गुल्लाला शाह : कश्मीरी लोक-कथा

Gullala Shah : Lok-Katha (Kashmir)

एक बार की बात है कि एक देश में एक बहेलिया रहता था। वह अपने निशाने के लिये दूर दूर तक मशहूर था। वह रोज रोज बहुत सारी चिड़ियें मार देता था। कुछ को वह खुद इस्तेमाल कर लेता था और कुछ को वह बेच देता था। पर जितनी जल्दी वह कमाता था उतनी ही जल्दी वह उसे खर्च भी करता था।

यह कुछ दिनों तक तो ठीक से चला बल्कि यों कहो कि कुछ साल तो बहुत खुशी से निकल गये पर धीरे धीरे कुछ ऐसा हुआ कि चिड़ियें कम होने लगीं तो उसके रोज के शिकार में कमी होने लगी। शिकार में कमी होने लगी तो उसकी आमदनी कम होने लगी। अब वह दुखी और चिन्तित रहने लगा और यही सोचता रहता कि वह पैसा कमाने के लिये क्या करे।

जब उसका यह हाल चल रहा था तो राजा हंस ने चिड़ियों की दुनियाँ की सब चिड़ियों को बुलाया साथ में जो थोड़ी बहुत चिड़ियें उस बहेलिये के जंगल में बची थीं उनको भी बुलाया।

यह एक बहुत बड़ी कौन्फरैन्स थी इसलिये इसका इन्तजाम भी बहुत बढ़िया किया गया था। इसमें काफी काम हुआ हर चिड़िया को बोलने का मौका मिला और हर चिड़िया ने जो कुछ देखा और जो कुछ सुना उससे वह बहुत खुश थी।

आखिर कौन्फरैन्स खत्म हुई। सब चिड़ियें अपने अपने देश चली गयीं पर वे थोड़ी सी चिड़ियें जो बहेलिये के देश से आयी थीं वहाँ से जाने के लिये तैयार नहीं थीं। यह देख कर राजा हंस ने उनके वहाँ से न जाने की वजह पूछी।

चिड़ियें बोलीं — “ओ राजा हमारे देश में एक बहेलिया रहता है जिसका निशाना बहुत अच्छा है। वह चिड़ियों को बिना चेतावनी दिये ही जाल में फाँस लेता है। हमारे बहुत सारे भाई बहिनों को उसने मार दिया है।

कुछ समय पहले हम लोग बहुत सारे थे पर अब आप देखें कि हम लोग कितने कम रह गये हैं। हम आपसे दया की भीख माँगते हैं आप हमें इस बेरहम आदमी से छुटकारा दिलायें।”

यह सुन कर राजा हंस को बहुत दुख हुआ। वह तुरन्त ही उनके दुख को दूर करने के बारे में सोचने लग गया। उसके पास दो मुख्य मंत्री थे उल्लू और तोता जिनको वह बहुत चाहता था और उनकी सलाह भी वह हमेशा मानता था।

सो इस समय उसने उन दोनों को बुलाया और पहले उल्लू की तरफ देख कर बोला — “उल्लू भाई मैं सब चिड़ियों का राजा हूँ और तुम मेरे मंत्री हो। मेरी प्रजा का एक हिस्सा एक बहेलिये से बहुत दुखी है। उसका निशाना कभी नहीं चूकता और उसके जाल में चिड़ियें बहुत जल्दी फँस जाती हैं पर वे अपना देश नहीं छोड़ना चाहतीं। मेहरबानी कर के उनके वहाँ ज़िन्दा रहने कोई इन्तजाम करो।”

उल्लू को राजा का यह मुश्किल हुक्म सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ पर तोते के ज़्यादा ज्ञान और अक्लमन्दी की याद करते हुए वह बोला — “ओ राजा आपका यह हुक्म मैं पूरा नहीं कर सकता क्योंकि मैं दिन में नहीं देख सकता। अगर आपकी इजाज़त हो तो आपका यह हुक्म तोता बजा कर लायेगा।”

यह सुन कर राजा हंस ने तोते की तरफ देखा और उसको अपना हुक्म बजा लाने का हुक्म दिया। तोता तुरन्त ही राजी हो गया उसने राजा को सिर झुकाया और राजा का हुक्म बजाने चल दिया जो उसने अभी अभी उल्लू को दिया था।

वह उन दुखी चिड़ियों के पास पहुँचा जो उस बहेलिये के देश से आयी थीं और उनसे थोड़ा धीरज रखने के लिये कहा और कहा कि वे अपनी मनमानी न करें बल्कि उसकी सलाह मानें। भगवान उनके लिये सब भला करेगा। सब चिड़ियों ने एक आवाज में कहा कि वे उसकी बात मानेंगी।

जब बहेलिये को इस बात का पता चला कि उसके देश में अब एक भी चिड़िया नहीं रह गयी है तो उसके दुख की तो कोई हद ही नहीं रही। वह बहुत ही नाउम्मीद हो गया। वह नहीं जानता था कि अब वह अपने परिवार को खाना कहाँ से खिलाये।

अपने भूखे बच्चों की तरफ देखना बड़े दुख का काम था खास कर के जब वह शाम को बिना शिकार के घर लौटता था और उसके भूखे बच्चे खाने के लिये उसके चारों तरफ लिपट जाते थे। और फिर जब वे देखते थे कि उनके पिता के पास खाना नहीं है तो वे इधर उधर चले जाते थे।

जब तक चिड़ियाँ कौन्फरैन्स में थीं तब तक ऐसे ही चलता रहा कि एक दिन उसके बच्चों ने उससे कहा कि अब चिड़ियें दिखायी देने लगी हैं। यह सुन कर बहेलिये ने फिर से अपना जाल उठाया और तीर कमान उठाया और चिड़ियें पकड़ने चल दिया।

उसने अपना जाल वहाँ बिछा दिया जहाँ चिड़ियों के आने की बहुत उम्मीद थी। वह उस समय गुस्से के मारे इतना भयानक और इतना पक्के इरादे वाला लग रहा कि इस बार चिड़ियें पहले से भी ज़्यादा डरी हुई थीं।

वे तुरन्त तोते के पास गयीं और बोलीं — “अबकी बार फलाँ फलाँ जगह बहेलिये ने अपना जाल बिछाया है। आप हमें बताइये कि हम उससे कैसे बचें क्योंकि हमें यह अच्छी तरह मालूम है कि अगर हम उसके जाल से न पकड़े गये तो वह हमें तीर मार कर मार देगा।”

तोते ने कहा कि वे अलग अलग जगहों पर जा कर छिप जायें और उसने उनसे वायदा किया कि वह उनकी सुरक्षा का हमेशा के लिये इन्तजाम कर देगा। यह सुन कर वे सब चिड़ियें वहाँ से उड़ गयीं और अलग अलग जगह जा कर छिप गयीं।

तब तोता सीधा बहेलिये के जाल की तरफ गया और जा कर उसके जाल में फँस गया। पर उस दिन कोई और चिड़िया उसके हाथ नहीं लगी यह देख कर बहेलिया तो जैसे पागल सा हो गया। जब वह घर पहुँचा तो रोज की तरह उस दिन भी उसके बच्चे उसके चारों तरफ आ कर घिर गये और उससे पूछा कि आज उसको क्या मिला। वह बोला — “तुम्हारी बदकिस्मती से मुझे आज केवल यह तोता मिला।”

यह कह कर उसने अपने थैले में से एक तोता बाहर निकाल दिया। वह उसको खाने के लिये मारने ही वाला था कि तोते ने उसका इरादा भाँप कर उससे कहा — “ओ बहेलिये तुम मुझे क्यों मारना चाहते हो। क्या तुमको मालूम नहीं कि मेरा माँस खाने के लिये ठीक नहीं है। और अगर तुमने मुझे खा भी लिया तो इतने छोटे से कौर से तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की भूख कैसे शान्त होगी।

मेरे विचार से तो मुझे मारने से अच्छा यह होगा कि तुम मुझे बाजार में किसी तोता बेचने वाले को बेच दो और उस आये पैसे से कई दिनों का राशन खरीद लो।”

बहेलिये की समझ में यह अक्लमन्दी की बात आ गयी सो उसने उसको एक सुरक्षित जगह रख दिया। उसने सोचा कि वह अगली सुबह जल्दी उठेगा और उसको बाजार बेचने के लिये ले जायेगा। अगले दिन वह सुबह जल्दी उठा और तोते को ले कर बाजार चल दिया। उसने वह तोता बेचने के लिये रख दिया। उसने आवाज लगानी शुरू की “इसे कौन खरीदेगा इसे कौन खरीदेगा। मेरे पास यह तोता है इसे कौन खरीदेगा।” आवाज सुन कर बहुत सारे लोग उसको देखने के लिये रुक गये।

वे सब उससे बड़े खुश दिखायी दे रहे थे। बहुतों ने तो उसको खरीदने की इच्छा भी प्रगट की पर क्योंकि वे सब उसके लिये बहुत कम पैसा दे रहे थे इसलिये तोते ने उनके साथ जाने से मना कर दिया।

तोते का व्यवहार देख कर बहेलिया बहुत नाराज हो गया। वह सारा दिन गर्मी में उस तोते को बेचने के लिये घूमता रहा पर तोता नहीं बिका। यह देख कर वह बहुत ही थक गया और नाउम्मीद हो गया। जब वह घर पहुँचा और फिर से अपना परिवार और बच्चे भूखे और दुखी देखे तब तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने सोच लिया कि वह उस तोते को वहीं और उसी समय मार देगा।

बेचारा तोता। उसको लगा कि बस अब उसकी ज़िन्दगी का आखिरी पल आ पहुँचा है। फिर भी उसने बहेलिये से थोड़ा धीरज रखने के लिये कहा।

वह बोला — “थोड़ा धीरज रखो। तुम देखोगे कि इस देर करने में मेरा अपना कोई मतलब नहीं है। जब मैंने इतनी छोटी छोटी कीमतों के लिये बिकने से मना किया तो मेरा मतलब कोई बुरा नहीं था। मेहरबानी कर के यह भी मत सोचो कि अपनी ज़िन्दगी बचाने के लिये मैं तुम्हारा उपकार नहीं मान रहा हूँ।

अगर तुम कल तक इन्तजार करो और मुझे एक सुन्दर से पिंजरे में रख दो। फिर उस पिंजरे को एक सुन्दर से कपड़े से ढक दो और तब मुझे राजा के महल के आसपास ले कर जाओ तो शायद कोई अमीर आदमी पिंजरे को देख कर यह पूछ ले कि इसमें क्या है। और यह भी हो सकता है कि उनमें से किसी की मुझमें रुचि हो जाये और वह मेरी कीमत भी पूछ ले।

अगर ऐसा हो जाये तो पहले की तरह से पैसे का सौदा तुम मुझ पर छोड़ देना। उससे कहना कि मेरी कीमत बहुत है और अपनी कीमत मैं उसको अपने आप खुद बताऊँगा।” बहेलिये ने तोते की सलाह की फिर तारीफ की और फिर राजी हो गया।

अगले दिन उसने तोते को एक सुन्दर से पिंजरे में रखा और उसको एक सुन्दर से कपड़े से ढक कर राजा के महल की तरफ चल दिया। राजा के कई रानियाँ थीं पर उनमें से किसी के कोई बच्चा नहीं था सिवाय एक रानी के। उसके एक बेटी थी।

उसकी यह बेटी बड़ी हो कर इतनी सुन्दर और अच्छी हो गयी थी कि राजा उसको बहुत प्यार करता था। वह हमेशा उसको अपनी आँखों के सामने ही रखता था और उसकी कोई ऐसी इच्छा नहीं थी जिसको वह अपनी पूरी ताकत लगा कर पूरी न करता हो।

एक बार उसने एक चिड़िया की माँग की थी जो बात कर सके सो उसके लिये वह बड़ी लगन से ऐसी चिड़िया की तलाश कर रहा था सो इस समय उस बहेलिये का वहाँ आना बड़े मौके की बात थी।

जब बहेलिया महल के चारों तरफ घूम रहा था तो राजा का मुख्य मंत्री वहाँ से गुजर रहा था। बहेलिये ने उसको झुक कर सलाम किया तो तोते ने भी पिंजरे के अन्दर से उसे सलाम किया।

जब उसने पिंजरे में से तोते का सलाम सुना तो वह आश्चर्य में पड़ गया। उसके मुँह से निकला — “अरे वाह। कितनी अजीब बात है। ज़रा पिंजरे के ऊपर से कपड़ा तो हटाओ मैं भी तो इस आश्चर्यजनक चिड़िया को देखूँ तो कि यह कैसी है।”

बहेलिये ने तोते के पिंजरे पर से कपड़ा हटाया तो वह तोते की चतुराई की बजाय उसकी सुन्दरता देख कर आश्चर्यचकित रह गया। उसने उसे किसी भी कीमत पर खरीदना चाहा। जैसे कि पहले ही तय किया जा चुका था तोता बोला — “अठारह हजार रुपये।”

वजीर के मुँह से निकला — “अरे अठारह हजार रुपये?”

