हैमलेट (नाटक कहानी के रूप में) : विलियम शेक्सपियर
Hamlet (English Play in Hindi) : William Shakespeare
डेनमार्क से कुछ दूरी पर एक खूबसूरत देश था। वहाँ हैमलेट नाम का राजा राज्य करता था। उसका विवाह एक अत्यंत सुंदर राजकुमारी के साथ हुआ। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्रेम करते थे तथा एकदूसरे के लिए हमेशा प्राण तक न्योछावर करने के लिए तैयार रहते थे। विवाह के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम कुमार हैमलेट रखा गया। बचपन से ही वह माता की अपेक्षा अपने पिता से अधिक प्रेम करता था। महाराज हैमलेट का क्लेदियस नामक एक छोटा भाई भी था। वह उन्हीं के साथ रहता था। इस प्रकार वे सुखपूर्वक जीवन बिता रहे थे। हैमलेट के राज्य में सुख-समृद्धि का वास था। उसने लोगों की भलाई के लिए अनेक कार्य किए। यही कारण था कि प्रजा ऐसा राजा पाकर स्वयं को धन्य समझती थी।
एक दिन भयंकर दुर्घटना घटी; राजा हैमलेट स्वर्ग सिधार गए। उनकी मृत्यु के बारे में क्लेदियस के अतिरिक्त कोई नहीं जानता था। आँखों में आँसू भरकर उसने भारी मन से घोषणा की कि एक जहरीले सर्प के काटने से महाराज हैमलेट काल का ग्रास बन गए हैं।
हैमलेट की मृत्यु का समाचार प्रजा पर कड़कती बिजली बनकर गिरा। प्रजा अपने राजा हैमलेट को बहुत प्रेम करती थी। इस समाचार ने उन्हें दुख के गहरे सागर में डुबो दिया। सारे राज्य में शोक की लहर दौड़ गई।
इस दुर्घटना का सबसे बुरा असर राजकुमार हैमलेट पर पड़ा। वह अपने पिता से बहुत स्नेह करता था। उसका अधिकांश समय उन्हीं के साथ व्यतीत होता था। उसका नन्हा दिल पिता की मृत्यु से बिलकुल टूट गया। उसकी आँखों से निरंतर आँसू बहते रहते। उसकी भूख-प्यास और नींद समाप्त हो गई थी। किसी तरह समझा-बुझाकर उसे सुलाया जाता। परंतु आधी रात के समय पिता को पुकारते हुए वह बिस्तर से उठ बैठता। उसके बाद सारी रात करवटें बदलते या रोते हुए गुजार देता था।
इसी प्रकार दो महीने बीत गए। लेकिन अब भी उसके दिलो-दिमाग पर पिता की छाप ताजा थी। एक पल के लिए भी वह पिता को नहीं भूला था। वह उनके कक्ष में जाकर घंटों रोया करता था।
अभी वह स्वयं को सँभाल भी नहीं पाया था कि एक दिन एक समाचार सुनकर वह आश्चर्यचकित रह गया। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। जिस माँ ने जीवित रहते उसके पिता को अथाह प्यार दिया था, जो उनके लिए अपना सबकुछ न्योछावर करने को तत्पर रहती थी, उसी ने उसके चाचा क्लेदियस के साथ विवाह कर लिया था। इस बारे में उसने उसे भी कुछ बताना उचित नहीं समझा था। सारा कार्य बड़े गुप्त ढंग से संपन्न हुआ था।
यह विवाह किसी भी प्रकार से उपयुक्त नहीं कहा जा सकता था। जहाँ रानी सुंदरता की मूर्ति थी, वहीं क्लेदियस बहुत काला, भद्दा और असामान्य कठ-काँठी का व्यक्ति था। ढूँढ़ने पर भी उसमें कोई गुण नजर नहीं आता था। स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो वह किसी भी तरह से रानी और राजसिंहासन के योग्य नहीं था। परंतु यह बात केवल हैमलेट समझता था, रानी ने तो इस ओर से अपनी आँखें मूंद रखी थीं।
रानी ने इस विवाह के लिए बहुत जल्दी अपनी स्वीकृति दे दी थी, यही बात हैमलेट को सबसे अधिक चुभती थी। उसके पिता को गुजरे अभी दो महीने ही हुए थे और उसकी माँ ने दूसरा विवाह कर लिया था। पति के लिए उसकी माँ के मन में जो प्रेम था, जो समर्पण भाव था, वह इतनी जल्दी कहाँ लुप्त हो गया—इस बात ने हैमलेट को चिंता में डाल दिया।
