Mikhail Lermontov
मिख़ाईल लर्मन्तोव
मिख़ाईल उरिएविच लर्मन्तोव (1818-1841) का जन्म भी, पुश्किन के ही समान
एक कुलीन और धनी परिवार में हुआ था, और पुश्किन के ही समान
एक द्वन्द्व-युद्ध में उनकी मृत्यु हुई। लर्मन्तोव की मृत्यु यद्यपि 27 वर्ष
की तरुण अवस्था में ही हो गयी, फिर भी रूसी साहित्य में उनका
स्थान बहुत ऊँचा है।
1834 में एक सैनिक शिक्षालय से उत्तीर्ण होने के बाद अन्त तक
लर्मन्तोव का जीवन सेना में ही बीता था। 1837 में पुश्किन की हत्या
पर उन्होंने एक कविता लिखी। इसकी एक प्रति दुर्भाग्य से निकोलस
प्रथम के हाथों में भी पहुँच गयी। फिर क्या था! लर्मन्तोव गिरऱतार कर
लिये गये और उन्हें निर्वासित कर दिया गया। 14 माह बाद उन्हें
पीटर्सबर्ग लौटने की अनुमति दे दी गयी। किन्तु 1840 में फ़्राँसीसी
राजदूत के पुत्र के साथ वह द्वन्द्व युद्ध में उलझ गये और उन्हें कारागृह
में डाल दिया गया।
कारागृह में महान रूसी आलोचक बेलेन्स्की ने लर्मन्तोव से
मुलाक़ात की। मुलाक़ात के बाद बेलेन्स्की ने अपने उद्गार इन शब्दों में
प्रकट किये:
"ओह! यह तो महान ईवान बुर्ज के समान ही ऊँचा कवि होगा।"
कविताओं के अतिरिक्त लर्मन्तोव ने सुप्रसिद्ध उपन्यास "हमारे युग
का एक नायक" और अनेक कहानियाँ भी लिखी हैं। वे एक अच्छे
चित्राकार भी थे।
लर्मन्तोव की मृत्यु जिस द्वन्द्व-युद्ध में हुई, उसकी शर्तें विचित्र थीं।
एक शर्त यह भी थी कि वह लड़ाई एक ऊँची चट्टान के सिरे पर
लड़ी जायेगी। लर्मन्तोव ज़ख़्मी हो गये, और चट्टान के सिरे से खड्ड
में गिरकर मर गये।।