ज्ञान की तलाश : सिक्किम की लोक-कथा
Gyan Ki Talaash : Lok-Katha (Sikkim)
एक समय की बात है। लागशय त्सोल नाम का राजा राज करता था। वह बहुत ही लोकप्रिय था। वह बहुत ही दयालु स्वभाव का था। उसके खजाने में जो भी होता, वह जरूरतमंदों में बाँट देता। वह दयालु होने के साथ बड़ा बुद्धिमान भी था, पर वह अपने ज्ञान से नाखुश रहता था, वह और भी ज्ञान अर्जित करना चाहता था। एक बार उस अपने मंत्रिमंडल को बुलावा भेजा और कहा, “मैं ज्ञान की प्यास रखता हूँ। हमारे राज्य में आप किसी ऐसे ज्ञानी और जानकार व्यक्ति को जानते हैं, जो मेरी जानकारी और ज्ञान को बढ़ा सकें?” उसके मंत्रियों में से लोसांग ने कहा, “आप स्वयं बहुत ही ज्ञानी हैं, आप क्या जानना चाहते हैं? क्योंकि आपकी तरह ज्ञानी तो यहाँ कोई नहीं है। आपके राज्य में भी सभी आपकी भाँति ज्ञानी लोग हैं, साथ ही आपकी भाँति उनका हृदय भी बहुत ही सुंदर है। इस पर भी अगर आपका मन संतुष्ट नहीं है तो मैं आपको बताता हूँ कि यहाँ से बहुत दूर एक वीरान जगह ल्याग्याप है, जहाँ के वर्जित जंगल में एक आदमी रहता है, जिसका नाम नंग्पो दुकोचेन है। वह बहुत बड़ा विद्वान् है। अगर आपकी भेंट उससे होगी तो वह आपकी ज्ञान की पिपासा को तृप्त कर सकता है।”
अपने मंत्री से यह सुनकर राजा बड़ा खुश हुआ। उसने अपने को सामान्य वेशभूषा में तैयार किया, उस गुरु के लिए सोने का छोटा सा टुकड़ा लिया और जंगल की तरफ बढ़ चला। पूरे जंगल में राजा ने उस विद्वान् की तलाश की, अंत में राजा की उस आदमी से भेंट हुई। राजा ने देखा, उसने सिर्फ अपने कमर के नीचेवाला वस्त्र ही पहना है। राजा को वह एक कसाई जैसा दिखा। राजा जो सोना अपने साथ लाया था, उसे उस आदमी को देना चाहा और कहा, “मेरे ऊपर कृपा करो और मुझे अपना ज्ञान दो, मैं बदले में तुम्हें सोना दूँगा।” जबकि नंग्पो को लगा, वह अपने वादे पर अडिग नहीं रहेगा। सोने का लोभ दिखाकर वह उससे उसका ज्ञान छीन लेगा, इसलिए उसने उसे वहीं मार देने का निर्णय लिया। तब नाग्पो ने राजा से कहा, “अगर तुम वाकई ज्ञान प्राप्त करने की चाह रखते हो तो तुम्हें साबित करना होगा, उसके लिए तुम्हें उस चोटी से कूदना होगा।” राजा ने सोचा, ‘मेरे ज्ञान प्राप्त करने से पहले ही मैं चोटी से कूदता हूँ तो मैं अवश्य मर जाऊँगा, जबकि ज्ञान अर्जन के बाद मरता हूँ तो उसे किसी तरह का पछतावा नहीं होगा, क्योंकि यही ज्ञान उसकी अगले जन्म में सहायता करेगा।’ इसलिए राजा ने कहा, “चोटी से कूदने से पूर्व मैं ज्ञान हासिल करना चाहता हूँ, उसके पश्चात् आप जो भी कहेंगे, उसका पालन करने को मैं तैयार हूँ।”
राजा के शब्दों को सुनकर नंग्पो ने फैसला लिया कि उसे अनुभव और ज्ञान से संवर्धित ‘मंजुश्री’ प्रदान करे, ताकि वह सबके प्रति न्यायसंगत रह सके। उनसे ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् सोने का टुकड़ा नंग्पो को सौंपकर वायदे के मुताबिक वह चोटी से कूद गया, पर अपने ज्ञान के प्रभाव से वह सही-सलामत जमीन पर उतर गया। ज्ञान प्राप्त कर राजा खुश हुआ। उसके बाद राजा अपने राज्य में लौट आया। वह न्यायसंगत राजशासन चलाने लगा। कुछ महीनों के बाद एक दिन नंग्पो राजा के ही राज में अपना सोना बेचने आया। सैनिकों ने जब अपने राजा के राजशाही चिह्नवाला सोना उस व्यक्ति के हाथों में देखा तो उन्हें उस पर संदेह हुआ कि इस जर्जर बूढ़े व्यक्ति के पास यह सोना कैसे आया? वे उसे पकड़कर राजा के समक्ष ले आए। जब राजा ने उस आदमी को देखा तो तुरंत वह अपने गुरु को पहचान गया। राजा ने उनका सम्मान किया और अपने दरबार में उचित स्थान देकर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। अपने गुरु से प्राप्त ज्ञान के आधार पर राजा न्यायप्रिय शासक बनकर प्रजा के हित में शासन करने लगा।
(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)