सोचने से मेल नहीं खाता। भगवान की इच्छा थी कि उसको एक बेटा मिले सो समय आने पर उसके एक छोटा सा बेटा पैदा हुआ। सौदागर ने उसका नाम हायबन्द रखा। जब वह पाँच साल का हो गया तो उसने उसको स्कूल भेजना शुरू कर दिया। वह दस साल का होने तक पढ़ता रहा।

एक दिन वह सौदागर अपनी दूकान की खिड़की के पास बैठा हुआ था कि उसकी दूकान के सामने से दो लड़के फटे कपड़े पहने जा रहे थे। उसने उनको बुलाया और उनसे पूछा कि वे इतने गरीब क्यों थे। उन्होंने उसको बताया कि उनके माता पिता और भाई मर चुके थे और वे अपने किसी ऐसे दोस्त या रिश्तेदार को नहीं जानते थे जिससे वे कोई सहायता ले सकें इसीलिये वे इस तरह मारे मारे फिर रहे थे।

यह सुन कर सौदागर को उन पर दया आ गयी। वह उनको यह सोच कर अपने घर ले गया कि उसके बेटे को अच्छा साथ मिल जायेगा और साथ में वह उसकी दूकान पर इधर उधर का काम भी कर दिया करेंगे। साथ में उनकी भी सहायता हो जायेगी। उसने उनको अपने बेटे के साथ ही पढ़ाया लिखाया।

अब जैसा कि हम देखेंगे कि ये बच्चे उसके लिये बहुत ही बुरे साबित हुए। बजाय इसके कि वे अपने इस दयालु मालिक को और प्यारे से साथी को धन्यवाद देते या उनकी सहायता करते उन्होंने तो उनके खिलाफ जालसाजी शुरू कर दी और उनको बड़ी शमनाक हालत में डाल दिया।

वे सौदागर के बेटे हायबन्द के साथ रोज स्कूल जाते पर हायबन्द तो बड़ी मेहनत से पढ़ता जिससे वह तो बहुत होशियार हो गया जब कि वे दोनों आलसी और लापरवाह थे सो उन्होंने वहाँ अपने जैसे बच्चों से सिवाय बुराइयों के और कुछ नहीं सीखा। एक दिन जब वे तीनों सुबह को स्कूल जा रहे थे तो वे शादी के बारे में बात करने लगे। उन दोनों बच्चों ने हायबन्द से कहा — “देखो हमें मालूम है कि तुम्हारी शादी तो बहुत जल्दी ही हो जायेगी। क्या तुम अपने पिता से कह कर हमारी शादी नहीं करवा सकते?”

हायबन्द बोला — “हाँ हाँ क्यों नहीं। मैं अपने पिता जी से कहूँगा कि वह तुम्हारी शादी पहले कर दें बाद में मेरी शादी करें।”

इसके कुछ समय बाद ही सौदागर ने शादी कराने वाले को कई जगह भेजा कि वह किसी अमीर परिवार की कोई सुन्दर पढ़ी लिखी होशियार लड़की देख कर आये। लड़की देख ली गयी और हायबन्द की शादी तय हो गयी।

शादी के दिन सौदागर ने अपने दोस्तों को एक बहुत बड़ी दावत दी और गरीबों को बहुत दान दिया। फिर उसने अपने बेटे को राजा जैसे कपड़े पहनाये और उसको दुलहिन के घर भेजा। दोनों नीच लड़कों को इस बात का पता था सो वे उससे पहले ही उसकी ससुराल पहुँच गये और दुलहिन के माता पिता को बरगलाने की कोशिश की कि हायबन्द तो कुछ पागल सा है आप किससे अपनी बेटी की शादी कर रहे हैं।

यह सुन कर वे दोनों बहुत दुखी और नाराज हुए। यह बात अगर उनको कुछ पहले पता चली होती तो उन्होंने सगाई तोड़ दी होती पर अब वे क्या करें। अब तो बहुत देर हो चुकी थी। दुलहा अपने घर से चल चुका था।

