गुलदाऊदी (कहानी) : जॉन अर्नेस्ट स्टैनबेक - अनुवाद : राजेंद्र यादव
Guldaudi (English Story in Hindi) : John Ernst Steinbeck
सर्दियों के गाढ़े स्याह कोहरे ने सालीनास घाटी को आकाश और पूरी दुनिया से अलग कर बंद कर दिया था। चारों ओर के पहाड़ों पर वह ढक्कन जैसा बैठ गया था और विशाल घाटी को बंद बर्तन में बदल दिया था। लम्बी चौड़ी धरती पर जहाँ-जहाँ मजदूरों ने गहरी जुताई की थी वहाँ-वहाँ धरती चमक रही थी जहाँ फाल ने गहरा काटा था। सालीनास नदी के उस पार की घाटी के खेतों में पीले- पीले ठूंठ मरियल सी पीली सूरज की रोशनी में नहाए दिख रहे थे लेकिन सूरज की रोशनी का घाटी में दूर दूर तक पता नहीं था, दिसम्बर जो आ गया था। नदी के किनारे सरपत झाड़ियों में नुकीले पीले पत्ते लौ की तरह दिख रहे थे।
शांति और प्रतीक्षा का समय था वह हवा में हल्की सी खुनक थी। दक्षिण पश्चिम से हल्की हवाएँ चल रही थीं जिसे देख किसानों को जल्दी ही अच्छी बारिश की उम्मीद थी, लेकिन कोहरा और बारिश एक साथ कभी नहीं चलते।
नदी पार हेनरी एलन के रैंच में अभी कुछ काम शेष बचा था, फसल कट कर रखी जा चुकी थी और फलों के बाग में जुताई कर दी गई थी ताकि बारिश आने पर मिट्टी गहराई से तर हो जाये। उधर प्लानों में जानवरों की चमड़ी खुरदरी हो रही थी और उनकी देह के रोऐं झर रहे थे ।
फूलों के बगीचे में काम करते एलिसा एलेन ने अहाते के बाहर अपने पति हेनरी को दो सूट पहिने व्यक्तियों से बात करते देखा। तीनों व्यक्ति ट्रेक्टर की शेड के नीचे खड़े हो फोर्डसन पर एक-एक पैर रखे बतिया रहे थे। सिगरेट पीते वे मशीन को भी देखते जा रहे थे।
कुछ देर तक उन्हें देखते रहने के बाद एलिसा अपने काम पर जुट गई। पैंतीस वर्षों की एलिसा दुबली-पतली लेकिन मजबूत कद-काठी की थी। उसकी आँखें पानी जैसी निर्मल थीं। माली के वस्त्रों में उसकी देह वजनदार लग रही थी, साथ ही पुरुषों वाला काला हैट उसकी आँखों के पास तक ढंका था। पैरों से कहीं बड़े जूते और उसकी प्रिंटेड ड्रेस बड़े से कार्डराय एप्रन से ढंकी थी जिसमें चार बड़े-बड़े
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'ओह! वे... अरे लो यही बतलाने तो मैं तुम्हारे पास आया था। वे वेस्टर्न मीट कंपनी से आए थे। मैंने उन्हें तीस नए बछड़े बेच दिए हैं और वह भी मेरी कीमत पर।"
"वाह, क्या बात है" उसने कहा "यह तो अच्छी खबर सुनाई।"
'और मैंने सोचा, पति ने आगे बात पूरी करते कहा, "मैंने सोचा कि आज शनिवार है तो क्यों न हम सालीनास में जा किसी रेस्त्रां में डिनर करें और फिर पिक्चर भी देखें - इस सौदे की खुशी में।"
"वाह! क्या बात है" पत्नी ने दोहराया " ऐसा तो होना ही चाहिए।"
हेनरी ने अपने मजाकिया लहजे में कहा, "और आज तो मुक्केबाजी भी है। कुश्ती के बारे में तुम्हारा क्या विचार है?"