तोता फिर बोला — “हाँ अठारह हजार रुपये।”

वजीर बोला — “तब मैं तुम्हें नहीं खरीद सकता। पर मेरे मालिक राजा साहब तुम्हारी जैसी एक बोलती बात करती चिड़िया खरीदना चाहेंगे इसलिये मैं तुम्हें उनके पास लिये चलता हूँ।”

तोता राजी हो गया, सो वे सब महल की तरफ चल दिये। महल के सामने वाले दरवाजे पर पहुँच कर वजीर ने पिंजरा लिया और उसे ले कर महल के अन्दर चला गया। राजा साहब को सिर झुका कर उसने पिंजरा राजा के सामने रख दिया और बोला “शायद हुजूर की बहुत दिनों की इच्छा पूरी हो जाये।”

जैसे ही वजीर ने पिंजरा राजा के सामने रखा तो तोते ने बड़ी साफ आवाज में उसको सलाम किया। राजा ने आश्चर्यचकित हो कर वजीर से पूछा कि इतनी चतुर और शानदार चिड़िया उसको कहाँ से मिली।”

उसने आगे कहा — “मैं तो ऐसी चिड़िया की कब से तलाश में था। तुम इसको मुझे बेच दो। जो तुम चाहो वह इसके लिये मुझसे ले लो मैं तुम्हें दे दूँगा।”

वजीर बोला — “राजा साहब यह चिड़िया मेरी नहीं है। मुझे एक गरीब बहेलिया मिल गया था जो इसको लिये महल के आसपास घूम रहा था। और यह मुझे मालूम था कि सरकार को एक ऐसी चिड़िया की जरूरत थी सो पहले तो मैंने इसे खरीदने की कोशिश की पर पाया कि इसकी कीमत तो मैं जितनी दे सकता था उससे कहीं ज़्यादा है सो उस आदमी को मैं यहाँ ले आया। अगर आप इजाज़त दें तो उस आदमी को यहाँ बुला लूँ।”

राजा ने इजाज़त दे दी। बहेलिये को अन्दर बुलाया गया। जब राजा उसे खरीदने के लिये तैयार हो गया तो उसने बहेलिये से उसकी कीमत पूछी कि वह जो चाहे माँग ले वह उसकी वही कीमत दे देगा।

बहेलिये ने काँपते हुए कहा — “मालिक मैं इस चिड़िया की कीमत नहीं बता सकता। मैं केवल इतना जानता हूँ कि इसे काफी पैसे दे कर खरीदा गया था। बाकी राजा साहब की इच्छा। यह चिड़िया अपनी कीमत अपने आप बतायेगी।”

तब राजा तोते की तरफ घूमा और उससे उसकी कीमत पूछी। इस पर तोता बोला — “अठारह हजार रुपये।”

राजा ने आश्चर्य से पूछा — “अठारह हजार रुपये? यह तो बहुत ज़्यादा हैं। मुझे यकीन है कि तुम मुझसे मजाक कर रहे हो।”

राजा ने कुछ कम दाम में उसका सौदा करना चाहा पर तोता उससे कम पैसे को बिकने में तैयार नहीं था उधर राजा भी उसको खरीदने को तैयार बैठा था सो अठारह हजार रुपये बहेलिये को दे कर राजा ने वह तोता खरीद लिया। तोते को उसके सुन्दर पिंजरे के साथ राजा की बेटी के पास ले जाया गया।

अब तो बहेलिया एक अमीर आदमी हो गया था। पैसे उसके पास छप्पर फाड़ कर गिरे थे। अठारह हजार रुपये एक ही दिन में। बहुत खुशी खुशी वह घर लौटा।

उसके परिवार ने जब यह अच्छी खबर सुनी तो वह भी बहुत खुश हुआ। उस दिन उनके यहाँ बहुत दिनों बाद बहुत बढ़िया खाना बना। खाना खा कर वे अपने आगे के समय का प्लान बनाने लगे।

बहेलिया बोला — “हम इन अठारह हजार रुपयों का क्या करेंगे। क्या हम यह देश छोड़ दें जहाँ हम रोज दुखी रहते हैं और किसी अच्छी जगह चले जायें। या फिर हम यहीं रहें और इन पैसों से कोई व्यापार शुरू करें।

पैसा और इज़्ज़त बढ़ जाने से अब हमको पुरानी मुसीबतों को भूल जाना चाहिये और नया कुछ सोचना चाहिये। ओह मेरी पत्नी और बच्चों कुछ तो कहो कि हम इनसे क्या करें।”

वे लोग इसी तरह बात कर रहे थे कि अचानक उनको एक बहुत बड़ा शोर सुनायी दिया। उस शोर से भी ऊँची आवाज में कोई बहेलिये का नाम ले कर चीख रहा था। कुछ सिपाही वहाँ आ गये थे जिनको राजा ने बहेलिये को महल बुलाने के लिये भेजा था।

बेचारा बहेलिया तो डर के मारे काँपने लगा — “अरे क्या राजा ने मुझे बुलाया है। इस समय रात को राजा को मुझसे क्या चाहिये। शायद राजा अपनी खरीद से नाखुश हो और अपने पैसे वापस लेना चाहता हो। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि तोते ने मेरी कुछ बुराई कर दी हो। उफ़ अब मैं क्या करूँ।”

मगर उसके सब शक गलत निकले क्योंकि राजा ने उसे उस बात करने के सम्बन्ध में उसे बुलाया था जो उसने अभी अभी तोते से की थी। उस बात में तोते ने राजा को अपना उद्देश्य बताया था। वह राजा से यह चाहता था कि क्योंकि अब उस बहेलिये के पास काफी पैसा था तो राजा उसको यह हुक्म दे कि वह चिड़ियों को मारने का काम छोड़ दे और कोई व्यापार करना शुरू कर दे। राजा ने ऐसा ही किया। बहेलिया राजी हो गया और बोला कि उसका भी यही विचार था। उसने राजा को अपना तीर कमान और चिड़िया पकड़ने वाला जाल भी महल भेजने का वायदा किया ताकि राजा को यह विश्वास रहे कि वह अब आगे से कोई चिड़िया नहीं मारेगा। यह कह कर बहेलिया वहाँ से चला गया।

जैसे ही बहेलिया राजा के पास से चला गया तो राजा ने अपने राज्य में यह मुनादी पिटवा दी कि आगे से कोई चिड़िया नहीं मारेगा। और जो कोई भी राजा के इस हुक्म को न मानता हुआ पकड़ा गया उसको कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी।

इसलिये इसके बाद चिड़ियों के राज्य में अब शान्ति रहने लगी। वे अब बहुत जल्दी जल्दी बढ़ने लगीं और उनके गीत अब सारा दिन हवा में गूँजते रहते।

राजा को कृतज्ञता दिखाने के लिये तोते ने सोचा कि वह राजा के महल में ही रहेगा। उसने शाही परिवार में हर एक से दोस्ती कर ली थी तो सब उसको बहुत प्यार करते थे। खास कर के राजकुमारी वह तो अब सारा दिन उसी के साथ रहती थी। अब वह राजा के पास भी नहीं जाती थी बल्कि हमेशा तोते के साथ ही खेलती रहती और उससे बात करती रहती।

वह सोचती रहती “अगर यह तोता उड़ गया या मर गया तो मेरा क्या होगा। पौली तुम मुझे प्यार करते हो या नहीं। तुम मेरे पास से कभी जाओगे तो नहीं। ओह तुम मुझसे वायदा करो कि तुम मुझे छोड़ कर कभी नहीं जाओगे।”

जब इस तरह कुछ समय तक चलता रहा तो राजा कुछ गुस्सा हो गया क्योंकि अब उसकी बेटी उसके पास नहीं आती थी। क्योंकि वह अपनी बेटी को बहुत प्यार करता था तो वह उससे बिल्कुल अलग नहीं रह सकता था इसलिये उसको अपनी बेटी का हर समय तोते के साथ रहना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था।

एक शाम उसने अपने सलाहकारों को यह सलाह माँगने के लिये बुलाया कि इस बारे में कौन सा रास्ता अपनाया जाये। वह क्या करे कि उसकी बेटी फिर से उसके पास वापस आ जाये। वह न तो यह चाहता था कि वह चिड़िया को मारे और साथ में वह उसे मारने डरता भी था पर फिर वह क्या करे।

उन्होंने उसको सलाह दी कि उस तोते को दरबार में या बागीचे में लाया जाये जहाँ भी उसकी बेटी जाती हो क्योंकि राजा जानता था कि जहाँ भी तोता जायेगा उसकी बेटी भी वहीं जायेगी। राजा इस सलाह से बहुत खुश हुआ। तुरन्त ही उसने तोते को दरबार में लाने का हुक्म दिया।

अब यह तोता तो बहुत होशियार था। दुनियाँ में कहाँ क्या हो रहा था इसके पास यह सब जानने की ताकत थी और जब भी कोई खास खबर होती तो वह अपनी मालकिन को बता देता। उसने राजा का यह प्लान राजकुमारी को बता दिया कि राजा किस तरह अपनी बेटी को अपने पास वापस लाना चाहता था।

बाद में तोते ने कहा — “अच्छा है कि तुम खुद उसके पास चली जाओ। तुम मुझे यहीं छोड़ दो और तुम चली जाओ।” यह सुन कर राजकुमारी राजा के पास चली गयी। जब वह दरबार जा रही थी तो आधे रास्ते में ही उसे राजा का दूत मिल गया। उसने उससे पूछा कि वह क्या करने जा रहा था तो उसने उसे बताया कि वह तोते को दरबार में लाने जा रहा था।

राजकुमारी ने उससे कहा कि उसको जाने की जरूरत नहीं है वह सब ठीक कर लेगी। वह बोली तुम मेरे साथ वापस आओ मैं राजा साहब के पास ही जा रही हूँ।

जैसे ही राजकुमारी उसको वहाँ छोड़ कर राजा के पास गयी तोते को अपने पुराने घर और साथियों की याद आयी। उसने उनसे एक बार फिर मिलने की सोची। उसको लगा कि जब तक राजकुमारी राजा से मिल कर वापस आती है वह भी अपने पुराने लोगों से मिल कर वापस आ जायेगा।

उसने अपने पुराने टूटे हुए पंख तोड़ कर नीचे फर्श पर फेंके जिससे वह और ज़्यादा सुन्दर लगने लगा और वहाँ से उड़ चला। वह अपने घर सुरक्षित पहुँच गया।

सबने उसका वहाँ दिल से स्वागत किया। वे सब उससे मिल कर बहुत खुश थे। उसकी गैरहाजिरी में उनके साथ क्या कुछ हुआ उनको वह सब उसको बताना था।

उन्होंने अपनी बातचीत शुरू ही की थी कि उनको बात करते घंटों बीत गये। जब शाम के साये फैलने लगे तो तोते को याद आयी कि उसके तो जाने का समय हो गया। सबने उससे कुछ देर और ठहर जाने की विनती की पर उस सबको ठुकरा कर तोता वहाँ से चल दिया।

वापस आते समय वह एक बागीचे में रुका जो समुद्र के किनारे था। वहाँ बहुत सारे फूल खिले हुए थे। उसने वहाँ से दो सबसे ज़्यादा सुन्दर फूल तोड़े और वापस राजकुमारी के पास उड़ चला। राजकुमारी दरबार से बहुत पहले ही वापस आ चुकी थी और यह देख कर कि उसका प्यारा तोता वहाँ नहीं है उसके लिये चिन्ता कर रही थी। उसने फर्श पर पड़े कुछ पंख देखे तो उसको बहुत दुख हुआ। उसको लगा कि जरूर ही कहीं से कोई बिल्ली कमरे में आ गयी थी और उसे खा गयी है।

