आधा मुर्गा : अल्बानिया की लोक-कथा
Half Rooster : Albanian Lok-Katha
यह मज़ेदार लोक कथा यूरोप महाद्वीप के अल्बेनिया देश की लोक कथाओं से ली गयी है।
बुढ़िया चिल्लायी — “ओ आलसी बुड्ढे, अगर तुम इतने आलसी नहीं होते तो शायद हम लोग किसी अच्छे घर में रह रहे होते और हमारे पास बहुत सारा खाना होता। मैं गरीब होने से तो तंग हूँ ही और साथ में तुमसे भी।”
उधर वह बूढ़ा भी अपने आपको आलसी सुनते सुनते तंग आ गया था। असल में तो वह अपने आपको केवल आलसी सुनते सुनते ही नहीं बल्कि अपनी पत्नी की आवाज से ही तंग आ गया था।
सो वह अपनी पत्नी से बोला — “अगर तुम मुझसे इतनी ही तंग हो तो हमारे पास जो कुछ भी है उसका आधा आधा बाँट लो और यहाँ से खिसको।”
बुढ़िया चिल्ला कर बोली — “वाह, यह तो बहुत ही अच्छा विचार है। यह तो आज तुमने सालों में पहली बार कोई काम की बात की है।”
उन बूढ़े और बुढ़िया के लिये घर की चीज़ों को आधा आधा बाँटना कोई मुश्किल काम नहीं था। उनके पास एक बिल्ला था और एक मुर्गा था। बुढ़िया ने बिल्ला उठाया और दरवाजे में से तूफान की तरह से बाहर निकल गयी।
उसने सोचा — “कम से कम यह बिल्ला मेरे लिये चिड़ियें तो पकड़ेगा और मैं कुछ पका पाऊँगी। यह मुर्गा तो न कुछ पकड़ सकता है और न ही अंडे दे सकता है।”
इस मामले में वह बुढ़िया ठीक सोचती थी। बुढ़िया के जाने के बाद तो अब उसके पति के पास तो खाने के लिये कुछ भी नहीं बचा था।
एक दिन पति इतना ज़्यादा भूखा था कि उसको अपने मुर्गे से कहना पड़ा — “मेरे दोस्त, मुझे बहुत अफसोस है पर मेरे पास अब और कोई चारा नहीं है और मुझे आज तुमको खाना पड़ रहा है।”
मुर्गा बोला कि वह समझ गया। पर बूढ़े की बात उसको बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगी पर वह क्या करता। उसका मालिक तो वह बूढ़ा ही था न। सो बूढ़े ने अपनी कुल्हाड़ी से मुर्गे को बीच में से काट दिया।
अब उसने आधा मुर्गा तो पका कर खा लिया और दूसरा आधा अपने पालतू की तरह से रखा रहने दिया। उस दिन से लोग उसको आधा मुर्गा पुकारने लगे।
उस आधे मुर्गे के लिये एक टाँग पर इधर से उधर कूदते रहना कोई मुश्किल काम नहीं था। पर वह इतना जरूर जान गया था कि अगर वह इस भूखे बूढ़े के साथ रहा था तो एक दिन वह फिर भूखा हो जायेगा और उस बचे हुए आधे को भी खा जायेगा।
सो उसने सोचा कि अब उसको दुनियाँ में कहीं बाहर जा कर अपनी किस्मत आजमानी चाहिये। उसने यह भी सोचा जब मैं काफी सोना कमा लूँगा तब मैं अपने घर फिर वापस आ जाऊँगा।
सो यही सोच कर वह घर से बाहर निकल गया और कूद कूद कर एक तालाब के किनारे पहुँच गया। वहाँ उसने देखा कि उसका दोस्त मेंढक लिली के एक पत्ते पर बैठा हुआ है वह उससे चिल्ला कर बोला — “मैं अपनी किस्मत आजमाने निकला हूँ,। मुझे मशहूर होना है। और तुम क्योंकि मेरे दोस्त हो तो तुम भी वैसा ही क्यों नहीं करते हो?”