'अरे नहीं, क्या कहते हो" उसने बेमन से कहा, "नहीं ss मुझे कुश्तियाँ कतई पसंद नहीं।"
"मैं तो मजाक कर रहा था एलिसा हम लोग सिनेमा ही चलेंगे। अब देखो दो बजे हैं। स्कॉटी को ले मैं पहाड़ी पर जा रहा हूँ बछड़ों को लाने। मेरे विचार से मुझे दो घंटे तो इस काम में लग ही जायेंगे। हम लोग पांच बजे के आसपास शहर चलेंगे और कामीनॉस होटल में डिनर करेंगे।"
"बढ़िया। घर से बाहर खाने का मजा ही कुछ और होता है। "
"फिर ठीक है, मैं चलता हूँ घोड़ों को तैयार करने। "
"मुझे भी बीजों के लगाने को पर्याप्त समय मिल जायेगा इस बीच ।" एलिसा ने कहा।
उसने अपने पति को कोठार के पास से स्कॉटी को आवाज देते सुना और फिर कुछ देर बाद दोनों को पहाड़ी की ओर बढ़ते देखा ।
एक छोटे से चौकोर रेतीली जमीन के टुकड़े में गुलदाऊदी को अंकुरित करने के लिए पहले से ही उसने तैयार कर लिया था। खुरपी से उसने कई बार मिट्टी को उलटा पलटा और फिर उसे पीट कर समतल कर दिया। फिर दस समानांतर नालियाँ बना डालीं। गुलदाऊदी पौधों के पास पहुँच उसने नन्हें-नन्हें ताजे अंकुरों को तोड़ा, प्रत्येक की पत्तियाँ कैंची से छोटी की और उन्हें क्रम से जमाती रही।
चकों की चूं 55 चूंss चर्र मर्र के साथ खुरों की पदचाप सड़क से आती सुन एलिसा ने सिर उठा कर देखा। नदी किनारे लगे घने सरपत और कपास के पेड़ों के किनारे-किनारे जाती सड़क पर एक अजीब सा वाहन अजीब तरह से चलता बढ़ा आ रहा था। वह पुराने स्प्रिंगों पर लगी बैगन थी जिसके ऊपर प्रेयरी स्कूनरों जैसा केनवास का तिरपाल लगा था। उसे एक बूढ़ा भूरे रंग का घोड़ा और छोटा ग्रे-सफेद गधा खींच रहा था। घनी खूंटी वाली दाढ़ी बनाए एक आदमी हांक रहा था। बैगन के पिछले चकों के बीच एक मरियल सा चरागाही कुत्ता शान से चल रहा था। केनवास पर आडे तिरछे शब्दों में लिखा था, "बर्तन, कढ़ाही, चाकू, कैंची, लॉन काटने की मशीन सुधारी जाती हैं।" दो पंक्तियों का नाम निश्चितता को प्रकट कर रहा था। प्रत्येक अक्षर के अंतिम हिस्से को काले पेंट से कुछ नुकीला बनाया गया था।
घुटनों पर बैठी एलिसा उसे ढीले-ढाले वैगन को आते हुए देखती रही। वैगन सड़क पर सीधे आगे न बढ़ उसके खेत की सड़क पर मुड उसके घर की ओर चरमराता आने लगा। तत्काल रेंच के रक्षक कुत्ते वैगेन की ओर लपके और तनी पूँछों के साथ राजदूतों के सम्मान भाव से वैगन की परिक्रमा करते उसे सूँघने लगे। कारवां एलिसा की बाड़ी के पास आ रुक गया। नए आने वाला कुत्ता अपने को अकेला पा अपनी पूँछ दबा खींसे दिखाता वैगन के नीचे दुबक गया।
वैगन पर बैठे व्यक्ति ने जोर से कहा, "लड़ाई के मामले में यह कुत्ता पर्याप्त डरपोक है।"
एलिसा ने उत्तर में हँसते हुए कहा, "यह तो मैं देख ही रही हूँ। इसे लड़ाई के लिए तैयार होने में कितना समय लगता है।"
आदमी ने उसकी हँसी में अपनी हँसी मिलाते कहा, "कभी-कभी तो हफ्तों लग जाते हैं।" और अपना वाक्य पूरा कर चके पर पैर रख उतर आया। घोड़े और गधे बिना पानी के फूलों जैसे लटक गए।
एलिसा ने पाया कि वह खासा लंबा-चौड़ा आदमी है। हालाँकि उसके सिर और दाढ़ी के बालों में सफेदी की झलक थी लेकिन वह बूढ़ा दिखता नहीं था। उसका झुर्रियों वाला काला सूट ग्रीस के दागों से भरा था। उसके चेहरे और आँखों से हँसी रुकते ही गायब हो गई थी। उसकी काली आँखों में गंभीरता थी जो जोड़ी हांकने वालों और जहाजियों में प्रायः देखी जाती है। कांटेदार बाड़ पर टिके हाथों में दरार थीं और प्रत्येक दरार काली। उसने अपना टूटा-फूटा हैट सिर से उतारा।
"मैडम, मैं अपनी परिचित रोड से भटक गया हूँ क्या यह धूल भरी सड़क नदी पार लॉस ऐंजेल्स हाइवे से मिलती है?"