एक दिन हैमलेट अपने कक्ष में बैठा पिछले कुछ महीनों में घटित घटनाओं के बारे में सोच रहा था, तभी एकाएक उसके मस्तिष्क में एक विचार कौंधा—'इस विवाह के पीछे कहीं कोई षड़यंत्र तो नहीं है?' उसने पुनः सभी कड़ियों को जोड़ा और सिलसिलेवार सोचने लगा—'सबसे पहले जहरीले सर्प के काटने पर मेरे पिता की मृत्यु हुई। परंतु इसके बारे में केवल क्लेदियस को पता था। फिर कुछ दिनों बाद उन्होंने और मेरी माँ ने विवाह कर लिया। कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे पिता की मृत्यु के पीछे इन दोनों का हाथ हो? कहीं इन्होंने ही तो सर्प बनकर उन्हें नहीं डंस लिया? राजसिंहासन का लोभ अच्छे-अच्छों को बुरा काम करने के लिए विवश कर देता है। अवश्य इन्होंने लोभ में आकर मेरे पिता को मरवा दिया और अब वे इस राज्य को हथिया लेना चाहते हैं।'
हैमलेट जितना सोचता उतना ही विचारों की गुत्थियों में उलझता जाता। अधिक सोचने के कारण दिन-दिन उसका स्वास्थ्य गिरने लगा। शरीर सूखकर काँटे की तरह हो गया, चेहरा पीला पड़ गया, आँखें अंदर की ओर धंस गई । लोग उसकी हँसी सुनने को तरस गए। उसके स्थान पर अब वह अत्यंत गंभीर और खोया-खोया-सा दिखाई देता था।
एक दिन वह महल के शाही बाग में टहल रहा था कि तभी एक पहरेदार आया और डरते-डरते बोला-"राजकुमार, कुछ दिनों से मैं महाराज को महल में देख रहा हूँ। अवश्य वह उनकी आत्मा है, जो तीन दिन से दिखाई दे रही है। यद्यपि उन्होंने किसी को कुछ नहीं कहा, परंतु उनकी चाल-ढाल से लगता है कि वे किसी को ढूँढ़ रहे हैं।"
यह बात हैमलेट के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं थी। उसके पिता की आत्मा अभी महल में उपस्थित है, यह जानकर जहाँ उसे प्रसन्नता हुई, वहीं वह सोच में पड़ गया। धीरे-धीरे उसे विश्वास हो गया कि हो-न-हो, महाराज उसे ही ढूँढ़ रहे हैं। अवश्य वे उससे कुछ कहना चाहते हैं। अंतत: राजकुमार ने पिता से मिलने का निश्चय कर लिया।
उसी रात वह पहरेदारों के साथ उस स्थान पर जा बैठा, जहाँ उसके पिता की आत्मा को भटकते हुए देखा गया था। उसने इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताया।
आधी रात का समय था; राजकुमार की आँखों से नींद कोसों दूर थी। तभी एक पहरेदार पास आकर धीरे से बोला, "वह देखिए, राजकुमार! चबूतरे पर महाराज की आत्मा।"
राजकुमार ने जल्दी से चबूतरे की ओर देखा। राजसी पोशाक पहने एक छाया धीरे-धीरे चलती हुई उसकी ओर आ रही थी। चाल-ढाल और वस्त्रों से राजकुमार पहचान गया कि यह उसके पिता ही हैं। उन्होंने वही पोशाक पहन रखी थी, जो मृत्यु के समय उनके शरीर पर थी। चाँद की रोशनी में वे उसे स्पष्ट नजर आ रहे थे।
वह 'पिताजी' कहकर तेजी से उनकी ओर लपका। पहरेदारों ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह स्वयं को छुड़वाकर उस ओर बढ़ गया। जब दोनों के बीच कुछ कदमों की दूरी रह गई, तब उस छाया ने उसे एक एकांत कोने की ओर चलने का संकेत किया।
एक पल के लिए हैमलेट का चेहरा पसीने से भीग उठा। वह सोचने लगा—'कहीं वह कोई और प्रेतात्मा तो नहीं, जो उसके पिता के वेश में वहाँ घूम रही है? कहीं वह उसका अहित न कर दे।' वह जहाँ-का-तहाँ रुक गया। तभी उसकी अंतरात्मा बोली, 'राजकुमार, व्यर्थ का संदेह मत करो। इनसे भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है। ये तुम्हारे पिता हैं।'
राजकुमार के मन का भय समाप्त हो गया और वह छाया के साथ एक कोने में पहुँचा। छाया ने नजरें उठाकर इधर-उधर देखा। दूर-दूर तक कोई नहीं था, जो उनकी बातें सुन सके। आश्वस्त हो जाने के बाद छाया के मुख से पहला शब्दा निकला-"कुमार! मेरे बेटे!"
