Gurmukh Singh Jeet गुरमुख सिंह जीत
गुरमुख सिंह जीत (2 नवंबर, 1922 - नवंबर, 1995)
शिक्षा एम. ए. (राजनीति विज्ञान), जीवनवृति : सरकारी नौकरी
प्रकाशित कहानी संग्रह : काले आदमी (1956), धरत मौन सुनहरी (1958), दसवां ग्रह
(1964), फूलों की परछाइयां (1970), सपने की ताजपोशी (1977), नीलकंठ (1982),
देखो कौन आया है (1988), अलग-अलग फोकस (1988), सुरसागर (1988), सरगम की
हत्या (1989), तुम आमार बंधु (1993)।
इस संग्रह (घेरे में बंधे लोग) की सभी कहानियों को मैंने पढ़ा है, पढ़ने के बाद मैं कई कहानियों पर बार बार सोचता रहा। 'देखो कौन आया है', 'मेरी पत्नी का पति', 'बिना नींव की मीनार', 'तुम्ही अमार बंधु' ... कई और कहानियां भी फिर गौर से पढ़ी ... और तब मुझे अंदाजा हुआ की हमारे समकालीनों में इतना विराट, विस्तृत और व्यापक रचना-संसार शायद किसी अन्य लेखक का नहीं है, जितना की गुरमुख सिंह जीत का है। इस बात के अलावा मुझे यह कहने में भी संकोच नहीं की उनकी लगभग हर कहानी अपने अछूते कथ्य के कारण विशिष्ट बन जाती है। गुरमुख सिंह जीत की कहानियों ने नीरसता व एकसारता को तोड़ कर, कम से कम मुझे तो, अब फिर शिद्दत के साथ कहानियों को पढ़ने की और उन्मुख किया है। किसी लेखक का साहित्य यदि पाठक को पढ़ने के लिए मजबूर के दे, तो उसे ही साहित्य की आंतरिक क्षमता का श्रेय दिया जा सकता है। - कमलेश्वर