मेंढक को दोबारा कहने की जरूरत नहीं पड़ी वह बोला —
“चलो चलो यह तो बड़ा अच्छा है। दोनों मिल कर दुनियाँ देखते
हैं। दोनों थोड़ा आनन्द लेते हैं। दो दोस्तों का साथ साथ यात्रा
करना एक आदमी के अकेले यात्रा करने से ज़्यादा अच्छा है।”
यह कह कर मेंढक अपने लिली के पत्ते से कूद कर पानी में तैरता हुआ किनारे पर आ गया। वह मुर्गे के पंख के नीचे और उसके पेट के ऊपर आराम से बैठ गया।
आधे मुर्गे ने अपनी यात्रा जारी रखी। कूदते कूदते मुर्गे को एक लोमड़ा मिला। हालाँकि लोमड़ा काफी ऊपर एक चट्टान पर बैठा हुआ था फिर भी उसने मुर्गे के पंख में से बाहर निकलती एक हरे रंग की टाँग देख ली।
लोमड़ा बोला — “क्या यह मेंढक है जो तुम्हारे पंख के नीचे छिपा बैठा है? तुम लोग क्या करने जा रहे हो?”
आधे मुर्गे ने चट्टान के ऊपर बैठे लोमड़े को देखा और कुकड़ूँ कू की आवाज लगायी — “मैं अपनी किस्मत बनाने चला हूँ लोमड़े भाई। मैं दुनियाँ में मशहूर होने चला हूँ। तुम मेरे दोस्त हो तुम भी वैसा ही क्यों नहीं करते, आओ न?”
उस आधे मुर्गे को लोमड़े को भी दोबारा पूछने की जरूरत नहीं पड़ी। लोमड़ा बोला — “चलो हम सब दुनियाँ देखते हैं। थोड़ा आनन्द लेते हैं। तीन दोस्तों का साथ साथ यात्रा करना एक आदमी के अकेले यात्रा करने से ज़्यादा अच्छा है।”
सो लोमड़ा भी अपनी चट्टान से कूद कर एक आराम वाली जगह में बैठ गया – मुर्गे के पंख के नीचे और उसके पेट के ऊपर। आधे मुर्गे ने फिर अपनी यात्रा शुरू कर दी। चलते चलते वह एक गुफा के पास आ गया। वहाँ उसने देखा कि पीली आँखों की एक जोड़ी उसको घूर रही है।
वे आँखें किसी को भी डरा सकती थी पर आधे मुर्गे को नहीं। वे आँखें उसके दोस्त भेड़िये की थीं। उस गहरी गुफा में अपने घर से भेड़िये ने देखा कि आधे मुर्गे के पंखों में से हरे और लाल रंग का माँस झाँक रहा है।
यह देख कर भेड़िया मुस्कुरा दिया और मुर्गे से पूछा — “अरे ओ आधे मुर्गे, तुम ये लोमड़े और मेंढक को अपने पंखों में छिपाये क्या कर रहे हो?”
आधे मुर्गे ने गुफा के अँधेरे में झाँका और बोला — “कुकड़ूँ कू ओ भेड़िये भाई, मैं अपनी किस्मत बनाने चला हूँ। मैं दुनियाँ में मशहूर होने चला हूँ। तुम मेरे दोस्त हो तुम भी वैसा ही क्यों नहीं करते?”