एलिसा ने खड़े हो बड़ी कैंची को एप्रन के पाकेट में रखा, "हाँ मिलती तो है लेकिन वह लंबे घेरे के बाद नदी को पार करती है। मेरे विचार से तुम्हारी टीम रेत में चल नहीं पाएगी।"
उसने कुछ कड़वाहट के साथ उत्तर दिया, "आपको अच्छा खासा आश्चर्य होगा कि ये जानवर कहाँ-कहाँ से नहीं निकल चुके हैं।"
"तब ठीक है, आगे बढ़ लो फुर्ती से" एलिसा ने फाटक से उत्तर दिया।
उसने प्रश्न के व्यंग्य को अनदेखा करते कहा था "हाँ, लेकिन तभी जब वे चलना शुरू कर दें।"
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लिया । "मैं उन्हें फूलदान में दे दूँगी और तुम उन्हें अपने साथ लेते जाना। आओ, आओ, भीतर आ जाओ।"
जब आदमी छोटे फाटक को खोल भीतर आ रहा था एलिसा तेजी से दौड़कर घर के अंदर चली गई और वहाँ से एक लाल फूलदान उठा लाई दस्ताने पहिनने की उसे याद तक नहीं रही। वहीं जमीन पर घुटनों के बल बैठ उसने उंगलियों से मिट्टी निकाल चमकते नए फूलदान में डालना शुरू कर दिया। उसे भरने के बाद उसने छोटे-छोटे अंकुराई शाखाओं के ढेर से जिसे उसने मेहनत से बनाया था— कुछ शाखा निकाल फूलदान में अच्छी तरह गाड़ मिट्टी को जोर से मुट्ठी बाँध दिया। आदमी उसके पीछे खड़ा उसे काम करते देखे जा रहा था । उसकी ओर बिना देखे उसने कहा, "मैं तुम्हें विस्तार से समझा रही हूँ। याद रखना ताकि तुम उस महिला को समझा सको।"
"अवश्य, मैं याद रखूँगा।"
"हाँ, तो समझ लो । एक माह में इनमें जड़ें आ जाती हैं। तब एक-एक फुट दूर अच्छी काली मिट्टी में इन्हें लगाना होगा, समझ में आया न?" कहते उसने अच्छी काली मिट्टी एक मुट्ठी में भर उसे दिखाते हुए कहा "ये बहुत जल्दी बढ़ेंगे और लंबे होंगे। अब यह बात विशेष तौर पर याद रखना, उनसे जुलाई में इसकी कटाई-छटाई के लिए कह देना, करीब जमीन से आठ इंच ऊपर।"
'फूलने के पहिले, " आदमी ने पूछा।
"हाँ, फूलने के पहिले या बौराने के पहिले।" एलिसा का चेहरा उत्साह से तन गया था " ये तेजी से उगेंगे। सितंबर के अंत तक कली निकलना शुरू हो जाऐंगी।"
अचानक परेशान हो वो कहते कहते रुक गई थी "कली निकलते समय ही सबसे अधिक सावधानी रखनी पड़ती है।" फिर कुछ पल रुक हिचकते हुए कहा, "मेरी समझ में नहीं आ रहा हैं मैं तुमसे कैसे कहूँ" फिर उसकी आँखों की गहराई में झाँकते हुए कहा, इस बीच उसका अपना मुँह कुछ खुल गया था और वह अपनी आवाज को सुनने समझने की चेष्टा करती लग रही थी "मैं तुम्हें समझाने की कोशिश करती हूँ" उसने कहा, "क्या तुमने कभी उगाने वाले हाथों के बारे में सुना है।"
"सुना है कि नहीं, मैडम मैं कह नहीं सकता।"