इधर वे दोनों लड़के फिर हायबन्द से मिलने के लिये जल्दी से चल कर वापस आये और उसको दवा मिले हुए कुछ फल खाने पर मजबूर किया। उन फलों को खा कर वह बिल्कुल बेवकूफ सा दिखायी देने लगा।

इसके बाद वह तुरन्त ही सौदागर के पास उसके घर गये और आँखों में आँसू भर कर बोले जैसे कि वे अपनी इस खोज पर बहुत दुखी हों कि वह लड़की जिससे वह हायबन्द की शादी करने जा रहा था वह तो एक राक्षसी थी और आदमियों को खा जाने वाली थी। हायबन्द का पिता यह सुन कर सोच में पड़ गया। अब वह क्या करे। शादी की घड़ी आ रही थी और सब लोग दुलहे के इन्तजार में थे।

जब हायबन्द अपनी ससुराल पहुँचा तो उसके सास ससुर ने उसको ठीक से देखा भाला और जब उन्होंने उसको कुछ सोया सोया सा खोया खोया सा और बेवकूफी की हालत में पाया तो उनको लगा कि वे दोनों लड़के सही बोल रहे थे। सो उन्होंने उसको अपनी बेटी देने से इनकार कर दिया।

पर वह लड़की जिससे हायबन्द की शादी होने वाली थी और जिसका नाम ज़ोहरा खातून था बहुत होशियार और अक्लमन्द थी। उसको लगा कि इसमें उन लोगों की कोई जाल बिछाने की साजिश है।

उसने अपने पिता को मजबूर किया कि वह उसकी शादी हायबन्द से ही कर दें। उसको पूरा विश्वास था कि हायबन्द के पिता इतने सीधे और ईमानदार आदमी थे कि उनको बेवकूफ बनाना बहुत आसान था। खैर शादी की सारी रस्में पूरी की गयीं और उन दोनों की शादी हो गयी।

शाम तक उन दवाओं का असर कम होने लगा तो हायबन्द को होश आने लगा। होश में आने पर उसने अपनी पत्नी को पहचान लिया और उसका साथ पा कर बहुत खुश हुआ।

कुछ दिन बाद रीति रिवाजों के अनुसार हायबन्द और उसकी पत्नी अपने घर वापस लौटे। रास्ता थोड़ा लम्बा था सो उन्होंने उसको दो बार में पूरा करने का इरादा किया। आधे रास्ते में पहुँच कर उन्होंने एक गाँव में रात को रुकने का फैसला किया।

जब ज़ोहरा सोने चली तो अचानक उसे याद आया कि वह अपनी सास के लिये तो कोई भेंट लायी नहीं है। पर अब वह क्या करे। ससुराल में खाली हाथ जाना तो ठीक बात नहीं थी। वह बहुत दुखी हुई पर फिर किसी तरह से उसे नींद आ गयी।

जब वह सो रही थी तो उसने सपना देखा कि एक बहुत गुणी सा आदमी उसकी तरफ बढ़ा चला आ रहा था। उसके पास आ कर वह उससे बोला — “ओ भली लड़की। तू दुखी मत हो। तू नदी के पास जा। वहाँ तुझे एक लाश पानी पर तैरती मिल जायेगी जिसकी बाँह पर एक बहुत कीमती बे्रसलैट है। तू उस लाश को पुकारना तो वह तेरा कहा मानेगी और तेरे पास आ जायेगी। तू उसका वह ब्रेसलैट उतार लेना और अपनी सास को दे देना।”

यह अजीब सा सपना देख कर उसकी आँख खुल गयी। वह तुरन्त उठी और नदी की तरफ चल दी। वहाँ जा कर उसने देखा कि उससे थोड़ी ही दूर पर एक लाश तैर रही थी। उसने उसको पुकारा तो वह उसके पास आ गयी। उसने उसके हाथ से ब्रेसलैट उतारा और अपने घर आ कर सो गयी।

