गुलाबी मोती (स्पेनिश कहानी) : एमिलिया पार्डो बाजान

Gulabi Moti (Spanish Story in Hindi) : Emilia Pardo Bazan

मेरे एक अभागे मित्र ने मुझसे यह कहा-

"यह ऐसा आदमी है, जो अपने आपको सारा दिन बंद करके काफी पैसा कमाने के लिए देर तक काम करता है, ताकि जिस औरत को वह प्यार करता है, उसकी चंचलता की संतुष्टि कर सके-औरत, जो थोड़ा जमा करके एक विशेष राशि से अपने मन की मौज को संतुष्ट करने के आनंद को समझ सकती है । जिसको उसने केवल आशाहीन स्वप्न समझा, अपने मन की उन्मत्त कल्पना में असंभव इच्छा जाना, उसने प्रयत्न करने के लिए मुझे एड़ी मारी, ताकि उसकी इच्छा को सत्य में परिवर्तित कर सकूँ। मेरा विचार था कि मेरा काम और मेरा प्यार उसे वह दे, जिसको लेने के लिए उसके हाथ इच्छुक हैं। कितना आनंददायक था कि मैं उसकी हैरानी, उसकी प्रशंसा और आनेवाली कृतज्ञता के लिए अपने गले में पड़ी उसकी बाँहों के बारे में सोचने लगा।

"जब अपने हाथ में पकड़े और पैसों से भरे अपने बटुए को मैंने देखा तो मेरा मन हर्षित पूर्वज्ञान से भरा हुआ था, तब मुझे केवल यही डर था कि जौहरी को कोई दूसरा ग्राहक न मिल गया हो। मैं लूसीला की प्रसन्नता को देखना चाहता था कि जब मैं उसके हाथ पर दो अति उत्तम गुलाबी मोती रखूँ, जिनकी उसे बड़ी चाहना है और जिनको उसने मेरे बाजू पर झुककर दुकान की खिड़की में घूरा था। ऐसे दो पूर्ण मोती, जो आकार और रंग में एक से हों, ढूँढ़ना कठिन था और मैंने सोचा कि किसी धनी औरत ने पहले ही खरीदकर उन्हें अपनी गहनोंवाली डिबिया में सुरक्षित रख लिया होगा। यदि ऐसा हुआ तो इसका विचार ही मुझे इतना दुःखी कर देगा कि मेरा दिल धड़कने लगेगा। और मैंने राहत की रुकी चेतना को अनुभव किया, जब मैंने दो सुंदर मोती हीरों में जड़े, सफेद मखमल की डिबियों में पड़े देखे, जिसके एक ओर हीरों का हार था और दूसरी ओर सोने के कंगनों का गुच्छा ।

"मुझे पूरी आशा थी कि मेरी भावना के लिए अच्छी कीमत माँगी जाएगी, परंतु जब मैंने पूछा कि वह क्या कीमत लेने को तैयार है तो उसका उत्तर सुनकर मैं विस्मित हो गया। मैंने जो कुछ बचाया था, उससे भी अधिक मुझे उन दो छोटी चीजों में, जो मटर के दानों से बड़ी नहीं थीं, लगाना पड़ेगा। मैं हिचकिचाया, क्योंकि मेरे जैसे साधनोंवाले आदमी का रत्न खरीदना प्रतिदिन का धंधा नहीं था । मुझे संदेह हुआ कि जौहरी कहीं मेरी अज्ञानता से लाभ तो नहीं उठा रहा और इस विश्वास से हास्यास्पद कीमत माँग रहा था कि ऐसी चीजों की कीमत का अंदाजा नहीं लगा सकता था और जब मैं मामले पर विचार कर रहा था, मैंने दुकान की खिड़की से बाहर झाँका और अपने पुराने सहपाठी और उन दिनों के घनिष्ठ मित्र गोनजागा ललोरेंट को देखा। उसके जाने- पहचाने चेहरे को देखना और उसे अंदर बुलाना एक ही विचार था । शोभायमान गोनजागा के अतिरिक्त गुलाबी मोतियों के मामले में अच्छा परामर्श देनेवाला दूसरा कौन हो सकता था; उसे फैशन के मामलों का अच्छा ज्ञान था और वह यह भी जानता था कि संसार में धनी और शिष्टाचारी लोग, जिनमें वह लोकप्रिय है और बहुधा पूछा जाता है, क्या करते थे। मैं उसके आने के लिए कभी उचित रूप से कृतज्ञ नहीं हो सका, क्योंकि वह प्रायः मेरे साधारण घर आया करता था । यह उसके लिए कितना अच्छा था कि हम जैसों का ध्यान रखता था !

