हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता : आदिवासी लोक-कथा
Hansraj Ghoda Aur Mukhbolta Tota : Adivasi Lok-Katha
किसी देश में एक राजा रहता था। उसकी तीन रानियाँ थीं और तीनों रानियों से एक-एक राजकुमार थे। एक बार राजा ने स्वप्न में हंस के समान सुंदर श्वेत रंग का घोड़ा देखा। वह हंसराज घोड़ा था। उसी के साथ राजा को एक विचित्र तोता दिखाई पड़ा जो मनुष्य की बोली में बोल रहा था जिसका नाम था मुखबोलता तोता। नींद से जागने पर राजा को लगा कि वह हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता उसे मिलना चाहिए। राजा ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो कोई भी हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता लेकर आएगा उसे ईनाम में आधा राज्य दे दिया जाएगा। आधा राज्य पाने की लालच में अनेक व्यक्ति आगे आए। उन्होंने हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता ढूँढ़ने का बहुत प्रयास किया लेकिन वे सफल नहीं हो सके।
राजा ने देखा कि कोई भी उसकी इच्छा पूरी नहीं कर पा रहा है तो दुख के कारण उसका स्वास्थ्य बिगड़ गया। दिन-प्रतिदिन उसका स्वास्थ्य गिरने लगा। यह देखकर राजकुमारों को चिंता हुई। सबसे पहले बड़े राजकुमार ने हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता ढूँढ़ने जाने का निश्चय किया।
बड़ा राजकुमार अपने श्वेत-श्याम घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर निकल पड़ा। चलते-चलते वह घने जंगल में पहुँच गया। तब तक उसे ज़ोर की भूख लग आई थी। उसने आस-पास देखा लेकिन खाने योग्य कुछ भी न दिखा। उसी समय वहाँ एक बुढ़िया दिखाई दी। राजकुमार ने उससे पूछा कि यहाँ खाने को कुछ मिल सकता है क्या?
‘इस घने जंगल में क्या मिलेगा? तुम मेरी झोपड़ी में चलो, मैं तुम्हें दही-चिउड़ा खिलाऊँगी।’ बुढ़िया ने कहा।
राजकुमार बुढ़िया के साथ उसकी झोपड़ी में जा पहुँचा। बुढ़िया ने दही में चिउड़ा डाला और राजकुमार को खाने को दिया। दही बहुत मीठी थी और चिउड़ा भी स्वादिष्ट था। ऐसा स्वादिष्ट दही-चिउड़ा राजकुमार ने कभी नहीं खाया था। दही-चिउड़ा खाकर जब राजकुमार बुढ़िया से विदा लेकर जाने को हुआ तो बुढ़िया ने उसके घोड़े की लगाम पकड़ ली।
‘जा कहाँ रहे हो, यह तो बताया नहीं।’ बुढ़िया ने कहा।
‘मैं हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता लेने जा रहा हूँ।’ राजकुमार ने बताया।
‘तुम मत जाओ। यह काम तुम्हारे वश का नहीं है। तुम राक्षस के हाथों मारे जाओगे या दुम दबाकर भाग आओगे।’ बुढ़िया ने राजकुमार से कहा।
‘न तो मैं मारा जाऊँगा और न ही दुम दबाकर भागूँगा। मैं राक्षस को मारकर आगे बढ़ जाऊँगा।’ राजकुमार ने कहा।
‘तुम ऐसा नहीं कर पाओगे।’ बुढ़िया ने कहा।
‘मैं ऐसा ही करूँगा।’ राजकुमार बोला।
‘तो लगी शर्त?’ बुढ़िया बोली।
‘हाँ, लगी शर्त!’ राजकुमार बोला।
‘यदि मैं हारी तो मैं जीवन भर तुम्हारी दासी बनकर रहूँगी लेकिन यदि तुम हारे तुम्हें जीवन भर मेरा दास बनकर रहना होगा।’ बुढ़िया ने कहा।
‘मुझे स्वीकार है।’ राजकुमार ने बुढ़िया की शर्त मान ली और अपना घोड़ा दौड़ाता हुआ चल पड़ा।
कुछ दूर जाने पर उसे एक राक्षस मिला।
