हाथी दाँत का शहर और उसकी सुन्दर राजकुमारी : कश्मीरी लोक-कथा

Hathi Dant Ka Shehar Aur Uski Rajkumari : Lok-Katha (Kashmir)

एक बार की बात है कि एक राजकुमार शिकार खेलने के लिये अपने पिता के वजीर के बेटे के साथ बाहर गया। तो इत्तफाक से उसका तीर एक सौदागर की पत्नी को लग गया। उस सौदागर का घर पास में ही था और उसकी पत्नी उस समय ऊपर वाले कमरे में थी।

राजकुमार ने वह तीर उस मकान की खिड़की की दीवार पर बैठी एक चिड़िया को मारा था पर वह तीर जा कर सौदागर की पत्नी को लग गया। राजकुमार को पता ही नहीं था कि उस कमरे में कोई था वरना वह तीर उस तरफ मारता ही नहीं।

यह न जानते हुए कि वहाँ क्या हुआ था राजकुमार और वजीर का बेटा दोनों वहाँ से चले आये। वजीर का बेटा राजकुमार को तसल्ली देता चला आ रहा था क्योंकि उससे निशाना चूक गया था। इत्तफाक से उसी समय सौदागर अपनी पत्नी से कुछ पूछने गया तो उसने उसको फर्श पर लेटे पाया। देखने में वह मरी जैसी लग रही थी और एक तीर उसके सिर से आधा गज की दूरी पर पड़ा हुआ था।

उसको मरा जान कर वह खिड़की की तरफ दौड़ा और चिल्लाया “चोर चोर। उन्होंने मेरी पत्नी को मार दिया।”

उसका चिल्लाना सुन कर तुरन्त ही पड़ोसी वहाँ इकट्ठा हो गये उधर उसके नौकर भी यह देखने के लिये ऊपर आ गये कि क्या मामला था। हुआ यह था कि वह स्त्री मरी नहीं थी केवल बेहोश हो गयी थी। बस उसकी छाती पर एक छोटा सा घाव था जहाँ राजकुमार का तीर छू कर नीचे गिर गया था।

जैसे ही वह होश में आयी तो उसने बताया कि बाहर दो आदमी थे जिनके हाथों में तीर कमान थे। और जब वह खिड़की के पास खड़ी हुई थी तो उनमें से एक ने उसकी तरफ जानबूझ कर उसके ऊपर तीर चलाया था।

यह सुन कर सौदागर राजा के पास गया और जो कुछ हुआ था जा कर उसको बताया। इस बुरे काम को सुन कर राजा बहुत गुस्सा हुआ और बोला कि पता चल जाने पर वह अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा देगा। उसने सौदागर को वापस भेज दिया कि वह उससे यह पूछ कर उसे बताये कि अगर उसने अपराधी को देखा तो क्या वह उसको पहचान सकेगी।

सौदागर की पत्नी ने जवाब दिया “यकीनन। मैं उसको शहर भर के सब आदमियों में पहचान सकती हूँ।”

सौदागर जब यह जवाब ले कर राजा के पास पहुँचा तो राजा ने कहा — “मैं कल तुम्हारे घर के सामने से इस शहर के सारे आदमियों को जाने के लिये कहूँगा। तुम अपनी पत्नी को अपनी खिड़की के पास खड़ी रहने को कहना ताकि जब यह नीच काम करने वाला वहाँ से गुजरे तो वह उसको पहचान ले।”

अगले दिन इस बात का शाही फरमान निकलवा दिया गया कि शहर के सारे आदमी उस सौदागर के मकान की खिड़की के सामने से हो कर गुजरें। सो सब आदमी जो दस साल से ऊपर के थे एक जगह इकट्ठा हुए और लाइन बना कर सौदागर के घर की खिड़की के पास से गुजरे।

हालाँकि राजकुमार और वजीर का बेटा दोनों ही को इस जुलूस में शामिल नहीं किया गया था पर इत्तफाक से वे दोनों भी भीड़ के साथ उसी समय वहाँ से गुजरे। वे लोग वहाँ तमाशा देखने के लिये आये थे।

जैसे ही वे दोनों उसकी खिड़की के सामने से गुजरे सौदागर की पत्नी ने उन्हें पहचान लिया और राजा को जा कर बताया। राजा शुरू से ही लोगों के जाते हुए देख रहा था आश्चर्य से बोला — “क्या मेरा अपना बेटा और मेरे वजीर का बेटा? इन लोगों ने दूसरों के लिये यह क्या उदाहरण रखा है। इन दोनों को सजा मिलनी चाहिये।”

वजीर बोला — “सरकार ऐसा मत कीजिये। मैं आपसे प्राथना करता हूँ। इस मामले की पहले ठीक से जाँच होनी चाहिये कि ऐसा कैसे हुआ उसके बाद ही कुछ विचार कीजियेगा।”

फिर वह दोनों नौजवानों की तरफ देखता हुआ बोला — “तुमने ऐसा बेरहम काम कैसे किया?”

जवाब राजकुमार ने दिया — “मैंने अपना तीर एक चिड़िया को मारने के लिये चलाया था जो एक खुली हुई खिड़की की दीवार पर बैठी थी। मेरा निशाना चूक गया। मुझे ऐसा लगता है कि शायद उस खिड़की के पास इस सौदागर की पत्नी खड़ी होगी तो वह तीर उसको जा कर लग गया।

अगर मुझे पता होता कि यह स्त्री या कोई और वहाँ खड़ा है तो मैं उस दिशा में तीर चलाता ही नहीं।”

यह जवाब सुन कर राजा बोला — “ठीक है इस बात पर हम बाद में बात करेंगे। शहर के सब लोगों को जाने दो। अब उनकी हमें यहाँ कोई जरूरत नहीं है।”

शाम को राजा और वजीर दोनों अपने अपने बेटों के बारे में बहुत देर तक बात करते रहे। राजा यह चाहता था कि दोनों को सजा दी जाये पर वजीर का सोचना यह था कि सजा केवल राजकुमार को ही मिलनी चाहिये।

और उसने यह राजा से कहा भी क्योंकि राजा को इस बात पर इतना गुस्सा आ रहा था कि वह अपने बेटे का चेहरा फिर कभी देखना नहीं चाहता था इसलिये राजकुमार को देश निकाला दे दिया जाये। फिर आखीर में यही फैसला हुआ और राजकुमार को देश निकाला दे दिया गया।