"गोनजागा हैरान और प्रसन्न प्रतीत हुआ जब मैं उसे बुलाने के लिए बाहर दौड़ा। वह मेरे साथ जौहरी की दुकान में आ गया। फिर मैंने बताया कि मैं क्या खरीदना चाहता हूँ । उसने गुलाबी मोतियों को सराहा और कहा कि समाज में उसकी जानी-पहचानी धनी औरतें इनको बुंदों की तरह पहनने के लिए कोई भी कीमत दे सकती हैं; ये इसी आशय से छोटे चमकदार चौखटों में जड़े गए हैं। वह मुझे एक तरफ ले गया और कहने लगा कि मोतियों की अद्भुत सुंदरता को देखते हुए जौहरी द्वारा माँगी हुई कीमत अधिक नहीं है। मैं उसके शब्दों से आश्वस्त हो गया और आगे मोल-तोल करने से इस लज्जा से पीछे हट गया कि मेरे पास पर्याप्त रकम नहीं थी। अंत में मैंने गोनजागा के सम्मुख स्वीकार किया कि अपनी पत्नी को उपहार देने के लिए, इन बुंदों को खरीदने के लिए कितना इच्छुक था, परंतु मैं उनका मूल्य नहीं चुका सकता था । गोनजागा ने वही किया जो ऐसी स्थिति में एक मित्र करता है; उसने अपना बटुआ खोला और कुछ बैंक नोट मुझे दे दिए तथा उसी समय हँसा और कसम खाई कि यदि मैं उसकी यह छोटी सी सेवा स्वीकार नहीं करता तो भविष्य में जब भी मुझे मिलेगा तो मेरे टुकड़े करके मार डालेगा। मुझे कितना कष्ट हुआ। मुझे उधार लेने का साहस नहीं हुआ, क्योंकि मैं डरता था उधार उतार भी सकूँगा या नहीं और फिर इतने कीमती बुंदे घर भी नहीं ले जा सकता था जब तक पूरी रकम न चुका देता। अंत में पत्नी को खुश करने की इच्छा जीत गई और मैं इतना प्रसन्न हुआ कि उस सामने घुटनों के बल झुककर उस हाथ को चूमा, जिसने यह अवसर देने योग्य मुझे बनाया था। मैंने गोनजागा को अगले दिन अपने साथ खाने और पत्नी को उपहार देते हुए देखने के लिए आमंत्रित किया और इस समझौते के साथ हम जुदा हो गए। अपनी जेब में डिबिया डाले मैं घर गया और ऐसा महसूस किया कि मेरे कंधों पर पंख लग गए हों ।

"लूसीला साफ-सफाई कर रही थी और बैठक को ठीक- ठाक कर रही थी जब मैं घर लौटा। उसने मेरी ओर देखा और जब मैंने कहा- 'मेरी जेबों को टटोलो, देखो, उनमें क्या है,' तो वह उछली और खुश होकर बच्चों की तरह ताली बजाकर चिल्लाई – 'ओह, मेरे लिए उपहार ! मैं देखती हूँ।' उसने मेरी जेबें उलट-पलट कर दीं और सारा समय मुझे गुदगुदाती रही, जब तक उसका हाथ डिबिया पर नहीं गया। मोतियों को देखकर जिस प्रसन्नता से परिपूर्ण चीख उसने मारी, मैं उसे भूल नहीं सकूँगा । फिर उसने मेरे चेहरे को नीचे खींचा और चुंबनों से यह कहते हुए ढक दिया कि मैं वह सर्वश्रेष्ठ दयालु पति था, जिसको किसी भाग्यशाली औरत ने पाया था । मैं सोचे बिना नहीं रह सका कि उसने उस क्षण मुझसे वस्तुतः प्यार किया। मैंने उसे सोचने दिया कि गुलाबी मोतियों को खरीदना मेरे लिए संभव नहीं था और वह छोटी सी हैरानी आकस्मिक थी । उसकी प्रसन्नता के अपने आनंद में, उसे बुंदों को पहनने के लिए अगले दिन की प्रतीक्षा नहीं कर सका। मैंने उसे सोने के छोटे बुंदों को कान से उतारने के लिए कहा, क्योंकि इस रहस्य को जो गुलाबी मोतियों से बाँध रखा था, बताना नहीं चाहता था- गुलाबी मोती, जिनको उसने इतना चाहा था और जिन्होंने खुशी से उसके कानों को इतना लाल कर दिया था कि लाली उसके सारे शरीर से फूट पड़ी थी। अब मैं उन प्यारी गलतियों के बारे में सोचकर बुरी तरह दु:खी होता हूँ — उफ! मैं उन्हें याद रखना कभी बंद नहीं कर सकूँगा ।

