ग्यारह बेटे : फ़्रेंज़ काफ़्का

मेरे ग्यारह लड़के हैं। पहला लड़का बाहर से साधारण दिखता है, लेकिन गंभीर एवं चालाक है। फिर भी मैं उसे प्यार करता हूँ जैसा कि मैं अपने सभी बच्चो से करता हूँ। मैं उसे श्रेष्ठ नहीं मानता हूँ । मुझे उसकी मानसिक प्रक्रिया बिल्कुल साधारण लगती है। वह न तो दाएँ, न ही बाएँ और न ही सुदूर देखता है । वह हर समय घूमता ही रहता है, बल्कि अपनी छोटी सी विचार परिधि में ही चक्कर काटता रहता है।

दूसरा लड़का आकर्षक, छरहरा और गठीला है। लोग साँस रोककर उसे तलवारबाजी करते देखते हैं। वह चालाक भी है और दुनिया का अनुभव भी उसे है । उसे व्यापक अनुभव है, इसलिए हमारा देश उसे देश में रहनेवालों की तुलना में अधिक रहस्य सौंपता है। फिर भी मुझे पूरा विश्वास है कि यह लाभ उसे न सिर्फ और न ही आवश्यक रूप से भ्रमण की वजह से है बल्कियह उसके अतुलनीय स्वभाव की वजह से है, जो उदाहरणार्थ सभी मानते हैं, जिसने कभी भी उसकी नकल करने की कोशिश की । हमें कहना चाहिए कि जब वह पानी में ऊँचा गोता लगाता है, कई बार कलाबाजियाँ खाते हुए, तब भी वह जबरदस्त आत्मनियंत्रण में होता है । गोताखोरी के तख्ते के अंतिम छोर पर खिलाड़ी उसका पीछा करने का अपना साहस और अपनी इच्छा को बनाए रखता है, लेकिन उस क्षण में भी वह हवा में उछलने की बजाए अचानक बैठ जाता है तथा क्षमा के तौर पर अपना हाथ ऊपर उठाता है। इसके बावजूद भी (हमें ऐसा बेटा होने पर स्वयं को धन्य समझना चाहिए) मेरा उससे लगाव चिंतामुक्त नहीं है। इसकी बाई आँख दाहिनी आँख से थोड़ी छोटी है तथा कुछ ज्यादा ही फड़कती है। एक छोटी सी कमी, जो उसके चेहरे को अधिक निर्भीकता प्रदान करती है, अन्यथा कोई भी उसकी आत्म- परिपूर्णता को देखते हुए शायद ही उसकी छोटी आँख की कमी और उसकी फड़फड़ाहट की ओर ध्यान देगा। फिर भी मैं उसका बाप होने के नाते यह करता हूँ। निश्चित रूप से मुझे उसकी शारीरिक कमी से चिंता नहीं होती, बल्किउसके स्वभाव की थोड़ी अनियमितता, अपनी पूर्ण क्षमता के विकास की असमर्थता जो सिर्फ मैं ही देखता हूँ, आदि परेशान करती है। दूसरी ओर सिर्फ यही उसे मेरा सच्चा पुत्र बनाती है, क्योंकि यह कमी तो मेरे पूरे परिवार में है, लेकिन उसमें यह थोड़ा ज्यादा स्पष्ट है।