एक लंबे अरसे के बाद अपने पिता की स्नेहयुक्त आवाज सुनकर राजकुमार की आँखों में आँसू उमड़ आए, उसका गला रुंध गया। दिल चाहा कि वह दौड़कर पिता से लिपट जाए, उनसे लाड़ करे। परंतु उन्होंने उसे रोक दिया। तब राजकुमार स्वयं को संयत करते हुए बोला, "पिताजी, अभी तक आप इस प्रकार भटक क्यों रहे हैं? कौन सी बात आपकी मुक्ति में बाधा बन रही है? क्यों आपकी आत्मा बेचैन है? मुझे सबकुछ स्पष्ट रूप से बताइए।"
छाया धीरे से बोली, "पुत्र, इन सबका एक ही कारण है, और वह कारण है मेरी रहस्यमयी हत्या।"
"हत्या! यह क्या कह रहे हैं आप, पिताजी? चाचाजी ने तो कहा था कि आपकी मृत्यु सर्प के काटने से हुई थी।"राजकुमार ने आश्चर्य में भरकर पूछा।
"कुमार, मेरी मृत्यु सर्प के काटने से नहीं हुई; मेरी हत्या हुई है। तुम्हें यही बात बताने के लिए अब तक मेरी आत्मा भटक रही थी। आज इस रहस्य से परदा उठाकर मेरी आत्मा को शांति मिलेगी।"छाया शांत स्वर में बोली।
"परंतु आपकी हत्या कौन कर सकता है? किसने यह नीच काम किया है? आप मुझे बताइए, उस दुष्ट को मैं स्वयं अपने हाथों से दंडित करूँगा।"राजकुमार उत्तेजित होते हुए बोला।
"शांत हो जाओ, कुमार!यह कार्य आवेश में आकर करने का नहीं है। तुम मन को शांत करके धैर्यपूर्वक मेरी बात सुनो।"
राजकुमार कुछ देर तक आँखें बंद करके स्वयं को शांत करता रहा। फिर उसने पिता से सारी बात बताने के लिए कहा।
तब छाया सत्य से परदा हटाते हुए बोली, "कुमार, मेरी हत्या करने वाला कोई और नहीं, मेरा अपना ही भाई है। हाँ, मेरी हत्या क्लेदियस ने की है। जिस दिन मेरी मृत्यु हुई, उस दिन मैं सभी दैनिक कार्य निबटाकर शाही बाग में विश्राम कर रहा था। ठंडी हवाओं के कारण मुझे नींद आ गई। उस समय कोई भी मेरे आस-पास नहीं था। अवसर उचित जानकर क्लेदियस वहाँ आया और मेरे कान में विषैले द्रव्य की दो बूंदें डाल दीं। उस द्रव्य के प्रभाव से मेरी नसें जल उठीं और मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने के बाद शांत हो गया। इस तरह उसने सबकुछ छीनकर भटकने के लिए मुझे इस लोक में धकेल दिया। कुमार, यदि मुझसे प्यार है तो प्रतिज्ञा करो, तुम क्लेदियस से मेरी मृत्यु का प्रतिशोध अवश्य लोगे। तभी मेरी आत्मा को शांति और मुक्ति मिलेगी। अन्यथा मैं युगों-युगों तक इसी प्रकार भटकता रहूँगा।"
राजकुमार को पहले से क्लेदियस पर शक था। पिता की बात ने उसके शक को यकीन में बदल दिया था। वह प्रतिज्ञा करते हुए बोला, "पिताजी, क्लेदियस ने आपको मुझसे छीना है। मैं उससे आपकी हत्या का प्रतिशोध लेकर रहूँगा। जब तक मैं प्रतिशोध नहीं लूँगा, तब तक चैन से नहीं बैठूँगा।"
"लेकिन एक बात का ध्यान रखना, कुमार! तुम अपनी माता को क्षमा कर देना। उसने जाने-अनजाने जो पाप किया है, उसका फल उसे स्वयं ईश्वर प्रदान करेंगे।"
इसके बाद छाया वहाँ से अदृश्य हो गई। हैमलेट ने बेचैन होकर पिता को पुकारा, परंतु कोई प्रत्युत्तर नहीं मिला। अंततः वह सिर झुकाए कक्ष में लौट आया।
हैमलेट ने जो प्रतिज्ञा की थी, वह उसे जल्दी-से-जल्दी पूरा कर लेना चाहता था, जिससे उसके पिता की आत्मा को शांति मिल सके। लेकिन ऐसे कार्य में जल्दबाजी उसकी असफलता का कारण भी बन सकती थी। इसलिए उसने योजनाबद्ध तरीके से इस कार्य को पूरा करने का निश्चय किया।