"अगले दिन रविवार था और गोनजागा ने मिलने और खाना खाने का अपना वचन निभाया। हम सभी प्रसन्न थे और यहाँ तक कि अपने आनंद में शोर मचाते थे । लूसीला ने अपनी सबसे अच्छी पोशाक पहनी थी - भूरी सिल्क, जो उसपर फबती थी और उसने अपनी अँगिया में गुलाबी गुलाब लगा रखा था, बिल्कुल उसी रंग का, जिस रंग के उसके कानों में गुलाबी मोती थे । गोनजागा हमारे लिए थिएटर के टिकट लेकर आया था; हमने शाम आनंदपूर्वक गुजारी। अगले दिन मुझे काम पर जाना था और अपने मित्र का उधार, जो उसने मोती खरीदते समय दिया था, चुकाने के लिए, समय से अधिक काम करना था। जब मैं घर लौटा और लूसीला के साथ रात के खाने पर बैठा तो मेरी पहली दृष्टि उसके छोटे बुंदोंवाले कानों पर गई। जब मैंने देखा कि हीरों का एक बुंदा खाली था - गुलाबी मोती वहाँ नहीं था तो मैं उछला और चीख मारी ।

"'क्या तुमने मोती गँवा दिया है ?" मैंने पुकारा।

"'क्या कह रहे हो तुम!" पत्नी ने उत्तर दिया और कानों को अंगुली से छुआ और रत्नों को महसूस किया। जब उसने देखा कि मोती वास्तव में गुम था तो इतनी भयभीत हुई कि मैं भी चौकन्ना हो गया, मोती के कारण नहीं बल्कि लूसीला की मानसिक वेदना को देखकर ! "इतनी चिंता मत करो," मैंने अंततः कहा, "वह यहीं कहीं होगा । आओ, उसे देखते हैं, वह जरूर मिल जाएगा।"

"'हमने हर जगह तलाश किया; कालीन झाड़ा, दरियों को उलटा-पलटा, परदों की तहों का परीक्षण किया, लकड़ी के सामान को हिलाया- डुलाया, यहाँ तक कि लूसीला के उन बक्सों तक को देखा, जिनको उसने महीनों से हाथ नहीं लगाया था। जब हमारी सारी तलाश व्यर्थ गई तो लूसीला बैठकर रोने लगी; मैंने पूछा-

"'क्या तुम आज कहीं बाहर गई थी ?"

"हाँ, ओह हाँ, मैं गई थी," उसने सोचकर उत्तर दिया ।

''गई कहाँ थी, प्यारी ?"

"मैं कई जगह गई थी मैं मैं चीजें खरीदने गई थी ।"

"किन-किन दुकानों पर गई थी ?"

"मैं अब भूल गई हूँ । ओह, हाँ, मैं डाकखाने गई थी और उसी सड़क पर दूसरी जगहों पर भी - मैं स्क्वेयर में कपड़ेवाले और पेरेड पर...और..."

"तुम पैदल गई थी या किसी गाड़ी या फिर बस में ?"

"मैं पहले पैदल गई। फिर मैंने गाड़ी ली।"

'गाड़ी कहाँ की ? क्या तुमने उसका नंबर नोट किया था ?'

"'नहीं, मेरा खयाल है, नहीं किया। ओह, मुझे उसका ध्यान कैसे आता? वह गाड़ी पास से गुजर रही थी और मैं थक गई थी।'" लूसीला ने पुन: रोते हुए कहा ।

"ठीक है, मेरी प्यारी, जरा बुद्धि से काम लो।" वह वस्तुतः मूर्च्छा की स्थिति में थी । 'तुम्हें याद होना चाहिए कि तुम किस-किस दुकान पर गई थी। मैं उन दुकानों पर जाऊँगा और प्रत्येक से पूछताछ करूँगा, यदि तुम उनकी सूची दे दो तो। मैं विज्ञापन भी छपवा दूँगा ।'

"ओह, मैं याद नहीं कर सकती, मुझे शांति से रहने दो।' वह कर्कशता से रोई । और मेरे उपहार के खो जाने के कारण उसके वास्तविक दुःख पर दया करके मैंने आगे पूछना बंद कर दिया ।