सिवाय उन दोनों नीच लड़कों की नीचता के सब कुछ ठीक चलता रहता पर उन्होंने यह सब कुछ देख लिया था और यही था भी जो वह चाहते थे। उनको बस किसी भेड़ का खून नदी की तरफ जाने वाले रास्ते पर और नदी के किनारे पर छिड़कना था और फिर भाग कर अपने मालिक सौदागर के पास उसको यह बताने जाना था कि उनकी बहू किस तरह से बरताव कर रही थी।

उन्होंने ऐसा ही किया। सौदागर तुरन्त ही उनके पीछे पीछे भागा आया। जब उसने खून के निशान देखे तो वह ऐसे रो पड़ा जैसे कोई मरने वाला रोता है। सुबह को वह अपने बेटे के पास गया और उसको वह सब बताया जो उसने सुना और देखा पर उसके बेटे को उसका विश्वास ही नहीं हुआ और वह अपने पिता से बहुत नाराज हो गया।

सुबह को पूछने पर दाई ने बताया कि आधी रात के करीब उसकी मालकिन कुछ देर के लिये घर के बाहर गयी तो थी लेकिन वह बाहर गयी क्यों थी यह उसको नहीं पता।

हायबन्द को यह सुन कर बहुत आश्चर्य हुआ और उसको इस नीच कहानी पर विश्वास करना पड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि वह अपनी पत्नी से अलग अलग रहने लगा। सारी बारात दुखी सी सौदागर के घर वापस आयी। ज़ोहरा को एक अलग कमरे मे ं रख दिया गया जहाँ केवल उसकी दाई ही जा सकती थी और कोई नहीं।

एक दिन ज़ोहरा की सास ने दरवाजे की झिरी से ज़ोहरा के कमरे में झाँक कर देखा तो वह तो वहाँ का दॄश्य देख कर डर के मारे बेहोश होते होते बची।

इस तरह काफी समय बीत गया। इस बीच हायबन्द अपने उन दोनों नीच दोस्तों के साथ पिता के बिजनेस में उनकी सहायता करता रहा। वह अभी भी उन दोनों को अपना दोस्त ही समझता था। एक दिन सौदागर ने उन तीनों को एक छोटे से व्यापार के लिये शहर से बाहर भेजा। उसने ऐसा इसलिये किया था क्योंकि उसने देखा कि हायबन्द अपनी पत्नी के लिये बहुत दुखी था। तो उसने सोचा कि इससे शायद उसका मन कुछ बदल जाये।

तीनों नौजवान अपनी यात्रा पर चल दिये। वे कई मील चले कि हायबन्द को अचानक याद आया कि वह अपने हिसाब की कापियाँ तो घर पर ही भूल आया है। वह उनको लेने के लिये घर वापस लौटा और अपने दोस्तों से यह वायदा किया कि वह शाम तक लौट कर उनको पकड़ लेगा।

ये हिसाब की कापियाँ ज़ोहरा के कमरे में रखी हुई थीं। वे वहाँ थी ही क्यों यह तो हमको नहीं पता पर वे वहाँ थीं सो घर लौट कर हायबन्द तुरन्त ही ज़ोहरा के कमरे की तरफ दौड़ा। वहाँ उसने अपनी पत्नी को देखा। वह दुखी होने पर भी बहुत सुन्दर दिखायी दे रही थी बहुत अच्छी और बहुत प्यारी।

हायबन्द अपने आपको रोक न सका उसने उसको अपनी तरफ खींच कर गले लगा लिया और चूम लिया। वह उसके पास छिप कर एक महीने तक रहा और फिर वहाँ से यह देखने के लिये अपने साथियों के पास चला गया कि उनका और उनके सामान का क्या हुआ।

उसने उनको पहले पड़ाव पर ही पाया जहाँ उसने उनसे मिलने का वायदा किया था। वे वहाँ से कहीं गये भी नहीं थे और न ही कोई चीज़ उन्होंने बेची ही थी। वे तो बस वहाँ खा पी कर और जुआ खेल कर आनन्द कर रहे थे।