काफी देर रो लेने के बाद वह राजा के पास गयी और उसे अपनी कहानी बतायी और राजा से प्रार्थना की कि वह राज्य की हर बिल्ली को मरवाने का हुक्म सुना दे।

हालाँकि राजा को तोते की ऐसी कोई बहुत ज़्यादा फिक्र नहीं थी फिर भी वह अपनी बेटी की हर इच्छा पूरी करना चाहता था सो उसने राज्य भर की सारी बिल्लियों को मरवाने का हुक्म दे दिया। रात होने से पहले पहले सैंकड़ों बिल्लियाँ मारी जा चुकी थीं। पर राजकुमारी को इस बदले से रत्ती भर भी चैन नहीं पड़ा था। वह अपने कमरे में वापस चली गयी और दरवाजा बन्द कर के तब तक रोती रही जब तक वह रोते रोते थक नहीं गयी। वह बहुत दुखी हो कर अपने तोते को ही पुकारती रही “मेरे प्यारे पौल तुम कहाँ हो। कहाँ हो मेरे प्यारे पौल। मैं भी कितनी बेरहम थी जो मैंने तुमको पहली बार अकेला छोड़ा।”

इस तरह वह अपनी पालतू चिड़िया के लिये रोती रही। उस रात बहुत देर बाद उसको नींद आयी और जब आयी भी तो बहुत थोड़ी देर के लिये।

वह जल्दी ही जाग गयी और फिर अपने दुख में दुखी हो गयी। वह अपने बिस्तर से उठी और अपने आपको लटका कर मार कर इस दुख का अन्त करने की सोचा। उसने एक रस्सी अपने कमरे की छत के शहतीर में लगे कुंडे में बाँधी। उसमें एक फन्दा लगाया और उसको अपने सिर में डालने वाली ही थी कि तोता खिड़की के रास्ते उड़ कर कमरे में आ गया। अगर उसको एक पल की भी देर हो जाती तो उसको अपनी मालकिन की लाश ही देखने को मिलती।

जब उन दोनों ने एक दूसरे को इस तरह से देखा तो दोनों कितने खुश हुए इस खुशी को कौन बता सकता है। राजकुमारी ने चिड़िया को पकड़ कर अपनी छाती से लगा लिया और रोते हुए उसे बताया कि उसके टूटे हुए पंख देख कर कैसे उसने सोच लिया था कि उसके तोते को कोई बिल्ली खा गयी होगी और इसी वजह से उसने राजा से कह कर राज्य की सैंकड़ों बिल्लियाँ मरवा दीं। और फिर कैसे उसको अकेलापन लगा तो वह आत्महत्या करने जा रही थी क्योंकि वह उसके बिना नहीं रह सकती थी।

राजकुमारी की कहानी सुन कर तोते का दिल भर आया कि वह राजकुमारी से यह कहना ही भूल गया कि वह अब राजा से कह कर अपना पुराना वाला हुक्म वापस ले ले और राज्य की और भोलीभाली बिल्लियों को मरने से रोक ले। इसके बाद कुछ देर तक वे बिल्कुल चुपचाप रहे और एक दूसरे से मिलने की खुशी में डूबे रहे।

कुछ देर बाद तोते ने ही चुप्पी तोड़ी। उसने अपनी मालकिन को बताया कि किस तरह से उसके जाने के बाद उसको अपने लोगों से मिलने की इच्छा हो आयी थी और फिर उनसे उसकी क्या क्या बातचीत हुई और लौटते समय उसने क्या क्या देखा। उसने उसको रास्ते के समुद्र के पास के बागीचे से लाये दोनों फूल भेंट किये। फूल देख कर राजकुमारी बहुत खुश हुई। उनकी सुन्दरता देख कर और महक सूँघ कर तो वह बेहोश सी ही हो गयी। उसने इतने सुन्दर फूल पहले कभी नहीं देखे थे। जब वह ज़रा होश में आयी तो वह वे फूल राजा को दिखाने ले गयी।

राजा और सारे दरबारियों ने भी जब उन फूलों को देखा तो उन्होंने भी उनकी बहुत तारीफ की। उन लोगों ने भी ऐसे फूल पहले कभी नहीं देखे थे। उनकी खुशबू से सारा दरबार महक रहा था।

यहाँ तक कि दूर रह रहे लोग जो महलों में रह रहे थे और जो नौकरों के घर में रह रहे थे उन्होंने भी इस महक को महसूस किया और आपस में पूछने लगे कि यह महक कहाँ से आ रही है। राजा ने पूछा — “ये तुम्हें कहाँ से मिले?”

राजकुमारी बोली — “ये मुझे तोते ने दिये पिता जी। उसने मुझे बताया कि ये उसने उन फूलों वाले पेड़ों से तोड़े थे जो समुद्र के किनारे वाले परियों के राजा की बेटी के बागीचे में लगे हुए थे। वहाँ ये बारह हजार थे और उनका हर एक फूल बारह हजार रुपये का था।”

राजा बोला — “तुम ठीक कहती हो। ऐसे फूल तो किसी स्वर्ग के बागीचे के ही हो सकते हैं।”

राजकुमारी ने राजा से कहा कि वह उसके लिये वहाँ से कुछ फूल और मँगवा दे। अब यह तो राजकुमारी की बहुत मुश्किल माँग थी फिर भी राजा ने उससे वायदा किया कि वह कोशिश करेगा। तुरन्त ही उसने अपने कुछ दूत उन फूलों की खोज में भेज दिये। कई दिनों तक ढूँढने के बाद दूतों ने आ कर राजा को बताया कि वे उनको कभी नहीं पा सकते। पर राजा भी उन फूलों की खोज को इतनी जल्दी छोड़ने वाला नहीं था। उसने हुक्म दिया कि आसपास के राज्यों को भी यह सूचना भेज दी जाये कि अगर किसी ने ऐसे फूल कहीं देखे हों तो वह हमें बताये।

और वह कोई भी हो जो भी हमको वे फूल ला कर देगा हम अपनी सुन्दर बेटी की शादी उससे कर देंगे। ऐसा कर दिया गया पर सालों बीत गये इसकी कोई खबर नहीं आयी।

इस राजा के देश में एक व्यापारी रहता था जो बहुत ज़्यादा अमीर था और जिसकी अपने इस अथाह पैसे की वजह से सामान्य लोगों में बहुत इज़्ज़त थी। लोग इसकी बहुत तारीफ करते थे और चापलूसी करते थे जिसने इसको और बहुत घमंडी बना दिया था। यह इतना घमंडी हो गया था कि किसी की नहीं सुनता नहीं था राजा तक की भी नहीं।

एक दिन यह व्यापारी मर गया और इसके मरने के बाद क्योंकि इसके कोई भाई या लड़का नहीं था तो इसकी सारी जायदाद और पैसा राजा के पास आ गया था। वह दिन व्यापारी की पत्नी के लिये बहुत दुख का दिन था जिस दिन उसका पति मरा।

बेचारी स्त्री। वह बहुत कमजोर और बीमार थी। उसको बच्चे की आशा थी। उसको पता नहीं था कि वह क्या करे। खैर अगर वह मरना नहीं चाहती थी तो उसको कोई न कोई काम तो करना ही था सो वह एक किसान के पास काम करने चली गयी।

समय आने पर उसके बच्चा हुआ। उस बच्चे की किस्मत अच्छी थी। वह धीरे धीरे तन्दुरुस्त और अच्छा बढ़ने लगा। जब वह इतना बड़ा हो गया कि वह कुछ काम कर सके तो किसान ने उसको जानवर चराने के लिये मैदानों में भेजना शुरू कर दिया। कुछ दिनों में उसको इतना समय भी मिलने लगा कि वह किसान के बच्चों के साथ स्कूल जाने लगा क्योंकि वह एक अच्छा बच्चा था और एक बड़ा और अक्लमन्द आदमी बनना चाहता था। क्योंकि उसकी माँ को यह शक था कि वह बुरे समय में पैदा हुआ था तो अभी तक उसने उसका कोई नाम नहीं रखा था। उसके स्कूल के साथी लोग उसको “खरिया” कह कर बुलाते थे क्योंकि उसके सिर पर खुजली के निशान थे।

स्कूल के मास्टर ने उसके अन्दर के छिपे गुणों को बहुत जल्दी पहचान लिया और यह देख कर कि अपनी पढ़ाई और काम में वह एक मेहनती बच्चा था उसने उसके ऊपर खास ध्यान देना शुरू कर दिया।

वह उसे जितना भी सिखा पढ़ा सकता था उसने उसको उतना सब सिखाना पढ़ाना शुरू कर दिया। उसने उसको पढ़ने के लिये किताबें भी दीं। कुछ ही समय में खरिया एक बहुत ही होशियार विद्वान बन गया। उसके सारे साथी उससे जलने लगे।

एक दिन ऐसा हुआ कि खरिया अपने मालिक किसान के किसी काम से गया हुआ था कि उसको राजा का एक दूत मिला जो राजा के लिये वे सुन्दर फूल ढूँढ रहा था। उसने दूत से पूछा — “तुम कहाँ से आये हो? किसलिये आये हो और तुम्हारा नाम क्या है?”

दूत ने राजा के सन्देश का कागज उसको दिखा दिया। खरिया ने उसे पढ़ा और बोला — “मुझे रास्ते के खर्च के लिये कुछ पैसे दो मैं इन फूलों को ले आऊँगा।”

दूत लड़के के तैयार और साफ जवाब से बहुत खुश हुआ। उसने उसको रास्ते के लिये जरूरी खर्चा दिया और राजा की एक बन्द चिट्टी दी और वापस राजा के पास अपनी खोज की सफलता बताने के लिये दौड़ पड़ा।

खरिया सबसे पहले अपनी माँ के पास दौड़ा गया और उसे बताया कि वह इस काम की कोशिश करना चाहता है। उसकी माँ ने उसे बहुत समझाया कि वह ऐसी बेवकूफी न करे पर वह उसकी बात सुनने वाला नहीं था। फिर वह अपने मालिक किसान और मास्टर जी के पास गया और उनको अपना इरादा बताया। उनसे उसने छुट्टी ली और अपनी यात्रा पर रवाना हो गया।

दो तीन दिन में वह एक जंगल में पहुँचा जहाँ उसको एक बहुत ही सुन्दर और लम्बा आदमी मिला। उसने उस लम्बे आदमी का हाथ पकड़ा और बोला “सलाम।”

उस आदमी ने उसके सलाम का जवाब दिया और उससे पूछा कि वह कहाँ से आया था कब आया था और कहाँ जा रहा था। लड़के ने उसे सब कुछ बता दिया जैसा कि उसने अपनी माँ मालिक और मास्टर जी से कहा था।

उसने उससे कुछ भी नहीं छिपाया। उस लम्बे आदमी ने उसको आशीर्वाद दिया उसके लिये प्रार्थना की और फूलों की खोज में जाने के लिये कह दिया।

पर लड़के ने उसका हाथ नहीं छोड़ा जब तक कि उसने उसको यह नहीं बता दिया कि उसको किस दिशा में जाना चाहिये। यह देख कर कि लड़का वाकई फूल लेने जाना चाहता है और एक लायक बच्चा है उसने उसको बताया कि वह कौन था और कैसे अपनी पवित्रता के सहारे वह उसके लिये वही ला सकता था जो उसे चाहिये।

खरिया बोला — “यही तो मैं आपसे चाहता था। मुझे लगा कि आप कोई पवित्र आदमी हैं और आपके अन्दर बहुत ताकत है। मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप मुझे यह बतायें कि मुझे ये फूल मिलेंगे या नहीं। मेरी किस्मत में क्या लिखा है और मेरा नाम क्या है।”

उस लम्बे आदमी ने जवाब दिया — “मेरे बच्चे। तुमको ये फूल मिल जायेंगे। तुम्हारी किस्मत अच्छी है और तुम्हारा नाम गुल्लाला शाह है।”

कह कर उसने अपना बाँया हाथ खरिया के सिर पर रखा और एक खोखला कद्दू ले कर उसमें पानी भरा और उसके ऊपर डाल दिया। इससे लड़के की खुजली और जो और कुछ कमियाँ थीं वह सब गायब हो गयीं। अब वह बहुत सुन्दर हो गया था।

