Gurbaksh Singh Preetlari
गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी

गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी (26 अप्रैल 1895-1977) का जन्म स्यालकोट(पाकिस्तान) में हुआ था और इन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की थी। पंजाबी कहानी की प्रारंभिक कथा पीढ़ी के ये एक मजबूत स्तम्भ माने जाते हैं। इनकी सभी कहानियों में 'प्रेम' विषय प्रमुख है। यूँ तो गुरबख्श सिंह जी ने अनेक नाटक भी लिखे लेकिन जाने वह एक महान कहानीकार के रूप में ही हैं। 'राजकुमारी लतिका', 'प्रीत मुकट', 'पूरब-पश्चिम', और 'प्रीतमणि' इनके प्रमुख नाटक हैं। सन् 1947 के बाद इनके 'भाभी मैना', 'नवें खंडर दी उसारी', 'शबनम', 'आखरी सबक', 'प्रीतां दे पहरेदार' और 'इश्क जिन्हां दे हड्डीं रचया' कहानी संग्रह प्रकाशित हुए। गुरबख्श सिंह के पास कहानी कहने का अपना निजी दृष्टिकोण था और थी भावुक संवेदनशीलता और रसिक शैली। कई कहानियों में मनौवैज्ञानिक चित्रण गहरा विश्लेषण लिए हुए है और जीवन यथार्थ को नया अर्थ भी प्रदान करता प्रतीत होता है। 10 कहानी संग्रह, एक उपन्यास, 7 बाल साहित्य की पुस्तकें तथा अनेक लेख संग्रह इनके नाम हैं। कुछ पुस्तकों का अनुवाद भी किया। 'प्रीतलड़ी' मासिक पत्रिका के संस्थापक रहे और प्रीत नगर की स्थापना भी की।

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