भेड़िये को भी दोबारा कहने की जरूरत नहीं पड़ी। वह भी अपनी गुफा से बाहर निकल आया और बोला — “चलो हम सब दुनियाँ देखते हैं। थोड़ा आनन्द लेते हैं। चार दोस्तों का साथ साथ यात्रा करना एक आदमी के अकेले यात्रा करने से ज़्यादा अच्छा है।”
उसकी पीली आँखें दिन के उजाले में इतनी भयानक दिखायी नहीं दे रहीं थीं जितनी कि उस गुफा के अँधेरे में। सो भेड़िया भी अपनी गुफा से निकल कर एक आराम वाली जगह में बैठ गया – आधे मुर्गे के पंख के नीचे और उसके पेट के ऊपर।
आधा मुर्गा फिर कूदता हुआ अपने अमीर बनने और मशहूर होने की यात्रा पर आगे चला। अब वह एक जानवर रखने के बाड़े के पास आ गया।
वहाँ उसने एक गुलाबी नाक भूसे में से बाहर निकली हुई देखी। वह पहचान गया कि वह नाक उसके प्यारे दोस्त चूहे की है।
चूहा उस भूसे के ढेर में से बाहर निकल कर आया और आधे मुर्गे के फूले हुए पंखों की तरफ घूरा और बोला — “अगर मैं गलत नहीं हूँ तो तुम्हारे पंखों के नीचे मेंढक़ लोमड़ा और भेड़िया हैं। तुम सब यहाँ क्या कर रहे हो भाई लोगों?”
आधे मुर्गे ने भूसे से निकले हुए अपने दोस्त चूहे की तरफ देखा और बोला — “कुकड़ूँ कू प्यारे चूहे, मैं अपनी किस्मत बनाने चला हूँ। मैं दुनियाँ में मशहूर होने चला हूँ। तुम मेरे दोस्त हो तुम भी वैसा ही क्यों नहीं करते?”
चूहे को भी दोबारा कहने की जरूरत नहीं पड़ी। उसने अपने बाड़े में भूसा छोड़ा और बोला — “चलो हम सब दुनियाँ देखते हैं। थोड़ा आनन्द लेते हैं। पाँच दोस्तों का साथ साथ यात्रा करना एक आदमी के अकेले यात्रा करने से ज़्यादा अच्छा है।”
वह भी आराम से एक जगह में बैठ गया – आधे मुर्गे के पंख के नीचे और उसके पेट के ऊपर। पर अब वहाँ उस पंख के नीचे किसी और दोस्त के लिये कोई जगह नहीं थी।
आधा मुर्गा फिर कूदता हुआ अपने अमीर बनने और मशहूर होने की यात्रा पर आगे चला।
एक दिन दोस्तों की यह मंडली एक सब्जी के बागीचे से गुजरी। सब सब्जियाँ तोड़ने लायक थीं और आधे मुर्गे को भूख लगी थी। वह चिल्लाया – “कुकड़ूँ कू। देखो कितना सारा खाना और यह सब केवल मेरे लिये है।”
पर उस बगीचे का मालिक तो वैसा नहीं सोचता था और उस बगीचे का मालिक था वहाँ का राजा। राजा ने अपने नौकरों को उस मुर्गे को पकड़ने का हुक्म दे दिया। उसने अपने नौकरों से कहा कि वह आधा मुर्गा जरूर है पर देखने में बड़ा स्वादिष्ट लगता है। नौकर उस मुर्गे को पकड़ने दौड़े और वह मुर्गा उनसे बचने के लिये भागा। इस भाग दौड़ में राजा के बहुत सारे बढ़िया टमाटर कुचल गये।
नौकरों के भारी जूतों के नीचे आ कर राजा की स्ट्रौबैरी की क्यारियाँ की क्यारियाँ बर्बाद हो गयीं। जब बन्द गोभी का आखिरी पौधा कट गया तभी कहीं जा कर वह मुर्गा पकड़ा जा सका। राजा ने चिल्ला कर कहा — “इस मुर्गे को सूप बनाने वाले बर्तन में डाल दो। और उसमें कुछ टमाटर और एक बन्द गोभी डालना मत भूलना।”
आधे मुर्गे को पता चल गया कि वह तो बड़ी भारी मुसीबत में फँस गया है। नीचे आग की लपटें उठ रही थीं और बर्तन का पानी बहुत ज़ोर से गर्म होता जा रहा था।
आधे मुर्गे ने मेंढक की तरफ देखा और चिल्लाया — “कुकड़ूँ कू। अगर कभी मुझे दोस्त की जरूरत थी तो वह अब है। मेंढक़ मेरे दोस्त, क्या तुम मेरी कुछ सहायता कर सकते हो?”