यह करने के बाद आदमी ने उससे जाने के लिये कहा। जब खरिया जा रहा था तो उसने उसको फिर से आशीर्वाद दिया।

कई दिनों की यात्रा के बाद खरिया एक जगह पहुँचा जहाँ उसने एक बूढ़ी विधवा के घर में ठहरने की जगह माँगी। वह उस बुढ़िया से बहुत ही इज़्ज़त और नम्रता से बात करता था। उसको खाना देता था और उसकी दूसरी तरीके से भी सहायता करता था। वह रोज शहर में इधर उधर घूमने जाता और हमेशा ही उस बुढ़िया के लिये कुछ न कुछ ले कर आता था।

एक दिन जब वह उस देश के राजा के महल के पास की नदी के किनारे नहा रहा था तो इत्तफाक से राजकुमारी ने उसको देख लिया और यह देख कर कि वह लम्बा और सुन्दर है अपनी एक दासी को उसे बुलाने भेजा।

खरिया ने कहा कि वह उसके साथ जायेगा तो दासी उसको ले कर एक बागीचे में आ गयी जहाँ राजकुमारी ने उसको लाने के लिये कहा था। वे लोग वहाँ कई दिनों तक मिलते रहे और जितना ज़्यादा वे एक दूसरे से मिले वे एक दूसरे को पसन्द करने लगे। आखिर राजकुमारी ने खरिया से शादी करने का फैसला कर लिया। वह अपने माता पिता के पास उससे शादी करने के लिये उनकी इजाज़त लेने गयी।

राजा और रानी ने पहले उस नौजवान को देखने की और उसके बारे में जानने की इच्छा प्रगट की। सो इस बात को खरिया को बता दिया गया और उससे शाही दरबार में आने के लिये कहा गया।

कुछ दिन बाद ही राजा ने देखा कि लड़का सुन्दर है होशियार है और उसका दामाद बनने के लायक है तो उसने अपनी बेटी की शादी उसके साथ कर दी। शादी बहुत शानदार हुई उसमें बहुत पैसा खर्च किया गया। हर मौके पर बहुत शानदार खर्च हुआ। खरिया जो अब गुल्लाला शाह के नाम से जाना जाता था अब रोज दरबार में जाता था। लोग उसकी बातें बड़ी ध्यान और इज़्ज़त से सुनते थे। उसकी कोशिशों से राज्य में कई नियम और कानून ऐसे बनाये गये जिनसे राज्य की बहुत उन्नति हुई। पिछली गलतियाँ भी सुधारी गयीं।

एक दिन गुल्लाला शाह ने राजा से दरबार में न आने की इजाज़त माँगी क्योंकि वह शिकार खेलने जाना चाहता था। राजा ने तुरन्त ही उसको इजाज़त दे दी और उसके साथ जाने के लिये उसको कई सिपाही और घोड़े दे दिये।

बीच दिन में गुल्लाला शाह का घोड़ा जिस पर वह सवार था एक शिकार के पीछे भाग चला और इतनी तेज़ भागा कि उसके साथी लोग उससे काफी पीछे रह गये। कोई दूसरा घोड़ा उसका मुकाबला नहीं कर सका सो गुल्लाला शाह अकेला पड़ गया। आखिर वह भागता हुआ घोड़ा अचानक रुक गया क्योंकि उसको पैर किसी अनदेखी जंजीर से बाँध दिये गये थे। यह देख कर कि घोड़ा इस तरीके से बँध गया था गुल्लाला शाह उस पर से उतर पड़ा और अपना तीर कमान ले कर पहाड़ पर चढ़ गया ताकि वह वहाँ से कुछ देख सके कि यह काम किसने किया और अगर कोई दिखायी दे जाये तो वह उसे मार सके।

जब वह पहाड़ पर चढ़ रहा था तो आधी चढ़ाई पर ही उसको एक तालाब दिखायी दिया जिसके किनारे एक पेड़ खड़ा था और उस पर बहुत सारे फूल खिले हुए थे। उस पेड़ के नीचे वह थोड़ी देर के लिये सुस्ताने के लिये बैठ गया।

जब वह वहाँ बैठा हुआ था तो एक बन्दर उसके पास आया। उसने उसको मारना चाहा सो उसने अपना तीर कमान उठाया और तीर कमान पर साधा कि बन्दर को यह पता चल गया कि वह उसको मारना चाहता था सो वह वहाँ से भाग गया और जा कर तालाब में कूद गया।

इससे गुल्लाला शाह बहुत नाउम्मीद हो गया और जहाँ वह कूदा था वहाँ कुछ देर तक देखता रहा कि वह वहाँ फिर आयेगा। पर लो वहाँ बन्दर की जगह एक बहुत सुन्दर लड़की निकल आयी। उसने पानी से बाहर निकल कर उसे चूम लिया।

गुल्लाला शाह तो यह देख कर आश्चर्यचकित रह गया पर क्योंकि वह बहुत अच्छा और पवित्र आदमी था इसलिये उसने अपनी समझ नहीं खोयी थी। उसने उस लड़की से पूछा कि वह कौन थी।

उसने देखा कि वह उसको कोई जवाब देने में हिचकिचा रही थी तो उसने उसको मारने की धमकी दी कि अगर उसने उसे जल्दी से नहीं बताया तो वह उसको मार देगा।

वह लड़की डर गयी और बोली — “मेरा नाम पंज फूल है और मैं इस देश के राजा की बेटी हूँ। मैं हमेशा अच्छी रही हूँ और अच्छा करने की कोशिश करती हूँ। हर आदमी मुझे प्यार करता है। जब में बहुत छोटी थी तो मेरे पिता ने अपने दरबान के बेटे से मेरी शादी तय कर दी थी।

समय निश्चित हो गया तैयारियाँ हो गयीं पर शादी के दिन से कुछ दिन पहले ही दरबान का बेटा रोज की तरह अपने साथियों के साथ खेलने गया। वे लोग वजीर बादशाह खेल रहे थे यानी एक बच्चा बादशाह बना हुआ था दूसरा वजीर बना हुआ था और बाकी बच्चे और औफीसर बने हुए थे। हर बच्चे को अपने अपने हिसाब से अपने अपने डायलौग बोलने थे।

उस दिन दरबान का बेटा राजा बना हुआ था और शाही सिंहासन पर बैठा था। जब वे खेल रहे थे तो असली राजा का बेटा वहाँ से गुजरा। उसने जब वह खेल देखा तो खेल वाले राजा को शाप दिया “तुम परियों के देश से नीचे गिर जाओ और जा कर मामूली लोगों के साथ रहो।”

इस शाप के साथ ही दरबान का बेटा मर गया और उसके बाद मामूली लोगों में जा कर पैदा हो गया। जब मेरी एक साथिन ने मुझे

यह बताया तो मुझे बहुत दुख हुआ क्योंकि मैं उस दरबान के बेटे को बहुत प्यार करती थी और उसके सिवा किसी और से शादी करना नहीं चाहती थी ।

राजा और रानी ने मेरा मन बदलने की बहुत कोशिश की पर मैं अपने इरादे की पक्की थी। इसके बाद मेरा सारा समय लोगों की भलाई करने में और पवित्र लोगों के साथ बात करने में गुजरने लगा।

आज मैं इधर पूजा करने आयी थी। एक दिन एक पवित्र आदमी इधर आया था वह मुझे बहुत अच्छा लगा तो आज मैं उससे मिलने की आशा में इधर आयी थी कि शायद आज मेरी मुलाकात उससे यहाँ फिर हो जाये।

वह मुझे मुझसे बहुत खुश लगा क्योंकि मैंने उससे जो कुछ भी माँगा वह उसने मुझे दिया। एक बार मैंने उससे पूछा कि मैं दरबान के बेटे से कैसे मिल सकती हूँ। उसने कहा कि वह उस लड़के को जानता है उसका नाम गुल्लाला शाह है और अगर मैंने उसकी बात ठीक से मानी तो मैं उसको देखने में सफल हो जाऊँगी।

मैंने उससे वायदा किया कि मैं उसकी हर बात मानूँगी। उसने फिर कहा इस बात का खास ध्यान रखना क्योंकि राजा अपने दूसरे जादुओं से तुम्हारे उससे मिलने को रोकने की पूरी कोशिश करेगा। उसने मुझे अगर मुझे अपना उद्देश्य पूरा करना था तो उसको पूरा करने के लिये मोती की एक ऐसी माला दी जिस पर कोई जादू असर नहीं कर सकता था। वह माला मैं अक्सर पहनती हूँ और उसको खास तरीके से सँभाल कर रखती हूँ।

उसके बाद मैं अपने घर चली गयी। पहला मौका पाते ही मैं अपने पिता के पास गयी और जा कर उन्हें वह सब बताया जो मैंने गुल्लाला शाह के बारे में सुना था और उनसे विनती की कि वह जल्दी से जल्दी मेरी शादी उससे कर दें।

पर उन्होंने जब यह सुना तो वह बहुत परेशान हो गये और मुझसे कहा कि मैं उसे भूल जाऊँ क्योंकि अब वह एक मामूली आदमी था और एक मामूली आदमी से मेरी शादी नहीं हो सकती थी। यह शादी परियों के देश पर एक धब्बा होती।

पर मैंने सोच रखा था कि अगर मैं शादी करूँगी तो गुल्लाला शाह से ही। राजा ने मेरी तरफ गुस्से भरी नजरों से देखा और पलट कर मैंने भी। फिर मैंने महल छोड़ दिया। यही मेरी कहानी है। अब अगर तुम गुल्लाला शाह को ढूँढने में मेरी कुछ सहायता कर सकते हो तो मैं हमेशा तुम्हारी ऋणी रहूँगी।”

इसी समय अचानक एक अजीब सी घटना घटी। गुल्लाला शाह ने भी उसको बता दिया कि वह कौन था और उसको चूम लिया। उस लड़की ने भी उसको फिर पहचान लिया और उसका हाथ अपने हाथ में ले कर बोली — “आखिर मैंने अपना खोया हुआ प्यार पा ही लिया। अल्लाह मुझे हमेशा उसके साथ रहने दे।”

एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए वे तालाब से वहाँ चले गये जहाँ उनका घोड़ा खड़ा हुआ था। दोनों घोड़े पर चढ़े जो अब शान्त खड़ा था और वहाँ से चल दिये। राजा ने उनको ढूँढने के लिये कुछ सिपाही भेजे थे वे उनसे जा कर मिल गये और सब गुल्लाला शाह के घर चले गये।

घर पहुँच कर गुल्लाला शाह ने पंज फूल को अपनी पत्नी से मिलवाया। दोनों राजकुमारियाँ एक दूसरे से मिल कर बहुत खुश हुईं और कुछ समय तक वे सब खुश खुश रहे।

फिर एक दिन गुल्लाला शाह की पहली पत्नी ने पंज फूल से उसकी वह मोती की माला माँगी जो वह हर समय पहने रहती थी। पंज फूल ने यह कहते हुए उसको उसे देने से मना कर दिया कि वह उसकी जान की रक्षा करता है इसलिये वह उसको कभी अपने गले से नहीं निकाल सकती।

पहली पत्नी ने बार बार उससे उसकी वह माला माँगी और उससे वायदा किया कि वह उसको वैसी ही सुन्दर और कीमती मोती की माला उसके बदले में दे देगी पर पंज फूल ने उसको उसे देने की या बदले में दूसरी माला लेने की कोई परवाह नहीं की। वह अपने इरादों की पक्की थी और एक पल के लिये भी उस माला को अपने गले से अलग करने के लिये तैयार नहीं थी।

उसके इस व्यवहार से गुल्लाला शाह की पहली पत्नी बहुत नाराज हो गयी और गुल्लाला शाह से अपने झगड़े के बारे में बताया। उसने उससे विनती की कि वह उससे उसको वह माला दिलवा दे। गुल्लाला शाह ने वायदा किया कि वह वैसा करने की अपनी पूरी कोशिश करेगा।

जब गुल्लाला शाह ने पंज फूल से वह माला उसकी पहली पत्नी को देने के लिये कहा तो पंज फूल ने यह कहते हुए उसको भी मना कर दिया कि उसमें उसकी ज़िन्दगी छिपी हुई थी और वह उसके लिये सारे खतरे बीमारियाँ और मुश्किल का समय दूर करने का एक साधन थी।

