हँसी का कारण : लोककथा (उत्तराखंड)

Hansi Ka Karan : Lok-Katha (Uttarakhand)

मंगलू एक ग्वाला था । एक दिन जंगल में उसकी गाएँ चर रही थी । वह चीड़ के पेड़ों की छांव में बांसुरी बजा रहा था । बांसुरी की धुन जंगल में गूंज रही थी । तभी उस रास्ते उसने राजा के दल को जाते हुए देखा । मंगलू जोर से हँसा । वजीर ने इसे राजा का अपमान समझा । उसने राजा से मंगलू की शिकायत की । राजा ने मंगलू से हँसने का कारण पूछा । वह बोला - ’’मै समय आने पर बताऊंगा ।’’ राजा क्रोधित हो गया । उसने ग्वाला को जेल में बन्द करवा दिया । मंगलू ने राजा से निवेदन किया - ’’महाराज! मुझे बांसुरी बजाने का शौक है। मुझे जेल में भी बांसुरी बजाने की इजाजत दीजिए ।‘‘

’’तुम सुबह रोज सुरक्षाकर्मियों की उपस्थिति में बांसुरी बजाने जेल से थोड़ी देर के लिए बाहर लाए जाओगे । कुछ देर बाद फिर जेल में कैदी के रूप में रहोगे ।’’ - राजा ने मंगलू को आज्ञा दी।

राजा की एक लड़की थी । उसका नाम दिव्या था । वह खूबसूरत थी । उसे गाने का शौक था । एक दुर्घटना में उसकी याददाश्त चली गई थी । अब वह किसी से बात नहीं करती थी । गुमसुम रहती थी । राजा ने उसकी याददाश्त लौटाने के बहुत प्रयास किए किन्तु सब बेकार ।

रोज सुबह सुरक्षाकर्मियों की उपस्थिति में मंगलू जेल से बाहर आकर थोडी देर तक बांसुरी बजाता रहता । मंगलू की बांसुरी की धुन दिव्या के कानो तक भी पहुंचती । वह अपने कक्ष से बाहर आकर बांसुरी की धुन को सुनती रहती ।

एक दिन रानी ने दिव्या को बांसुरी की धुन सुनते हुए देखा । उसे बहुत समय बाद दिव्या के चेहरे पर खुशी दिखाई दी । रानी ने राजा को यह बात बता दी । राजा ने मंगलू को कैद से मुक्त करते हुए आज्ञा दी कि वह इसी दरबार में रहेगा और दिव्या को बांसुरी की धुन सुनाएगा । मंगलू ने ऐसा ही किया । धीरे-धीरे दिव्या के स्वास्थ्य में सुधार आने लगा । अब वह अपने परिवार वालों के साथ बातें भी करने लगी । कुछ दिनों के बाद वह गाने भी लगी । अब मंगलू बांसुरी बजाता और वह गाती । राजा और रानी दिव्या में आए परिवर्तन से बडे खुश थे ।

’’महाराज ! मंगलू ने हम पर इतना बड़ा उपकार किया है । मुझे लगता है दिव्या मंगलू को चाहती है । हमें दोनों की शादी करानी चाहिए । ’’ - एक दिन रानी ने राजा से कहा ।

’’महारानी ! हमारा कोई पुत्र नहीं है । हम जिसके साथ दिव्या का विवाह करेंगें उसे ही इस राज्य का उत्तराधिकारी भी बनाएगें । राज्य चलाने के लिए बुद्धि एवं चातुर्य आवश्यक है । जब हमें मंगलू में ये गुण दिखाई देगें , तभी हम दिव्या की शादी मंगलू से करेंगे ।’’- राजा ने रानी को समझाया ।

एक दिन पड़ोस के राजा वीरेन्द्र का दूत इस राजा के दरबार में आया । उसने राजदरबार में राजा वीरेन्द्र का संदेश पढ़कर सुनाया -

’’हम आपसे दो सवाल पूछते हैं । यदि आपने हमारे दो बौद्धिक सवालों के जवाब दे दिए तो हम आपके राज्य पर आक्रमण नहीं करेंगे । अगर आप जवाब नही दे पाए तो आपको बन्दी बनाकर हम आपके राज्य को अपने राज्य में मिला लेगें ।

पहला सवाल - ’’इस चाँदी के टुकडे को देखकर बताओ । इसमें हम कहाँ पर ,तुम कहाँ पर ? “ - चांदी के टुकड़े को दिखाते हुए दूत ने संदेश पढ़ा ।

अपने साथ लाए दो घोड़ों को राजदरबार में पेश करते हुए दूत ने दूसरा सवाल पढ़ा- ’’ यह दोनो घोड़े एक जैसे हैं । इनका रंग भी एक जैसा है । बताओ इनमें कौन पिता और कौन बच्चा है ? जो पिता है उसके भार के बराबर चांदी के सिक्के हमें भेजने होंगे । ‘‘

कोई भी राजदरबारी राजा वीरेन्द्र के भेजे इन सवालों के जवाब नहीं बता पाया । मंगलू ने कहा -’’महाराज! आपकी आज्ञा हो तो मै इन सवालों का जवाब बता सकता हूँ । ’’

’’बताओ ! “- राजा ने मंगलू को आज्ञा दी । मंगलू ने दूत के लाए चाँदी के टुकड़े को हाथ में पकड़ कर गौर से देखा । वह बोला - ’’महाराज! यह चाँदी का टुकड़ा पड़ोस के राजा वीरेन्द्र और आपके राज्य के नक्शे के रूप में है । इसमें ऊपर वाले बिन्दु पर आपका राज्य है और दूसरा राजा वीरेन्द्र के राज्य को दर्शा रहा है ।’’

मंगलू ग्वाला था ही वह पहले घोडों का व्यापार भी करता था । इसलिए उसे घोडों के स्वभाव के बारे में भी पता था । दूसरे सवाल का जवाब देते हुए मंगलू बोला -‘‘ दूत के लाए इन दो घोड़ों को मैदान में एक साथ छोड़ दिया जाए । जो घोडा आगे-आगे दौड़कर चले । थोड़ी देर बाद पीछे वाले का इंतजार करे, वह बच्चा है । दूसरा वाला घोड़ा उसका पिता है ।

राजा मंगलू की बुद्धिमता से प्रभावित हुआ । उसने दिव्या की शादी मंगलू से कर दी । और उसे अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया । मंगलू बोला - ’’ महाराज ! जंगल में आपके दल को देखकर जब मै हंसा था तो आपने मुझसे हंसने का कारण पूछा था । मैने कहा था समय आने पर बताऊँगा । आज वह समय आ गया है । मै यह सोचकर हँसा था कि मैं राजा की कन्या से विवाह करूंगा और स्वयं भी राजा बनूंगा । मै अपनी कल्पना पर ही हँसा था जो आज साकार हो गई है ।

(साभार : डॉ. उमेश चमोला)

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