आधा कम्बल : फ्रेंच/फ्रांसीसी लोक-कथा

Half a Blanket : French Folk Tale in Hindi

यह बहुत पहले की बात है कि फ्रांस में एक राजा रहता था। यह राजा बहुत अच्छा था और अपने लोगों की बहुत ही अच्छे से देखभाल करता था। वह हमेशा अपने लोगों को सबसे अच्छी चीज़ देने की कोशिश करता था।

उसकी इच्छा थी कि उसका बेटा भी अपनी जवानी लोगों की सेवा में उससे भी अच्छी तरह से लगा दे जितनी कि उसने खुद ने लगायी थी।

इसलिये जब वह बूढ़ा हो गया तो उसने अपनी सारी जमीन और जायदाद अपने एकलौते बेटे को दे दी। बूढ़ा राजा अपनी गद्दी से उतर गया और अपना ताज अपने बेटे के सिर पर रख दिया और उसे राजा बना दिया।

फिर उसने उससे केवल दो चीज़ें माँगी – पहली तो यह कि तुम मेरे लोगों की बहुत अच्छी तरह से देखभाल करना। और दूसरी यह कि तुम वायदा करो कि तुम मेरे बूढ़े होने पर मेरी भी ठीक से देखभाल करोगे। जितना प्यार मैंने तुम्हें दिया है उतना ही प्यार तुम भी मुझे करोगे। मुझे विश्वास है कि तुम ऐसा ही करोगे।”

जब इन दोनों बातों का वायदा हो गया तो राजा ने फिर रस्मी तौर पर अपने बेटे को राजा बना दिया।

बेटे ने पहले तो अपने पिता की बात मानी और पाया कि उनकी बात मान कर उसका खजाना बढ़ रहा था और उसके लोग उससे बहुत सन्तुष्ट थे और अच्छी तरह से रह रहे थे।

वह अपने पिता की देखभाल भी बहुत अच्छी तरह कर रहा था। पर यह सब बहुत दिनों तक न चल सका।

यह सब तभी तक चला जब तक उसकी शादी नहीं हो गयी। उसकी पत्नी उसके पिता को नहीं चाहती थी। वह सोचती थी कि उसका पिता हमेशा ही सड़क पर रहता था।

इसके अलावा उसको लगता था कि राजा का बेटा उसकी बजाय अपने पिता की ज़्यादा सुनता था।

एक दिन उसने अपने पति से कहा — “यह बुड्ढा हमेशा ही खाने की मेज पर खाँसता रहता है जिससे मेरा तो खाने का सारा मजा ही चला जाता है।

इसके अलावा वह तुमको अभी भी बच्चा ही समझते हैं। वह हमेशा ही तुमको राज्य चलाने के लिये सलाह देते रहते हैं। तुम अब राजा हो कोई बच्चा तो हो नहीं।

वह जब राजा थे तब राजा थे। उन्होंने अपने समय में राज किया पर अब जब वह राज नहीं कर सकते तो वह राज्य उन्होंने तुमको दे दिया। तो फिर अब वह बीच में अपनी टाँग क्यों अड़ाते रहते हैं।”

अपनी पत्नी को खुश करने के लिये बेटे ने अपने पिता को लेटने और रहने के लिये सीढ़ियों के नीचे एक जगह दे दी। उधर पत्नी ने अपने चौकीदारों को यह हुक्म दिया कि वे राजा को महल के अन्दर न आने दें।

जो जगह राजा को लेटने के लिये दी गयी थी वह ठंडी थी और वहाँ हवा बहुत आती थी। उस जगह वह भूसे के बिस्तर पर जैसा कि किसी कुत्ते के लिये बनाया जाता है कई महीनों तक लेटा रहा।

उसका खाना वहीं सीढ़ियों के नीचे पहुँच जाता था। वह अपने ही किले में एक बन्दी की तरह रह रहा था। वह बूढ़ा आदमी बेचारा इस सबसे बहुत दुखी था।

फिर एक दिन रानी ने एक बेटे को जन्म दिया जो एक बहुत ही गुणवान लड़के के रूप में बड़ा हुआ। इस बात की चिन्ता न करते हुए भी कि उसकी माँ क्या कहती रहती थी वह अपना समय अपने बाबा के पास सीढ़ियों के नीचे उनसे बातें करने में और उनसे कुछ सीखने में गुजारा करता था।

उसका दिल बहुत ही नर्म था और वह सबकी बहुत देखभाल करता था। उसको घर में से जो कुछ भी खाना और पीने के लिये मिल जाता था उसमें से कुछ वह अपने बाबा के लिये ले आता था। उसके बाबा को उसका लाया खाना पीना जितना पसन्द था उससे ज़्यादा उसको अपने पोते की नर्मी और प्यार पसन्द था जो उसके बर्ताव में झलकता था।

एक दिन बाबा ने अपने पोते से ठंड से बचने के लिये घोड़े को ओढ़ाने वाला एक पुराना कम्बल माँगा तो वह लड़का उसके लिये कम्बल लाने दौड़ गया। उसको घुड़साल में एक अच्छा सा कम्बल मिल गया सो उसने उसको ले कर उसके दो टुकड़े कर दिये। बच्चे के पिता ने उसे कम्बल फाड़ते हुए देख लिया तो उससे पूछा कि वह घोड़े के कम्बल का क्या कर रहा था। उसने अपने पिता को बताया कि वह उसमें से आधा कम्बल उसके पिता के बिछौने के लिये ले जा रहा था।

उसके पिता राजा ने पूछा — “पर तुम उनके लिये केवल आधा ही कम्बल क्यों ले कर जा रहे हो?”

बच्चे ने जवाब दिया — “मैं यह दूसरा आधा आपके लिये बचा रहा हूँ ताकि जब मैं राजा बन जाऊँगा तो यह बचा हुआ आधा कम्बल सीढ़ियों के नीचे आपके इस्तेमाल करने के काम आयेगा।” अब तुम ज़रा यह सोच कर बताओ कि यह सुनने के बाद क्या महल में उस बूढ़े राजा के लिये कुछ बदला? क्या आगे आने वाले समय का विचार आज की दशा बदल सकता है?

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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