अगर उसने उसे अपने गले से निकाल दिया तो वह बीमार भी पड़ सकती थी उनसे छीनी भी जा सकती थी और मर जाती। पर गुल्लाला शाह ने जब कई बार उससे जिद की तो वह उसको अपने प्यार की वजह से मना नहीं कर सकी। उसने वह माला गुल्लाला शाह को दे दी और गुल्लाला शाह ने उसे अपनी पहली पत्नी को दे दिया। इसके तुरन्त बाद ही पंज फूल गायब हो गयी। जब गुल्लाला शाह और उसकी पहली पत्नी को इस बात का पता चला तो वे बहुत दुखी हुए और बहुत रोये।

वे कहने लगे — “यह हमने क्या किया कि एक छोटी सी चीज़ के लिये हमने अपनी प्यारी पंज फूल को खो दिया। वह अपने पति का कितना कहना मानती थी। अफसोस हमने ऐसा क्यों किया अब हम ही अपनी प्यारी पंज फूल की मौत के जिम्मेदार हैं।”

जहाँ तक गुल्लाला शाह का सवाल था वह नहीं जानता था कि वह इस दुख में क्या करे। वह तो बस दिन रात रोता ही रहा। आखिर जब वह रोते रोते थक गया तो वह बीमार सा हो गया तो उसने वह जगह छोड़ देने का विचार किया और उन फूलों की खोज में जाने का विचार किया जिसकी वजह से उसने अपनी यात्रा शुरू की थी।

राजा ने जब उसको कमजोर और दुबला होते देखा तो उसको वहाँ से जाने की इजाज़त दे दी। यात्रा के लिये उसने उसको कुछ पैसे भी दे दिये।

सो गुल्लाला शाह वहाँ से चल दिया और अगले दिन परियों के देश में उस पहाड़ पर पहुँच गया जहाँ वह पंज फूल से पहली बार मिला था। वह उस पहाड़ पर ऊँचे और ऊँचे चढ़ता चला गया। वहाँ आ कर वह एक सड़क पर आ निकला जिस पर दो आदमी उसी की तरफ आ रहे थे। वे परियों के देश के वजीर के नौकर थे। वजीर का नाम चलाने के लिये उसका कोई बेटा नहीं था इसलिये उसकी पत्नी ने अपने कई आदमी इधर उधर भेजे हुए थे ताकि वे उसको लिये कोई ऐसा नौजवान ढूँढ कर ला सकें जिसको वह गोद ले सके।

उसके ये आदमी हर जगह घूम रहे थे, दूर भी और पास भी, पर अभी तक उनको कोई ऐसा आदमी नहीं मिल पाया था जिसको वे ले जा कर वजीर की पत्नी को दे देते। इसके लिये वे बहुत बेचैन थे और अब नाउम्मीद होते जा रहे थे। उनको समझ ही नहीं आ रहा था कि वे क्या करें। वे खाली हाथ भी वापस नहीं जा सकते थे।

जब उन्होंने गुल्लाला शाह को देखा तो उन्होंने सोचा कि वे उसको खा जायें पर बाद में उन्होंने देखा कि वह तो बहुत होशियार और सुन्दर है तो उन्होंने उसे वजीर के पास ले जाने की सोची। उन्होंने गुल्लाला शाह को पकड़ लिया और परियों के देश के वजीर के घर ले गये।

दोनों नौकरों ने यह दिखाया कि वह एक परी का बेटा है जो वजीर की पत्नी की बहिन है हालाँकि वह उसे जानती नहीं थी। जिसने भी गुल्लाला शाह को देखा वह उसे देख कर बहुत खुश हुआ। उसके बाद वह उनके घर में ही रहने लगा और वहाँ के सब लोग उसको वजीर का वारिस मानने लगे।

वजीर रोज राजा के दरबार में जाता था और जब वह दिन भर के काम से हारा थका शाम को अपने घर पहुँचता तो वह अपने गोद लिये बेटे को बुलाता और उससे बात करने में अपना समय बिताता। दोनो घंटों तक बात करते रहते। गुल्लाला शाह उससे दरबार की खबरें पूछता और वजीर उसको सब बातें बताता।

एक शाम जब वे ऐसी ही बातें कर रहे थे वजीर ने उसे बताया कि दरबार में उस दिन बड़ी अजीब सी बात हुई। राजा अपनी बेटी पंज फूल से बहुत नाराज था क्योंकि उसने गुल्लाला शाह नाम के एक मामूली आदमी से अपना रिश्ता जोड़ लिया था और वह किसी दूसरे आदमी से शादी नहीं करना चाहती थी।

वह घर से भाग गयी थी। बहुत दिनों तक उसका कोई पता नहीं चला था। इसमें कोई शक नहीं कि वह उसी मामूली आदमी को ढूँढ रही होगी। पर राजा ने अपने किसी बहुत ही मजबूत जादू से उसको अपने पास बुला लिया था और अब उसको कोई बहुत ही कड़ी सजा मिलने वाली है।

उसका शरीर लकड़ी का बना दिया जायेगा और उसे एक बागीचे में खड़ा कर दिया जायेगा ताकि उससे दूसरी परियों को सीख मिल सके और वे ऐसा काम न कर सकें।

यह सुन कर तो गुल्लाला शाह के होश उड़ गये वह बड़ी मुश्किल से उससे आगे बात कर सका। उसने मन में कहा “तो यहाँ है पंज फूल। उसने सोचा असल में जैसे ही उसने अपना मोतियों की माला उतारी होगी वैसे ही उसे यहाँ वापस ले आया गया होगा। उसको बेचारी को मेरी बेवकूफी की सजा भुगतनी पड़ रही है। बहुत अफसोस है मुझे इस बात का।”

काफी देर के बाद जब वह कुछ होश में आया तो उसने वजीर से पूछा कि पंज फूल को कड़ी सजा से बचाने का क्या कोई रास्ता है। वजीर ने कहा “हाँ है।”

उसने आगे कहा — “अगर गुल्लाला शाह यहाँ आ जाये और उसकी लकड़ी की मूर्ति को जला कर राख कर दे और उस राख को जिस बागीचे में वह मूर्ति खड़ी है उसमें बीच में बने एक तालाब में फेंक दे तो वह अपनी पुरानी शक्ल में आ जायेगी।”

गुल्लाला शाह तो यह सुन कर बहुत खुश हो गया। उसने जल्दी ही वजीर से विदा ली और जा कर अपने कमरे में सो गया। पर उसको नींद नहीं आयी। वह बहुत खुश था।

जब उसने यह पक्का कर लिया कि घर के सभी लोग गहरी नींद सो गये तो वह उठा और उठ कर पंज फूल के बागीचे में गया जहाँ उसकी लकड़ी की मूर्ति खड़ी थी। उसने उसको जला कर राख किया और उसकी राख तालाब में फेंक दी।

जैसे ही उसने ऐसा किया तो लो पंज फूल तो उसके सामने आ कर ऐसे खड़ी हो गयी जैसे वह उसके सामने पहले दिन तालाब में से निकल कर खड़ी हुई थी।

गुल्लाला शाह बोला — “प्रिये मैं इतना बेवकूफ कैसे हो गया कि मैंने तुम्हें इतना परेशान किया। मुझे माफ कर दो और मुझसे वायदा करो कि तुम मुझे कभी छोड़ कर नहीं जाओगी। चलो हम लोग बहुत सारी जगह घूमेंगे जहाँ तुम्हारे पिता के बेरहम हाथ तुम तक कभी नहीं पहुँचें।”

पंज फूल बोली — “प्रिय मैंने तुम्हें माफ किया पर तुम्हारे साथ जाना मेरे वश में नहीं है। अब मैं अपने पिता की हूँ। जब तक मेरे पास मेरी वह जादू के मोती की माला न हो मैं उनको धोखा नहीं दे सकती। मैं कहीं भी जाऊँ वह मुझे वहीं से बुलवा सकते हैं। और अगर ऐसा हो गया तो मेरा मामला और भी बुरा हो जायेगा।

मैं तुमसे विनती करती हूँ अब तुम यहाँ से चले जाओ कहीं ऐसा न हो कि मेरी वजह से तुम्हें कोई नुकसान पहुँचे। मेरे लिये तुम प्रार्थना करना कि राजा मेरे पिता जब यह सुनें कि मैं फिर से ज़िन्दा कर ली गयी हूँ तो वह मुझ पर दया करें। अब तुम यहाँ से तुरन्त ही चले जाओ जहाँ तुम यहाँ से ज़्यादा सुरक्षित रह सको।”

गुल्लाला शाह ने तब उसको वह सब बताया जो कुछ उसके साथ हुआ था कि वह कैसे उसकी खोज में इधर उधर घूम रहा था और वह अब कैसे राजा के वजीर का गोद लिया बेटा और वारिस बन गया है।

जाते समय वह बोला कि वह उससे फिर मिलेगा और अगर फिर भी राजा उसको सजा देना चाहेगा तो वह उस सजा की कोई तरकीब ढूँढेगा और उसे फिर से ज़िन्दा कर लेगा।

अगली सुबह जब शाही चौकीदारों ने देखा कि पंज फूल फिर से ज़िन्दा हो गयी है तो वे राजा के पास गये और उसको जा कर यह बताया। राजा को यह सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ उसने पंज फूल को बुला भेजा।

जैसे ही वह आयी तो उसने उससे पूछा — “यह कैसे हुआ कि तुम हमको परेशान करने के लिये फिर से आ गयी। जाओ तुम एक साँप बन जाओ और दूर किसी जंगल में जा कर रहो।”

कह कर उसने एक तरफ इशारा किया जिस तरफ एक बहुत ही घना जंगल था और जिसमें बहुत सारे जंगली जानवर रहते थे। तुरन्त ही पंज फूल एक साँप बन गयी और जा कर उस जंगल में रहने लगी।

उस शाम जब वजीर अपने घर लौटा तो उसने उस दिन जो कुछ भी दरबार में हुआ था सब गुल्लाला शाह को बताया। गुल्लाला शाह बोला “बड़ी अजीब सी बात है। एक राजकुमारी के साथ ऐसा कोई कैसे कर सकता है। क्या वह हमेशा साँप ही बनी रहेगी?” वजीर बोला — “नहीं इसका एक इलाज है।”

तब गुल्लाला शाह के पूछने पर उसने बताया “अगर गुल्लाला शाह उस जंगल में पहुँच जाये और एक गुफा खोदे जो तीन फीट गहरी हो और इतनी चौड़ी हो जिसमें हो कर दो आदमी चले जायें। फिर उस गुफा के मुँह को ढकने के लिये एक ढकना बनाये जिसमें एक छेद हो। उसके बाद वह जंगल में घूम घूम कर चिल्लाता रहे “पंज फूल गुल्लाला शाह यहाँ है। पंज फूल गुल्लाला शाह यहाँ है।” और यह कह कर उस गुफा में जा कर छिप जाये।

अगर वह यह काम ऐसे ही करे जैसा मैंने कहा है तो पंज फूल जो इस समय साँप के रूप में है तो वह गुफा के मुँह पर लगे उस ढकने के छेद से हो कर उस गुफा में चली आयेगी।

एक और बात उसके याद रखने की है कि जितना भी लम्बा साँप उस गुफा के अन्दर आ जाये उतना हिस्सा काट ले फिर उसको बहुत छोटे छोटे हिस्सों में काट ले और एक कपड़े में बाँध ले। इन टुकड़ों को ले जा कर वह पंज फूल बागीचे के तालाब में डाल दे। अगर यह काम इसी तरह से किया गया तो पंज फूल फिर से अपनी सुन्दरता लिये हुए वापस आ जायेगी।

जब गुल्लाला शाह ने यह सुना तो उसे काफी चैन पड़ा। कुछ देर और बात करने के बाद उसने वजीर से विदा ली और सोने चला गया। वह सो नहीं सका वह तो बस उसी समय का इन्तजार करता रहा जब वह अपनी प्यारी पंज फूल को फिर से ज़िन्दा कर लेगा। जब उसने यह पक्का कर लिया कि घर के सब लोग सो गये वह उस जंगल में गया जहाँ पंज फूल साँप बन कर रह रही थी। उस रात उसने गुफा के लिये केवल जगह देखी और वापस घर आ गया। अगली रात वह एक कुल्हाड़ी फावड़ा आदि औजारों के साथ वहाँ गया और जा कर एक गुफा खोदी। उसने गुफा का मुँह ढकने के लिये एक ढकना बनाया जिसमें एक छेद भी बनाया।

फिर वह जंगल में जा कर चिल्ला चिल्ला कर पुकारने लगा — “पंज फूल गुल्लाला शाह यहाँ है। पंज फूल गुल्लाला शाह यहाँ है।” इस तरह पुकार कर वह गुफा में जा कर छिप गया।

पंज फूल ने जब अपना नाम सुना तो वह साँप के रूप में आयी और गुफा में घुसने लगी। गुफा के ढकने के छेद में से हो कर जब वह गुफा में घुस रही थी तो उसका काफी शरीर घायल हो गया। गुल्लाला शाह ने जितना भी वह साँप गुफा के अन्दर घुस सका उतना काट लिया और फिर उसके छोटे छोटे टुकड़े कर के एक कपड़े में बाँध लिये। उन सबको इकठ्ठा कर के वह पंज फूल बागीचे में ले गया और तालाब में फेंक दिये। जैसा कि वजीर ने कहा था पंज फूल एक बार फिर पानी में से उसी तरह निकल आयी जैसे वह उसके सामने पहली बार निकल कर आयी थी।

गुल्लाला शाह ने उसको गले लगा लिया। फिर वे बहुत देर तक बात करते रहे। जब सुबह की रोशनी होनी शुरू हुई तब वे वहाँ से चले गये। दोनों में से कोई एक दूसरे को छोड़ना नहीं चाहता था पर वे क्या कर सकते थे।

अगर गुल्लाला शाह यह चाहता था कि वजीर को उसकी गैरहाजिरी का पता न चले तो अब उसके घर लौटने का समय हो गया था जबकि पंज फूल वहाँ से नहीं जा सकती थी। उसने वहाँ से जाने की कोशिश भी की पर राजा के जादू के ज़ोर से वह वहाँ से कहीं नहीं जा सकी। सो वे अलग हो गये।

गुल्लाला शाह जल्दी से वजीर के घर आया और बस समय से ही अपने कमरे में घुस सका। एकाध घंटे में ही मजदूर लोग अपने काम पर निकले तो उस जगह से गुजरे जहाँ पंज फूल बैठी हुई थी। वे उसको वहाँ बैठा देख कर बहुत आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने जा कर यह राजा को बताया। राजा ने जब यह सुना तो उसने अपने वजीर को बुला भेजा और उससे इस बारे में सलाह माँगी। राजा ने कहा — “क्या तुमको यह नहीं लगता कि गुल्लाला शाह यहीं कहीं है और यह सब कर रहा है?”

वजीर बोला — “यह तो बिल्कुल नामुमकिन है सरकार। पहली बात तो वह यहाँ तक आ ही नहीं सकता। दूसरे एक मामूली आदमी होने के नाते वह यह सब कैसे जान सकता है। यह तो कोई बहुत ही बड़ा आदमी होगा जो यह सब कर रहा होगा। उसको अल्लाह की दुआ होगी तभी यह सब हो सकता है।”

पंज फूल को फिर से बुलाया गया और इस बार उसको एक सोने की कील में बदल दिया गया जिसको तुरन्त ही एक नौकर को दे दिया गया और उससे कहा गया कि वह उसको किसी नाव में ठोक दे जो अभी बन रही हो। नौकर उस कील को ले कर चला गया और जो भी नाव उसको सबसे पहले दिखायी दी उसने उसको उसी में ठोक दिया।

राजा के पास से वजीर अपने घर गया नहाया धोया और फिर गुल्लाला शाह को बुलाया और उसको उस दिन की सारी खबर सुनायी। जब उसने सुना कि राजकुमारी फिर से ज़िन्दा हो गयी है तो उसने बहुत आश्चर्य प्रगट किया।

वह बोला — “यह तो बड़े आश्चर्य की बात है कि राजा ने उसको एक सोने की कील में बदल दिया है। मुझे तो ऐसा लगता है कि इससे उसके बदलने का कोई तरीका ही नहीं है।”

वजीर बोला — “हाँ है न। अगर गुल्लाला शाह किसी तरह से यहाँ आ जाये और वह उस नाव में बैठ जाये जिसमें वह कील ठुकी हुई है। फिर वह उस कील को ढूँढ ले और निकाल कर घिस कर उसका पाउडर बना ले और उस पाउडर को पंज फूल के बागीचे के तालाब में डाल दे तो वह उसको फिर से ज़िन्दा कर सकता है। और अगर वह इस बार ज़िन्दा हो गयी तो इसके बाद राजा का कोई जादू उस पर नहीं चल पायेगा।”

गुल्लाला शाह के लिये इतना जानना काफी था। आज देर हो गयी थी सो वजीर और गुल्लाला शाह दोनों सोने चले गये। इस इलाज को सुन कर गुल्लाला शाह ने इसमें अपनी कोई रुचि नहीं दिखायी पर वह बहुत ज़्यादा खुश था क्योंकि अगर वह इस बार उसको ज़िन्दा कर सका तो अपने सख्त और नीच पिता के चंगुल से हमेशा के लिये छूट जायेगी। उसने सोचा इस बार मैं उसको जरूर ही ज़िन्दा करूँगा।

गुल्लाला शाह इस काम के लिये तुरन्त ही नहीं गया उसने कुछ इन्तजार किया ताकि इस बात का हल्ला गुल्ला थोड़ा कम हो जाये। इसके लिये उसने कई महीने इन्तजार किया।

एक दिन उसने वजीर की पत्नी से कई ऐसी जगहें देखने की इजाज़त माँगी जिनको वह देखना चाहता था। उसने उससे इस यात्रा के लिये वजीर की इजाज़त भी माँगने के लिये कहा।

उसने उससे यह भी कहा कि अब उसकी उम्र ऐसी हो गयी थी कि वह अपनी देखभाल खुद कर सकता था। वह उन जगहों के बारे में भी नहीं सुनना चाहता था जिनके बारे में उसके पिता वजीर उसे कई बार बता चुके थे।

उसकी माँ को यह सुन कर बहुत खुशी हुई कि उसका बेटा अब घूमना चाहता है पर वह उसको इस तरह जाने की इजाज़त नहीं दे सकती थी क्योंकि उनमें से कुछ जगहों के रास्ते बहुत खतरनाक थे और उन पर जाना बहुत मुश्किल था। खास कर के ऐसे बच्चे के लिये जिसको उन्होंने गोद ले कर इतने प्यार और कोमलता से पाला हो।

गुल्लाला शाह ने उसकी इस बात को बड़ी सहजता से मना किया। उसने बच्चों की तरह से अपने आपको पूरा ऊपर खींचा और बोला — “देखो न माँ मैं अब कितना बड़ा हो गया हूँ। और फिर वजीर का बेटा क्या उन सब मुश्किलों से डरेगा। अगर मैं इस तरह का निकलूँ तो लानत है मुझ पर।

इससे तो अच्छा है कि मैं उन लोगों के हाथों मारा जाऊँ बजाय इसके कि मैं जब बाद में एक ऐसे ताकतवर राज्य का वजीर बनूँ जैसे कि मेरे पिता जी हैं। माँ तुम डरो नहीं और मुझे जाने दो। अगर तुम्हारे पास कोई तलिस्मा हो तो मुझे दे दो क्योंकि मैं बेकार में ही किसी परेशानी में क्यों पड़ूँ।”

अपने बेटे का यह अच्छा जवाब सुन कर वजीर की पत्नी उसको जाने की इजाज़त दे दी और उसे अपनी निशानी वाली अँगूठी दे कर कहा — “जब भी कभी तुम किसी मुश्किल में पड़ जाओ तो तुम इस अँगूठी को आग को दिखाना। उसी समय दो जिन्न उस आग में से प्रगट हो जायेंगे और तुम्हारी सहायता करेंगे।”

फिर उसने उसको रास्ते के खर्चे के लिये बहुत सारे पैसे दिये। वजीर ने भी जब अपनी पत्नी से अपने बेटे का यह प्रोग्राम सुना तो वह यह सुन कर बहुत खुश हुआ।

गुल्लाला शाह जितनी जल्दी हो सका उतनी जल्दी अपनी यात्रा पर चल दिया। कुछ समय की यात्रा के बाद एक दिन उसने पाया कि वह एक ऐसी नाव में बैठा था जिसमें सोने की कील लगी थी। उसकी आँखों ने उसे तुरन्त ही ढूँढ लिया था हालाँकि उस पर ऐसे ही किसी की नजर नहीं पड़ सकती थी क्योंकि वह एक लकड़ी के तख्ते से ढकी हुई थी।

गुल्लाला शाह ने अपनी असलियत छिपा कर नाव के मालिक से विनती की कि वह उसको अपनी नावों के लिये एक नौकर रख ले। मालिक मान गया और उसने उसे एक नाविक की नौकरी दे दी जैसे कि वह वैसी ज़िन्दगी जीने का आदी हो।

कुछ समय बाद उसने अपने मालिक से कहा कि उसने एक सपना देखा था। उसके उस सपने में दो आदमी आये थे जिन्होंने भाले से उसकी नाव के तले में छेद कर दिया जिससे उसकी नाव डूब गयी।”

फिर वह आगे बोला — “मैं जानता हूँ कि इस सपने का मतलब क्या है। इसका मतलब है कि आपके किसी दुश्मन ने उसमें कोई जादू की चीज़ रख दी है और अगर वह जादू की चीज़ उसमें रखी रही तो आपकी नाव डूब जायेगी।”

यह सुन कर नावों का मालिक बहुत डर गया। उसने गुल्लाला शाह से उस नाव में रखी वह जादू की चीज़ को ढूँढने की कोशिश करने के लिये विनती की।

गुल्लाला शाह बोला कि यह बहुत ही मुश्किल काम है फिर भी अगर नावों का मालिक यह बात किसी को न बताये तो वह उसको ढूँढने की कोशिश करेगा। मालिक ने वायदा किया कि वह किसी को नहीं बतायेगा।

तब गुल्लाला शाह एक अकेली जगह गया और आग जलायी। जब उसमें से लपटें निकलने लगीं तो उसने माँ की दी हुई अँगूठी निकाली और उसको दिखायी तो आग में से दो जिन्न निकल आये। वे उसके लिये वह सब कुछ करने को तैयार थे जो कुछ भी वह उनसे कहता।

गुल्लाला शाह ने उनसे नाव को जमीन पर लाने के लिये कहा। वे नाव को जमीन पर ले आये। गुल्लाला शाह ने उसमें से सोने की कील निकाल ली और उनसे नाव को फिर से पानी में डाल देने के लिये कहा जो उन्होंने तुरन्त ही कर दिया।

फिर वह नावों के मालिक के पास गया और छिपा कर वह सोने की कील उसको दिखायी। नावों के मालिक ने उसे देख कर आश्चर्य प्रगट किया और उसको इस तरह का जादू निकाल देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद दिया कि अल्लाह ने उसको इतना अच्छा नौकर दिया।

गुल्लाला शाह ने वह कील अपने पास रख ली और कुछ देर में अपने मालिक को बताया कि अब सब कुछ ठीक था। पर अब उसे कुछ दिन की छुट्टी चाहिये थी। मालिक ने उसे वह तुरन्त ही दे दी। जादू की अँगूठी की सहायता से वह अपने पिता वजीर के घर लौट आया।

वजीर की पत्नी घर पर अकेली ही थी क्योंकि यह समय दरबार का था। उसने अपने बेटे का स्वागत बड़े प्यार से किया जैसे माँएँ अपने बेटों का करती हैं। कुछ देर बाद वजीर भी घर वापस आ गया तो घर में खूब खुशियाँ मनायी गयीं।

सारा शहर गुल्लाला शाह की यात्रा के बारे में जानने के लिये उत्सुक था। उसकी यात्रा की कहानियाँ और उनमें आये खतरे जो जादुई अँगूठी से जीते गये थे शहर के हर आदमी की जबान पर थे।