"ऐसा है मैं तो तुम्हें केवल इतना बतला सकती हूँ कि उस समय कैसा अनुभव होता है। जब उन कलियों को तोड़ने को हम तैयार होते हैं जिन्हें हम नहीं जानते तब सब कुछ तुम्हारी उंगलियों के छोर पर उतर आता है। अपनी उंगलियों को काम करते देखते रहते हैं बस। वे अपना काम स्वत: करती रहती हैं। और तुम केवल उन्हें महसूस कर सकते हो। वे कलियों को तोड़ती चली जाती हैं। वे कभी कोई गलती नहीं करतीं। वे पौधे के साथ ही क्या उनकी अंग ही हो जाती हैं। तुम्हारी समझ में आया न? तुम्हारी उंगलियों और पौधे। तुम उन्हें महसूस कर सकते हो पूरी बांह तक बाहों को सब पता होता है। वे कभी भूलकर भी गलतियाँ नहीं करतीं। तुम्हें यह अहसास लगातार बना रहता है। जब उस स्थिति में होते हैं तब कोई भी भूल हो ही नहीं सकती। देख रहे हो ना तुम ! समझ रहे हो ना मैं क्या कह रही हूँ?"
घुटनों के बल जमीन पर बैठे एलिसा उसकी ओर देखे जा रही थी। उसके वक्ष भावावेश में फैलते जा रहे थे।
आदमी की आँखें सिकुड़ गई। जानबूझकर वह दूसरी ओर देखने लगा । "शायद, हो सकता है जानता होऊँ" उसने कहा "कभी-कभी वैगन में... रातों में..."
एलिसा की आवाज भर्राने लगी। "मैंने कभी तुम्हारी जैसी जिंदगी तो गुजारी नहीं है लेकिन मैं जानती हूँ तुम क्या कहना चाहते हो। जब रातें गहरी अंधेरी हो जाती हैं - लेकिन तारे कितने तीखे नुकीले होते हैं और वहाँ होती है खामोशी । तुम क्यों उठ जाते हो। प्रत्येक नुकीला तारा तुम्हारी देह में भिदता जाता है, गड़ता जाता है। ऐसा ही होता है। गर्म और तीखा और प्यारा।"
घुटनों पर बैठे-बैठे ही एलिसा का हाथ उसके ग्रीस लगे काले ट्राउजर पहिने पैरों की ओर बढ़ा। उसकी सहमती सी उंगलियों ने लगभग पैंट को छू ही लिया था, लेकिन उसका हाथ अचानक नीचे जमीन पर गिर गया। दुम हिलाते चापलूसी करते कुत्ते की तरह वो पूरी तरह घुटनों के बल धरती पर लेट सी गई।
आदमी ने धीरे से कहा " होता तो सुंदर है, ठीक वैसा ही जैसा आप कह रही हैं लेकिन जब आपने खाना नहीं खाया होता है तब नहीं।"
सुनते ही एलिसा शर्म से लाल चेहरा लिए खड़ी हो गई थी। हाथों में लिए फूलदान को उसने हाथ बढ़ाकर उसकी बाहों में हौले से रखते हुए कहा "लो, इसे अपने वैगन में रख लो, लेकिन सीट पर रखना ताकि इसे देखते रह सको । देखती हूँ शायद तुम्हारे लायक काम मेरे पास कुछ हो।"
घर के पिछवाड़े पड़े कबाड़ में से उसने बर्तनों को उलट पलट कर दो पुरानी एल्यूमेनियम की कड़ाहियाँ निकाली और उन्हें लाकर उसे देते हुए कहा "लो, हो सकता है तुम इन्हें सुधार सको।"
आदमी का व्यवहार परिवर्तित हो पूरी तरह व्यावसायिक हो गया। "बस, मुझे सुधारने दें, बिल्कुल नई जैसी हो जायेंगी ऐं", कह उसने वैगन के पीछे अपनी छोटी निहाई जमाई और तेल से चिकने टूल बाक्स से एक छोटी मशीनी हथौड़ी निकाली। एलिसा उसे काम करते देखने के लिए गेट से बाहर निकल आई और वह ठोंक पीट कर कड़ाहियों को सुधारने में जुट गया। उसके चेहरे पर निश्चितता और आत्मविश्वास झलकने लगा था। बस एक कठिन काम को अंजाम देते उसने अपना निचला ओंठ भर जरा सा दबा लिया था ।