“हमने अत्यंत अप्रसन्नता से रात गुजारी। मैं सो नहीं सका और मैंने लूसीला की भी चौकसी की, करवटें लेकर और चोरी-चोरी रोकर तथा नींद का बहाना करके, ताकि मैं व्याकुल न हो जाऊँ। वह चुप रहने में सफल नहीं हुई और इधर मैं सोचे जा रहा था कि मोती का पता कैसे लगाया जाए। मैं जल्दी जाग गया और लूसीला को सोते रहने का इशारा करके, क्योंकि वह अशांत महसूस कर रही थी, मैं अपने अच्छे और बुद्धिमान मित्र गोनजागा ललोरेंटे से परामर्श लेने के लिए गया । मेरा खयाल था कि गुमशुदा चीज के बारे में संभवतः पुलिस कुछ पता लगा सके कि अब वह कहाँ है और मुझे आशा थी कि गोनजागा अपने प्रभाव और अनुभव के कारण इस अत्यंत गंभीर और महत्त्वपूर्ण पूछताछ में संभवत: मेरी सहायता कर सके।

"मेरे मालिक सो रहे हैं," नौकर ने कहा, 'परंतु आप अंदर आ जाएँ, श्रीमान्; यदि आप उसके कमरे में थोड़ी देर प्रतीक्षा करें तो मैं आपको बता दूँगा कि वह आपसे कब मिल सकते हैं। दस मिनट में मैं उसके लिए चाय लेकर जाऊँगा और उसे बता दूँगा कि आप आए हुए हैं।' वह मेरी चिंता और अधीरता को देखे बिना नहीं रह सका ।

"मुझे प्रतीक्षा करने के लिए निर्णय लेना पड़ा। अतः नौकर ने कमरे की झिलमिलियाँ खोल दीं और मुझे अंदर आने को कहा। वहाँ सिगरेट के धुएँ और सुगंधियों की बू थी। मैंने खयाल किया कि प्रतीक्षा करने की बजाय यदि मैं सीधा अपने मित्र के कमरे में चला जाता तो क्या होता ?

"जो हुआ वह यह था कि ज्यों ही रोशनी की पहली किरण ने झिलमिली से प्रवेश किया, जिसको नौकर ने खोला था और पूर्व इसके कि वह मुझे बैठने के लिए कहता, मैंने विलासी टरकिश काऊच के अधोभाग पर नीले कपड़े के ऊपर बिछाई गई सफेद रीछ की खाल के महीन रोवों में कोई चमकदार वस्तु देखी । यह वही खोया हुआ गुलाबी मोती था !"

“उस समय उसे देखकर जो मेरे मन पर गुजरी, यदि तुम्हारे मन पर गुजरती और यदि तुम मुझसे पूछते कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए तो मैं वास्तव में अत्यंत निष्कपटता से कहता—तुम्हें काऊच के ऊपर प्रदर्शित विजय - चिह्न से तलवार लेकर और विश्वासघाती के कमरे में घुसकर आश्वस्त हो लेना चाहिए कि वह कभी न जागे-सो जाए हमेशा के लिए!

" परंतु क्या तुम जानते हो कि मैंने क्या किया। मैंने झुककर मोती को उठा लिया और अपनी जेब में डाल लिया; उसके घर को चुपके से छोड़कर मैं अपने घर आ गया। मेरी पत्नी जाग चुकी थी और कपड़े पहन रही थी, परंतु बहुत अधीर प्रतीत हो रही थी । मैं खड़ा उसको देखता रहा और मैंने उसका गला नहीं दबाया, बल्कि शांत भाव से उसे बुंदे पहनने के लिए कहा। फिर मैंने अपनी जेब से मोती निकालकर अपनी अंगुलियों में थामा और कहा, 'यह यही है, जिसको तुमने गँवा दिया था और इसको ढूँढ़ने में मुझे देर नहीं लगी।'

"फिर एकाएक मुझे अंधे तीव्र क्रोध ने दबोच लिया और मैं चला गया जैसे बदले की भावना से पागल हो गया था। मैं उसकी ओर झपटा, कानों के बुंदों को झटका दिया और अपने पाँव के नीचे कुचल डाला; मैंने उसकी हत्या नहीं की; मैं नहीं जानता कि क्यों; परंतु मैं सीढ़ियाँ उतरकर पासवाले शराबखाने में गया और एक गिलास ब्रांडी के लिए कहा।

"क्या मैं पुनः कभी लूसीला को मिला ? हाँ, एक बार वह एक आदमी के बाजू पर झुकी हुई थी जो गोनजागा नहीं था और मैंने देखा कि उसके बाएँ कान का लटका हुआ भाग घाव के निशान से कुरूप हो गया था जैसे उसको बीच में से झटका दिया गया हो। इसमें संदेह नहीं कि यह मेरा ही काम था, भले ही अब मुझे याद नहीं कि यह मैंने ही किया था!"

(अनुवाद: भद्रसेन पुरी)

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