तीसरा बेटा भी आकर्षक है, लेकिन उस तरह नहीं जैसे मैं उसकी प्रशंसा करता हूँ । उसका चेहरा गायक जैसा सुंदर है - कटावदार होंठ, स्वप्निल आँखें, सिर ऐसा मानो पगड़ी लगाने से और आकर्षक बन जाए, गहरी धनुषाकार छाती, तेजी से ऊपर उठने और गिरनेवाले हाथ, नजाकत से बढ़ती टाँगें; क्योंकि वे वजन नहीं सँभाल सकतीं। इसके अलावा उसकी आवाज का टोन भी पूर्ण नहीं था । एक क्षण के लिए वह सुनता है, विशेषज्ञ उसके कान खींचता है, लेकिन लगभग तुरंत ही वह शांत हो जाता है । यद्यपि सामान्य रूप से सभी चीजें मुझे अपने इस बेटे को सभी के संपर्क में लाने के लिए लुभाती थीं, लेकिन मैं उसे पृष्ठभूमि में ही रखना पसंद करता हूँ। वह जिद्दी नहीं है, इसलिए नहीं कि वह अपनी कमियों से परिचित है, बल्कि वह निश्छल है। इसके अलावा वह सुखद अनुभव नहीं करता है, मानो उसने हमारे परिवार को तो स्वीकार कर लिया, लेकिन उसे लगता है कि किसी और परिवार से उसका संबंध है, जो उसने हमेशा के लिए खो दिया है। कभी-कभी वह उदास हो जाता है और फिर उसे किसी चीज से भी खुशी नहीं मिलती।

मेरा चौथा बेटा सभी बच्चों में शायद सबसे ज्यादा घुलने-मिलने वाला है । अपनी उम्र के बिल्कुल अनुरूप सभी के लिए सहज और इसलिए सभी उसे पसंद करते हैं। शायद इस व्यापक प्रशंसा के कारण ही उसका स्वभाव लचीला, चाल स्वच्छंद एवं निर्णय निष्पक्ष होते हैं । उसकी कई टिप्पणियाँ तो बार-बार उद्धत करने योग्य होती हैं, लेकिन उनमें अधिकांश परेशान करने वाली ही होती हैं । वह इस तरह का व्यक्ति है, जो जमीन से तो शानदार उड़ान भरता है, गौरैया की तरह हवा में रास्ता बनाता है और फिर निस्सहाय निर्जन भूमि पर वापस आ जाता है। इन्हीं चीजों की वजह से मुझे गुस्सा आता है।

मेरा पाँचवाँ बेटा दयालु एवं सभ्य है । जितना काम करता है उतनी बातें नहीं करता है । इतना साधारण हुआ करता है कि कोई भी उसकी उपस्थिति में अकेला महसूस करता है। इसके बावजूद भी उसने कम ही प्रसिद्धि प्राप्त की है। यदि मेरे से पूछा जाए कि यह कैसे हुआ तो मैं शायद ही यह बता पाऊँगा। शायद ही इस संसार की अफरा- तफरी में अपना रास्ता आसान बनाती है और वह निश्चित रूप से निश्छल है। हर किसी के साथ मित्रवत् है। मैं यह स्वीकार करता हूँ कि मुझे उसकी प्रशंसा सुनकर अच्छा नहीं लगता है । फिर प्रशंसा इतनी सस्ती लगने लगती है कि स्पष्टतः मेरे बेटे जैसे अनेक प्रशंसनीय लोगों के लिए की जानी चाहिए।

मेरा छठा बेटा पहली नजर में सभी बेटों में सबसे ज्यादा विचारवान लगता है । उसका सिर हमेशा झुका रहता है फिर भी वह बहुत बड़ा बातूनी है। इसलिए उसे समझना आसान नहीं है। यदि वह सुस्त है तो वह गहरी उदासी में है, यदि वह सक्रिय है तो वह अत्यधिक बातें करता है । फिर भी हम उसे अपने विचारों में मग्न रहने देते हैं। दिन के उजियारे में वह अपने विचारों से इस तरह लड़ता रहता है मानो सपने में हो। वह कभी बीमार नहीं पड़ता, बल्किउसका स्वास्थ्य अच्छा है; कभी-कभी वह लड़खड़ाता है, विशेषकर संध्या बेला में, लेकिन उसे किसी सहायता की जरूरत नहीं होती और न ही वह कभी गिरता है । शायद उसके शारीरिक विकास के कारण ही ऐसा है कि वह अपनी उम्र से बहुत लंबा है, सामान्य रूप से तो यह भद्दा लगता है, लेकिन व्यापक रूप से उसमें विशिष्ट सौंदर्य है, विशेषकर उसके हाथ और पैर । उसका माथा भी भद्दा है, शायद हड्डियों की संरचना और त्वचा का विकास भी इस कारण प्रभावित हुआ।