हैमलेट अत्यंत सरल और सीधे स्वभाव का था। किसी की हत्या का षड़यंत्र रचना तो दूर, वह किसी को बुरा-भला भी नहीं कह सकता था। इसके अतिरिक्त क्लेदियस के गुप्तचरों की भी उस पर कड़ी नजर थी। हैमलेट सतर्क था, इसलिए गुप्तचरों की निगरानी की बात जानता था। उसे सबसे पहले इस निगरानी से छुटकारा पाना था, तभी वह कोई योजना बना सकता था। अतः उसने एक चाल चली और पागलों की तरह व्यवहार करने लगा। उसने ऐसा अभिनय किया कि उसकी चाल-ढाल, व्यवहार और हरकतों को देखकर सभी को उसके पागल होने का विश्वास हो गया।
क्लेदियस को उससे कोई खतरा नहीं रहा। उसे चुनौती देनेवाला पागल हो चुका है, इस विचार ने उसे राजकुमार की ओर से लापरवाह बना दिया। इसी के चलते उसने गुप्तचरों को भी निगरानी से हटा दिया।
दरबार में एक वजीर था, जिसकी ओफीलिया नाम की एक पुत्री थी। राजकुमार उसे बहुत प्रेम करता था, परंतु ओफीलिया उससे दूर-दूर रहती थी। सभी ने सोचा कि शायद प्यार में मिली असफलता ने ही राजकुमार के होशो-हवास छीन लिये हैं। यह बात हैमलेट के लिए मददगार सिद्ध हो सकती थी। उसने इसका लाभ उठाने का निश्चय कर उसी समय ओफीलिया के नाम एक पत्र लिखा।
पत्र की भाषा बहुत ही उलझी हुई और अटपटी-सी थी। किसी के लिए भी उसे समझना बहुत मुश्किल था। फिर भी उसका सार केवल इतना था कि वह ओफीलिया से बहुत प्रेम करता था और उसी के कारण उसका यह हाल हुआ है। ओफीलिया ने यह पत्र पिता को और उसने क्लेदियस को दिखाया। उसका रहा-सहा संदेह भी जाता रहा। उसने राजकुमार को पूरी तरह से स्वतंत्र कर दिया। अब वह कहीं भी बेरोट-टोक आ-जा सकता था।
हैमलेट ने जैसा सोचा था, उसमें वह पूरी तरह से सफल रहा। अब उसने योजना बनाकर क्लेदियस के विरुद्ध षड़यंत्र रचना आरंभ कर दिया।
उन्हीं दिनों नगर में एक नाटक मंडली आई हुई थी। वह प्रतिदिन जिस नाटक का मंचन करती थी, उसमें एक राजा की हत्या के षड़यंत्र के बारे में दिखाया जाता था। वह दृश्य इतना स्वाभाविक और वास्तविकता के पास प्रतीत होता था कि दर्शकों की आँखें भर आतीं, उनका मन दुखी हो जाता। यह नाटक बड़ा लोकप्रिय हुआ। राजकुमार हैमलेट ने भी एक बार वह नाटक देखा था। उसे देखकर उसे अपने पिता की मृत्यु का दृश्य याद आ गया।
तभी उसे एक विचार सूझा। उसने सोचा—'नाटक मंडली के साथ मिलकर राजा की मृत्यु के दृश्य में फेर-बदल कर दिया जाए और उसे देखने के लिए क्लेदियस को आमंत्रित किया जाए। यदि अपने पाप को लेकर उसके मन में जरा भी पश्चात्ताप हुआ तो उसके हाव-भाव ही उसके गुनाह को प्रकट कर देंगे।'
यह सोचकर उसने नाटक मंडली के सदस्यों को महल में आमंत्रित किया और उनके समक्ष एक प्रस्ताव रखते हुए बोला, "मैंने एक नाटक लिखा है। मेरी इच्छा है कि आपकी मंडली के अनुभवी कलाकार उसमें मंचन करें। इसके लिए आपको उचित पारिश्रमिक भी दिया जाएगा।"
"राजकुमार, आपके लिखे नाटक में काम करके हम स्वयं को धन्य समझेंगे। लेकिन क्या हम नाटक की कथा संक्षेप में सुन सकते हैं? इससे हमें नाटक को समझने में आसानी रहेगी।"नाटक मंडली के प्रमुख ने प्रसन्न होकर कहा।
राजकुमार नाटक की कथा सुनाते हुए बोला, "यह नाटक गुंजाक नामक राजा की कहानी है। गुंजाक विएना नगरी का राजा था। वह अपनी रानी बेपतिस्ता को बहुत प्रेम करता था। रानी भी उसे दिलोजान से चाहती थी। राजा का लोशियन नामक एक चचेरा भाई था। एक दिन गुंजान शाही बाग में सो रहा था। उस समय लोशियन ने उसके कान में विषैले द्रव्य की कुछ बूंदें डाल दीं। इसके फलस्वरूप राजा की जान चली गई। फिर लोशियन ने बेपतिस्ता से विवाह कर लिया और उस नगरी का राजा बन बैठा।"
