हालात काबू में हैं (व्यंग्य रचना) : डॉ. मुकेश गर्ग ‘असीमित’
Haalaat Kaboo Mein Hain (Hindi Satire) : Dr. Mukesh Garg Aseemit
चीख-पुकार की कर्कश आवाज को एम्बुलेंस और पुलिस की गाड़ियां अपनी सायरन की आवाज से दबा रही हैं। अखबार और टीवी न्यूज़ वाले खबरियों का टिड्डी दल पहुंच चुका है, कोने कोने से तस्वीरें ली जा रही हैं, आखिरकार पृष्ठभूमि को आकर्षक बनाने के लिए उस कोने को आखिरी में चुना गया है जहाँ लाशों के ढेर के साथ उनके रोते बिलखते परिजन भी फोटो फ्रेम में आ जाएं। कुछ शव बेतरतीब से पड़े थे, अब डिसिप्लिन नाम की भी कोई चीज होती है ,जिन्दे थे तब लदे पड़े बेढंगे से बाबा की गाडी के नीचे कुचलने को लाइन तोड़ रहे थे, अब मर कर भी लाइन में नहीं लगे हुए , उन्हें किसी अनुशासन पसंद वरिष्ठ पुलिसिया द्वारा लाइन में सजा दिया गया है। उन पर सफेद कपड़े का कफ़न ओढ़ा दिया गया है, बिल्कुल कोरा कफ़न, सरकारी खर्चे का कफ़न। जीते जी तो नहीं, लेकिन मरने के बाद ही सही, लाशों को पूरा कपड़ा तो नसीब हो रहा है। लो जी, मंत्री की गाड़ियों का काफिला भी आ चुका है, इलाके की घेराबंदी कर दी गई है। भीड़ रोना धोना छोड़कर मंत्री जी के दर्शन को उमड़ पडी ,बाबा के दर्शन तो अभी कुछ दिन के लिए दुर्लभ हो ही जायेंगे ! बाबा एक बार भीड़ मर्दन कर के अपनी थकान मिटने अंतर्ध्यान हो गए हैं ! चुनाव के बाद चार साल में पहली बार मंत्री जी की शक्ल देखने को लालायित भीड़ , इस त्रासदी में भी अवसर की तलाशती आँखों का आज वो सपना भी पूरा हो गया। मंत्री जी का दौरा है तो सभी विभागों को दौरा पड़ चुका है ,और सभी अलर्ट मोड पर आ गए हैं। सरकारी सूत्रों के हवाले से मरने वालों की संख्या घटा कर आधी कर दी गई है, लेकिन अखवार वाले आंकड़ों से संतुष्ट नहीं है। जब तक मरने वालों की संख्या सौ तक नहीं पहुंचेगी, न्यूज़ फ्रंट पेज पर छपने लायक ही नहीं है। मंत्री जी अपने दल-बल के साथ घटना स्थल पर लाश के पास खड़े होकर, थोड़ी देर इधर उधर देख रहे हैं, शायद इंतजार कर रहे हैं कि उनके मगरमछी आँसू एक बार निकल आयें । तब तक शक्ल पर जरूर दुख का असीम भाव ले आए हैं। पत्रकारों ने जैसे ही फोटो खींचने को कहा, मंत्री जी ने रुकने को कहा। दो चार लाशें रैंडम सिलेक्शन मेथड से चिन्हित कर एक तरफ पटक दिया है ,इन लाशों को क्लेम करने वाले परिजनों को भी बुला लिया है। कुछ लाशों पर अभी किसी ने क्लेम नहीं किया ,उन्हें सीन से हटा दिया गया है ! बाकी लोग भी घेरा तोड़कर अंदर आना चाह रहे हैं, उनको पुलिस अपने डंडे से शोक संदेश दे रही है। जैसे ही आँसू टपके, नेताजी के साथ वाले ने इशारा किया की हाँ सीन रेडी है ,एक्शन ! और धड़ाधड़ न्यूज़ मीडिया वालों के कैमरे के फ्लैश जलने लगे हैं। सब की निगाहें और कान मंत्री जी के दो वाक्य सुनने को आतुर हैं। मुआवजे की भी घोषणा हो गई है। घोषणा होते ही कुछ परिजन उँगलियों में राशि की रकम में कितनी जीरो हैं उसका आकलन कर रहे है. घायलों की और मरने वालों की संख्या पूछी जा रही है। तभी डीएम साहब बोल पड़े, "साहब, अभी घायलों में कुछ और मर सकते हैं, उनका क्या करें?" मंत्रीजी बोले, "ठीक है, इंतजार कर लेते हैं। चार दिन बाद मुआवजा बांट देना।" मंत्रीजी ने घड़ी देखी, हड़बड़ाते हुए अपनी मंशा जाहिर की कि अभी घायलों के समाचार और पूछने हैं, कितने घायल भर्ती हुए हैं। मौके पर मौजूद डॉक्टर इंचार्ज को बुला लिया गया। मंत्रीजी ने दो-चार गरम सी फटकार लगा कर इंचार्ज को हड़का दिया है –“ इलाज में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए। "अभी जो मरेंगे वह सब हॉस्पिटल की लापरवाही से मरेंगे, ध्यान रखना उसका क्म्पन्सेसन सरकार नहीं देगी, तुम्हारी जेब से लेंगे।" मंत्रीजी मौके से पलायन कर चुके हैं। इसी बीच, सरकारी प्रवक्ता अपनी जेब से एक कागज का पुच्छल्ला निकाल कर प्रेस मीडिया के सामने बोलता है,
"हालात काबू में है।"