मेंढक को मालूम था कि उसे क्या करना है। उसने उस बर्तन का सारा पानी पी लिया और बाकी जो कुछ उसमें बचा उसे उसने बर्तन उलटा कर के आग के ऊपर डाल दिया जिससे वह आग पूरी तरीके से बुझ गयी।
गीला सा मुर्गा उस बर्तन में से बाहर निकल आया और कूद कर बाहर भाग गया।
पर वह राजा को नौकरों से बच नहीं सका। वे उसके लिये बहुत तेज़ थे। उन्होंने तुरन्त ही उस मुर्गे को फिर से पकड़ लिया और अबकी बार उसे मुर्गे के बाड़े में फेंक दिया।
यहाँ भी आधा मुर्गा मुसीबत में था। यहाँ की मुर्गियाँ बहुत अच्छे स्वभाव की नहीं थीं। वे कभी भी उसको चोंच मार सकती थीं। और अगर एक बार उन्होंने उसको चोंच मारना शुरू कर दिया तो बस फिर तो वे उसको मार कर ही छोड़तीं।
सो मुर्गे ने लोमड़े की तरफ देखा और बोला — “कुकड़ूँ कूँ। अगर कभी मुझे दोस्त की जरूरत थी तो वह अब है। ओ लोमड़े, मेरे दोस्त, क्या तुम मेरी कुछ सहायता कर सकते हो?”
लोमड़े को मालूम था कि उसे क्या करना है। उसने अपने होठ चाटे और उन मुर्गियों की तरफ देख कर मुस्कुराया। पर वे मुर्गियाँ भी बेवकूफ नहीं थीं। उनको मालूम था कि लोमड़े को मुर्गियाँ खाना कितना पसन्द था।
इससे पहले कि लोमड़े की मुर्गियों की दावत हो मुर्गियों ने बाड़े की चहारदीवारी में एक बड़ा सा छेद बना लिया जिसमें से वे सब निकल कर भाग गयीं और साथ में आधा मुर्गा भी।
पर एक बार राजा के नौकरों ने आधे मुर्गे को फिर से पकड़ लिया। इस बार उन्होंने उसे राजा के घोड़ों के अस्तबल में फेंक दिया। उन्होंने सोचा कि ये घोड़े इसको अच्छा सबक सिखायेंगे।
एक बार फिर मुर्गे को पता चल गया कि वह बहुत बड़ी मुसीबत में फँस गया है। घोड़ों के खुर उसके पास आते जा रहे थे। किसी भी समय वे उसको कुचल कर मार सकते थे।
इस बार उसने भेड़िये की तरफ देखा और बोला — “कुकड़ूँ कूँ। अगर कभी मुझे दोस्त की जरूरत थी तो वह अब है। भेड़िये, मेरे दोस्त, क्या तुम मेरी कुछ सहायता कर सकते हो?”
भेड़िये को मालूम था कि उसको क्या करना है। वह तो उसकी सहायता करने के लिये बड़ी खुशी से तैयार था। उसका तो मजा आ गया था। वह तुरन्त अस्तबल में घुसा और घोड़ों के ऊपर टूट पड़ा।
पर कोई भी घोड़ा भेड़िये का शिकार नहीं होना चाहता था सो उन्होंने अपने अस्तबल के चारों तरफ लगी बाड़ तोड़ी और निकल कर भाग गये। और उनके साथ साथ भाग गया आधा मुर्गा भी। पर राजा के नौकर भी उसको छोड़ नहीं रहे थे। एक बार फिर उन्होंने उस मुर्गे को पकड़ लिया पर इस बार वे यह नहीं सोच पाये कि वह इस मुर्गे का क्या करें।
सो राजा ने उनको सलाह दी कि वे उसको उस बक्से में बन्द कर दें जिसमें सोना रखा था। वह बोला — “ज़रा ध्यान रखना कि वह बक्सा सबसे ज़्यादा मजबूत हो।” सो उसके नौकरों ने यही किया।
मुर्गा एक बार फिर से बड़ी भारी मुसीबत में फँस गया था। अगर वह इस बक्से में से समय से बाहर नहीं निकला तो वहाँ तो वह भूखा ही मर जायेगा। और वह जानता था कि राजा उसको उस बक्से में वहाँ बहुत देर तक रखने वाला था।
सो उसने चूहे की तरफ देखा और बोला — “कुकड़ूँ कूँ। अगर कभी मुझे दोस्त की जरूरत थी तो वह अब है। ओ चूहे, मेरे दोस्त, क्या तुम मेरी कुछ सहायता कर सकते हो?”