हायबन्द ने जब यह सब देखा तो वह बहुत नाराज हुआ। उसने उन दोनों को बहुत डाँटा और वह वहाँ से अकेला ही व्यापार करने चल दिया। ये दोनों बेचारे घर वापस लौट आये।

अब ये दोनों भी हायबन्द से बहुत नाराज थे सो इन्होंने उसके साथ चाल खेलने की सोची। इन दोनों दोस्तों ने एक फकीर का वेश रखा और सौदागर के घर पहुँचे।

वहाँ जा कर बोले — “आप समय रहते सँभल जाइये। आपके घर में एक राक्षसी है जिसको बच्चे की आशा हो गयी है। उसका चरित्र ठीक नहीं है। भगवान के लिये अपने लिये आप उसको घर से बाहर निकाल दीजिये कहीं ऐसा न हो कि वह आपके घर को और आस पास के लोगों को बरबाद कर दे।” यह कह कर वे वहाँ से चले गये।

अब हम केवल सोच ही सकते हैं कि जब सौदागर और उसकी पत्नी ने फकीरों के मुँह से ऐसी बात सुनी होगी तो उसका उन पर क्या और कितना असर हुआ होगा। यह सुन कर तो वे चैन से ही नहीं बैठे जब तक उन्होंने इस बात की सच्चाई की पता नहीं कर ली।

उन्होंने अपना पूरा घर छान मारा घर की हर स्त्री से पूछा पर जैसा कि फकीरों ने उनसे कहा था वैसा कुछ भी नहीं पाया। तब वे इस सच्चाई का पता लगाने के लिये ज़ोहरा के पास खुद गये। वहाँ उनको पता चला कि उसको तो वाकई बच्चे की आशा थी। उसने उनको बहुत समझाने की कोशिश की कि वह कोई राक्षसी नहीं थी बल्कि एक गुणवती स्त्री थी पर सब बेकार। सौदागर ने अपने दीवान को बुला भेजा और उससे उसको सजा देने के लिये कहा।

सजा में उसको जंगल ले जाना था जहाँ उसका सिर काट देना था। ऐसा ही हुआ। जंगल पहुँच कर उसने अपने सजा देने वालों से प्रार्थना की कि वे उस पर दया करें।

वह बोली — “आप लोग इतने बेरहम और अन्यायी नहीं हो सकते कि आप एक सीधी सादी स्त्री का कत्ल करें। मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है जिसके लिये मुझे मौत की सजा मिले। और न आप मेरे खिलाफ कुछ साबित कर सकते हैं। क्या अब भी आप मेरा कत्ल करेंगे?”

वे बोले — “हम क्या करें हमें ऐसा ही हुकुम मिला है।”

इस पर ज़ोहरा जमीन पर नीचे लेट गयी और भगवान की प्रार्थना करने लगी — “हे भगवान मुझ पर दया कर। तू तो जानता है कि मैंने कोई पाप नहीं किया है। मुझे इस सजा से बचा।”

एक सिपाही आगे बढ़ा और उसने ज़ोहरा को मारने के लिये अपनी तलवार उठायी तो लो देखो वह तलवार तो लकड़ी की हो गयी। तब दूसरे सिपाही ने अपनी तलवार उठायी तो वह अपने हाथ ही नहीं उठा सका। उसको ऐसा लगा जैसे किसी छिपी हुई ताकत ने उसके हाथ उसके पीछे बाँध दिये हों। इसके बाद तीसरा आदमी अपनी तलवार उठा कर आगे बढ़ा तो वह बेहोश हो कर नीचे गिर गया।

इस तरह भगवान ने उस स्त्री की पुकार सुनी और उन दोनों दोस्तों के नीच इरादों को नाकामयाब कर दिया। जब सिपाहियों ने यह देखा तो उनको यह विश्वास हो गया कि वे भगवान की इच्छा के खिलाफ काम कर रहे थे।