"वैगन में तुम्हें अच्छी नींद आ जाती है?" एलिसा ने पूछा।
"जी मेडम, फर्स्ट क्लास नींद आती है। बारिश हो या धूप मैं वहाँ गाय जैसा आराम से रहता हूँ।”
"वहाँ अच्छा लगता होगा" एलिसा ने लंबी सांस ले कहा "मजा भी आता होगा काश हम औरतें भी ऐसा कुछ कर सकतीं।"
"एक स्त्री के लिए वह उचित जीवन नहीं है मैडम।"
सुनते ही एलिसा का ऊपरी ओंठ कुछ ऊपर मुडा जिससे उसके दाँत दिखने लगे। " तुम्हें यह कैसे पता! भला तुम यह कैसे कह सकते हो?" उसने विरोध प्रकट करते कहा ।
"यह मैं नहीं जानता मैडम " उसने अपनी बात स्पष्ट की। "स्वाभाविक है मेरा कोई अनुभव इस संबंध में नहीं है। हाँ, मैडम ये रहे आपके बर्तन। फिलहाल आपको नया खरीदने की जरूरत नहीं।"
"कितना हुआ?"
"ओह! पचास सेंट पर्याप्त हैं। मैं दाम कम और अच्छा काम करने में विश्वास करता हूँ । इसी तरह मैं अपने ग्राहकों को पूरे हाई वे में संतुष्ट रख पाता हूँ ।"
एलिसा ने घर से लाकर उसके हाथ पर पचास सेंट का सिक्का डालते हुए कहा " तुम्हारा कोई प्रतिद्वंदी आ जाए तो चकित मत होना। मैं कैंचियों को धार देना जानती हूँ। और छोटे बर्तनों के पिचके-उठे भागों को ठीक करना भी । मैं तुम्हें दिखला सकती हूँ कि एक स्त्री क्या कर सकती है।"
आदमी ने अपना हथौड़ा तिलहा बाक्स में रखा और छोटी निहाई को उठा कर रखने के बाद कहा " एक स्त्री के लिए वह बहुत एकाकी जीवन होगा मैडम और साथ ही भयानक भी, रात में वैगन के नीचे पता नहीं कौन-कौन से जानवर आते हैं आप नहीं जानतीं।"
अपनी बात पूरी कर, चके की धुरी पर अपना पैर रख उसने अपने को स्थिर खड़ा किया और गधे के पिछवाड़े अपनी सीट पर बैठ रास थाम ली। " आपकी दया के लिए धन्यवाद मैडम " उसने कहा "मैं वैसा ही करूंगा जैसा आपने कहा है। मैं वापिस लौट कर सालिनास सड़क को ही पकड़ूँगा।"
"ध्यान रहे" एलिसा ने जोर से कहा "यदि तुम्हें वहाँ पहुँचने में देर हो जाए तो मिट्टी को गीली करना मत भूलना।"
"मिट्टी मैडम ... मिट्टी? ओह हांऽऽ आपका तात्पर्य है गुलदाऊदी के चारों ओर, मैं ध्यान रखूँगा," कहते उसने मुँह से हाँकने की आवाज निकाली। दोनों जानवरों ने अपनी जगह संभाल ली। कुत्ता अपनी पिछले चकों की जगह पर पहुँच गया। धीरे-धीरे वैगन पलटा और एलिसा के घर की सड़क से हो उसी नदी किनारे वाली सड़क पर चलता गया।
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रहा था। उस स्याह सांझ में वही एक मात्र रंग शेष था। बिना हिले-डुले वो बहुत देर तक बैठी रही। उसकी आँखें कभी-कभार ही झपक रही थीं।
हेनरी जोर से दरवाजा बंद करता अपनी टाई को वेस्ट में खोंसता आया। उसके आते ही एलिसा कुछ और तन गई और उसका चेहरा भी तन गया। हेनरी ने उसके पास पहुँच एकदम से रुक उसे गौर से देखा "क्या बात है एलिसा आज तुम बेहद सुंदर लग रही हो?"