अगले दिन कुछ सिपाही राजकुमार को शहर के बाहर छोड़ने गये। जब वे राज्य की सीमा के पास पहुँच गये तो वजीर का बेटा भी वहाँ पहुँच गया। वह बहुत जल्दी में आया था। उसके साथ चार घोड़ों पर सोने की मुहरों के चार थैले थे।

वह राजकुमार के गले में अपनी बाँहें डाल कर बोला — “मैं आ गया हूँ मेरे दोस्त। मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा क्योंकि मैं तुम्हें अकेला नहीं जाने दे सकता। हम लोग साथ साथ रहे हैं तो हम साथ साथ ही देश से बाहर भी जायेंगे और साथ साथ मरेंगे। अगर तुम मुझे प्यार करते हो तो मेहरबानी करके मुझे वापस मत भेजना।” राजकुमार बोला — “एक बार फिर सोच लो मेरे दोस्त कि तुम क्या कर रहे हो। मुझे कई मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है। तुम मेरे साथ अपना देश और अपना घर क्यों छोड़ना चाहते हो?”

वजीर का बेटा बोला — “क्योंकि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हारे बिना कभी खुश नहीं रह सकता।”

सो दोनों दोस्त यानी राजकुमार और वजीर का बेटा हाथ में हाथ डाले देश की सीमा से बाहर निकलने के लिये जल्दी जल्दी चल दिये। अपने पिता के राज्य की सीमा पर पहुँच कर राजकुमार ने सिपाहियों को कुछ सोना दिया और उनसे वापस लौट जाने के लिये कहा। सिपाहियों ने राजकुमार से पैसा लिया और वापस लौट गये। पर वे वहाँ से बहुत दूर नहीं गये बल्कि कुछ चट्टानों और झाड़ियों के पीछे छिप गये ताकि वे यह बात यकीन के साथ कह सकें कि राजकुमार वापस नहीं आया।

दोनों दोस्त चलते रहे और एक गाँव में आ पहुँचे। वह रात उन्होंने वहाँ लगे एक बड़े से पेड़ के नीचे बिताने की सोची। राजकुमार ने आग जलाने की तैयारी की और सोने के लिये बिस्तर तैयार किया जिसे वे अपने साथ ले कर आये थे।

और वजीर का बेटा शाम के खाने का इन्तजाम करने के लिये एक बनिये की एक डबल रोटी बनाने वाले की और एक कसाई की दूकान पर गया। किसी वजह से उसे कुछ देर हो गयी।

या तो डबल रोटी तैयार नहीं थी या फिर बनिये के पास सारे मसाले नहीं थे। करीब आधे घंटे तक इन्तजार करने के बाद राजकुमार का धीरज छूट गया तो वह उठा और उठ कर टहलने लगा और गाँव के बाजार की तरफ देखने लगा।

उसने देखा कि उनके पेड़ के पास से ही एक बहुत साफ सा नाला बह रहा था। उसकी आवाज सुन कर राजकुमार को लगा कि उसको स्रोत वहाँ से ज़्यादा दूर नहीं था तो वह उसके स्रोत को ढूँढने चल दिया।

आगे चल कर उसने देखा कि वह नाला एक बहुत बड़ी झील में से निकल रहा था। उस समय वह झील कमल के फूलों और कई तरह के पानी के पौधों से भरी हुई थी। राजकुमार उस झील के किनारे बैठ गया और क्योंकि उसको प्यास लगी थी सो पीने के लिये उसने अपने दोनों हाथों में झील का पानी लिया।

खुशकिस्मती से उस पानी को पीने से पहले उसने उसे देखा तो उसको उस पानी में एक बहुत ही सुन्दर परी की परछाईं दिखायी दी। उसने उसको सचमुच में देखने के लिये चारों तरफ देखा तो उसने एक परी को झील के दूसरे किनारे पर बैठा देखा। उसको देख कर तो वह बेहोश हो कर गिर पड़ा।

उधर जब वजीर का बेटा बाजार से लौटा तो उसने देखा कि आग जली हुई थी घोड़े सुरक्षित बँधे हुए थे मुहरों के थैले भी एक ढेर में पड़े हुए थे पर राजकुमार का कोई पता नहीं था। उसकी यह भी समझ में नहीं आया कि वह क्या करे उसको कहाँ ढूँढे।

उसने कुछ देर तो इन्तजार किया फिर उसने उसको पुकारना शुरू किया। उसका भी कोई जवाब न पा कर वह उठा और नाले के पास चला गया। वहाँ जा कर उसको राजकुमार के पैरों के निशान मिल गये।

यह देख कर वह वहाँ से लौट आया और मुहरों के थैले और घोड़े ले कर फिर से उधर की तरफ चला। पैरों के निशान के सहारे वह राजकुमार के पास तक पहुँच गया। वहाँ जा कर उसे राजकुमार मरे जैसा पड़ा दिखायी दिया।

उसके मुँह से निकला “उफ़ उफ़।” उसने राजकुमार को उठाया उसके चेहरे और सिर पर पानी छिड़का और बोला — “उफ़ मेरे भाई यह सब क्या हो गया। मेहरबानी करके मुझे इस हालत में छोड़ कर मरना नहीं। बोलो बोलो राजकुमार कुछ तो बोलो। मैं यह सब सहन नहीं कर सकता।”

ठंडा पानी चेहरे और सिर पर पानी पड़ने से राजकुमार को कुछ होश आया। उसने अपनी आँखें खोलीं और चारों तरफ देखा। वजीर के बेटे के मुँह से निकला — “खुदा का लाख लाख शुक्र है कि तुम ज़िन्दा हो। पर मेरे भाई यह मामला क्या है तुम्हें क्या हो गया था।”

राजकुमार बोला — “तुम यहाँ से चले जाओ। मैं तुम्हें कुछ नहीं बताऊँगा। तुम बस यहाँ से चले जाओ।”

वजीर का बेटा बोला — “अच्छा ऐसा करते हैं यह जगह छोड़ देते हैं यहाँ से कहीं और चलते हैं। देखो मैं तुम्हारे लिये और घोड़ों के लिये कुछ खाना ले कर आया हूँ। चलो खाना खा लो फिर यहाँ से चलते हैं।”

