हारिए न हिम्मत (लेख) : यशपाल जैन

Haariye Na Himmat (Hindi Essay/Lekh) : Yashpal Jain

कहिए साहब, क्या मामला है? आप इतने उदास क्यों है। आपकी आंखों मे आंसू क्यों छलछला रहे है। आपके चेहरे पर हवाइयां क्यों उड़ रही है?

ओहो, आप मुसीबतों मे जूझते-बूझते थक गये है। घर मे बीमारी है, बच्चो की पढाई का बोझ है, लड़की का जल्दी ही ब्याह होना है, बीसियों खर्च सिर पर है, पर पैसे की तंगी है। रात-दिन परेशानियों से आपका हौसला पस्त हो गया है, आपकी हिम्मत जवाब दे गयी है। चारों ओर अंधकार दिखाई देता है। कोई रास्ता ही नही सूझता।

भाई, आपके साथ मेरी सहानूभूति है और मै चाहता हूं कि आपकी परेशानियां जल्दी-से-जल्दी दूर हो। पर मेरी एक बात का जवाब दीजिए। क्या आपके इतनी चिन्ता करने, इतना हैरान होने और निराश होकर हाथ-पर-हाथ रखकर बैठ जाने से आपकी कोई समस्या हल हुई है? हल होने में मदद मिली है? बीमारी को कोई फायदा पहुंचा हैं? बच्चों की पढाई का बोझ हल्का हुआ है? लड़की शादी के लिए रास्ता निकला है?

वाह, आपने भी अच्छा सवाल किया! अजी, मुसीबत आती है तो किसे हैरानी नही होती? चोट लगती है तो किसके दर्द नही होता? जब चारों तरफ के रास्तें बंद हो जाते है तो किसका दिल नही टूटता? इंसान ही तो है! बहुत ज्यादा बोझ आखिर कब तक उठा सकता हैं।

आपने इतनी बातें कह डाली, पर मेरे सवाल का ज़वाब मुझे नही मिला। मैने पूछा था कि क्या फ्रिक करने और हिम्मत हारने से आपकी मुश्किलें कम हुई? कठिनाइयों मे से रास्तें निकला?

जी नही, मेरी समस्याएँ ज्यो-की-त्यों बनी है, बल्कि बढ़ी ही है।

तब आप बताइए कि आपने चिन्ता करके, हिम्मत हार करके , क्या पाया? किसी ने ठीक ही कहा है, चिन्ता चिता के समान है। वह आदमी को खा जाती है और जो चिता के वश मे हाकर हौसला छोड़ बैठते है, उनकी नाव डूब जाती है। रूकावटें किसके रास्ते मे नही आती? लेकिन उनसे पार वे ही पाते है, जो उनके आगे सिर नही झुकाते, उनका मुक़ाबला करते हैं, शुतुरमुर्ग का नाम आपने सुना होगा। जब कोई खतरा आता है तो वह डर के मारे अपना मुँह धरती मे गाड़ लेता है। जानते है, इसका नतीजा क्या होता है? बड़ी आसनी से मौत उसे अपने पंजे मे जकड़ लेती हैं।

शुतुरमुर्ग जानवर होता है और माना जाता है कि बहुत-से जानवरों मे अक़ल की कमी होती है। पर आदमी तो अक़लमन्द कहलाता है। ऐसी लाचारी उसके लिए शोभा नही देती। मर्द तो वह है, जिसकी हिम्मत के सामने तूफान भी थरथरा उठे।

कोलम्बस की कहानी आपने पढ़ी होगी। वह एक छोटा-सा जहाज लेकर नयी दुनिया की खोज करने के लिए महासागर मे निकल पड़ा था। अचानक तूफान आ गया। तीन दिन तक उसका जहाज लहरों से टक्कर लेता रहा। इतने मे उसका एक मस्तूल ख़राब हो गया। उन दिनों जहाज इंजन से नही चलते थे। ऊँची बल्लियँ। लगाकर उन पर पाल तान देते थे। पालों में हवा भर जाती थी और उससे जहाज चलते थे।

मस्तूल का खराब होना मामूली बात नही थी। उसके मानी थी जहाज का खतरा, आदमियों की जान को ख़तरा। उसके संगी-साथी घबरा गये। उन्होने कहा, "अब हम आगे नही जायेगें। देश लौट जायेंगें। कोलम्बस बड़ा साहसी था। उसने मॉँझियों का हौसला बढ़ाया। बोला, "जरा-सी बात पर हाथ-पैर फुला दोगे तो उससे क्या होगा? तूफान हमारी परीक्षा ले रहा है। हम हार नही मानेगें।"

मॉँझियों की खोई हिम्मत लौट आयी। पर ज़रा आगे बढ़े कि उनकी कुतुबुनुमा बिगड़ गयी। कुतुबुनुमा दिशा बताने वाली घड़ी होती है। उसके ख़राब होने से यह पता लगना कठिन हो गया कि वे किधर जा रहे है। पर कोलम्बस की रग-रग मे हिम्मत भरी थी। मॉँझियों को समझाकर उसने कहा, "मै आपसे कहता हूँ, कितनी भी मुश्किले आयें, पर जीत हमारी जरुर होगी।"

और उसकी बात सच निकली। वे आगे बढते गये। उनके हर्ष का ठिकाना न रहा, जब उन्हें अकस्मात् पानी पर झाड़ियों की लकड़ियॉँ तैरती दिखाई दी और आकाश मे उड़ते हुए पक्षी नज़र आये। उन्हे नयी दुनिया मिल गयी, जिसकी तलाश मे वे निकले थे।

अब आप बताइए, अगर तूफान के आने, मस्तूल के खराब होने और कुतुबनुमा के बिगड़ जाने पर कोलम्बस ने हार मान ली होती तो क्या होता? दुनिया एक बहुत बड़ी खोज से वंचित रह जाती।

कार्लाइल दुनिया का बहुत बड़ा लेखक हुआ हैं। उसने फ्रांस की क्रान्ति का इतिहास लिखने मे बड़ी मेहनत की। उसका पहला भाग छपने जानेवाला था कि एक मित्र उसे पढ़ने ले गये। मित्र की गलती से वह घर के फर्श पर गिर पड़ा और नौकरानी ने उसे रद्दी काग़ज़ समझकर आग जलाने के काम मे ले लियां। मित्र को मालूम हुआ तो बड़े दुखी हुए, पर कार्लाइल के माथे पर शिकन तक न आयीं। महीनों तक उसने सैकड़ो किताबों, हस्तलिखित पत्रों ओर घटनाओं के हालों को फिर से पढा और उस ग्रन्थ्र को दोबारा लिखकर ही माना।

किसी ने ठीक ही कहा है, "जीवन की धारा जब किसी गीत की तरह बहती हो तो उस समय पुलकित होना काफी आसान है; लेकिन असली अदमी तो वह है, जो सबकुछ उल्टा होने पर भी मुस्करा सके।"

विनोबाजी ने बड़े पते की बात कही-"चिन्तन करो, चिन्ता नही", यानी सामने कोई कठिनाई आवे तो उसमें से निकलने का रास्ता सोचो, हताश मत होओ।

ईसाइयों के धर्म-ग्रन्थ बाइबिल मे प्रभु कहते है, "जो मुसीबतों पर विजय पाता है, उसके लिए मै अपने तख्त पर जगह रखता हूँ।"

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