सातवें बेटे की अन्य बेटों की तुलना में मेरे से अधिक निकटता है। लोगों को उसकी प्रशंसा करना नहीं आता। यह उसकी विशिष्ट प्रकार की बुद्धि को नहीं समझते हैं। मैं उसे ज्यादा महत्त्व नहीं देता । मैं जानता हूँ कह ज्यादा महत्त्व नहीं रखता। यदि लोगों में उसकी प्रशंसा न करने के सिवाय कोई भी खराबी है तो यह निर्दोष है। लेकिन परिवार समूह में मुझे अपने बेटे के सिवाय होने पर मुझे ध्यान नहीं देना चाहिए। वह कुछ हद तक परंपरा के लिए सम्मान पैदा करता है तो कुछ बेचैनी भी और उन दोनों को जोड़ता भी है, कम-से-कम मुझे तो ऐसा लगता है। यह सच है कि अन्य की तुलना में उसे कम ही पता है कि उस उपलब्धि का क्या करूँ। वह कभी भी किसी काम को शुरू नहीं कर सकता है । फिर भी उसकी मन:स्थिति उत्साहवर्धक है तथा आशाओं से पूर्ण भी। मैं कामना करता हूँ कि उसके बच्चे तथा बच्चे के बच्चे भी हों । दुर्भाग्यवश मुझे नहीं लगता कि वह मेरी मनोकामना पूरी करेगा । आत्म-संतुष्टि के साथ मैं यह समझता हूँ कि जितना मैं निंदा करता हूँ तथा जो विश्व मान्यता के विरुद्ध है, वह हर जगह अकेला ही जाता है, लड़कियों की तरफ कोई ध्यान नहीं देता है फिर भी उसके हास्य में कोई कमी नहीं है।

मेरा आठवाँ बच्चा शोकग्रस्त है । मुझे नहीं पता ऐसा क्यों है? वह मुझसे दूरी रखता है फिर भी पितृत्व की गहरी भावना मुझे उससे बाँधे रखती है। समय के साथ इस तकलीफ में कमी तो आई है, वरना पहले तो मैं उसके बारे में सोचते हुए भी काँपने लगता था । वह अपने तरीके से चलता है। उसने मेरे साथ हर प्रकार का संपर्क काट रखा है। निश्चित रूप से अपने कठोर निर्णय के कारण । जब वह बच्चा था तो सिर्फ उसकी टाँगें ही कमजोर थीं, जो अब शायद अपने आप ही ठीक हो गई हैं। वह जो काम करता है, उसमें सफल होता है। पहले तो मैं उससे पूछता था कि सब कुछ कैसा चल रहा है, उसने पिता से ही स्वयं को क्यों अलग कर लिया है और जीवन में उसका मूल उद्देश्य क्या है और अब तो वह इतना दूर है तथा इतना समय बीत गया है कि जो जैसा है वैसा ही रहे तो ठीक है । मैंने सुना है कि वह ही मेरा एकमात्र बेटा है, जिसकी पूरी दाढ़ी है । निश्चय ही उसके जैसे छोटे कद के व्यक्ति पर यह बिल्कुल नहीं जँचता है।

मेरा नौवाँ बेटा आकर्षक है और आँखें जैसा कि महिलाएँ मानती हैं, पिघला देने वाली हैं । इतनी आकर्षक कि कभी-कभी वह मुझे भी मोहित कर लेता, यद्यपि कि मैं जानता कि इस सांसारिक आकर्षक के लिए एक गीला स्पंच ही काफी है। लेकिन उसके बाद उत्सुकता भरी बात यह है कि वह कभी भी मोहित करने की कोशिश नहीं करता है। अपनी जिंदगी सोफे पर पड़े तथा छत को ताकते हुए बिता कर वह संतुष्ट रहता है या आँखें बंद करके पड़े रहने में संतुष्ट रहता है। बातें करना उसे पसंद है और वह अच्छी तरह बातें करता है; लेकिन बातें वह सीमित दायरे में करता है। एक बार जब वह उनसे बाहर निकल जाता है, जो उसके लिए मुश्किल नहीं है, क्योंकि वे अत्यंत सीमित हैं; वह कहता है कि वह बिल्कुल खाली है। कोई उसे रुक जाने का संकेत करता है, यदि किसी को आशा है कि ये उम्मीदी आँखें संकेतों के प्रति सचेत हैं।

