हल के स्यूं पर मछली : लोककथा (उत्तराखंड)
Hal Ke Syun Par Machhli : Lok-Katha (Uttarakhand)
कमलू की घरवाली पुष्पा के पेट में कोई बात नहीं पचती थी । वह जिस बात को सुनती उसे अपनी सहेलियों को तुरन्त बता देती थी।
एक दिन कमलू ने पुष्पा से बातों-बातों में कहा , ‘‘ हमारा राजा बडा क्रूर है। उसने प्रजा पर अत्याचार किया है।’’
पुष्पा ने यह बात अपनी सहेली बीरा को बता दी । बीरा ने यह बात अपनी सहेलियों को बता दी। देखते ही देखते यह बात पूरे राज्य में फैल गई। यह बात राज दरबारियों तक भी पहुँच गई। राजदरबारियों ने राजा को बता दी। राजा सुदेश यह सुनकर क्रोधित हुआ। राजा सुदेश ने कमलू को राजदरबार में पेश होने का हुक्म दिया। कमलू को पता नहीं था राजा ने उसे क्यों बुलाया है ?
दूसरे दिन कमलू राज दरबार में हाजिर हो गया। ‘‘तुमने हमें क्रूर और अत्याचारी कहने की हिम्मत कैसे की ? क्या तुम्हें अपनी जान प्यारी नहीं है ?‘‘ राजा के क्रोध भरे प्रश्न सुनकर कमलू डर गया। उसकी समझ में आ गया कि जरूर पुष्पा ने ही यह बात फैलाई होगी पर अब क्या किया जा सकता है।
कमलू कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘ महाराज ! मैंने आपको कभी क्रूर और अत्याचारी नहीं कहा। ‘‘सुना है सबसे पहले तुमने ऐसा अपनी पत्नी से कहा। ‘‘
‘‘नहीं महाराज ! मैने ऐसा कभी नहीं कहा। आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो मैं आज से तीन दिन बाद अपनी पत्नी को लेकर आपके दरबार में हाजिर हो जाऊँगा। तब आप मेरे सामने मेरी पत्नी से पूछना। सच्चाई पता चल जाएगी। ‘‘
कमलू की यह बात सुनकर राजा ने कमलू को उसकी पत्नी के साथ आने की आज्ञा दे दी। राजदरबार से कमलू घर वापस लौट आया। दूसरे दिन वह आम के बगीचे में गया। उसने बहुत सारे आम तोड़े। वह बाजार से गुड़ भी लाया। वह चीड़ के जंगल चला गया। उसने चीड़़ के पेड़ों पर रस्सी से आम बांध दिए। उसने जंगल में चीड़़ की पड़ी हुई इमारती लकड़ी पर गुड़ पीस कर लगा दिया।
अब वह पुष्पा को चीड़ के जंगल घुमाने ले गया। जंगल में चीड़ के पेड़ पर आमों को देखकर वह आश्चर्य से बोली, ‘‘अरे ! चीड़ के पेड़ों पर आम ?’’
आगे बढ़ने पर उसने चीड़ की कटी हुई इमारती लकड़ी पर गुड़ चिपका हुआ देखा। उसे आश्चर्य हुआ। शाम को कमलू और पुष्पा घर आ गए। दूसरे दिने जोर की बारिश हुई। कमलू ने छत से कुछ अरसे ( चावल को कूटकर बना गया एक पकवान ) छत से नीचे की ओर फेंक दिए।
पुष्पा बोली. ‘‘ये अरसे कहाँ से गिर रहे हैं ? कमलू छत से नीचे आकर बोला, ‘‘आज तो अरसों की बारिश हो रही है।’’
‘‘हाँ’’ पुष्पा ने कमलू की बात का समर्थन किया।
दूसरे दिन सुबह कमलू गाड (नदी) से बहुत सारी मछलियाँ पकड़ कर लाया। उसने हल चलाने से खेत में बनी लकीर (स्यूं) के आगे मछलियां डाल दी। इसके बाद उसने पुष्पा को खेत में चलने को कहा।
पुष्पा खेत की स्यूँ को देखकर बोली, ‘‘यहाँ कितनी सुन्दर मछलियाँ हैं ? ‘‘
‘‘हाँ !’’ कमलू ने हामी भरी।
अगले दिन कमलू ने पुष्पा को बताया कि उन दोनों को राजा सुदेश के दरबार में पेश होना है। वे दोनों राजा के दरबार में पहुंच गए।
‘‘क्या आपके पति ने आपसे हमारे बारे में कुछ कहा था ?’’ राजा सुदेश ने पुष्पा से पूछा।
‘‘हाँ ! हमारा राजा बड़ा क्रूर है। उसने प्रजा पर अत्याचार किया है।’’
--पुष्पा ने जवाब दिया।
‘‘कमलू ! तुम कह रहे थे तुमने हमें अत्याचारी और क्रूर कभी नहीं कहा। तुम्हारी पत्नी कहती है- कहा। अब तुम्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा।’’ राजा गुस्से से बोला।
‘‘महाराज ! मेरी पत्नी की मानसिक हालात ठीक नहीं है। उसके मन में जो आए वह कह देती है।’’- कमलू ने राजा से कहा।
‘‘तुम्हारे पास इस बात को सिद्ध करने का क्या प्रमाण है ?‘‘ राजा ने कमलू से पूछा।
‘‘महाराज! इन दो तीन दिनों में मेरी पत्नी ने क्या-क्या काम किए ? आप मेरी पत्नी से पूछ लीजिए। आपको इसकी मानसिक हालात के बारे में पता चल जाएगा।’’
कमलू के ऐसा कहने पर राजा ने पुष्पा से पूछा, ‘‘बताओ, इन दो तीन दिनों में तुमने क्या-क्या काम किए ?
‘‘महाराज! मैं अपने पति के साथ चीड़ के जंगल घूमने गई थी। वहां मैंने चीड़ के पेड़ों पर आम लगे देखे।’’
‘‘चीड के पेड़ों पर आम ? यह क्या कह रही हो ?”- राजा ने आश्चर्य प्रकट किया।
‘‘हाँ महाराज ! इसके बाद चीड़ की इमारती लकड़ी पर मैने गुड़ चिपका हुआ देखा।’’
‘‘चीड़ की लकड़ी पर लीसा तो हमने भी सुना था पर चीड़ की लकड़ी पर गुड़ ? पहली बार सुन रहा हूँ।’’ हँसते हुए राजा बोला।
‘‘ महाराज ! अगले दिन अरसों की बारीश हो रही थी और हल के स्यूं पर बहुत सारी मछलियाँ थी।’’
‘‘बस, बस बंद करो अपनी बकवास ‘‘- राजा ने पुष्पा को डांटते हुए कहा।
‘‘महाराज ! मैने पहले ही आपसे कहा था कि मेरी पत्नी के मन में जो आए वह कह देती है। इसलिए आपके बारे में इसने जो बात अपनी सहेली को बताई वह भी झूठ ही थी। ‘‘
राजा को कमलू की बात पर विश्वास हो गया। उसने कमलू को दोषमुक्त करते हुए अपने घर वापस भेज दिया।
(साभार : डॉ. उमेश चमोला)