राजकुमार बोला — “नहीं मैं नहीं जाऊँगा तुम अकेले ही चले जाओ।”

वजीर का बेटा बोला — “नहीं कभी नहीं। मैं तुमको साथ लिये बिना कहीं नहीं जाऊँगा। तुम्हें क्या हो गया है कि तुम मुझसे इस तरह की बात कर रहे हो। कुछ समय पहले तक तो हम भाई जैसे थे और अब तुम मेरी शक्ल भी देखना नहीं चाहते।”

राजकुमार बोला — “मैंने एक परी देखी है। पर मैंने उसको बस एक पल के लिये ही देखा था। जैसे ही उसने देखा कि मैं उसको देख रहा हूँ उसने अपना चेहरा कमल की पंखुड़ियों में छिपा लिया। ओह कितनी सुन्दर थी वह।

जब मैं उसकी तरफ देख रहा था तो उसने अपने कपड़ों के अन्दर से हाथी दाँत का एक बक्सा निकाला और मेरी तरफ बढ़ा दिया। बस उसी समय मैं बेहोश हो गया। अगर तुम मेरी शादी उस परी से करा दो तो मैं तुम्हारे साथ कहीं भी चलने के लिये तैयार हूँ।”

वजीर का बेटा बोला — “मेरे दोस्त तुमने सचमुच में एक परी को देखा है। वह तो परियों की भी परी है। वह कोई और नहीं बल्कि शहराज़ की गुलज़ार है। मुझे यह बात उसने तुमको जो इशारे किये उनसे पता चली।

उसके कमल की पंखुड़ियों से अपने चेहरे को ढकने से उसका नाम पता चला और तुमको हाथी दाँत का बक्सा दिखाने से उसके घर का पता चला। थोड़ा धीरज रखो औ बाकी की बात तुम मेरे ऊपर छोड़ दो। मैं तुम्हारी शादी उससे करा दूँगा।”

राजकुमार ने जब अपने दोस्त के ऐसे शब्द सुने तो उसको बहुत तसल्ली हुई। वह उठा और उसने खाना खाया और फिर अपने दोस्त के साथ चला गया।

रास्ते में उनको दो आदमी मिले। ये दोनों डाकू थे और डाकुओं के एक गिरोह के थे। यह गिरोह ग्यारह डाकुओं का था। इनकी एक बड़ी बहिन थी जो घर पर रहती थी और इन सबका खाना बनाती थी।

बाकी के दस दो दो के समूह में देश में इधर उधर चारों तरफ जाया करते थे और उन यात्रियों को लूटा करते थे जो या तो उनसे लड़ नहीं पाते थे या फिर उन यात्रियों को आराम करने के लिये अपने घर बुलाते थे जो उन दोनों से बहुत ज़्यादा ताकतवर होते थे और वे उनसे लड़ नहीं पाते थे। वहाँ वे सब मिल कर उनसे लड़ लेते थे और उनको लूट लेते थे।

ये डाकू एक बड़े से मकान में रहते थे जिसमें बहुत सारे मजबूत कमरे बने हुए थे। उसके नीचे एक बहुत बड़ा गड्ढा था जहाँ वे उन लूटे हुए लोगों को मार कर उनकी लाशें फेंक देते थे जो भी उनके कब्जे में आ जाते थे।

सो जब उन दो डाकुओं ने राजकुमार और वजीर के बेटे को देखा तो वे इनके पास आये और इनसे बड़ी नम्रता से अपने घर आने और रात बिताने की प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि यहाँ से दूर दूर तक कोई और गाँव नहीं है जहाँ आप रात बिता सकें और अब रात भी काफी हो चुकी है।

राजकुमार ने वजीर के बेटे से पूछा — “भाई क्या हम इन दोनों भले आदमियों का कहा मान लें?”

वजीर के बेटे ने राजकुमार की तरफ टेढ़ी आँखों से देखा जिससे पता चलता था कि वह उनके साथ ठहरना नहीं चाहता था। पर राजकुमार क्योंकि थका हुआ था और उसने यह भी सोचा कि शायद वजीर के बेटे को कुछ ऐसे ही गलतफहमी हुई होगी उसने उन लोगों को हाँ कह दी और बोला — “यह आप लोगों की बड़ी मेहरबानी है कि आपने हमको अपने घर बुलाया।”

सो वे चारों उन डाकुओं के घर चल दिये। उन डाकुओं ने उन दोनों यात्रियों को एक कमरे में बिठा दिया और बाहर से ताला लगा दिया। अब ये दोनों यात्री वहाँ बैठे बैठे अपनी किस्मत को कोसने लगे।

वजीर के बेटे ने कहा — “अब रोने से कोई फायदा नहीं है। मैं इस खिड़की के ऊपर चढ़ कर देखता हूँ कि यहाँ से बाहर निकलने का कोई रास्ता है कि नहीं।”

यह कह कर वह खिड़की पर चढ़ा और फुसफुसा कर बोला — “हाँ है। इसके नीचे एक गड्ढा है जिसके चारों तरफ ऊँची दीवार है। मैं उसमें कूदता हूँ और जा कर इधर उधर देखता हूँ। तुम तब तक यहीं ठहरो और जब तक मैं लौट कर आऊँ तब तक मेरा इन्तजार करो।”

ऐसा कह कर वह नीचे कूद गया और फिर जल्दी ही वापस आ कर बोला कि उसने एक बहुत ही बदसूरत स्त्री को देखा जो लगता था कि इन लोगों के घर की देखभाल करने वाली होगी। वजीर के बेटे का प्लान यह था कि वह अपनी सब बात इस बदसूरत स्त्री को बतायेगा और उससे वहाँ से निकलने में इस शर्त पर सहायता माँगेगा कि वहाँ से बाहर निकल कर राजकुमार उससे शादी कर लेगा।

इस पर वह उसको अपने कमरे तक ले कर आयेगा। वह यकीनन उनको वहाँ से निकालने के बदले में हमारा वायदा पूरा करने के लिये कहेगी। राजकुमार पहले तो उससे कुछ ना नुकुर करेगा पर फिर राजी हो जायेगा। यह है मेरा प्लान।

राजकुमार ने उसकी यह बात मान ली सो वजीर का बेटा उस स्त्री के पास चल दिया। वहाँ पहुँचा तो वह स्त्री रो पड़ी। उसने पूछा — “आप क्यों रोती हैं?”