‘मैं भूखा हूँ! मैं तुम्हें खा जाऊँगा!’ राक्षस ने गरजते हुए कहा राजकुमार ने राक्षस को देखा तो उसकी भयानक आकृति देखकर ही वह डर गया और घोड़ा मोड़कर अपनी जान बचाकर भाग खड़ा हुआ। राजकुमार भागकर बुढ़िया के पास पहुँचा।
‘क्यों शर्त हार गए?’ बुढ़िया ने मुस्कुराते हुए कहा। इसके बाद उसने राजकुमार को अपना दास बना लिया।
जब कई दिन हो गए और बड़े राजकुमार की कोई सूचना नहीं मिली तो शेष दोनों राजकुमारों को चिंता हुई। अब मंझले राजकुमार ने हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता लाने और बड़े राजकुमार को ढूँढ़ने जाने का निश्चय किया। वह अपने भूरे रंग के घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ा।
मंझले राजकुमार के साथ भी वही हुआ। उसे वही बुढ़िया मिली। उसने मंझले राजकुमार को दही-चिउड़ा खिलाया। शर्त लगाई और मंझला राजकुमार भी शर्त हार कर उसका दास बन गया।
कई सप्ताह व्यतीत हो जाने पर भी बड़े तथा मंझले राजकुमार की कोई सूचना न मिलने पर सबसे छोटे राजकुमार ने हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता लाने और अपने दोनों भाइयों को ढूँढ़ने जाने का निश्चय किया। वह अपने काले रंग के घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ा। चलने से पहले उसने अपनी माँ से दही-चिउड़ा बंधवाया जो रास्ते में खाने के काम आता और घोड़े के लिए थोड़ा-सा चारा बंधवा लिया। इसके बाद वह भाला, बरछी, धनुष-बाण, तलवार और कोड़ा लेकर निकल पड़ा।
घने जंगल में पहुँचने पर छोटे राजकुमार को भूख लगी। उसने दही-चिउड़ा की हाँडी निकाली और खाने लगा। इतने में बुढ़िया आ गई। उसने देखा कि छोटा राजकुमार अपने साथ लाया दही-चिउड़ा खा रहा है। अत: उसने दूसरा बहाना किया और छोटे राजकुमार से बोली, ‘बेटा, मैं बूढ़ी थक गई हूँ। भटक गई हूँ। मुझे अपने घोड़े पर बिठा कर मेरी झोपड़ी तक मुझे पहुँचा दो।’
राजकुमार को बूढ़ी पर दया आ गई। उसने बुढ़िया को घोड़े पर बिठाया और उसकी झोपड़ी तक पहुँचा दिया। बुढ़िया छोटे राजकुमार को देखकर ही समझ गई थी कि पहले वाले राजकुमार इसी के भाई हैं अत: उसने जादू के बल से दोनों राजकुमारों को मेढे में बदल दिया था जिससे छोटा राजकुमार उन्हें पहचान न सके।
छोटा राजकुमार बुढ़िया को पहुँचाकर आगे बढ़ने को हुआ तो बुढ़िया ने लपककर उसके घेड़े की लगाम पकड़ ली।
‘तुमने ये तो बताया नहीं कि तुम कहाँ जा रहे हो?’ बुढ़िया बोली।
छोटे राजकुमार को लगा कि अभी कुछ देर पहले तो यह बुढ़िया थकान के मारे मरी जा रही थी और अब इसके पास इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई कि इसने मेरे घोड़े की लगाम पकड़कर मेरे घोड़े को रोक रखा है। छोटे राजकुमार ने बुढ़िया पर सटा-सट् कोड़े बरसाए तो बुढ़िया ने घोड़े की लगाम छोड़ दी। छोटा राजकुमार घोड़ा दौड़ाता हुआ चल दिया।
कुछ दूर जाने पर उसे एक राक्षस मिला।
‘मैं ‘भूखा हूँ। मैं तुम्हें खा जाऊँगा।’ राक्षस ने कहा।
‘अरे नाना, ये क्या कह रहे हो? जो तुम मुझे खाओगे तो तुम्हारी बेटी तुमसे नाराज़ हो जाएगी।’ छोटे राजकुमार ने डरे बिना राक्षस से कहा।
राक्षस ने सोचा कि यह लड़का ठीक कहता है। भले ही यह मनुष्य है लेकिन है तो मेरी बेटी का पुत्र यानी मेरा नाती। अब मैं अपने नाती को कैसे खाऊँ?