और चूहे को भी पता था कि उसको क्या करना था। वह बोला — “मुझे इस बक्से में इधर उधर घूमने के लिये थोड़ी सी जगह चाहिये। क्या तुम इसमें से थोड़ा सा सोना निगल सकते हो?”
आधा मुर्गा जानता था कि वह यह काम कर सकता था। वह चूहे की सहायता करना चाहता था। सो उसने उस बक्से का करीब करीब सारा सोना निगल लिया।
अब चूहे ने लकड़ी के बक्से को काटना शुरू कर दिया और कुछ ही देर में उसने उस बक्से में इतना बड़ा छेद कर दिया जिसमें से वे दोनों भाग सकते थे।
इस समय वहाँ पर कोई नौकर नहीं था। क्योंकि किसी को यह उम्मीद ही नहीं थी कि मुर्गा उस बक्से में से निकल जायेगा सो किसी ने उसकी पहरेदारी करने की भी कोशिश नहीं की।
आधे मुर्गे ने ज़रा सा भी समय बरबाद नहीं किया। उसने सोने के बचे हुए टुकड़े इकठ्ठे किये और कूद कर उस बक्से में से निकल कर भाग गया।
इस भागने में उसका कुछ सोना रास्ते में गिर गया पर उसकी चिन्ता करने का उसके पास समय नहीं था। उसको तो बस राजा से बचना था और अपने घर पहुँचना था।
जब वह घर पहुँच गया तो उसको मालूम था कि उसके अब घूमने के दिन गये। वह अपने मालिक की तरफ दौड़ा और उससे लिपटने के लिये अपने पंख फैला दिये। वह बूढ़ा अपने पुराने दोस्त को वापस आया देख कर बहुत खुश हुआ।
वह और भी खुश हुआ जब उसने सोने के कुछ टुकड़े आधे मुर्गे के पंखों के नीचे देखे।
“ये तुमको कहाँ से मिले?” उसने पूछा।
आधा मुर्गा मुस्कुरा कर बोला — “यह एक लम्बी कहानी है।”
बूढ़ा बोला — “चलो, ये हमारे कुछ दिन के खाने के लिये काफी हैं। मैं अभी बाजार जाता हूँ और हमारे लिये खाना खरीद कर लाता हूँ।”
मुर्गा बोला — “जब तक तुम यह सब करते हो तब तक तुम मुझे कुछ भूसा दे दो ताकि मैं उस पर आराम से सो सकूँ। मैं बहुत थक गया हूँ।”
“जो तुम चाहो, ओ आधे मुर्गे।”
जब उस बूढ़े ने सारा सोना खर्च कर दिया तो आधे मुर्गे ने उससे कहा कि वह चिन्ता न करे। अगर वह उसको झाड़ू से मारेगा, बहुत ज़ोर से मारने की जरूरत नहीं है केवल धीरे से ही मारने की जरूरत थी तो वह सोने का एक टुकड़ा उगल देगा जो उन लोगों के कई दिन के खाने के लिये काफी होगा।
और फिर यही हुआ। जब भी उनकी रसोई की आलमारियाँ खाली होतीं तो वह बूढ़ा अपनी झाड़ू उठाता, मुर्गे को मारता और कुछ सोना निकाल लेता।
अब आधे मुर्गे के पास भी खाने के लिये खूब सारा खाना था और सोने के लिये आरामदेह बिस्तर। अब बूढ़े की ज़िन्दगी भी बहुत अच्छी हो गयी थी।