वे बोले — “हम तुम्हें नहीं मारेंगे। पर हम तुमसे प्रार्थना करते हैं कि अब तुम हमें यह बताओ कि हम अपने आप को कैसे बचायें। क्योंकि जब सौदागर और दीवान साहब को पता चलेगा कि हमने उनका हुकुम नहीं माना और तुम्हें नहीं मारा तो वे हमसे नाराज हो जायेंगे और हमको सजा देंगे। हमारे लिये तो उनका यही हुकुम था कि हम तुम्हें मार दें और तुम्हारा सिर ले जा कर उनको दे दें।”

ज़ोहरा खातून बोली — “आप डरें नहीं।” कह कर उसने जमीन पर से कुछ मिट्टी उठाई और उसका एक सिर बनाती हुई बोली — “मैं इस मिट्टी का अपने सिर जैसा एक सिर बनाती हूँ।” सिर बना कर उसने भगवान से प्रार्थना की कि वह इसको माँस और खून का बना दे। भगवान ने उसकी प्रार्थना सुनी। वह मिट्टी का सिर एक जीते जागते हाड़ माँस का सिर बन गया और उससे खून टपकने लगा।

वह सिर वह उन सिपाहियों को दे कर बोली — “लीजिये यह सिर ले जा कर आप सौदागर साहब को दे दीजियेगा।” सिपाहियों ने वह सिर लिया और घर वापस लौट गये। सौदागर ने जब वह सिर देखा तो वह बहुत खुश हुआ। उसने उसे बाहर अपने बागीचे में टाँग दिया।

ज़ोहरा खातून कुछ दिन तक जंगल में ही रहती रही और वहाँ जो भी फल सब्जियाँ मिले वे खाती रही। कुछ दिन बाद उसने वहाँ से जाने का विचार किया तो उसने एक पेड़ से कहा कि वह हायबन्द का पता करे और उसको बताये कि उसकी पत्नी कहाँ गयी।

फिर वह दूसरे देश चल दी। वहाँ जा कर वह एक बूढ़ी विधवा स्त्री से मिली और उसी के घर ठहर गयी। दिन में वह लकड़ियाँ और कुछ और चीज़ें चुनने जाती जिनको वह शाम को बाजार में बेच आती। रात को वह उस बुढ़िया के घर में सो जाती। समय आने पर उसने एक सुन्दर से बेटे को जन्म दिया।

इत्तफाक की बात कि उसी समय वहाँ की रानी को भी बच्चा होने वाला था। वह प्रार्थना कर रही थी कि उसके बेटा हो जाये क्योंकि राजा ने उसको धमकी दी थी कि अगर उसके बेटा नहीं हुआ तो वह उसको मरवा देगा। इसलिये उस बेचारी को बहुत चिन्ता लगी थी।

उसने शाही दाइयों को बुलवा कर पूछा भी कि उसके बेटा होगा कि नहीं। पर सबने मना कर दिया कि नहीं उसके बेटा नहीं होगा। उन्होंने उसको सलाह दी कि वह कोई हाल का जन्मा बेटा ले ले और वह बेटी जो वे सोचती थीं कि उसको होगी उसको किसी को दे दे।

रानी ने उनकी सलाह मान ली और एक नये जन्मे लड़के को ढूँढने के लिये सब जगह अपने दूत भेज दिये। उन दूतों में से एक दूत उस बूढ़ी विधवा के घर भी आया। उसने जब वह नया जन्मा बेटा वहाँ देखा तो उससे रानी के लिये उसको उसे बेचने की प्राथना की।

वह बुढ़िया बहुत लालची थी सो वह राजी हो गयी। उसने उस बच्चे को उस आदमी को दे दिया और वह दूत उस बच्चे को रानी के पास ले गया। जब रानी के बच्चा हुआ तब बच्चे के जन्म की खबर फैलायी गयी। सारे देश में खूब खुशियाँ मनायी गयीं।

उधर जैसे ही दूत ज़ोहरा के बेटे को ले कर गया बुढ़िया ने कुछ पत्थर इकट्ठा किये और उनमें से एक बड़ा पत्थर वहाँ रख दिया जहाँ ज़ोहरा का बच्चा सोता था और बाकी बचे पत्थर एक आलमारी में रख दिये।

