Gurajada Apparao
गुरुजाड अप्पाराव
गुरुजाड अप्पाराव (सितम्बर, 1861 - 30 नवम्बर, 1915) आधुनिक तेलुगु भाषा के प्रसिद्ध राष्ट्रीय कवि थे। इनका जन्म आन्ध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम क्षेत्र में एक विद्वान परिवार में हुआ था। इनके पिता वेंकटरामदास संस्कृत और तेलुगु के विद्वान तथा वेदान्त तथा ज्योतिष के ज्ञाता थे। इनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। विद्यालय में संस्कृत और दर्शन इनके प्रिय विषय थे। कुछ समय तक अध्यापन करने के बाद विजयनगर रियासत में नौकरी की। यहां इन्हें इतिहास पर शोध करने का अवसर मिला और उन्होंने 'कलिंग का इतिहास' नामक ग्रंथ की रचना की।
गुरजाड अप्पाराव आधुनिक तेलुगु साहित्य के युग-निर्माता और जनसाधारण की समझ में आनेवाली व्यावहारिक भाषा को साहित्यिक रूप देने के लिए लड़नेवाले महापुरुष हैं। समाजसुधारक, क्रांतिकारी कवि के रूप में भी इनकी पर्याप्त ख्याति है। भाषा, रीति भावना व शैली में नए प्रयोग कर कवि, नाटककार और कहानीकार के रूप में अपनी भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन किया है। उनकी दृष्टि में साहित्य का उद्देश्य कोई प्रयोजन अवश्य होना चाहिए इसी अभिप्राय से उन्होंने समकालीन समाज के दुराचारों को दूर करने के लिए साहित्य को एक प्रबल साधन बना लिया है। अध्यापक, दीवान, शिक्षावेत्ता तथा सुधारक के रूप में उन्होंने अपनी प्रखर प्रतिभा का अच्छा परिचय दिया है। उनके 'मुव्याल सरालु' (कविता-संग्रह), 'कन्या शुल्कम' (नाटक) विशेष प्रसिद्ध हैं। 'कन्या शुल्कम' एक सामाजिक नाटक है, जिसकी रचना के द्वारा अप्पारावजी की कीर्ति देशव्यापी हो गई। गीत-रचना में भी वे सिद्धहस्त हैं। वीरेशिलिंगम के प्रयत्नों से समाज सुधार की जो लहर पैदा हुई थी उसको आगे बढाने में अप्पाराव ने भी योग दिया।
उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- सारंगधर, पूर्णम्म,
कॊंडुभट्टीयं,
नीलगिरि पाटलु,
मुत्याल सरालु,
कन्यक,
सत्यव्रति शतकमु,
बिल्हणीयं (असंपूर्णं),
सुभद्र,
लंगरॆत्तुमु,
दिंचुलंगरु,
लवणराजु कल,
कासुलु,
सौदामिनि,
कथानिकलु,
मीपेरेमिटि,
दिद्दुबाटु,
मॆटिल्डा,
संस्कर्त हृदयं,
मतमु विमतमु
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