वह बोली — “मैं यही सोच कर रोती हूँ कि अब आप लोगों का समय पूरा हो चुका है।”

वजीर का बेटा बोला — “आप रोइये नहीं। बल्कि आप राजकुमार से शादी कर लीजिये। आप आइये और राजकुमार से इस प्लान पर बात कर लेते हैं।”

वह स्त्री वजीर के बेटे के साथ चल दी। कमरे में आने के बाद वजीर के बेटे ने राजकुमार से उससे शादी करने के लिये कहा लेकिन राजकुमार ने उससे शादी करने से मना कर दिया। उसने कहा कि वह इस मकान के कमरे में पड़ा पड़ा सड़ जायेगा पर ऐसी स्त्री से कभी शादी नहीं करेगा।

इस पर वजीर का बेटा उसके पैरों पर गिर पड़ा और उससे तब तक प्रार्थना करता रहा जब तक वह उससे शादी करने के लिये राजी नहीं हो गया।

राजकुमार की हाँ सुन कर वह स्त्री बहुत खुश हुई और उनको एक चोर दरवाजे से हो कर बाहर निकाल कर ले गयी।

वजीर के बेटे ने पूछा — “पर हमारे घोड़े और सामान कहाँ हैं।”

स्त्री बोली — “तुम उनको यहाँ नहीं ला सकते। उनको यहाँ लाने का मतलब है किसी और रास्ते से जाना और किसी और रास्ते से जाने का मतलब है कब्र में पैर देना।”

वजीर का बेटा बोला “पर उनका हमारे साथ होना जरूरी है।”

स्त्री फिर बोली — “ठीक है फिर वे भी इसी रास्ते से जायेंगे। मेरे पास एक जादू है जिससे मैं किसी को भी पतला या मोटा बना सकती हूँ।”

सो वजीर का बेटा चुपचाप अपने घोड़ों को ले आया और उस जादू को उनके ऊपर पढ़ कर उनको इतना पतला बना लिया कि वे उस तंग रास्ते से गुजर सकें जैसे कोई कपड़ा निकल जाता है। वहाँ से बाहर निकल कर वह उनको फिर से पहले वाले रूप में ले आया।

बाहर निकलते ही वह अपने घोड़े पर चढ़ गया और दूसरे घोड़े की लगाम पकड़ ली। ऐसा ही उसने राजकुमार से भी करने के लिये कहा। राजकुमार भी मौका देख कर तुरन्त ही अपने घोड़े पर चढ़ गया और दूसरे घोड़े की लगाम पकड़ ली। जैसे ही वे दोनों अपने अपने घोड़ों पर चढ़े वे वहाँ से भाग निकले।

उनको भागते देख कर वह स्त्री चिल्लायी — “अरे रुको तो। मुझे भी साथ ले लो मुझे यहाँ अकेला मत छोड़ो। मेरे भाइयों को मेरे इस काम का पता चल जायेगा और वे मुझे मार डालेंगे।”

वजीर का बेटा वहीं से चिल्लाया “तो तुम भी हमारे साथ भागो न। देखो हम कोई खास तेज़ नहीं भाग रहे हैं।”

वह स्त्री उनके पीछे जितना तेज़ वह भाग सकती भागी। फिर भी वह उनसे काफी दूर थी। वजीर के बेटे ने जब यह देखा कि वे अब खतरे से बाहर हैं तो वह अपने घोड़े से उतरा और उस स्त्री को पकड़ कर एक पेड़ से बाँध कर उसकी खूब पिटायी की।

वह बोला — “ओ बदसूरत स्त्री। अगर तुझे तेरे भाइयों ने ढूँढ लिया तो तू उनसे कहना कि हम देव थे इसलिये वहाँ से भाग गये।”

चलते चलते वे फिर एक गाँव में पहुँचे और रात को वहीं रुक गये। अगली सुबह वे फिर वहाँ से चल दिये और हर आने जाने वाले से शहराज़ का पता पूछते रहे।

आखिरकार वे इस शहर में आ पहुँचे। यहाँ पहुँच कर वे एक ऐसी बुढ़िया की झोंपड़ी में ठहर गये जिससे उनको लगा कि उससे उनको डरने की कोई जरूरत नहीं है और वहाँ वे शान्ति से रह सकते हैं।

पहले तो उस बुढ़िया को उनका अपने घर में ठहराने का विचार कुछ जमा नहीं पर जब उसने उन दोनो ं को पानी पिलाया तो राजकुमार ने उसके प्याले में जिसमें उसने उसको पानी दिया था एक मुहर डाल दी और वजीर के बेटे ने भी ऐसा ही किया तो इससे उसका मन बदल गया और उसने उन दोनों को कुछ दिनों के लिये अपने घर ठहरा लिया।

जैसे ही बुढ़िया का अपने घर का काम खत्म हुआ तो वह अपने मेहमानों के पास आ कर बैठ गयी। वजीर के बेटे ने ऐसा बहाना किया जैसे वह वहाँ की जगह और लोगों के बारे में कुछ जानता ही नहीं है। उसने बुढ़िया से पूछा कि क्या उस शहर का कोई नाम है। बुढ़िया बोली — “अरे बेवकूफ। है न। हर छोटे से छोटा गाँव जो किसी भी शहर से बड़ा है जैसा कि यह है उसका नाम है।”

“तो इस शहर का नाम क्या है?”

बुढ़िया बोली — “इस शहर का नाम है शहराज़। क्या तुमको नहीं मालूम। मुझे लगा कि इसका नाम तो दुनियाँ भर को मालूम होगा।”

शहर का नाम सुन कर राजकुमार ने एक गहरी साँस ली। वजीर के बेटे ने राजकुमार को इशारे से कहा कि “चुप रहो वरना तुम अपना भेद खोल दोगे।”

वजीर के बेटे ने आगे पूछा — “क्या इस देश का कोई राजा भी है?”

बुढ़िया बोली — “हाँ है न। एक रानी भी है और एक राजकुमारी भी।”

“उनके क्या क्या नाम हैं?”

