Ali Abbas Hussaini अली अब्बास हुसैनी

सय्यद अली अब्बास हुसैनी (03-02-1897 - 23-09-1969) का जन्म मौज़ा पारा ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ । उनका निधन लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ । वह कहानीकार, आलोचक और नाटककार के रूप में जाने जाते हैं। मिशन हाई स्कूल इलाहाबाद से मैट्रिक और इंटरमीडिएट किया। केनिंग कॉलेज लखनऊ से बी.ए. मुकम्मल करने के बाद इलाहाबाद यूनीवर्सिटी से इतिहास में एम.ए. किया। गर्वनमेंट जुबली कॉलेज लखनऊ में शिक्षा-दीक्षा से सम्बद्ध रहे। यहीं से 1954 में प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत हुए।
अली अब्बास हुसैनी को बचपन से ही क़िस्से-कहानियों में दिलचस्पी थी। दस-ग्यारह बरस की उम्र में अलिफ़ लैला के क़िस्से, फ़िरदौसी का शाह नामा, तिलिस्म होश-रुबा और उर्दू में लिखे जानेवाले दूसरे अफ़सानवी अदब का अध्ययन कर चुके थे। 1917 में पहला अफ़साना ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता के नाम से लिखा और 1920 में सर सय्यद अहमद पाशा के क़लमी नाम से पहला रुमानी नॉवेल ‘क़ाफ़ की परी’ लिखा। ‘शायद कि बहार आई’ उनका दूसरा और आख़िरी उपन्यास है। रफ़ीक़-ए-तन्हाई, बासी फूल, कांटों में फूल ,मेला घुमनी, नदिया किनारे, आई.सी.एस. और दूसरे अफ़साने, ये कुछ हंसी नहीं है, उलझे धागे, एक हमाम में, सैलाब की रातें, कहानियों के संग्रह प्रकाशित हुए।
‘एक ऐक्ट के ड्रामे’ उनके ड्रामों का संग्रह है। अली अब्बास हुसैनी की एक पहचान कथा-आलोचक के रूप में भी हुई। उन्होंने पहली बार नॉवेल की तन्क़ीद-ओ-तारीख़ पर एक ऐसी विस्तृत किताब लिखी जो आज तक कथा-आलोचना में एक संदर्भ के रूप में जानी जाती है। ‘अरूस-ए-अदब’ के नाम से उनके आलोचनात्मक आलेख का संग्रह प्रकाशित हुआ।