हैमलेट की यह कहानी क्लेदियस के पापकर्म पर आधारित थी। बस बदले थे तो केवल पात्रों के नाम। नाटक मंडली को कहानी अच्छी लगी और उन्होंने उसमें काम करना स्वीकार कर लिया।
निश्चित समय पर नाटक का मंचन हुआ। उसे देखने के लिए क्लेदियस और रानी को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। नाटक के आरंभ में रानी बेपतिस्ता पति के सामने अपने प्यार की कसमें खा रही थी। यह दृश्य देखकर रानी के चेहरे का रंग उड़ गया। वह पसीने से तर-बतर हो गई।
अगले दृश्य में राजा को एक बाग में विश्राम करते दिखाया गया। दूसरी ओर से लोशियन विषैले द्रव्य की शीशी लेकर बाग में दाखिल हुआ। उसने सोते हुए राजा के कान में विष की कुछ बूंदें डाल दीं। अब चौंकने की बारी क्लेदियस की थी; उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। जिस पाप को वह छिपा हुआ रहस्य समझ रहा था, सामने मंच पर उसका खुले तौर पर मंचन हो रहा था। उसकी साँसें थमने लगीं, दिल सीना फाड़कर बाहर आने के लिए बेताब हो उठा। वहाँ और अधिक देर तक बैठना उसके लिए असंभव हो गया। अतः तबीयत खराब होने का बहाना बनाकर वह रानी सहित वहाँ से चला गया।
इस नाटक के मंचन के पीछे हैमलेट का जो उद्देश्य था, वह पूरा हो चुका था। वह एक कोने में बैठा सब देख रहा था। उसके पास ही उसका एक विश्वसनीय मित्र बैठा था। दोनों ने क्लेदियस और रानी के चेहरों के उड़ते हुए रंग को देखा था। बार-बार घबराकर एक-दूसरे को देखना और माथे से पसीना पोंछना भी उनसे छिपा नहीं था। जब वे दोनों नाटक छोड़कर जा रहे थे, तब हैमलेट ने मित्र से कहा, "मित्र, क्लेदियस की बेचैनी उसके अंदर के चोर को उजागर कर रही है। इसमें कोई शक नहीं रहा कि उसने ही मेरे पिता की हत्या की है।"
"मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ। यही तुम्हारे पिता का हत्यारा है।"वह मित्र आवेश में भरकर बोला।
"शांत हो जाओ, मित्र! दीवारों के भी कान होते हैं। यह स्थान इस प्रकार की बातों को करने का नहीं है। हम इस विषय में बाद में बात करेंगे।'हैमलेट ने तेजी से मित्र को चुप करवा दिया।
नाटक समाप्त हुआ और सभी उसकी प्रशंसा करते हुए वहाँ से चले गए।
उसी रात रानी ने एक आवश्यक काम का बहाना करके हैमलेट को अपने कमरे में बुलाया। हैमलेट को पता था कि नाटक देखने के बाद क्लेदियस और भी सतर्क हो जाएगा तथा अपनी चालें चलना शुरू कर देगा। इसलिए जब उसकी माँ ने उसे अपने कक्ष में बुलाया तो वह समझ गया कि निर्णायक समय पास आ पहुँचा है। उसे अपनी माँ से घृणा होने लगी, क्योंकि वह भी हत्यारे का साथ दे रही थी। लेकिन उसे अपने पिता के शब्द याद थे। इसलिए उसने निश्चय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह अपनी माँ का कोई अहित नहीं करेगा।
किसी प्रकार स्वयं को नियंत्रित करके हैमलेट रानी के कक्ष में प्रविष्ट हुआ। उस समय रानी खिड़की के पास खड़ी बाहर की ओर देख रही थी। कदमों की आहट पाकर वह मुड़ी और उसे संबोधित करते हुए बोली, “आओ कुमार, बैठो।"
"आपको जो कहना हो, ऐसे ही कह दें।''हैमलेट ने रूखे स्वर में कहा।
"तो सुनो, कुमार! तुम जो कुछ कर रहे हो, वह ठीक नहीं है। अपने पिता के विरुद्ध ऐसा कार्य करते तुम्हें लज्जा नहीं आती। क्यों कर रहे हो ऐसा?"इस बार रानी का स्वर थोड़ा कठोर हो गया था।
हैमलेट समझ गया कि रानी का संकेत क्लेदियस की ओर है। उसका मुँह कड़वाहट से भर उठा और वह तीखे स्वर में बोला, "आप किस पिता की बात कर रही हैं? वह जो वास्तव में मेरे पिता थे या फिर उसकी, जो मेरा पिता बनने की कोशिश कर रहा है?"
रानी उसके पास आकर बोली, "मैं महाराज क्लेदियस की बात कर रही हूँ। अब वे ही तुम्हारे पिता हैं।''
क्लेदियस के लिए 'पिता' शब्द सुनकर राजकुमार का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। वह मुँह से आग उगलते हुए बोला,"क्लेदियस मेरा पिता कभी नहीं हो सकता। वह मेरे स्वर्गीय पिता का हत्यारा है। उस आस्तीन के साँप को पिता कहने से पहले मेरी जिह्वा जल जाएगी। मेरी तलवार उसका रक्त पीने के लिए तरस रही है। जब तक उस पापी को मैं मौत के घाट नहीं उतारूँगा, तब तक मुझे चैन नहीं मिलेगा।"
राजकुमार का ऐसा रौद्र रूप देखकर रानी भय से थर-थर काँपने लगी। उसे लगा, मानो स्वयं महाराज उसके सामने आकर खड़े हो गए हों। वह कुछ कदम पीछे हटी और तेजी से कक्ष से बाहर जाने के लिए मुड़ी।
लेकिन राजकुमार ने आगे बढ़कर उसका मार्ग रोक लिया और कठोर स्वर में बोला, "रानी माँ! जाने से पहले आपको मेरे एक प्रश्न का उत्तर देना होगा, अन्यथा मैं आपको यहाँ से बाहर नहीं जाने दूंगा।"
"मैं तेरी माँ हूँ। मुझसे ऐसे बात करते हुए तुझे शर्म नहीं आती! मैं यहाँ से जा रही हूँ। देखती हूँ, तू क्या करता है?"यह कहकर जैसे ही रानी ने आगे कदम बढ़ाया, वैसे ही राजकुमार ने उसका हाथ पकड़ लिया। रानी ने हाथ छुड़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन असफल रही।
राजकुमार का गुस्से से भरा चेहरा देखकर वह पहले ही भयभीत थी। हाथ पकड़ने की घटना से उसका रहा-सहा साहस भी जवाब दे गया। वह सहायता के लिए चिल्लाने लगी। तभी बरामदे में लगे परदे के पीछे से भी बचाओ, बचाओ' की आवाजें आने लगीं। यह आवाज किसी पुरुष की थी।
क्लेदियस परदे के पीछे खड़ा होकर उनकी सारी बातें सुन रहा था। लेकिन रानी को खतरे में पड़ा देखकर वह सहायता के लिए सैनिकों को पुकार रहा है। यह सोचकर हैमलेट ने तलवार निकाल ली और रानी को छोड़कर परदे के पास पहुँच गया। फिर उसने बिना परदा हटाए तलवार से उस पर वार कर दिया।
कक्ष में एक चीख पूँजी और फिर धड़ाम से किसी के गिरने की आवाज के साथ सब कुछ शांत हो गया।
'परदे के पीछे छिपा आदमी मारा जा चुका है। यह सोचकर राजकुमार निश्चिंत हो गया था। वह उस व्यक्ति को देखना चाहता था। उसने आगे बढ़कर परदा एक ओर सरका दिया। जमीन पर ओफीलिया के पिता की लाश पड़ी थी। वह क्लेदियस का विश्वासपात्र था और उसी के कहने पर वहाँ छिपकर उनकी बातें सुन रहा था।
राजकुमार के मुँह से अफसोस भरी आह निकली, "अनजाने में मैंने इनकी हत्या कर दी। इसके लिए ओफीलिया मुझे कभी माफ नहीं करेगी।"
इसके बाद हैमलेट रानी की ओर मुड़ा। उसके हाथ में खून सनी तलवार देखकर रानी की साँसें उखड़ने लगीं। हालत ऐसी हो गई मानो उसके प्राण निकलने वाले हों। हैमलेट ने तलवार नीचे कर ली और रानी के कंधों पर हाथ रखकर स्नेह भरे स्वर में बोला, "माँ, तुम्हें मुझसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं तुम्हारा पुत्र हूँ; मैंने तुम्हारे अंश से जन्म लिया है। आज भी मैं तुम्हारा उतना ही सम्मान करता हूँ जितना पहले करता था। परंतु माँ, यह सच है कि क्लेदियस ने महाराज की हत्या की है। उसके हाथ महाराज के खून से रँगे हुए हैं। उसने सिंहासन पर अधिकार करने के लिए ही आपसे विवाह किया है। उस जैसे पापी और नीच का साथ देकर आप अपने वंश को कलंकित कर रही हैं।"
राजकुमार की बातें सुनकर रानी की नजरें शर्म से झुक गई । उसके पास कहने को कुछ भी नहीं बचा था।
हैमलेट ने माता का चेहरा ऊपर उठाया और दीवार पर टँगी महाराज की तसवीर की ओर संकेत करते हुए बोला,"देखो माँ, पिताजी हमारी ओर कितनी उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं। वे अपने हत्यारे से प्रतिशोध चाहते हैं। वे चाहते हैं कि हम एक साथ क्लेदियस को उसके किए की सजा दें। इस काम में आप मेरी सहायता करेंगी?"
हैमलेट के मुँह से यह स्नेहपूर्ण शब्द सुनकर रानी की आँखों में आँसू भर आए। उसके मन में ममता का सागर हिलोरें लेने लगा। उसने पुत्र को गले से लगा लिया।
हैमलेट उसे सांत्वना देते हुए बोला, "तुम चिंता मत करो, माँ! मैं क्लेदियस को उसके किए की सजा अवश्य दूंगा। मुझे सिर्फ आपके आशीर्वाद की जरूरत है, जिससे मैं..."
तभी कमरे में एक स्वर गूंज उठा, जिसने राजकुमार की बात को पूरा कर दिया, "अपने पिता की हत्या का बदला ले सकूँ।"
राजकुमार ने चौंककर स्वर की दिशा की ओर देखा। वहाँ उसके पिता की आत्मा खड़ी हुई थी। वह खुशी से चीख पड़ा, "पिताजी, आप आ गए, पिताजी!"
महाराज की आत्मा शांत स्वर में बोली, "पुत्र, मैं तुम्हें यहाँ तुम्हारे कर्तव्य की याद दिलाने आया हूँ। तुम्हें अपनी प्रतिज्ञा याद है न, कुमार? तुम्हें क्लेदियस से मेरी हत्या का बदला लेना है।"
"पिताजी, मैं यह बात कभी नहीं भूल सकता। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए मैं अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटूंगा। उसे अपने पाप का फल अवश्य भुगतना होगा।''राजकुमार उत्तेजित होकर बोला।
"पुत्र! याद रखना, जब तक क्लेदियस जीवित है तब तक मेरी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। मैं इसी तरह यहाँ-वहाँ भटकता रहूँगा। उससे प्रतिशोध ही मेरी मुक्ति का एकमात्र उपाय है।"यह कहकर राजा की आत्मा अदृश्य हो गई।
रानी आश्चर्यचकित होकर कभी राजकुमार को देख रही थी तो कभी उस स्थान की ओर जिस ओर राजकुमार मुँह करके बोल रहा था। न तो उसे वहाँ कोई दिखाई दिया, न ही उसने किसी की आवाज सुनी। परंतु उसे अपने चारों ओर सर्द-सी एक लहर अवश्य महसूस हो रही थी। उसी के कारण वह थरथर काँप रही थी।
हैमलेट जानता था कि रानी महाराज की आत्मा की उपस्थिति से पूरी तरह अनजान है। इसलिए उसने भी इस विषय में उसे कुछ नहीं बताया। वह केवल इतना ही बोला,"माँ, आप क्लेदियस से सावधान रहना। जो पापी एक हत्या कर सकता है, उसे दूसरी हत्या करने से कोई डर नहीं लगेगा। अगर उसे पता चल गया कि आप मेरा साथ दे रही हैं तो वह आपको भी जीवित नहीं छोड़ेगा। इसलिए जो कुछ भी करना, सोच-समझकर करना।" यह कहकर वह कक्ष से बाहर चला गया।
उधर, क्लेदियस को गुप्तचरों द्वारा माता-पुत्र के इस मिलन की खबर मिल गई थी। उसने निश्चय कर लिया कि वह कल ही राजकुमार को विदेश भेज देगा।
दूसरे दिन प्रात:काल उसने हैमलेट को बुलाया और कठोर स्वर में बोला, "कुमार, कल रात तुमने सबसे वरिष्ठ और वफादार वजीर की हत्या करके हमारे लिए संकट पैदा कर दिया है। इस घटना से प्रजाजन में क्रोध और असंतोष की लहर उठ रही है। इसलिए उचित यही है कि तुम कुछ दिनों के लिए यहाँ से कहीं दूर चले जाओ। मैंने इसका सारा इंतजाम भी कर दिया है। जब यहाँ सबकुछ शांत हो जाएगा, तब तुम वापस लौट आना।"
इसके बाद उसने दो विश्वसनीय अधिकारियों के साथ राजकुमार को जबरदस्ती जहाज पर चढ़ाकर विदेश भेज दिया। अफसरों को विशेष हिदायत दी गई थी कि मार्ग में अवसर देखकर उसे मौत के घाट उतार दिया जाए। राजकुमार उसके इरादों को भली-भाँति समझ रहा था, लेकिन वह विवश था।
परंतु 'जाको राखे साइयाँ, मार सके न कोय।' मार्ग में समुद्री डाकुओं ने जहाज पर आक्रमण कर दिया। दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें दोनों अधिकारी मारे गए। परंतु डाकुओं का सरदार हैमलेट को पहले से पहचानता था। अतः उसने उसे ससम्मान वापस डेनमार्क भेज दिया।
डेनमार्क पहुँचते ही राजकुमार को एक बुरी खबर मिली। पिता की मृत्यु से ओफीलिया को गहरा सदमा पहुँचा था। इस सदमे को सहन न कर सकने के कारण उसने आत्महत्या कर ली। उस समय उसका अंतिम संस्कार किया जा रहा था। इस खबर ने हैमलेट को बुरी तरह से हिलाकर रख दिया। वह विक्षिप्त की तरह तेजी से उस ओर भागा, जहाँ ओफीलिया का शव रखा हुआ था। उसका भाई उसे दफनाने की तैयारी कर रहा था।
उस समय क्लेदियस, रानी तथा अन्य दरबारीगण उसकी अंतिम क्रिया में उपस्थित थे। हैमलेट तेजी से भीड़ को चीरता हुआ आया और ओफीलिया के शव से लिपटकर जोर-जोर से रोने लगा। उसका भाई एक पल के भौचक्का रह गया। फिर उसे याद आया कि इसी ने उसके पिता की हत्या की थी और इसी के कारण आज उसकी बहन उसे छोड़कर चली गई। उसने हैमलेट को पकड़ लिया और लात-घूसों से उसकी पिटाई करने लगा।
हैमलेट को पिटते देख क्लेदियस मन-ही-मन बहुत खुश हो रहा था। वह चाहता था कि आज उसके रास्ते से हैमलेट नाम का काँटा हमेशा के लिए निकल जाए। परंतु तभी कुछ दरबारियों ने आगे बढ़कर दोनों को अलग-अलग कर दिया। ओफीलिया का भाई क्लेदियस को संबोधित करते हुए बोला, "महाराज, इसी ने मेरे पिता की हत्या की है। इसी के कारण मेरी बहन ने आत्महत्या की है। इसने मेरा घर उजाड़ दिया है। मैं इसे अपने हाथों से दंड देना चाहता हूँ।"
"तुम्हारे आरोप शत-प्रतिशत सही हैं। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि इसे तुम इस प्रकार दंडित करो। मैं तुम दोनों के बीच द्वंद्व युद्ध निश्चित करता हूँ। इसमें जो विजयी होगा, उसे ही जीवित रहने का अधिकार होगा।" क्लेदियस ने मन-ही-मन मुसकराते हुए अपना निर्णय दिया।
इस निर्णय के पीछे क्लेदियस का कुटिल दिमाग चल रहा था। वह जानता था कि ओफीलिया के भाई की तुलना में राजकुमार अभी बच्चा है। वह उसका सामना नहीं कर पाएगा। द्वंद्व युद्ध में नकली तलवारों का प्रयोग किया जाता था। लेकिन उसने ओफीलिया के भाई को असली तलवार थमा दी। उस तलवार में तेज जहर लगा हुआ था। यदि युद्ध में राजकुमार बच गया तो उसे मारने के लिए क्लेदियस ने एक और षड़यंत्र रचा था। उसने अपने पास एक शाही प्याला रखा, जिसमें शरबत के साथ-साथ विषैले द्रव्य की कुछ बूंदें भी थीं। युद्ध आरंभ होने से पूर्व उसने घोषणा की कि युद्ध में विजयी होनेवाले को वह सम्मान के रूप में शरबत का शाही प्याला पेश करेगा। उसके इस षड़यंत्र से रानी भी अनजान थी।
निर्धारित समय पर युद्ध आरंभ हुआ। उसे देखने के लिए सारा नगर रंगभूमि में उमड़ आया था। पहले तो हैमलेट ओफीलिया के भाई पर हावी रहा, लेकिन धीरे-धीरे उसने हैमलेट पर प्रहार करने आरंभ कर दिए। और फिर उसने उस पर एक प्राणघातक वार किया। हैमलेट ने खुद को बचाने का भरसक प्रयत्न किया, परंतु फिर भी तलवार ने उसके शरीर पर घाव बना डाला। जैसे ही विष हैमलेट के शरीर में गया, उसे भयंकर जलन होने लगी। वह समझ गया कि क्लेदियस ने उसके साथ छल किया है। जहर तेजी से उसके शरीर में फैल रहा था। उसे अपनी मौत दिखाई देने लगी। परंतु मरने से पहले वह अपनी प्रतिज्ञा पूरी करना चाहता था, अतः उसने ओफीलिया के भाई से तलवार छीनकर उसी के सीने में घोंप दी।
फिर खून सनी तलवार लेकर उसने क्लेदियस की ओर देखा। उसका यह रूप देखकर रानी भयभीत हो गई। उसने घबराकर शाही प्याला उठाया और सारा शरबत पी लिया। जहर ने अपना असर दिखाया और रानी तड़पते हुए वहीं ढेर हो गई।
माँ को तड़प-तड़पकर प्राण त्यागते देख हैमलेट को पिता की मृत्यु याद आ गई। इस पापी ने उसे इसी प्रकार तड़पा-तड़पाकर मारा था। वह तेजी से क्लेदियस की ओर लपका। जहर के असर के कारण उसके पैर बुरी तरह लड़खड़ा रहे थे। लेकिन गिरने से पहले वह किसी भी तरह क्लेदियस तक पहुँच जाना चाहता था। उसने सारी शक्ति एकत्रित की और सिंहासन के सामने जा पहुँचा। क्लेदियस ने भागने की कोशिश की, परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। हैमलेट ने उसके सीने में तलवार घोंप दी। क्लेदियस भयंकर चीत्कार करते हुए जमीन पर गिर पड़ा और कुछ ही देर में उसने प्राण त्याग दिए।
हैमलेट के चेहरे पर संतोष और प्रसन्नता के भाव उतर आए। आखिरकार उसने अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध ले लिया था। अब वह शांतिपूर्वक मर सकता था। उसे विश्वास था कि क्लेदियस की मृत्यु के साथ ही उसके पिता की आत्मा मुक्त हो गई होगी। फिर उसने भी अपने प्राण त्याग दिए।
(रूपांतर - महेश शर्मा)