Balivada Kanta Rao
बलिवाड़ा कांताराव
बलिवाड़ा कांता राव (3 जुलाई 1927 - 6 मई 2000) प्रसिद्ध तेलुगु उपन्यासकार और नाटककार थे । उनका जन्म मदापम, आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में हुआ ।
उन्होंने भारतीय नौसेना में नागरिक अधिकारी के रूप में विभिन्न पदों पर काम किया । उनके नाम 38 प्रमुख और छोटे उपन्यास, 400 लघु कथाएँ, और 5 प्रमुख नाटक।
उनके कई उपन्यासों और कहानियों का अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है। उन्होंने कई पुरस्कार जीते जिनमें आंध्र प्रदेश साहित्य अकादमी, तेलुगु विश्वविद्यालय
पुरस्कार, गोपीचंद साहित्य पुरस्कार, रवि शास्त्री स्मृति पुरस्कार और कलासागर विशिष्ट पुरस्कार शामिल हैं। वह 1998 में भारत सरकार द्वारा केन्द्रीय साहित्य अकादमी
पुरस्कार के विजेता थे । उनकी कुछ कृतियाँ हैं: शारदा (1947),
पराजयम (1949),
अन्नपूर्णा (1950),
बुची (1950),
सुगुना (1951),
गोडामीदा बोम्मा (1953),
दगपदीना तमुदु (1957),
मत्स्यगंधी (1962),
संपांगी (1970),
नालुगु मंचलु (1966),
पुण्यभूमि (1969),
आइडिया नरकम आइडिया स्वर्गम (1974),
वम्सधारा (1982),
दिल्ली मजलिलु (1984),
चैत्र पर्व (1977),
लव इन गोवा (1984),
मारो राजशेखर चरित्र (1986),
अजंता (1986),
एलोरा (1988),
अम्मी और जन्मभूमि (2003, मरणोपरांत प्रकाशित)।