हँसे क्यों, यह बताइए : कोंकणी/गोवा की लोक-कथा

Hanse Kyon Yeh Bataiye : Lok-Katha (Goa/Konkani)

किसी राज्य में एक राजा राज करता था। उसकी एक रानी थी। राजा के पास धन-दौलत, नौकरचाकर, सिपाही-सैनिक, दासियाँ-प्यादे, सबकुछ भरपूर थे। वह अपने जीवन में पूर्ण रूप से संतुष्ट था।

राजा के इस सुख को चार चाँद लगाने के लिए उसके घर में पुत्र जन्म लेता है। राजा की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। वह सारे राज्य में मिठाइयाँ बँटवाते हैं। परंपरा के अनुसार, सातवें दिन पुत्र की जन्मकुंडली पढ़ने के लिए महल में राज्य के सबसे बड़े विद्वान् पंडित को बुलाता है। तो परंपरा के अनुसार यह जन्मकुंडली सिर्फ राजा के सामने ही पढ़ी जाती है और किसी को वहाँ बैठने की अनुमति नहीं होती है।

तो पंडित आकर जन्मकुंडली पढ़ता है और बताता है कि राजपुत्र बड़ा ही भाग्यशाली होगा। वह बुद्धि-विद्या में तेज होगा। पराक्रमी होगा, अपने राजवंश का नाम रोशन करेगा। उसे और एक असामान्य गुण प्राप्त होगा। उसे जानवर, पंछी और जीवचरों की भाषा अवगत हो जाएगी, मात्र यह बात आपको गुप्त रखनी होगी। किसी को वह मालूम न होनी चाहिए। महारानी को भी नहीं। यदि यह बात किसी को मालूम हो गई तो राजपुत्र की जान खतरे में पड़ सकती है।

राजा ने 'ठीक है' कहकर पंडित को भरपूर दक्षिणा दी और घर विदा किया। जैसे कि पंडित ने बताया, राजा ने वह बात एकदम गुप्त रखी। भूलकर भी किसी को नहीं बताई।

तो समय गुजरता है। राजा बड़े लाड़-दुलार से राजपुत्र की परवरिश करता है। उसे अच्छी शिक्षा देता है। जब वह जवान हो जाता है, तब एक अनुरूप राजकन्या ढूँढ़कर उसकी शादी भी करवाता है।

तो और दो-चार साल गुजरते हैं। इस राजा और रानी का एक-एक करके देहांत हो जाता है। और यह राजपुत्र जो है, वह राजा बनता है और उसकी पत्नी रानी।

मरने से पहले राजा अपने पुत्र को उसके जीवन का वह गुप्त रहस्य बताना नहीं भूला था। उसने पुत्र को पास बुलाकर कहा था, "पुत्र, तुम्हें सब पंछी, जानवर, जीवचर आदि की भाषा अवगत होगी, लेकिन यह बात कभी किसी को नहीं बताना। अपनी पत्नी को भी नहीं।"

उसपर पुत्र ने कहा, "हाँ पिताजी, मैं आपकी बात का पालन करूँगा।"

कुछ समय बीतता है। नया-नया राजा बना राजपुत्र अच्छी तरह से राज-काज चलाता है। उसके राज्य में प्रजा सुख-शांति से रहती है।

ऐसे में होता है क्या है कि एक दिन राजा रात का भोजन ग्रहण करने के बाद पलंग पर सोने जाता है। तो रानी उसकी आरती करती है और राजा के लिए स्वयं अपने हाथों से पान-बीड़ा बनाने लगती है।

इतने में राजा को पलंग के नीचे से काली चींटियों की कतार दिखाई देती है। उनमें से सबसे आगेवाली चींटी कहती है-

"चलो-चलो, जल्दी चलो। राजा और रानी पलंग पर सोने आए हैं। हमें अब यहाँ से जल्दी निकलना चाहिए।"

उसके ऐसे कहने पर सभी चींटियाँ वहाँ से खिसकने लगती हैं। राजा उन चींटियों की बातें सुनता है, तो उसे हँसी आ जाती है। उसपर रानी पूछती है-

"आप हँसे क्यों?"बताइए!"

"अरे, यों ही हँसी आ गई।"

"नहीं-नहीं, आप बताइए, क्यों हँसे?"

राजा जो भी हँसने का कारण बताता, तो रानी, "हँसे, क्यों बताइए?" ऐसा ही कहती रहती है। इस तरह रात के बारह बजते हैं। आधी रात बीत जाती है भोर हो जाती है। और करते-करते दिन भी निकलता है। रानी एक ही रट लगाए बैठती है "हँसे, क्यों बताइए...?"