बुढ़िया बोली — “राजकुमारी का नाम गुलज़ार है और रानी का नाम..., ।

वजीर का बेटे ने बुढ़िया की बात काटते हुए राजकुमार की तरफ देखा जो अभी तक पागलों जैसा बैठा था और बोला — “हाँ हम लोग अब सही देश में हैं। अब हम उस सुन्दर राजकुमारी को देख पायेंगे।”

दो दिन बाद ही उन दोनो ं यात्रियों ने बुढ़िया को बड़ा सजा बजा देखा उसके साफ सुथरे बाल सजे हुए देखे तो वजीर के बेटे ने उससे पूछा — “आज यहाँ कौन आ रहा है?”

बुढ़िया बोली — “कोई नहीं।”

वजीर के बेटे ने फिर पूछा — “तो फिर आप कहीं जा रही है ं क्या?”

बुढ़िया बोली — “हाँ मैं अपने बेटी से मिलने जा रही हूँ जो राजकुमारी गुलज़ार के पास काम करती है। मैं उससे रोज मिलने जाती हूँ। मुझे उससे मिलने कल भी जाना चाहिये था अगर तुम लोग यहाँ न आये होते और मेरा सारा समय तुम लोगों ने न ले लिया होता।”

वजीर का बेटा बोला — “ख्याल रखना कि तुम हमारे बारे में किसी से कुछ कहना नहीं जिससे राजकुमारी को कुछ पता चले।”

वजीर के बेटे ने उसको किसी से उनके बारे मे कुछ भी न कहने के लिये इसलिये कहा था कि अगर वह उसको इस बात को किसी से कहने के लिये मना करेगा तो वह इस बात को वहाँ जा कर जरूर कहेगी और राजकुमारी को उनके आने के बारे में पता चल जायेगा। और यही वह चाहता भी था।

जब बेटी ने अपनी माँ को देखा तो झूठा गुस्सा दिखाती हुई बोली — “माँ तुम दो दिनों से क्यों नहीं आयीं?”

बुढ़िया बोली — “मेरी प्यारी बेटी। मेरे घर में दो यात्री एक राजकुमार और एक वजीर का बेटा आ कर ठहरे हुए हैं। बस उन्हीं के काम में लगी रही। सारा दिन खाना बनाना और सफाई करना। मैं उन दोनों को समझ ही नहीं पायी। उनमें से एक तो बिल्कुल बेवकूफ सा लगता है। उसने मुझसे इस देश का नाम पूछा इस देश के राजा का नाम पूछा।

ये लोग कहाँ से आ सकते हैं जो इनको यह सब भी नहीं पता। पर ये लोग हैं बड़े और अमीर। वे मुझे हर सुबह शाम सोने की एक एक मुहर देते हैं।”

इसके बाद बुढ़िया वहाँ से चली गयी और राजकुमारी के पास जा कर उससे वही शब्द फिर दोहरा दिये। उनको सुन कर राजकुमारी ने उसको बहुत बुरी तरह से पीटा और उसको कड़ी सजा की धमकी देते हुए कहा कि अगर उसने फिर कभी अजनबियों के बारे मे उसके सामने कुछ कहा तो वह उसको बहुत कड़ी सजा देगी।

शाम को जब बुढ़िया घर लौटी तो उसने वजीर के बेटे को आ कर बताया कि उसको बहुत अफसोस है कि उसने अपना वायदा तोड़ दिया। फिर कैसे राजकुमारी ने उसको पीटा क्योंकि उसने उन दोनों के बारे में उसको बताया था।

राजकुमार उसकी सब बातें सुन रहा था सो उसके मुँह से निकला “उफ़ उफ़। जब इन आदमियों के बारे में सुन कर ही उसके गुस्से का यह हाल है तो उनको देख कर क्या होगा।”

वजीर का बेटा आश्चर्य से बोला — “तुम गुस्से की बात करते हो वह तो तुमको देख कर ही खुशी से फूल जायेगी। मैं जानता हूँ। उसने जिस तरीके से इस बुढ़िया के साथ बरताव किया है उससे साफ पता चलता है कि वह तुमसे कह रही है कि आने वाले अगले काले पाख में तुम उससे जा कर मिलो।”

यह सुनते ही राजकुमार के मुँह से निकला — “या अल्लाह तेरा लाख लाख शुक्र है।”

अगली बार जब वह बुढ़िया फिर महल गयी तो गुलज़ार ने अपनी एक नौकरानी को बुलाया और उसको उस कमरे में दौड़ कर आने के लिये कहा जिसमें वह उस बुढ़िया से बात करे और यह भी कहा कि अगर बुढ़िया यह पूछे कि क्या मामला है तो वह कहे कि राजा के हाथी पागल हो गये हैं और वे शहर और बाजार की तरफ भाग रहे हैं। रास्ते में जो भी मिलता है वे सबको बरबाद करते जाते हैं।

नौकरानी ने उसका कहना माना और उस कमरे में जा कर उसने वही कहा जो राजकुमारी ने उससे कहने के लिये कहा था। बुढ़िया यह सुन कर डर गयी उसने सोचा कि कहीं ऐसा न हो कि वे हाथी उसकी झोंपड़ी को गिरा दें और उस राजकुमार और उसके दोस्त को मार दें सो उसने राजकुमारी से घर जाने की इजाज़त माँगी जो उसको मिल गयी।

राजकुमारी के पास एक जादू का झूला था जिस पर जब कोई बैठ जाता था तो वह उसको वहीं ले जाता था जहाँ उसके ऊपर बैठने वाला चाहता था। उसने पास खड़ी हुई एक नौकरानी से वह झूला लाने के लिये कहा।

जब वह झूला आ गया तो उसने बुढ़िया को उस पर बैठने और अपने घर जाने की इच्छा प्रगट करने के लिये कहा। बुढ़िया उस पर बैठ गयी और तुरन्त ही अपने घर सुरक्षित पहुँच गयी।

वह घर पहुँच कर यह देख कर बहुत खुश हुई कि उसके मेहमान सुरक्षित थे। वह बोली — “ओह मुझे लगा कि वे कहीं तुम लोगों को न मार दें। राजकुमारी की दासी कह रही थी कि शाही हाथी पागल हो गये हैं और इधर उधर भाग निकले हैं। मैंने जब यह सुना तो मुझे तुम लोगों की बड़ी चिन्ता हो गयी।