जब ज़ोहरा वापस लौटी तो उसने उससे कहा कि कोई दैवीय स्त्री वहाँ आयी थी जिसने उस बच्चे को पत्थर में बदल दिया जैसे कि उसने उसके पहले कई बच्चों के साथ किया था। इसको साबित करने के लिये उसने उसको आलमारी में रखे हुए वे बचे हुए पत्थर दिखलाये जो उसने वहाँ पहले से ही रखे हुए थे। उसने उसको यह भी बताया कि वह राक्षसी साल में वहाँ एक बार आती थी। बेचारी ज़ोहरा खातून अपने बच्चे के इस तरह खो जाने पर बहुत दुखी हुई बहुत रोई। पहले तो उसका पति चला गया और अब उसका बच्चा भी चला गया। वह तो बस अब मरना चाहती थी। यह दुनियाँ उसके लिये बहुत ही खराब और मुश्किल वाली लगी। वह अब किसके लिये जिये।

उसकी ज़िन्दगी दूभर हो गयी थी वह बस दिन में लकड़ी और फल जैसी चीज़ें इकट्ठी करके लाती और हर रात को उस नीच बुढ़िया के अजीब से घर में लौट आती जिसमें उसको बिल्कुल भी आराम नहीं मिलता था।

इस बीच उसका बेटा यानी राजकुमार बड़ा होता रहा। वह एक बहुत ही चतुर और गुणी नौजवान बन गया। अपना काम करते समय अक्सर वह इस बुढ़िया विधवा के घर के पास से गुजरता।

एक दिन शाम को जब वह उस बुढ़िया के घर के पास से गुजर रहा था तो उसने ज़ोहरा को देखा जो अपना दिन का काम खत्म करके घर लौट रही थी। वह उसकी सुन्दरता देख कर चकित रह गया। उसने यह भी देख लिया कि वह कहाँ रहती थी।

जब वह महल लौटा तो राजा के पास गया और उस स्त्री से अपनी शादी करने की प्रार्थना की। राजा ने कहा कि वह उसके बारे में सोचेगा। उसने ज़ोहरा खातून को अपने महल में बुलाया। वह खुद भी उसकी सुन्दरता और सीधेपन से बहुत प्रभावित हुआ। उसने उससे अपने बेटे के प्यार की बात बतायी और उससे पूछा कि क्या वह उससे शादी करना पसन्द करेगी।

इस पर उसने जवाब दिया कि वह तो पहले से ही शादीशुदा है। उसको यह भी पता नहीं है कि उसका पति ज़िन्दा है या मर गया है। वह फिर बोली कि अगर उसको अगले छह महीने तक अपने पति की कोई खोज खबर न मिली तो वह राजकुमार से शादी कर लेगी। राजा ने उसकी बात मान ली और इस तरह से यह मामला कुछ दिनों के लिये टल गया।

उस सारे साल और कई और साल तक हायबन्द व्यापार के उद्देश्य से दुनियाँ में देश देश घूमता रहा। आखिर इसी समय के आस पास वह एक बहुत ही अमीर आदमी बन कर अपने घर लौटा। उसने सोचा था कि उसको अपनी पत्नी अपने घर में ही मिल जायेगी क्योंकि अब तक वह अच्छी साबित हो गयी होगी और उसके घर वालों ने उसको स्वीकार कर लिया होगा।

पर हम उसके दुख की केवल कल्पना ही कर सकते हैं जब उसको घर आ कर यह पता चला होगा कि उसकी पत्नी के साथ क्या क्या हुआ। उसने अपने माता पिता से पूछा कि उसको मारने वाले उसे किधर ले कर गये थे और कहाँ उन्होंने उनके बेरहम हुकुम का पालन किया होगा।

उन्होंने उसको सब बता दिया तो उसने उसी समय अपनी कुछ चीज़ें बाँधी और उसी दिशा में चल दिया जहाँ उसको उसके मारने वाले ले कर गये थे। भगवान की कॄपा से वह उसी जंगल में आ पहुँचा जहाँ ज़ोहरा को मारा जाने वाला था और उसी पेड़ के पास पहुँच गया जिससे ज़ोहरा ने अपने पति को अपने बारे में बताने के लिये कहा था।

पेड़ बोला — “तुम्हारी पत्नी मरी नहीं है। तुम्हारी पत्नी तो ज़िन्दा है। जो सिर तुम्हारे पिता के पास ले जाया गया था वह तुम्हारी पत्नी का सिर नहीं था। तुम तुरन्त ही फलाँ फलाँ देश चले जाओ वह तुम्हें वहीं मिल जायेगी जिसे तुम ढूँढ रहे हो। जाओ अल्लाह तुम्हारी रक्षा करे।”

कुछ दिनों की यात्रा के बाद हायबन्द उस देश पहुँच गया और एक सुबह जब वह उस देश के मुख्य शहर के बाजार में घूम रहा था तो उसने कुछ स्त्रियाँ उस बुढ़िया के घर कुछ सामान ले जाती हुई देखीं।

उसने उनसे पूछा — “यह सामान किसके लिये है और इसे तुम लोग कहाँ ले कर जा रही हो।”

उनमें से एक स्त्री ने उसको बताया कि वहाँ एक स्त्री रहती थी जिसका नाम ज़ोहरा खातून था। उसकी शादी वहाँ के राजकुमार से होने वाली है वे ये सामान उसी की शादी के लिये ले कर जा रही हैं। क्योंकि वह बहुत गरीब है इसलिये राजा ने उसकी शादी के लिये ये कपड़े और गहने भिजवाये हैं। वह कुछ साल पहले किसी दूसरे देश से यहाँ पर आयी थी।”

यह सुन कर हायबन्द ने उस स्त्री को अपना नाम लिखी एक अँगूठी दी और उससे प्रार्थना की कि वह उसे उसको दे दे। वह उनके साथ उसके घर के दरवाजे तक जायेगा और बाहर उसके जवाब का इन्तजार करेगा।

उस स्त्री ने ऐसा ही किया। ज़ोहरा ने तुरन्त ही हायबन्द की अँगूठी पहचान ली। वह दौड़ी दौड़ी बाहर आयी और बहुत दिनों से खोये हुए अपने पति से मिली। यह खबर तुरन्त ही महल भेज दी गयी कि उसको उसका पति मिल गया है।

राजा यह सुन कर बहुत नाउम्मीद हुआ पर राजकुमार तो बिल्कुल पागल सा ही हो गया। वह अपने पागलपन में दौड़ा दौड़ा ज़ोहरा के घर गया और अपनी पूरी कोशिश की कि वह उसके साथ उसके महल चले। पर जैसे ही ज़ोहरा ने उसे देखा तो वह उसको तुरन्त ही पहचान गयी कि वह उसका बेटा है।

सब कुछ साबित हो गया। रानी ने स्वीकार कर लिया कि वह उसका बेटा नहीं था। बूढ़ी विधवा ने भी स्वीकार कर लिया कि वह बच्चा उसने राजा के आदमियों को बेचा था। उस दूत ने भी स्वीकार कर लिया कि वह राजकुमार को उस बुढ़िया के घर से खरीद कर ले गया था।

पर इन सबके अलावा जो सबसे बड़ी बात थी वह यह थी कि राजकुमार की शक्ल अपने माता पिता से बहुत मिलती थी।

राजा ने जब यह सब सुना तो वह तो बहुत गुस्सा हुआ। उसने तुरन्त ही अपनी रानी को देश निकाला दे दिया और उस बूढ़ी विधवा को मरवा दिया। हायबन्द और उसकी पत्नी अपने बेटे के साथ अपने देश वापस लौट आये जहाँ वे बहुत दिनों तक खुशी खुशी रहे।

(सुषमा गुप्ता)

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