"सुंदर? तुम्हारे अनुसार मैं सुंदर दिख रही हूँ। सुंदर से तुम्हारा क्या तात्पर्य है ?"
हेनरी ने हतप्रभ हो कहा, "मैं नहीं जानता मेरा तात्पर्य क्या है तुम आज कुछ बदली बदली सी लग रही हो, प्रसन्न और समर्थ । "
"मैं समर्थ हूँ? हाँ समर्थ, 'समर्थ' से तुम्हारा क्या तात्पर्य है?"
हेनरी - हक्का बक्का सा उसे देखता रहा । "तुम कोई खेल खेल रही हो, "उसने असहाय हो कहा "यह खेल है शायद तुम इतनी समर्थ लग रही हो कि आसानी से घुटनों पर रख बछड़े को तोड़ सकती हो और उसे तरबूज की तरह प्रसन्नता से खा भी सकती हो।"
एक पल को एलिसा की कठोरता गायब हो गई " हेनरी, मुझसे इस तरह की बात तो कम से कम मत ही करो। तुम्हें पता ही नहीं है कि तुमने अभी-अभी कहा क्या है।" कहते कहते वो अपने रूम में वापिस आ गई। "मैं सामर्थवान हूँ" उसने गर्व से कहा "मुझे कभी पता ही नहीं चला कि मुझमें कितनी सामर्थ्य है । "
हेनरी ने ट्रेक्टर शेड की ओर नजरें घुमाई और जब उसकी नजरें उस पर वापिस लौटीं तो वे उसकी सामान्य आँखें थी "मैं कार निकालने जाता हूँ तुम कोट पहिन लो जब तक मैं उसे स्टार्ट करता हूँ।"
एलिसा भीतर चली गई। उसने कार को गेट से बाहर जाते और फिर मोटर के बंद होने की आवाज सुनी। उसके बाद उसने अपना हेट रखने में पर्याप्त समय लिया। उसे कई प्रकार से रखा, दबाया। जब हेनरी ने मोटर बंद कर दी तब उसने कोट पहना और बाहर निकली।
छोटी रोडस्टर धूल भरी सड़क पर कूदती, पक्षियों को उड़ाती और खरगोशों को झाड़ियों में जाने को विवश करती बढ़ती जा रही थी। दो सारस जोर से पंख फड़फड़ाते विलो पेड़ों के ऊपर से नदी किनारे उतर गए ।
सड़क के छोर पर उसने एक बड़ा सा धब्बा देखा। वो उसे जानती थी।
उसने उसे न देखने की भरसक कोशिश की लेकिन उसकी आँखों ने उसकी आज्ञा नहीं मानी। उसने स्वयं से फुसफुसा कर कहा "उसने जरूर उन्हें सड़क पर यही फेंक दिया होगा। अधिक परेशानी तो नहीं होनी थी, कुछ खास नहीं। लेकिन
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