इसलिये राजकुमारी जी ने यह झूला मुझे घर सुरक्षित रूप से आने के लिये दिया। आओ बाहर चलें कहीं ऐसा न हो कि हाथी यहाँ आ कर मेरी झोंपड़ी ही गिरा दें।”

वजीर का बेटा बोला — “मुझे विश्वास नहीं होता कि ऐसा हुआ। यह सब बहाना है। वे लोग तुम्हारे साथ चाल खेल रहे हैं।”

फिर वह राजकुमार के कान में फुसफुसाया — “अब तुम्हारे दिल की इच्छा पूरी होने वाली है। ये सब उसी के इशारे हैं।” काले पाख के शुरू होने के दो दिन बाद राजकुमार और वजीर का बेटा दोनों उस झूले पर बैठे और महल के आँगन में पहुँचने की इच्छा प्रगट की। एक पल में ही वे वहाँ थे। महल के एक दरवाजे के पास राजकुमारी खड़ी हुई थी।

उसकी भी राजकुमार को देखने की उतनी ही इच्छा थी जितनी कि राजकुमार की इसको देखने की। कितना खुशी का मौका था वह।

गुलज़ार बोली — “ओह आखिर मैंने अपने प्रेमी और पति को पा ही लिया।”

राजकुमार भी बोला — “खुदा का लाख लाख शुक्र है कि उसने हमको मिला दिया।”

दोनों ने फिर से मिलने का प्लान बनाया एक दूसरे को चूमा और फिर अलग हो गये – राजकुमार अपनी झोंपड़ी की तरफ चला गया और राजकुमारी अपने महल में चली गयी। दोनों इस मुलाकात के बाद इतने खुश थे जितने कि पहले कभी नहीं थे।

इसके बाद से राजकुमार गुलज़ार से मिलने रोज जाने लगा। वह सुबह को महल चला जाता और शाम को अपनी झोंपड़ी में लौट आता।

एक दिन सुबह को गुलज़ार ने राजकुमार से प्राथना की वह हमेशा के लिये वहीं रह जाये क्योंकि उसको राजकुमार का हर शाम को चले जाना अच्छा नहीं लगता था।

उसको हमेशा यही चिन्ता लगी रहती कि कहीं उसके साथ कुछ बुरा न हो जाये – कहीं उसको डाकू न मार डालें या फिर वह कहीं बीमार न पड़ जाये और फिर वह उससे मिल ही न पाये। अब वह उसको देखे बिना नहीं रह सकती थी।

राजकुमार ने उससे कहा भी कि डरने की कोई ऐसी बात नहीं थी और फिर रात को उसको अपने दोस्त के पास लौट जाना ही चाहिये क्योंकि उसने केवल उसी के लिये अपना देश और घर छोड़ा और अपनी ज़िन्दगी खतरे में डाली है। इसके अलावा अगर वह न होता तो वह उससे कभी मिल ही नहीं सकता था।

गुलज़ार उस समय ता यह मान गयी पर उसने अपने मन में यह निश्चय कर लिया कि जैसे ही उसको मौका मिलेगा वह इस वजीर के बेटे को अपने रास्ते से हटा कर ही रहेगी।

इस बातचीत के कुछ दिन बाद ही राजकुमारी ने अपनी एक नौकरानी को पुलाव बनाने का हुकुम दिया। उसने उसको बताया कि उसे कैसे बनाना है उसे उसमें पकते समय एक जहर मिलाना था। जैसे ही वह तैयार हो जाये तो उसको ढक देना है ताकि उसकी जहरीली भाप निकल न जाये।

जब वह पुलाव तैयार हो गया तो उसने वजीर के बेटे के पास इस सन्देश के साथ भेज दिया कि गुलज़ार तुमको यह पुलाव अपने मरे हुए चाचा के नाम में भेज रही है।

वजीर को जब वह पुलाव मिला तो उसने सोचा कि शायद राजकुमार ने उसके बारे में राजकुमारी से कुछ अच्छा बोला होगा इसीलिये उसने उसे याद किया है। सो उसने उसकी वापसी में राजकुमारी को धन्यवाद और सलाम भेज दिया।

जब शाम को खाने का समय हुआ तो उसने पुलाव का वह बरतन निकाला और एक नदी के किनारे उसे खाने के लिये चला गया। उसने बरतन का ढक्कन उतार कर घास पर रख दिया और खुद नदी में हाथ धोने चला गया। हाथ धो कर उसने अपनी पूजा की।

जब वह यह सब कर रहा था कि उसी बीच उसने देखा कि ढक्कन के नीचे की घास बिल्कुल पीली पड़ गयी थी। यह देख कर वह आश्चर्यचकित रह गया। उसको शक हुआ कि उस पुलाव में जहर था सो उसने उसमें से थोड़ा सा पुलाव निकाल कर पास में बैठे कौओं की तरफ फेंका। जैसे ही कौओं ने उसे खाया तो वे तो एकदम ही मर कर नीचे गिर पड़े।

वजीर के बेटे के मुँह से निकला — “अल्लाह का शुक्र है कि उसने इस समय मुझे मरने से बचाया।”

जब शाम को राजकुमार महल से घर लौटा तो वजीर का बेटा बहुत उदास और दुखी था। राजकुमार ने अपने दोस्त के इस बदलाव को देखा तो उसने उससे पूछा कि इस बदलाव की क्या वजह थी — “तुम क्यों उदास और दुखी हो क्या इसलिये कि मैं रोज महल में इतनी देर देर तक रहता हूँ?”