राजा सुबह की दैनिक क्रिया खत्म करके, चाय-नाश्ता कर, पोशाक धारण करके दरबार जाने के लिए निकलता है तो भी रानी एक ही बात पुन:-पुनः दोहराती रहती है।"

रानी ने अन्न-जल कुछ नहीं लेती।

दिन ढलकर रात हो जाती है। और रात बीतकर फिर सुबह हो जाती है, रानी वही बात पूछती जाती है।

राजा उसे हर तरह से समझाता है, लेकिन रानी एक भी बात नहीं मानती। अंत में राजा कहता है - "ठीक है, अब मैं बताता हूँ कि मैं क्यों हँसा, लेकिन एक बात है, यदि मैं तुम्हें हँसने का कारण बताता हूँ तो मेरी तुरंत मृत्यु हो जाएगी।"

रानी कहती है, "आप मर जाएँ तो भी कोई बात नहीं, लेकिन आप मुझे बताइए, आप हँसे क्यों?"

"सोच लो, मैं मर जाऊँगा!"

"ठीक है, मर जाइए!"

रानी कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं होती है। उसके सिर पर मानो भूत सवार होता था। वह सिर्फ एक ही सवाल पूछती जाती, "हँसे क्यों?"

राजा कहता है, "ठीक है, अब तुम चुपचाप खा-पीकर सो जाओ, मैं तुम्हें कल बताऊँगा कि मैं हँसा क्यों?"

"सच,...बताएँगे न?"

"हाँ, बताऊँगा।"

राजा ने 'हाँ' कहा, फिर भी रानी कि 'हँसे क्यों?' की रट बंद नहीं होती थी। वह कहती जा रही थी —'हँसे क्यों?'

तो इधर राजा क्या करता है कि प्रधान को बुलावा भेजता है। प्रधान आता है, तो राजा उसे सारी बात बताता है और उसे चिता की तैयारी करने को कहता है। सुनकर प्रधान को बहुत ही दुःख होता है, लेकिन वह भी असहाय था। रानी की हठ के आगे राजा की कुछ नहीं चली। वहाँ वह क्या कर सकता था?

प्रधान सिपहियों को राजा के लिए टिकट और चिता की तैयारी करने का आदेश देता है। सिपाही बेचारे रोते-रोते तैयारी करने लगते हैं।

इधर तेजी से बात सारी प्रजा में फैल जाती है। राजा मर जाएँगे, यह सोचकर प्रजा बड़ी दुःखी होती है। रानी मात्र 'हँसे क्यों, यह बताइए?" कहती जाती है।

कहते-कहते उसका प्राण मुँह तक आ जाता है, लेकिन वह कहना बंद नहीं करती।

अब राजा रानी को 'आइए मेरे पीछे' कहकर श्मशान की ओर प्रस्थान करता है। उसके पीछे कुछ दासियाँ रानी की दोनों भुजाओं को पकड़कर उसे श्मशान की ओर लेकर चलती हैं। उन दोनों के पीछे सारी प्रजा रोती हुई चलती है।

घर से निकलते वक्त राजा के मन में आता है कि शायद अब रानी के मन परिवर्तन हो गया हो। वह रानी से फिर एक बार बात करने का प्रयत्न करता है-

"देखो, श्मशान जाते ही मैं 'हँसे क्यों' यह बताऊँगा और तुरंत मर जाऊँगा, दुबारा तुम्हें कभी नहीं मिल पाऊँगा!"

"कोई बात नहीं, पर आप मुझे 'हँसे क्यों' यह बताइए!"

राजा के पास अब सच बताने के सिवा कोई उपाय नहीं रहता। वह श्मशान घाट की ओर सीधे चलने लगता है।

जब राजा अपने सारे दलबल के साथ श्मशान घाट की ओर चल रहा था, तब राजा को वहाँ रास्ते में एक बकरा और एक बकरी एक पेड़ के पत्ते खाते हुए देखते हैं। बकरा बार-बार पेड़ पर चढ़कर पत्ते खा रहा था, किंतु बकरी गर्भवती होने के कारण पेड़ पर चढ़ नहीं सकती थी, इसलिए उसे अच्छे पत्ते नहीं मिल रहे थे। वह बकरे से कहती है-"अजी, बार-बार पेड़ पर चढ़कर अकेले ही पत्ते खा रहे हो, मुझे भी थोड़े दे दीजिए।"

उसपर बकरा कहता है, "अरे वाह ! मैं तुम्हें भला पत्ते दूँगा। अरी, मैं हमारे राजा की तरह पागल थोड़े ही हूँ!"

"वो बात रहने दीजिए। मुझे थोड़े पत्ते तोड़कर दीजिए, मुझसे वह नहीं हो पाता।"

"नहीं हो पाता तो फिर भूखी रहो!"

"ऐसा क्यों करते हो आप?"

"तुम जितनी भी लल्लो-चप्पो की बात करो, मैं तुम्हें पत्ते तोड़कर नहीं देनेवाला हूँ, तुम चाहो तो उन शाखाओं को नीचे झुकाओ और पत्ते खाओ। इधर देखिए, पत्नी के हठ आगे सिर झुकाने का फल, हमारे राजा को देखिए, पत्नी के कहने पर मरने जा रहे हैं!"

राह चलते राजा के कानों में दोनों की बात पड़ती है। वह आश्चर्यचकित होकर वहीं खड़ा रहता है और उनकी आगे की बातचीत सुनता है।

आगे बकरी कहती है-

"वह राजा मरेगा नहीं तो क्या होगा? वह बताते क्यों नहीं कि हँसे क्यों?"

"अच्छा! बताना चाहिए?"सच कहो तो उन्हें कहना चाहिए कि मैं आज इमली के पेड़ की टहनियाँ तोड़कर उनसे तुम्हारी अच्छी पिटाई करनेवाला हूँ, इसलिए 'हँस' रहा हूँ! और तुम सुनो, यदि तुमने मुझे दुबारा बोला कि पेड़ के पत्ते तोड़कर दे दो, तो मैं भी तुम्हारी जबरदस्त पिटाई करनेवाला हूँ!"

राजा उन दोनों की बातचीत सुनता है और रानी को कहता है कि “घर वापस चलो।"

रानी पूछती है, "क्यों, क्या हुआ? आप तो यहाँ श्मशान में 'हँसे क्यों' यह बात बतानेवाले थे!"

"हाँ, कहा तो सही, लेकिन अब घर ही चलें, वहीं बतानेवाला हूँ, मैं तुम्हें सब।"

"ठीक है"आप घर पर बताएँगे तो चलो, चलते हैं घर।"

रानी कहती है और दासियों का सहारा लेकर राजमहल वापस जाती है। इधर राजा भी घर जाता है, लेकिन जाने से पहले वह श्मशान में इकट्ठा हुए लोगों से हाथ जोड़कर प्रार्थना करता है, आप सभी लोग अब घर जाइए। मैं भी अभी घर जा रहा हूँ।

लोगों को आश्चर्य होता है कि अचानक राजा ने फैसला क्यों बदला, अब राजा क्या करेंगे? घर जाकर मरने का दूसरा उपाय तो ढूँढ़ेगे नहीं न!

लेकिन किसी को राजा से पूछने की हिम्मत नहीं होती, सब चुपचाप घर चले जाते हैं।

इधर राजमहल पहुँचकर राजा प्रधान से कहता है, “प्रधानजी, मुझे इमली की कुछ टहनियाँ (बहुत लचीली होती हैं और उनसे पीटा जाए तो बहुत दर्द होता है) लाकर दे दो।"

"लेकिन राजा साहब, आप इमली की टहनियों का क्या करेंगे?"

"उससे आपको कोई मतलब नहीं है, प्रधानजी! आपको जो कहा, वही करो!"

तो प्रधान राजा की आज्ञा के अनुसार इमली के पेड़ की टहनियाँ लाकर राजा को देता है। फिर उत्सुकता से राजा को पूछता है, “राजसाहब, आप इसका क्या करेंगे?"

"कुछ नहीं, आप जाइए!"

प्रधान बेचारा मुँह लटकाकर चला जाता है और राजा अंदर जहाँ रानी बैठी थी, वहाँ महल में जाता है। जाकर सब दासियों को बाहर जाने की आज्ञा देता है। जैसे ही दासियाँ बाहर जाती हैं, राजा महल का दरवाजा बंद करता है और इमली की टहनियों से रानी को छपाछप पीटने लगता है। इमली की लचीली टहनियाँ जोर से शरीर पर पड़ने से रानी के शरीर पर निशान उठते हैं और उसे बहुत दर्द होता है। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगती है, फिर भी राजा पीटना बंद नहीं करता। आखिर जब रानी को मूर्च्छा आने लगती है, तब राजा रुकता है, दरवाजा खोलकर दासियों को अंदर बुलाता है और रानी के मुँह पर पानी छिड़कने के लिए कहता है।

दासियाँ जल्दी-जल्दी रानी के मुँह पर पानी छिड़ककर उसे होश में लाती हैं। रानी को जब होश आता है, तब राजा कहता है-

"अब बताऊँ मैं 'क्यों हँसा' था?" उसी अवस्था में रानी बोलती है, "क्यों हँसे थे आप?"

"मुझे किसी इनसान ने बताया था कि आज मेरे हाथों से तुम्हारी अच्छी-खासी पिटाई होनेवाली है, इसलिए मुझे हँसी आ रही थी। अब तुम दुबारा कभी मुझसे पूछोगी कि मैं 'क्यों हँसा था?" राजा कहता है।

"न भगवान् ! मैं अब कभी भी इस तरह से नहीं पूछूगी। इस बार पूछा तो मुझसे गलती हो गई!" कहकर वह राजा के पैर पकड़ने लगती है। राजा उसे ऊपर उठाता है।

"कोई बात नहीं, मैंने तुम्हें माफ कर दिया है ! अब हम दोनों आराम से रहेंगे!"

उसके बाद राजा और रानी खुशहाल जीवन बिताते हैं और अपनी प्रजा की अच्छी तरह देखभाल करते हैं।

  • गोवा/कोंकणी कहानियां और लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां