Mikhail Prishvin मिखाइल प्रीश्विन
मिख़ाईल प्रीश्विन (1873-1954) न केवल रूसी सोवियत साहित्य के बल्कि
समूचे विश्व साहित्य के एक अनुपम-अनन्य लेखक माने जाते हैं।
प्रीश्विन का जन्म ओर्योल प्रान्त के एक व्यापारी परिवार में हुआ था। रीगा के
पॉलिटेक्निकल इंस्टीट्यूट में पढ़ते समय उन्हें क्रान्तिकारी मार्क्सवादी मण्डली में भाग
लेने के लिए गिरफ़्तार किया गया था जिसके बाद रूस के सभी उच्च शिक्षा-संस्थानों
के दरवाज़े उनके लिए बन्द हो गये। जर्मनी जाकर 1902 में उन्होंने लाइप्ज़िग
विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र संकाय के कृषि विभाग में शिक्षा सम्पन्न की। रूस
लौटकर उन्होंने कृषिशास्त्री के रूप में काम किया और कृषि-व्यवस्था के बारे में कई
लेख लिखे। बाद में उनकी रुचि लोक साहित्य और नृजाति विज्ञान में जागी। उन्होंने
पूरे देश में व्यापक भ्रमण किया तथा शिक्षा और विभिन्न इलाकों के अध्ययन के क्षेत्र
में भी व्यापक कार्य किया। अपनी पहली कहानी उन्होंने तीस वर्ष की आयु में लिखी।
परिमाण की दृष्टि से उन्होंने बहुत अधिक नहीं लिखा, लेकिन गुण की दृष्टि से उनके
अधिकांश लेखन को उत्कृष्ट कहा जा सकता है।
जीवन और साहित्य - दोनों में ही प्रीश्विन ने अपनी अस्मिता को बनाये रखा।
प्रकृति के सूक्ष्मतम भेदों को जानने और प्रकृति में मानव की आत्मा के उत्तम पक्षों को
खोज निकालने की अदम्य उत्कण्ठा उनके सृजन की विशिष्ट अभिलाक्षणिकता मानी
जाती है। कहा जाता है कि एक महान कवि विश्व को हमेशा एक बच्चे की निगाह
से देखता है, जैसे कि वह वास्तव में उसे पहली बार देख रहा हो। यह बात प्रीश्विन
पर भी लागू होती है। पृथ्वी, इसके निवासियों और सभी पार्थिव चीज़ों के प्रति उनके
दृष्टिकोण में लगभग बालसुलभ सुस्पष्टता और सादगी थी। प्रीश्विन की गणना रूसी
प्रगीतात्मक गद्य के शिखर-पुरुषों में की जाती है। उनके लेखन के ये विशिष्ट गुण
पाठकों को इनकी कहानियों में भी देखने को मिलेंगे। - कात्यायनी