वजीर के बेटे ने तुरन्त जान लिया कि राजकुमार को इस जहर के बारे में कुछ पता नहीं है वह इस चाल से बिल्कुल अनजान है सो उसने उसे सब कुछ बता दिया।

वह बोला — “देखो इस रूमाल में उस बरतन का बचा कुछ पुलाव है जो राजकुमारी जी ने मुझे सुबह अपने मरे हुए चाचा के नाम पर भेजा था। यह जहर से भरा हुआ है। यह तो अल्लाह का शुक्र है कि मुझे समय रहते पता चल गया वरना मैं तो आज गया था।”

राजकुमार को यह सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ वह बोला — “मेरे भाई यह काम कौन कर सकता है। ऐसा कौन सा आदमी है जिसको तुमसे दुश्मनी हो।”

वजीर का बेटा बोला — “राजकुमारी गुलज़ार। सुनो जब तुम अगली बार उससे मिलने जाओ तो मैं तुमसे विनती करता हूँ कि तुम थोड़ी सी बरफ ले जाना और उससे मिलने से ठीक पहले उसमें से थोड़ी सी बरफ अपनी दोनों आँखों में डाल लेना।

इससे तुम्हारी आँखों में आँसू आ जायेंगे। उनको देख कर गुलज़ार तुमसे पूछेगी कि तुम क्यों रो रहे हो। तुम उससे कहना कि अचानक आज सुबह तुम्हारा दोस्त मर गया है तुम इसलिये रो रहे हो। और देखो यह शराब और यह फावड़ा भी तुम अपने साथ लेते जाओ। जब तुम अपने दोस्त की मौत की वजह से बेहोश से होने लगो तो तुम उसे यह शराब पीने के लिये कहना।

यह शराब थोड़ी तेज़ है। इसको पीते ही वह बेहोश होने लगेगी और गहरी नींद सो जायेगी। तब तुम यह फावड़ा गरम करना और उसकी पीठ पर इससे निशान बना देना। यह करके तुम उसका मोती का हार और यह फावड़ा दोनों अपने साथ ले कर वापस आ जाना। इस सबको करने में डरना नहीं क्योंकि जब तुम यह सब काम पूरा कर लोगे तो यह तुम्हारे लिये अच्छी किस्मत और खुशी ले कर आयेगा। मैं देखूँगा कि राजकुमारी के पिता और उनका सारा दरबार उससे तुम्हारी शादी के लिये हाँ कर देंगे।”

राजकुमार ने कहा कि ठीक है वह वैसा ही करेगा जैसा उसने उससे करने के लिये कहा है। और उसने वैसा ही किया भी।

अगली रात जब राजकुमार राजकुमारी गुलज़ार से मिल कर उसके महल से लौटा तो राजकुमार और वजीर के बेटे ने घोड़े और मुहरों के थैले लिये और एक कब्रिस्तान की तरफ चल दिये जो वहाँ से करीब एक मील की दूरी पर था।

उन लोगों ने यह प्लान बनाया कि वजीर का बेटा एक फकीर बनेगा और राजकुमार उस फकीर का चेला और नौकर बनेगा।

अगली सुबह जब गुलज़ार होश में आयी तो उसको अपनी पीठ में जलन भरा ददमहसूस हुआ और उसका मोतियों का हार गायब था। उसने तुरन्त ही अपने हार की चोरी की खबर तो राजा को दी पर अपनी पीठ के बारे में उसे कुछ भी नहीं बताया। राजा ने जब इस चोरी के बारे में सुना तो उसे बहुत गुस्सा आया और उसने अपने राज्य में इस चोरी की घोषणा करवा दी।

घोषणा सुन कर वजीर का बेटा बोला यह सब ठीक हो रहा है। मेरे भाई तुम डरो नहीं। तुम यह हार लो और बाजार जा कर इसको बेचने की कोशिश करो। राजकुमार उस हार को ले कर बाजार में एक सुनार की दूकान पर गया और उससे उसे खरीदने के लिये कहा।

सुनार ने उससे पूछा कि उसको उसका कितना पैसा चाहिये। राजकुमार बोला मुझे इसका पचास हजार रुपया चाहिये। सुनार बोला ठीक है तुम यहीं बैठो और मेरा इन्तजार करो जब तक मैं इसका पैसा ले कर आता हूँ।

राजकुमार वहाँ सुनार का बहुत देर तक इन्तजार करता रहा तब कहीं जा कर सुनार वापस आया। पर साथ में वह कोतवाल और कुछ पुलिस वालों को भी लाया था। कोतवाल ने आते ही राजकुमार को राजकुमारी का हार चुराने के जुर्म में अपनी हिरासत में ले लिया।

कोतवाल ने उससे पूछा कि उसको यह हार कहाँ से मिला।

राजकुमार ने उसे बताया कि यह हार मुझे एक फकीर ने दिया है जिसके पास मैं काम करता हूँ उसने मुझे यह हार बाजार में बेचने के लिये दिया है। अगर आप मुझे इजाज़त दें तो मैं आपको उस फकीर के पास ले चलता हूँ।

कोतवाल राजी हो गया। राजकुमार तब कोतवाल और पुलिस को फकीर के पास ले गया जहाँ उसने फकीर को छोड़ा था। वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा कि फकीर अपनी आँखें बन्द किये बैठा है और अपनी प्रार्थना कर रहा है। जब फकीर की प्रार्थना खत्म हो गयी तो कोतवाल ने उससे पूछा कि उसके पास राजकुमारी का हार कैसे आया।

फकीर बोला — “तुम राजा को यहाँ ले कर आओ तब मैं तुम्हें यह सब उन्हीं के सामने बताऊँगा।”

राजा को वहाँ लाया गया। राजा उस फकीर को देख कर उसके सामने अपना गुस्सा न दिखा सका कि कहीं ऐसा न हो कि अल्लाह का गुस्सा उसके ऊपर पड़ जाये। बड़ी नम्रता से उसने अपने हाथ जोड़ कर उससे पूछा — “आपको मेरी बेटी का यह हार कैसे मिला?”

फकीर बोला — “कल रात हम यहाँ पर इस कब्र के पास बैठे हुए थे और अल्लाह की प्रार्थना कर रहे थे कि एक लड़की जो राजकुमारी जैसी पोशाक पहने थी यहाँ आयी और एक कब्र में से एक लाश निकाल कर खाने लगी जिसको कुछ दिन पहले ही दफनाया गया था।

यह देख कर मुझे गुस्सा आ गया और मैंने उसकी पीठ पर उस फावड़े से चोट की जो उस समय यहाँ आग में पड़ा था। चोट खा कर वह यहाँ से भागी तो जल्दी में उसका हार नीचे गिर पड़ा। आपको मेरी इस बात पर आश्चर्य तो जरूर हो रहा होगा पर यह साबित करना कोई मुश्किल काम नहीं है।

आप अपनी बेटी को बुलाइये और देखिये कि उसकी पीठ पर फावड़े के जले का निशान है या नहीं। आप जा कर देखिये और अगर जैसा मैं कहता हूँ वह सच है तो उसे यहाँ लाइये मैं उसको सजा दूँगा।”