एक दो दिन के बाद गुल्लाला शाह ने वह कील पीस दी और उसका पाउडर पंज फूल के बागीचे में बने तालाब में डाल दिया। जैसे ही उसने यह किया पंज फूल फिर से तालाब के पानी में से वैसी ही सुन्दर निकल आयी जैसी उसने उसे पहली बार देखा था। दोनों एक दूसरे के गले लग गये और खुश थे कि वे फिर मिल गये थे। दोनों ने जबसे वे बिछुड़े थे तबसे अब तक की सब कहानी एक दूसरे को सुनायी। पंज फूल बोली कि अब वह उसके साथ जहाँ वह चाहे वहीं जा सकती थी पर वह उसका थोड़ा इन्तजार करे जब तक वह अपने कमरे से लौट कर आती है। वह वहाँ से अपने कुछ जवाहरात और कपड़े लाना चाहती थी जो बाद में उसकी सहायता करेंगे।

गुल्लाला शाह राजी हो गया और वह अपने कमरे में चली गयी। वहाँ से वह बहुत सारे जवाहरात और कुछ कपड़े ले कर लौटी जो बहुत कीमती थे। फिर वे परियों के देश से वापस अपने घर चल दिये।

वे बहुत जल्दी जल्दी चले और आराम करने से काफी पहले एक तालाब के पास आये जिसका पानी बिल्कुल साफ था। यहाँ वे कुछ सुस्ताये और खाना खाया। जब वे आपस में बात कर रहे थे तो गुल्लाला शाह ने पंज फूल से कुछ फूल लेने के लिये कहा जो समुद्र के किनारे वाले बागीचे में लगे हुए थे।

उसने उसे बताया कि इस बागीचे में बारह हजार फूलों वाले पेड़ थे जिनमें से हर पेड़ किसी न किसी परी का लगाया हुआ था। इसका हर फूल बारह हजार रुपये का था। यह सुन कर पंज फूल ने कहा कि वह उसकी इच्छा पूरी कर देगी और अगर कोई और भी इच्छा हो तो वह उसको बता दे।

पर ये फूल वह उसके लिये तभी ले सकती है जब परियों के देश में जहाँ ये उगते हैं वहाँ की राजकुमारी ने कभी कोई आदमी न देखा हो इसलिये वह फिर उसको कभी नहीं देख पायेगी। कुछ दिन घूमने के बाद वे इस बागीचे में आये जो समुद्र के किनारे था। यहाँ उन्होंने एक जहाज़ किराये पर लिया जो उस समय वहीं किनारे पर लंगर डाले खड़ा था।

वे उस जहाज़ पर चढ़ गये तो पंज फूल ने गुल्लाला शाह को एक बहुत सुन्दर मोती का हार दिया और उससे तुरन्त ही जा कर एक अकेले कमरे में लैम्प की रोशनी के सामने लटकाने के लिये कहा। उसने उससे भी उसी कमरे में रहने के लिये कहा। इससे ऐसा होता कि वैसे ही कई हार उसको मिल जाते। गुल्लाला शाह ने वैसा ही किया।

इस बीच पंज फूल ने एक लड़के का वेश बनाया और अपने आपको अपने पति का नौकर बताया। फिर उसने जहाज़ को परियों की राजकुमारी वाले बागीचे की तरफ जाने का हुक्म दिया। वहाँ पहुँचने पर राजकुमारी के नौकर चाकर आये तो उसने उनसे जहाज़ को वहाँ से ले जाने के लिये कहा क्योंकि राजकुमारी चाहती थी कि वह शान्ति से और बिना किसी के जाने वहाँ रहे। वह समुद्र के किनारे के उस हिस्से में अकेले घूमना चाहती थी। पर उस जहाज़ का मालिक गुल्लाला शाह और उसके नकली नौकर ने कहा कि क्योंकि उस जहाज़ पर बहुत सारा कीमती सामान था इसलिये वे वहीं रहना चाहते थे और चोरों के डर से उन्होंने जहाज़ का लंगर भी वहाँ डाला था।

वे वहाँ से नहीं हटेंगे जब तक कि राजा उनको चोरों की वजह से जो कुछ भी खोना पड़े वह सब वापस देने का वायदा नहीं करता और अगर वे किसी दूसरी जगह रुकेंगे तो वे जरूर आयेंगे इसलिये वे वहीं रुकना चाहते थे। जब राजा ने यह सुना तो उनको वहाँ रात को ठहरने की इजाज़त दे दी।

अगले दिन पंज फूल ने मोतियों के कुछ हार लिये जो लैम्प की रोशनी में बनाये गये थे और उनको राजकुमारी के बागीचे के पास देखने के लिये फैला दिये।

कुछ ही देर में राजकुमारी की दासियाँ वहाँ नहाने के लिये आयीं तो उन्होंने पंज फूल को देख कर उससे पूछा कि वह कौन थी। उसने कहा कि वह एक बहुत ही अमीर व्यापारी का नौकर था जो जहाज़ पर था।

वह बहुत ही अच्छा था और उसके पास बहुत सारा खजाना था खास कर के मोतियों के हार जो दुनियाँ भर में बहुत सुन्दर थे और बहुत कीमती थे। जब उन दासियों ने यह सुना तो वह उस खजाने को देखने की बहुत इच्छुक हुईं। पंज फूल भी उनको उन्हें दिखाने के लिये तुरन्त ही तैयार हो गयी।

जब उन्होंने वे सुन्दर हार देखे तो उन्होंने पंज फूल से कहा कि वे हार वे अपनी मालकिन को दिखाना चाहती थीं। पंज फूल राजी हो गयी और वे हार उनको दिखाने के लिये दे दिये।

राजकुमारी को वे हार इतने पसन्द आये कि वह उनको वापस देना ही नहीं चाहती थी। उसने अपनी दासियों से उन हारों के दाम पूछने को कहा और कहा कि वह और भी हार खरीद लेगी – जितने भी वह व्यापारी उसे दे सके।

जब वे दूसरे हार भी उसके पास आ गये जो कि बहुत सारे थे तो राजकुमारी ने व्यापारी से खुद मिलने का फैसला किया क्योंकि उसने सोचा कि यह व्यापारी कोई बहुत बड़ा आदमी होगा जिसके पास इतना कीमती खजाना है।

सो परदा लगा कर वह व्यापारी के पास गयी और वहाँ पहुँच कर पंज फूल से पूछा जो व्यापारी का नकली नौकर था कि व्यापारी का कमरा कौन सा था ताकि वह उन हारों का सौदा कर सके जो उसने चुने थे।

पंज फूल तो इस बात की आशा कर ही रही थी। वह इस मामले में किसी को भी धोखा देना नहीं चाहती थी सो उसने राजकुमारी से कहा कि व्यापारी तो उस समय उससे मिल नहीं सकता क्योंकि उस दिन उसने कोई खास पूजा की थी सो वह इस समय किसी स्त्री से बात नहीं कर सकता था।

राजकुमारी ने उससे पूछा — “मैं उस व्यापारी से क्यों नहीं मिल सकती। मैं एक अच्छी स्त्री हूँ और मैंने ऐसा अजीब आदमी कभी नहीं देखा। मुझे यकीन है कि मेरे यहाँ होने से उसकी कोई बदनामी नहीं होगी।”

पंज फूल फिर बोली — “अगर मैं आपको उसके कमरे तक ले भी जाऊँ तो भी वह आपसे नहीं मिलेगा बल्कि और गुस्सा होगा। वह आपके सामने आयेगा ही नहीं।”

यह सुन कर राजकुमारी की उससे मिलने की इच्छा और बढ़ गयी। उसने कहा कि वह अकेले ही उसके कमरे में उससे मिलने जायेगी और इस तरह से पंज फूल की इस बात में कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।

पंज फूल कुछ नहीं बोली और राजकुमारी व्यापारी के कमरे तक अकेली ही चली गयी और जा कर उसके कमरे का दरवाजा खटखटाया। व्यापारी ने दरवाजा नहीं खोला और अन्दर से ही बोला — “मैं तुम्हारे लिये दरवाजा नहीं खोल सकता। मैं किसी अजनबी स्त्री से नहीं मिल सकता इसलिये तुम्हें अन्दर भी नहीं बुला सकता।”

पर राजकुमारी उसकी सुनने वाली नहीं थी। उसने पूछा “किसलिये? मैंने कभी किसी अजीब आदमी का चेहरा नहीं देखा। मैं एक अच्छी स्त्री हूँ,। मेहरबानी कर के मुझे अन्दर आने दीजिये। मैं एक अच्छी स्त्री हूँ और आपसे शादी करना चाहती हूँ। मेरी बस एक यही इच्छा है। हम लोग आपस में एक दूसरे से क्यों नहीं मिल सकते।”

इस तरह दबाव डाले जाने पर व्यापारी ने दरवाजा खोल दिया। दोनों ने एक दूसरे को देखा तो दोनों के मन में एक दूसरे के लिये प्यार जाग उठा। वे बहुत देर तक बात करते रहे। फिर व्यापारी ने उसको अपना खजाना दिखाया।

राजकुमारी उस अजीब व्यापारी के लिये अपने दिल में प्यार लिये और उसके खजाने के लिये आश्चर्य लिये अपने घर लौट आयी। जैसे ही वह महल पहुँची उसने अपने पिता को बताया कि वह कहाँ गयी थी उसने वहाँ क्या क्या देखा और किस तरह से वह उस व्यापारी के प्रेम में पड़ गयी थी। और अब वह उससे शादी करना चाहती थी।

उसका पिता एक बहुत अच्छा राजा था उसने राजकुमारी से व्यापारी से मिलने का वायदा किया और अगली सुबह उससे मिलने के लिये जहाज़ की तरफ चल दिया।

जब उसने व्यापारी को देखा तो वह उसको देख कर बहुत खुश हुआ। वह कितना अच्छा बोलता था कितना अक्लमन्द था। उसने भी अपने दिल में उसको अपना दामाद चुन लिया। घर जा कर यह बात उसने अपनी बेटी को बतायी।

राजकुमारी तो यह सुन कर बहुत खुश हुई। उसकी खुशी की तो कोई हद ही नहीं थी। वह उस दिन का इन्तजार करने लगी जब उससे उसकी शादी होगी। शहर भर में खुशियाँ मनायी जा रही थीं। शादी हुई और बड़ी शान से हुई जैसी कि परियों के देश की राजकुमारी की होनी चाहिये थी।

कुछ समय तक गुल्लाला शाह महल में रहा और वहाँ जा कर बहुत खुशहाल हो गया। पर फिर भी उसका मन सन्तुष्ट नहीं था। एक दिन उसने राजकुमारी से अपने बारे में सब कुछ बताया कि वह वहाँ क्यों आया था। कैसे उसकी फूल लेने की इच्छा थी और कैसे वह फूल ले कर वह अपने देश जाना चाहता था।

राजकुमारी ने यह सब अपने पिता को बताया और उससे बारह हजार फूलों वाले पेड़ अपने साथ ले जाने की इजाज़त माँगी जो राजा ने उसको तुरन्त दे दी। जाने की तैयारियाँ शुरू हो गयीं। बारह हजार पेड़ों को ले जाने के लिये बारह हजार गाड़ियाँ तैयार की गयीं। राजा ने जो कुछ भी अपनी बेटी को दिया था उसको ले जाने की भी तैयारी की गयी। बहुत सारे सिपाही और हाथी भी उन दोनों को दिये गये।

आखिर जाने की घड़ी आयी। यह बड़े दुख का मौका था क्योंकि उन दोनों को लोग बहुत प्यार करते थे। वे पहले गुल्लाला शाह के उस देश गये जहाँ उसकी पहली पत्नी रहती थी। राजा उसको देख कर बहुत खुश हुआ और उनको रहने के लिये एक बहुत ही शानदार घर दिया और उन्हें जो कुछ और चाहिये था वह सब भी दिया।

गुल्लाला शाह वहाँ कुछ समय तक रहा फिर वहाँ से और भेंटें ले कर अपने देश चला जहाँ का वह रहने वाला था। यह एक लम्बी और मुश्किल यात्रा थी पर वे सुरक्षित रूप से शहर की दीवार तक पहुँच गये। उन्होंने यह सोचते हुए शहर के बाहर ही अपना कैम्प लगाया कि अचानक इतने सारे लोगों के आने से कहीं लोगों को कोई परेशानी न हो।

जब उनके आने की खबर महल पहुँची तो राजा बहुत डर गया। उसने तुरन्त ही अपने वजीर को बुलाया और उससे सलाह माँगी कि इस बड़े राजा को खुश करने के लिये उसे क्या करना चाहिये जो अब यहाँ तक आ पहुँचा है। उसने कहा — “मुझे पूरा यकीन है कि यह इतने सारे आदमियों को ले कर यहाँ लड़ने के लिये ही आया होगा।”

वजीर ने मामले पर सोच विचार किया और बोला — “राजा साहब हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप अपनी सुन्दर बेटी को उसके पास भेजें जो वहाँ जा कर शान्ति लायेगी। कौन जानता है कि यह राजा आपकी बेटी की सुन्दरता से प्रभावित हो जाता है या नहीं और फिर हम सब बच जायें।”

राजा बोला — “मुझे अफसोस है वजीर साहब कि मैंने अपनी बेटी उस आदमी को देने का वायदा किया है जो फूलों वाले पेड़ ले कर आयेगा। इसके अलावा मेरी बेटी कई बार खुद किसी और आदमी से शादी करने के लिये मना कर चुकी है जो चाहे कितना भी बड़ा अक्लमन्द या अमीर ही क्यों न हो सिवाय इस आदमी के। मैं क्या करूँ।”

राजा और उसके सलाहकार इस तरह की बातें कर ही रहे थे कि गुल्लाला शाह ने रात के लिये अपने कैम्प को ठीक कर के अपने शाही और कीमती कपड़े उतारे और भिखारियों वाले कपड़े पहन लिये और इस तरह तैयार हो कर वह बारह हजार फूलों वाले पेड़ ले कर शहर की तरफ चला।

उसने गाड़ियों को चलाने वालों को सीधे महल जाने के लिये कहा और वह उनके आगे आगे चला। महल पहुँच कर उसने चौकीदार के हाथों राजा को सन्देश भेजा कि “अपने मालिक राजा साहब से कहो कि वह मुझे अन्दर आने की इजाज़त दें। मैं उनके लिये परियों के राजा के बागीचे के सुन्दर फूलों के पेड़ लाया हूँ।”

यह भी कितनी अजीब बात थी कि यह सन्देश भी राजा के पास तभी पहुँचा जब वह उन फूलों के बारे में बात कर रहा था। जब राजा ने चौकीदार का यह सन्देश सुना तो उसने उसका विश्वास ही नहीं किया बल्कि उसे लगा कि वह पागल हो गया था। वजीर और दूसरे औफीसर लोग जो वहाँ पर मौजूद थे उनको भी यह सुन कर ऐसा लगा कि यह सच कैसे हो सकता था। राजा ने इसे एक मजाक समझते हुए हँस कर कहा “ठीक है इस आदमी को अन्दर आने दो।”

गुल्लाला शाह अन्दर आया फटे कपड़ों में लिपटा हुआ पर हाथ में नमूने के कुछ फूल लिये हुए जिनको राजकुमारी और शाही परिवार इतना पसन्द करता था। अब तो यह बात सच हो गयी थी कि जिन फूलों की माँग थी वे सच में वहाँ मौजूद थे पर उनका लाने वाला एक नीचे परिवार का था – एक गन्दा सा फटे कपड़े पहने हुए भिखारी।

राजा ने अपनी ठोड़ी अपने दाँये हाथ में रखी और नीचे कालीन की तरफ काफी देर तक चुपचाप देखता रहा। वह सोच रहा था “क्या इस आदमी को मैं अपनी इतनी सुन्दर बेटी दे दूँ। मुझे यकीन है कि यह आदमी ऐसी कोई चीज़ नहीं माँगेगा जिसको मुझे इसे देने में शर्म आये। मैं इसको बहुत सारा इनाम दे कर विदा कर दूँगा।”

सो राजा ने उससे पूछा — “दोस्त तुम्हें क्या चाहिये। क्या तुम इस देश के वजीर बनना चाहोगे। या फिर तुम्हें बहुत सारा पैसा चाहिये। बोलो तुम्हें वही दे दिया जायेगा।”

भिखारी के रूप में गुल्लाला शाह बोला — अगर राजा साहब नाराज न हों तो मैं आपकी बेटी का हाथ माँगता हूँ। उसकी तुलना में मैं इज़्ज़त के सारे ओहदे और कितना भी पैसा बेकार समझता हूँ। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप अपना वायदा पूरा करें।”

राजा बोला — “तुम्हारी प्रार्थना तो बिल्कुल ठीक है और अगर मैं मना कर दूँ तो मैं अपना वायदा तोड़ूँगा सो मेरी बेटी तुम्हारी हुई तुम उसको ले जा सकते हो।”

जब वहाँ मौजूद सारे लौर्ड, नौकर चाकर और गुल्लाला शाह ने राजा के ये शब्द सुने तो वे राजा के दिमाग की कुलीनता पर आश्चर्य प्रगट करने लगे। क्योंकि हालाँकि यह एक छोटी सी बात थी पर अगर राजा इस भिखारी की माँग को पूरा नहीं करता तो वे क्या कर लेते। फिर भी सब लोगों ने इसे ठीक और न्यायपूर्ण समझा।

गुल्लाला शाह को नौकरों के साथ एक शानदार घर में भेजा गया जहाँ वह कुछ दिन रहा जब तक शादी का इन्तजाम किया गया। उसके लिये उसके लायक कपड़े बनवाये गये और और भी बहुत सारी चीज़ें उसके लिये लायी गयीं।

जब यह सब हो गया तब राजा ने अपनी काउन्सिल बुलायी और उससे राय ली कि अब इस हालत में जब कि एक आदमी फूल ले कर आ गया है जिससे राजा अपनी बेटी की शादी का वायदा कर चुका है और दूसरी तरफ एक ताकतवर राजा शहर के बाहर आया हुआ है उसको क्या करना चाहिये।

वे लोग काफी देर तक बात करते रहे पर कुछ भी निश्चित रूप से नहीं सोच पाये सिवाय इसके कि वह और उसका वजीर उस राजा से जा कर मिलते हैं और उसके आने का उद्देश्य पता करते हैं।

सब लोगों के जाने के करीब एक घंटे बाद राजा और वजीर अपने कुछ नौकरों को साथ ले कर अपने मन में चिन्ता लिये शहर के बाहर लगे कैम्प की तरफ चले ताकि वे उस राजा के आने का उद्देश्य पता लगा सकें। ऐसा लग रहा था जैसे कि ये लोग शाही पार्टी के बजाय किसी तीर्थयात्रा पर जा रहे हों। इस बीच गुल्लाला शाह अपने नौकरों को बहका कर अपने शाही घर से निकलने में कामयाब हो गया। वह अपने कैम्प पहुँचा और राजा के वेश में आ गया। जब राजा को उससे मिलवाया गया तो उसने गुल्लाला शाह को बिल्कुल भी नहीं पहचाना।

वे लोग रस्मो रिवाज के साथ मिले एक दूसरे को भेंटें दी गयीं और फिर दोनों बात करने के लिये बैठे। बात गुल्लाला शाह ने शुरू की राजा के देश और उसके लोगों के बारे में पूछ कर। तब राजा ने पूछा कि वह वहाँ कब आया और कहाँ से आया।

गुल्लाला शाह ने उसे अपने बारे में बताया और उससे कहा कि वह उसकी बेटी का हाथ माँगने आया था। राजा बोला — “बड़े अफसोस की बात है राजा साहब कि मैंने अपनी एक कसम के अनुसार अपनी बेटी की शादी एक भिखारी से तय कर दी है। अगर ऐसा न हुआ होता तो मैं आपके अलावा और किसी से उसकी शादी करता ही नहीं। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि इसके लिये आप मुझ पर दया करें क्योंकि यह बात मैं आपसे बड़े दुखी मन से कह रहा हूँ।”

गुल्लाला शाह बोला — आप बहुत ही न्यायप्रिय कुलीन और अच्छे राजा हैं। आपने यह कर के बहुत अच्छा काम किया है। अपनी जान गँवाना अपना राज्य हारना और अपना सब कुछ खोना अपने वायदे से फिरने से ज़्यादा अच्छा है।

क्या ही अच्छा होता अगर दुनियाँ के सारे राजा ऐसे होते जैसे आप हैं। तब लोग ज़्यादा खुश रहते ज़्यादा खुशहाल होते और सारी दुनियाँ में शान्ति होती। अल्लाह ने आपको खुशहाली दी है और आगे भी देता रहेगा। बस आप अपने लोगों के वफादार रहें और अपनी बात पर कायम रहें।

अब मैं आपको एक बात बताता हूँ कि वह भिखारी जिसको अपने अपनी बेटी देने का वायदा किया है वह भिखारी और कोई नहीं मैं खुद ही हूँ। और मैं वही लड़का हूँ जिसे लोग खरिया के नाम से जानते थे। जिसके पिता बिना किसी वारिस के मर गये थे और जिसकी जायदाद और पैसा राजा ने ले लिये थे।

इस वजह से उसकी माँ ने एक किसान के यहाँ नौकरी की। अल्लाह मेरे साथ था। उसने मुझे बहुत पैसा दिया। फिर मैं आपके एक दूत से मिला जिसने मुझे आपकी इच्छा के बारे में बताया। मैंने उससे कहा कि मैं वे फूल ले कर आऊँगा।

फिर मैं बहुत दिनों तक इधर उधर घूमता रहा। इस घूमने में मैंने बहुत कुछ सीखा बहुत बड़ा और अमीर आदमी बन गया। आखीर में मैं वे फूलों के पेड़ ले कर आपके राज्य लौट आया। मैंने सोचा कि मैं उन फूलों के साथ आपसे पहले एक भिखारी के रूप में मिलता हूँ ताकि आपके वायदे और न्यायप्रियता को परख सकूँ। पर आप तो अपने वायदे के पक्के निकले।

मैं आपसे विनती करता हूँ कि अगर मैंने इस मामले में कुछ गलत किया हो तो आप मुझे माफ करें और अपनी बेटी की शादी मुझसे कर दें।”

यह कह कर गुल्लाला शाह ने राजा के हाथ पकड़ लिये और उनको अपने साथ इज़्ज़त के साथ बिठाया।

जब राजा ने यह अच्छी खबर सुनी तो वह तो खुशी मारे आपे से बाहर हो गया। उसके मुँह से निकला “अल्लाह का शुकर है। ओह अल्लाह का शुकर है।” और यह कह कर गुल्लाला शाह को अपने गले लगा लिया।

फिर बोला — “मैं तुम्हें अपनी बेटी जरूर दूँगा पर यह वायदा करने वाला मैं कौन होता हूँ। तुम जो मेरी ताकत के अन्दर है वह जो चाहे माँग लो मैं तुम्हें वही दे दूँगा।”

इस मिलने की खबर तुरन्त ही राजकुमारी को सुनायी गयी तो उसको तो विश्वास ही नहीं हुआ जब तक गुल्लाला शाह खुद उसके सामने नहीं आया और उसने अपने आपको उसे नहीं बताया। कुछ समय बाद दोनों की शादी बड़ी शानो शौकत के साथ की गयी। गुल्लाला शाह फिर अपनी चार राजकुमारी पत्नियों के साथ खुशी खुशी वहीं रहने लगा क्योंकि पंज फूल भी राजा के नकली नौकर का रूप छोड़ कर फिर अपने असली रूप में आ गयी थी। गुल्लाला शाह कुछ ही साल में बहुत ही लोकप्रिय और खुशहाल हो गया और राजा के मरने के बाद उसकी राजगद्दी पर बैठा। उसने कुछ और देश भी जीते और सब कुछ उसने बड़ी अच्छी तरह से सँभाला। वह अपने समय का सबसे बड़ा राजा बन गया। सारे राजा उसकी इज़्ज़त करते थे और उसको टैक्स देते थे।

कुछ लोग सोच रहे होंगे कि गुल्लाला शाह इतना बड़ा आदमी बन कर अपनी माँ और रिश्तेदारों को भूल गया होगा पर ऐसा नहीं था। उसने अपनी माँ को ढूँढ लिया और उसको रहने के लिये एक बहुत बढ़िया मकान दिया नौकर चाकर दिये।

उसने उन लोगों का भी पता किया जिन्होंने उसकी गैरहाजिरी में उसकी माँ की सहायता की थी और उनको अपने राज में अच्छे ओहदे दिये। इस तरह वह सबका प्यारा बन कर रहा। इसीलिये इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वह सबका प्यारा था। उसका राज्य बहुत बढ़ा और वह काफी बूढ़ा होने तक राज करता रहा। जब वह मरा तो बूढ़े और बच्चे स्त्री और आदमी गरीब और अमीर सभी को बहुत दुख हुआ।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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