मेरे दसवें बेटे का चरित्र अनिष्ठापूर्ण समझा जाता है, मैं पूरी तरह से न तो इसकी पुष्टि करता हूँ, न ही इससे इनकार करता हूँ। निश्चय ही जब कोई भी उसे अपनी दुगुनी उम्र वाले की तरह नव्यता से चलते देखेगा, बटन लगा फ्रॉक कोट पहने, सिर पर पुरानी, लेकिन साफ-सुथरी टोपी पहने, भावहीन चेहरों, उभरी ठुड्डी, अपने पीछे रोशनी को छुपाते उभरे पलक; प्रायः होंठों पर रखी दो उँगलियाँ, कोई भी ये देखकर सोचने को विवश होगा कि वह कितना बड़ा धूर्त है। फिर उसे सिर्फ बोलते हुए देखिए ! कितनी समझ और विचार से पूर्ण, जीवंतता के साथ विश्व के बिल्कुल अनुरूप; ऐसी अनुरूपता जो कि स्वाभाविक, आश्चर्यजनक तथा आनंददायक है; आवश्यकता की अनुरूपता जिससे गला गर्व से ऊँचा हो जाता है और शरीर गर्व से भर जाता है । कुछ लोगों को, जो स्वयं को चालाक समझते थे तथा उसके बाहरी हाव-भाव के कारण उससे घृणा करते थे, वे भी अब उसकी बातचीत से प्रभावित होकर उसके प्रति गहरा लगाव महसूस करते हैं । दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो उसके हाव-भाव से तो अप्रभावित हैं लेकिन वे उसकी बातचीत को धूर्ततापूर्ण मानते हैं। मैं पिता होने के नाते उसके लिए कोई फैसला नहीं करूँगा, लेकिन इतना जरूर स्वीकार करता हूँ कि पहली श्रेणी के आलोचकों की तुलना में दूसरी श्रेणी के आलोचकों को अधिक गंभीरता से लेने की जरूरत है।

मेरा ग्यारहवाँ बेटा बड़ा ही नाजुक है, शायद सब बेटों में सबसे कमजोर, लेकिन भ्रामक, क्योंकि कभी-कभी तो वह शक्तिशाली और दृढ़ हो जाता है, फिर भी अंतर्निहित कमजोरी हमेशा ही होती है। लेकिन यह कोई लज्जित करनेवाली कमजोरी नहीं है, बस यह एक कमजोरी भर है, जो कभी घटती-बढ़ती रहती है । इस प्रकार के लक्षण ही मेरे बेटे की विशेषता हैं । निश्चय ही, ये ऐसे लक्षण नहीं हैं जिससे किसी पिता को खुशी होगी; बल्कि इससे तो किसी परिवार पर नकारात्मक प्रभाव ही पड़ता है। कभी-कभी तो वह मेरी ओर ऐसे देखता है मानो कुछ कहेगा, ‘“पिताजी, आपको मैं अपने साथ ले जाऊँगा ।" तब मैं सोचता हूँ, "तुम ही वह अंतिम व्यक्ति हो जिस पर मैं विश्वास रखता हूँ।” लेकिन फिर उसका चेहरा यह कहता प्रतीत होता है, "ठीक है फिर तो मुझे कम-से-कम अंतिम ही रहने दीजिए । "

ये मेरे ग्यारह बेटे हैं।

(अनुवाद: अरुण चंद्र)

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