यह सुन कर राजा को फकीर की बातों पर विश्वास तो नहीं हुआ पर उसके पास और कोई चारा नहीं था सो वह तुरन्त ही महल लौट गया और अपनी बेटी की पीठ देखने के लिये कहा।

दासी ने आ कर राजा को बताया कि फकीर की बात सच थी उसकी पीठ पर फावड़े के जले का निशान था। यह सुन कर राजा के गुस्से का पारावार न रहा उसने कहा कि राजकुमारी को तुरन्त ही मार दिया जाये।

दासी बोली — “नहीं नहीं हुजूर। हम इसे क्यों मारें। हमको इसे उसी फकीर के पास भेज देना चाहिये जिसको इसका हार मिला है ताकि वही इसको अपनी मनचाही सजा दे सके।”

राजा राजी हो गया और राजकुमारी को फकीर के पास भेज दिया गया। राजकुमारी को देख कर फकीर बोला — “इसको एक पिंजरे में बन्द कर दो और पिंजरा उसी कब्र के पास रख दो जिसमें से इसने लाश निकाली थी।”

ऐसा ही किया गया। पिंजरे को एक कब्र के पास रख कर सब लोग वहाँ से चले गये और राजकुमारी उस कब्रिस्तान में फकीर और उसके चेले के साथ अकेली रह गयी।

जब थोड़ा अँधेरा हो गया तो फकीर और उसके चेले ने अपने अपने रूप बदल लिये और अपने अपने घोड़े और सामान ले कर उस पिंजरे के सामने आ खड़े हुए। उन्होंने राजकुमारी को पिंजरे में से बाहर निकाला उसकी पीठ के घाव पर मरहम लगाया और उसको राजकुमार के पीछे घोड़े पर बिठा कर वहाँ से भाग लिये।

वे रात भर अपने घोड़ों पर चलते रहे। सुबह होने पर ही वे आराम करने के लिये रुके। वहाँ उन्होंने अपने आगे के प्लान पर विचार किया।

वजीर के बेटे ने राजकुमारी को थोड़ा सा वह जहरीला पुलाव दिखाया जो उसने उसके लिये भेजा था और उससे पूछा कि क्या अब भी वह अपने किये पर पछता नहीं रही है।

यह देख कर राजकुमारी रो पड़ी उसने स्वीकार किया कि वजीर का बेटा तो उसका सबसे बड़ा सहायक और दोस्त था। उसको जहर भरा पुलाव भेजना उसकी सबसे बड़ी गलती थी।

उसके बाद वजीर के बेटे ने अपने पिता के नाम एक चिट्ठी में वह सब लिख कर भेजा जो उनके देश छोड़ने के बाद उनके साथ घटा था। जब वजीर ने यह चिट्ठी पढ़ी तो उसने जा कर राजा को बताया।

उसने उन दोनों को वापस न आने के लिये लिखा और लिखा कि वे गुलज़ार के पिता को एक चिट्ठी लिखें जिसमें यह सब लिखें। इस हुकुम के अनुसार वजीर के बेटे ने राजकुमार को गुलज़ार के पिता को एक चिट्ठी लिखवायी।

वह चिट्ठी पढ़ कर गुलज़ार के पिता को अपने वजीरों और दूसरे औफीसरों पर बहुत गुस्सा आया कि उनको इतने इज़्ज़तदार लोगों के अपने राज्य में होने का कुछ भी पता नहीं था क्योंकि वह राजकुमार और वजीर के बेटे को अपना धन्यवाद देना चाहता था। उसने अपने कुछ वजीरों की सजा का हुकुम सुना दिया कि फलाँ फलाँ तारीख को उनको सजा दी जायेगी।

उसने वजीर के बेटे को लिखा कि वह उसके महल आये और उसके महल में आ कर ठहरे। और अगर राजकुमार राजी होंगे तो मैं राजकुमारी की शादी उनसे जितनी जल्दी हो सकेगा उतनी जल्दी कर दूँगा।

यही तो वे चाहते थे। राजा की यह चिट्ठी पढ़ कर वे बहुत खुश हुए और उन्होंने राजा का बुलावा स्वीकार कर लिया। जब वे वहाँ पहुँचे तो राजा ने उनका दिल से स्वागत किया।

जल्दी ही राजकुमार की शादी गुलज़ार से हो गयी। राजा ने राजकुमार को भेंट मे बहुत सारे घोड़े हाथी जवाहरात कीमती कपड़े दे कर उनके देश के लिये विदा किया क्योंकि उसको यकीन था कि अब राजा उनका अपने राज्य में स्वीकार कर लेगा।

उनके जाने से पहले की रात जिन वजीरों को राजा ने सजा देने का निश्चय किया था उन्होंने वजीर के बेटे से राजा से माफी की प्रार्थना की और कहा कि अगर वह उनको राजा से माफी दिलवा देंगे तो वे हर एक उसको अपनी बेटी देंगे।

वजीर का बेटा मान गया और उनको माफी दिलवाने में सफल हो गया। वायदे के अनुसार उन वजीरों ने अपनी अपनी बेटियों की शादी वजीर के बेटे से कर दी।

अगले दिन राजकुमार अपनी पत्नी गुलज़ार के साथ और वजीर का बेटा अपनी कई सुन्दर पत्नियों के साथ कई सिपाही बहुत सारे ऊँट हाथी और घोड़े और बहुत बड़े खजाने के साथ अपने देश चले।

रास्ते में वे डाकुओं के घर के पास से गुजरे तो सिपाहियों की सहायता से उन्होंने उनका मकान तोड़ कर गिरा दिया और वहाँ से उनका बरसों का जोड़ा हुआ खजाना ले कर फिर आगे अपने देश की तरफ चले।

आखिर वे अपने देश आ पहुँचे। राजा ने जब अपने बेटे की सुन्दर पत्नी और इतने सारे खजाने को देखा तो उसने तुरन्त ही उसको अपने राज्य में स्वीकार कर लिया।

बस फिर तो राजकुमार की ज़िन्दगी में खुशी ही खुशी थी राजकुमार सबका प्यारा हो गया। समय आने पर वह राजगद्दी पर बैठा और बहुत सालों तक उसने खुशी और शान्ति से राज किया।

(सुषमा गुप्ता)

  • कश्मीरी कहानियां और लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां