हलषष्ठी व्रत कथा : अवधी लोककथा (उत्तर प्रदेश)

Hal Chhath Vrat Katha : Avadhi Lok-Katha (Uttar Pradesh)

भादौं कृष्ण पक्ष छठ को सम्पन्न होने वाला पर्व हरछठ (हल षष्ठी) की कथा :
राजा का सगरा


एक राजा थे, उन्होंने सागर खुदवाया, घाट बनवाये, परन्तु उसमें पानी ही नहीं आया। इससे राजा चिंतित हो गये, क्या किया जाय। गांव के पुरोहित को बुलाकर उपाय पूछा, किस प्रकार सागर में पानी भरे। पंडित ने विचार कर कहा, राजा उपाय तो बड़ा कठिन है, जिससे सगरा भर सकता है। राजा ने कहा, बताओ। पंडित ने कहा, राजा जो तुम अपने बड़े लड़के के लड़की की बलि दे दो तो जल सगरा मा भर जाय। सुनकर राजा और चिंतित हो गये। ‘भला कउन महतारी अइसी होई जो अपैं लरिका का बलि देई।’ राजा विचार करने लगे। सोच में पड़े हुये थे। यह देखकर पंडित ने कहा, राजा बात तो बड़ी कठिन है पर उपाय तो निकालना ही पड़ेगा। हे राजन यदि तुम अपनी बहू को यह कहकर मायके भेज दो कि तुम्हारी मां की हालत बहुत खराब है-‘उनका होब जाब हुइ रहा है’ जाओ जल्दी देख आओ। राजा ने ऐसा ही किया। सुनकर बहू दुखी हुई कि आज हरछठ का दिन यह कौन परेशानी आ गई। रोती-पीटती वह अपनी मां को देखने दौड़ गई। मायके पहुंची, उनकी मां ने उसे इस तरह व्याकुल देखा तो चौंक गई, कहने लगी, ‘अरे हमरे का भा हम तौ ठीक हन। आजु हलछठ का दिन, ख्यातन की मेंड लरिकन की महतारी का ना नांघै का चही, न ख्यात मंझावै का चही। तुम भला रोवती पीटत ख्यात मंझावत कइसे आजु चली आइउ। जरूर कउनो छलु है।’ उनकी पुत्री ने कहा, अम्मा हमसे तो कहा गा ‘तुम्हार होब जाब हुइ रहा’ हम तुमका द्याखै सुनै आयेन।’ बहू की मां ने कहा, बिटिया हम तो सुना है तुम्हरे ससुर सगरा बनवाइन है वहिमा पानी नहीं आवत, कउनो का बलि दीन्ह जाई तो पानी आई। बिटिया तुम्हरेन साथे घात कीन्ह गा है तुम जल्दी लउटो।’

बहू दिन भर से हरछठ व्रत थी। वह रोती पीटती हरछठ मां की मनौती करती भागी चली आई। रास्ते में उसने देखा जिस सगरा को उनके ससुर ने बनवाया था वह जल से भरा लहरें ले रहा है। पुरइन पात लहरा रहे, वहीं एक बालक खेल रहा है। वह उसी सगरा की ओर दौड़ती हुई गई देखा तो यह तो उन्हीं का पुत्र था। उन्होंने उसे उठा लिया, चूमने लगी। हरछठ माता को मनाने लगी। उन्हीं की कृपा से आज उनका पुत्र बचा था। वह घर आई, घर का दरवाजा बन्द था। द्वार खुलवाया और कहने लगी,‘आजु तो सब जने हमरे लरिका का बलि चढ़ाय दीन्हेउ, हमका बहाने से मइके पठै दिह्यो। मुला आजु हमरे सत से औ हरछठ माता की दया से हमार गोदी फिर हरी भै। हमार लरिका तो वही सगरा मां खेलत रहा।’ सास ससुर यह देख सुनकर बहुत खुश हुये। बहू के पैरों में गिर पड़े और कहने लगे, आज तुम्हारी गोदी का बालक और हमारे कुल का दिया जगा। हरछठ माता ने जैसे हमारे दिन लौटाये वैसे ही सब का मंगल करें।

(- जगदीश पीयूष)

हलषष्ठी व्रत कथा

प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा।

यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया।

वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।

उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।

इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया।

कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है।

वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए।

ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया।

बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया।

  • मुख्य पृष्ठ : उत्तर प्रदेश कहानियां और लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां