हवामहल : तमिल लोक-कथा
Hawamahal : Lok-Katha (Tamil)
तमिलनाडु की लोककथाओं में दादा-दादी, नाना-नानी की कहानियाँ भी आती हैं। उन्हीं में से एक है उक्त कथा ‘हवामहल’। इस प्रकार की लोककथाओं में नीतिपरक बातें होती हैं। बच्चों में संस्कार पैदा करना एवं उन्हें आदर्श की बातों का ज्ञान कराना इस प्रकार की कथाओं का प्रमुख उद्देश्य है।
बहुत पुराने समय की बात है, दादा-परदादा उनके दादा के समय, एक छोटे से गाँव में सुंदर बालिका रहती थी। उसका नाम अर्चना था। पहाड़ी इलाका था, वहाँ रहने वाले हर जीव-जंतु से वह प्यार करती थी। सबकी सहायता करनेवाली दयालु बालिका थी। वह हमेशा खुश रहती थी। एक दिन अपने कपड़ा सुखाने के लिए रस्सी पर डाल रही थी कि एक हवा का झोंका आया और पकड़े उड़ाकर ले गया। अर्चना अपना दुपट्टा को पकड़ने के लिए उसके पीछे-पीछे दौड़ी। बहुत दूर भागते-भागते वह बेचारी थक जाती है। चिल्ला-चिल्लाकर कहती है—
‘मेरे पास एक ही ओढ़नी है। रुक जाओ! वापस आ जाओ। नहीं तो रात भर मुझे ठंड में कष्ट सहना होगा।’
अर्चना अपनी ओढ़नी पकड़ने के लिए पीछे-पीछे भागती रही। पहाड़ की चोटी तक पहुँच गई। वहाँ उसने एक खूबसूरत महल देखा। महल के द्वार पर पवन देवी का दर्शन किया। वह ओढ़नी को माँगने अंदर गई। उस देवी ने अर्चना को देखकर उसका स्वागत किया।
‘मैं वायु देवी हूँ।’
‘तब अर्चना ने विनती की—
‘हे देवी! हवा के बहाव में मेरी ओढ़नी यहाँ आ गई। कृपया मुझे वापस कर दीजिए।’
देवी हँसी और प्यार से उसे अंदर ले गई। एक दिव्य कमरे में अर्चना ने तरह-तरह के पकवान देखे। देवी ने उससे कहा,
‘बेटी, तुम थक गई हो। पहले कुछ खा लो। बिना संकोच के तुम कुछ भी ले सकती हो। खा लो बेटी, खा लो।’
अर्चना ने इनकार कर दिया। वायु देवी उसे दूसरे कमरे में ले गई, जहाँ ढेर सारी पेटी रखी हुई थी। वायु देवी ने अर्चना से कहा, ‘बेटी, इन पेटियों में, सोना, चाँदी, हीरा, और तरह-तरह के आभूषण-जवहरात है, तुम जो चाहो उठा लो। इन पेटियों में तुम्हारी ओढ़नी भी है, परंतु तुम जिसे समझती है कि इस पेटी में मेरी ओढ़नी अवश्य होगी, उसे तुम उठा कर ले जा सकती हो, परंतु शर्त है कि उस पेटी को तुम यहाँ नहीं खोलोगी, घर में जाकर तुम्हें खोलनी पड़ेगी।
अर्चना ने एक-एक पेटी उठा कर उसका वजन देखा और जो सबसे हल्का था, उस पेटी को लेकर, देवी माँ को धन्यवाद देती हुई वहाँ से प्रस्थान किया।
घर आकर जब अर्चना ने पेटी को खोला तो उसमें उसकी ओढ़नी थी और उसके नीचे ढेर सारा आभूषण और सोना भी था। अर्चना खुश हो गई। और वायु देवी को ओढ़नी वापस करने के लिए मन-ही-मन धन्यवाद दिया।
अर्चना के सामने वाले घर में एक महत्त्वाकांक्षी सहेली रहती थी। नाम था पावना। जब उसे सारी घटना का पता चला, वह लालच में पड़ गई और सोचने लगी, यदि उसके साथ ऐसा हुआ होता तो आज उसके पास ढेर सारा सोना, चाँदी, हीरा, सबकुछ होता। ऐसा सोचकर उसने दूसरे दिन अपनी ओढ़नी सुखाने के लिए रस्सी पर डालने गई। उस दिन भी हवा के बहाव में पावना की ओढ़नी उड़ गई। वह पीछे-पीछे दौड़ी और पहाड़ की चोटी में उस हवामहल तक पहुँच गई। वहाँ वायु देवी ने उसका भी स्वागत किया और प्यार से अंदर आने को कहा।
पावन ने क्रोधित स्वर में आज्ञा देते हुए कहा, ‘हवा के झोंके से मेरी ओढ़नी यहाँ चली आई है। तुरंत उसे वापस किया जाए। नहीं तो, मैं इस विशाल महल को जला दूँगी।’
वायु देवी ने उसे सांत्वना देते हुए बहुत प्यार से अंदर बुलाया और कहा, 'क्रोध न करो बेटी, पहले कुछ खा लो, बहुत थक गई हो तुम दौड़ते-दौड़ते।'
पावना उस दिव्य महल में ढेर सारे पकवानों को देखकर खाने का लालच किया। और सब में से थोड़ा-थोड़ा चखकर उसी में रखती चली गई और जो पसंद आया, वह भर पेट खा लिया। उसके बाद देवी उसे दूसरे कमरे में ले गई, जहाँ ढेर सारी पेटियाँ रखी हुई थीं। उसने पावना से कहा, 'बेटी, तुम इन पेटियों में से जो चाहो ले जा सकती हो, परंतु तुम्हें अपने घर जाकर ही इसे खोलना होगा। तुम्हारी ओढ़नी भी इसी में है।'
पावना ने सभी पेटी को उठा-उठा कर वजन देखा और जो सबसे भारी लगी, उस पेटी को उठा लिया और धन्यवाद देती हुई घर की ओर चल पड़ी। वह बहुत भारी पेटी थी, उठाने में कष्ट भी हो रहा था। घर पहुँचकर अर्चना जैसे ही अपनी पेटी को पावना ने खोला, तो उसकी ओढ़नी वहाँ थी, और उसके नीचे, ईंटों का ढेर था। वह क्रोध में चिल्ला उठी-'क्या इतने कष्ट के साथ मैं ईंटों का ढेर उठाकर लाई हूँ? यह अन्याय है!'
पावना को अपने लालच का फल मिल गया। कभी भी दूसरों की प्रगति को देखकर जलना नहीं चाहिए।
(साभार : डॉ. ए. भवानी)