वे अपने घर में खुश थे और अक्सर अपने दोस्तों को शाम को खाने पर बुलाते थे जिनमें मेंढक़ लोमड़ा, भेड़िया और चूहा भी शामिल थे।
पर कहानी के आखीर में सारे लोग खुश नहीं थे। बुढ़िया इस सबसे बहुत गुस्सा थी। वह केवल गुस्सा ही नहीं थी वह बूढ़े से जल भी रही थी। वह रो रही थी — “मैंने बिल्ले को क्यों लिया, मुर्गे को क्यों नहीं? यह सब सोना तो मेरे पास होना चाहिये था।”
और फिर एक दिन उसने एक प्लान बनाया। उसने अपनी झाड़ू उठायी और बिल्ले को घर से बाहर निकाल दिया — “ओ आलसी जीव, जा दुनियाँ में बाहर जा और सोना ढूँढ कर ला। और तब तक वापस मत आना जब तक हमारे पास खाने के लिये काफी न हो जाये। तू सुन रहा है न?”
बिल्ले ने ठीक सुना और बाहर चल दिया। रास्ते में उसको सोने का एक टुकड़ा मिल गया जो आधे मुर्गे से आते समय गिर गया था। उसने उसको तुरन्त ही निगल लिया पर उसको और सोना कहीं नहीं मिला।
सो उसने अपना पेट साँप, चुहिया, बालों वाले मकड़े आदि जानवरों से भर लिया। जब वह उन्हें और नहीं निगल सका तो वह घर वापस आ गया।
बुढ़िया अपने बिल्ले के देख कर बहुत खुश हुई — “अरे तू तो अपना पेट भर कर बड़ी जल्दी वापस आ गया। मैं अपनी झाड़ू ले आऊँ।”
वह जल्दी जल्दी अन्दर गयी और झाड़ू ले कर आयी और उससे बिल्ले को जरूरत से भी ज़्यादा ज़ोर से मारने लगी। फिर भी बिल्ले ने सोने का एक टुकड़ा उगल दिया। सोना देख कर वह बहुत खुश हुई पर एक टुकड़ा तो उसके लिये काफी नहीं था सो उसने बिल्ले को दूसरी बार मारा।
दूसरी बार के मारने से उसमें से एक साँप लहराता हुआ निकल आया और उस बुढ़िया के जूते की तरफ भागा। वह चिल्लायी और उसने बिल्ले को और ज़ोर से मारा। फिर तो उसके पेट से चुहिया और बालों वाले मकड़े निकल पड़े।
वह चिल्लायी — “यह सब क्या है? यह तूने क्या किया?”
जितनी बार वह गुस्से से बिल्ले को मारती गयी उतनी ही बार वह बिल्ला जानवर उगलता गया। इस तरह कमरे में बहुत सारे जानवर इकठ्ठा हो गये।
जब उस बुढ़िया ने उस बिल्ले को आखिरी बार मारा तो बड़े बालों वाला एक बहुत बड़ा मकड़ा निकल आया। वह बहुत ही गुस्सा था सो वह उस बुढ़िया की तरफ दौड़ा। वह बुढ़िया को जंगल तक खदेड़ कर ले गया और फिर किसी ने उन दोनों के बारे में कभी कुछ नहीं सुना।
अगर तुममें से किसी को उन दोनों के बारे में पता चल जाये तो उनसे सावधान रहना क्योंकि दोनों ही बहुत खतरनाक हैं। बिल्ला बूढ़े और मुर्गे के पास वापस आ गया और बाकी ज़िन्दगी भर आराम से रहा।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)