छोटे ‘नाना तुम्हें भूख लगी है तो मैं तुम्हारे लिए हिरण मार देता हूँ, तुम उसे खा लो।’ राजकुमार ने कहा और एक हिरण मारकर राक्षस को दे दिया। राक्षस हिरण पाकर बहुत प्रसन्न हुआ।
‘नाती, तुम कहाँ जा रहे हो?’ राक्षस ने पूछा।
‘नाना जी, मैं हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता लाने जा रहा हूँ।’ छोटे राजकुमार ने बताया।
‘यह तो बहुत कठिन काम है।’ राक्षस ने कहा।
‘लेकिन मैं तो उन्हें पाकर रहूँगा।’ छोटे राजकुमार ने आत्मविश्वास के साथ कहा।
ऐसा है तो ठीक है, मैं तुम्हें तुम्हारे मामा के पास भेजता हूँ। उसे यह हीरा दे देना तो वह समझ जाएगा कि मैंने तुम्हें भेजा है और तुम उसके भाँजे हो।’ राक्षस ने एक हीरा देते हुए छोटे राजकुमार से कहा।
छोटे राजकुमार ने हीरा लिया और दूसरे राक्षस के पास चल पड़ा। दूसरा राक्षस जवान था। उसने जैसे ही छोटे राजकुमार को देखा वैसे ही उसे खाने को लपका।
‘अरे अरे, मामा! ये क्या कर रहे हो? अपने भाँजे को खाओगे क्या?’ छोटे राजकुमार ने कहा और हीरा निकालकर उस जवान राक्षस को दे दिया।
जवान राक्षस हीरा देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। वह पहली बार अपने भाँजे से मिल रहा था। उसने छोटे राजकुमार से उसके आने का उद्देश्य पूछा। छोटे राजकुमार ने बताया कि उसे हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता ले जाना है। जिसे पाने में उसे छोटे राजकुमार की मदद करनी होगी।
‘ये दोनों तो मेरे दानवराज के पास हैं जिनके यहाँ मैं काम करता हूँ। यह दोनों तुम्हें नहीं मिल सकेंगे।’ मामा राक्षस ने कहा।
‘ठीक है, मैं उन्हें एक बार देख तो सकता हूँ?’ छोटे राजकुमार ने पूछा।
‘हाँ, मैं एक बार तुम्हें दिखा दूँगा।’ मामा राक्षस मान गया।
छोटा राजकुमार मामा राक्षस के साथ दानवराज के महल पहुँचा। वहाँ उसे हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता दिखाई दिए। अभी वह सोच ही रहा था कि इन दोनों को कैसे हथियाया जाए कि उसी समय दानवराज की पुत्री उधर आ निकली।
दानवराज की पुत्री ने छोटे राजकुमार को देखा तो बस, देखती ही रह गई। प्रथम दृष्टि में ही छोटा राजकुमार उसे भा गया। उसने यह बात तत्काल अपने पिता को बताई।
दानवराज ने मामा राक्षस को बुलाया और उससे छोटे राजकुमार के बारे में पूछ-ताछ की। जब दानवराज को पता चला कि वह मामा राक्षस का भाँजा है तो उसने अपनी पुत्री का विवाह छोटे राजकुमार से करने का निश्चय कर लिया।
दानवराज ने छोटे राजकुमार को अपने पास बुलाकर कहा कि वह उसकी पुत्री से विवाह कर ले।
‘यह तो मेरे लिए सौभाग्य की बात है दानवराज! किंतु मैं एक ही शर्त पर विवाह करने को तैयार हूँ यदि आप विवाह करने पर मुझे हंसराज घोड़ा औनर मुखबोलता तोता दे दें।’ छोटे राजकुमार ने कहा।
अपनी पुत्री के प्रेम को ध्यान में रखते हुए दानवराज ने छोटे राजकुमार की शर्त मान ली। इसके बाद छोटे राजकुमार ने अपना घोड़ा मामा राक्षस को उपहार में दे दिया और हंसराज घोड़े पर अपनी दुल्हन सहित सवार होकर, अपने कंधे पर मुखबोलते तोते को बिठाकर अपने राज्य की ओर चल पड़ा।
रास्ते में बुढ़िया की झोपड़ी मिली। जिसके दरवाज़े पर दो मेढे चर रहे थे। उन्हें देखते ही दानवराज की पुत्री ने बता दिया कि यह मेढे वास्तव में दो राजकुमार हैं। उसी समय बुढ़िया आ गई। छोटे राजकुमार ने तलवार से बुढ़िया की गर्दन काट दी। बुढ़िया की गर्दन कटते ही दोनों राजकुमार अपने असली रूप में आ गए। छोटे राजकुमार ने देखा कि ये तो उसके बड़े और मंझले भाई हैं, वह बहुत हर्षित हुआ। तीनों भाई छोटे राजकुमार की पत्नी सहित प्रसन्नतापूर्वक अपने महल में लौट आए।
हंसराज घोड़ा और मुखबोलता तोता देखकर राजा के सभी रोग दूर हो गए और वह पूर्णतया स्वस्थ होकर अपने पुत्रों की सहायता से राजकाज देखने लगा।
(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)