गुल मुस्सबर की पहेली : पंजाबी लोक-कथा

Gul Mussabar Ki Paheli : Punjabi Lok-Katha

एक समय की बात है कि एक राजा बहुत ही सूझवान् और विद्वान् था। उसके चार छोटे पुत्र थे। एक बार वह राजा बीमार पड़ गया। उसके उपचार के लिए बड़े-बड़े हकीम और वैद्यराज बुलाए गए, परन्तु उसे कोई लाभ नहीं हुआ। अब राजा को लगा कि उसका अन्तिम समय निकट ही है। उसने अपने चारों पुत्रों को अपने पास बुलाया और कहा, "मृत्यु का कोई इलाज नहीं हुआ करता। यह संसार एक सराय है। अब मेरे बचने का कोई उपाय नजर नहीं आ रहा। मैं तुम्हें जाते-जाते यह शिक्षा देना चाहता हूँ कि तुम तीन दिशाओं में शिकार खेलने के लिए जाना, परन्तु भूल से कभी भी चौथी दिशा में कभी मत जाना।” यह कहकर राजा ने दम तोड़ दिया।

सारे राज्य में एक शोक की लहर दौड़ गयी और हाहाकार मच गया। समय व्यतीत होने पर राजा के चारों पुत्र बड़े हो गए। सबसे बड़ा बीस वर्ष का था। उसने सिंहासन संभाल लिया। उन चारों भाइयों का आपस में बहुत प्यार था। वे जो भी काम करते, बड़े भाई की सलाह के साथ करते थे और वे जब भी शिकार खेलने के लिए जाते तो भी साथ ही जाते थे, कभी अकेले नहीं जाते थे।

एक दिन चारों भाई शाही पोशाक पहनकर सुन्दर घोड़ों पर सवार होकर , अपने हाथों में तीर-कमान और शस्त्र लेकर शिकार खेलने के लिए गए। वे तीनों दिशाओं में घूमते रहे, परन्तु उस दिशा में उन्हें कोई शिकार नहीं मिला। अब खाली हाथ घर वापस जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा। इसलिए अब राजकुमारों ने चौथी दिशा, जो शेष रह गई थी, में जाने का फैसला किया। बड़े भाई ने अपने पिताजी की अन्तिम समय में प्रदान की गई शिक्षा का स्मरण कराया, और चौथी दिशा में जाने से रोका। परन्तु जब तीनों भाइयों ने हठ किया, तो उसे भी मानना पड़ा।

अब चारों राजकुमार चौथी दिशा में शिकार खेलने के लिए चल पड़े। वे जंगल में घूम रहे थे, परन्तु उन्हें कोई भी शिकार नज़र नहीं आ रहा था। जंगल में उनको एक मड़होला महल दिखाई दिया। वे सब भाई सोचने लगे कि हमें इस महल का पता करना चाहिए। उन्होंने सबसे छोटे भाई से कहा कि, "हम वृक्ष के नीचे बैठते हैं, तुम उस महल का पता करके आओ कि यह किसका है ?" सबसे छोटा राजकुमार पाँच कपड़े, पाँचों हथियार लेकर घोड़े पर सवार होकर उस मड़होले के पास पहुँचा। वे मड़होले के चारों तरफ घोड़ा लेकर घूमा, परन्तु उसको उस महल का कोई दरवाज़ा दिखाई नहीं दिया। इतने में वह क्या देखता है कि एक सूखे वृक्ष के नीचे लगभग अस्सी पचासी वर्ष की एक बुढ़िया बैठी हुई है और अपनी ही धुन में चरखा कात रही है। उसके पास एक बहुत बड़ी ढोल और डग्गा पड़ा था। राजकुमार घोड़े से उतरकर बुढ़िया के पास गया और पूछने लगा, “बुढ़िया माई ! इस मड़होले महल का दरवाज़ा किधर है।” माई ने नम्रता से उत्तर दिया, “बेटा ! यह रही ढोल और डग्गा, ढोल पर डग्गा लगा दो, सब पता चल जाएगा। राजकुमार ने घोड़े को वृक्ष से बाँधा और डग्गा पकड़कर ढोल पर लगा दिया। डग्गा बजते ही मड़होले महल के चारों ओर के दरवाजे खुले हुए दिखाई देने लगे। राजकुमार एक दरवाज़े से भीतर गया तो क्या देखता है कि सुन्दर हीरों और मोतियों के हार थे। रानी कब मिली? राजकुमार उसे देखते ही मोहित हो गया। रानी उसको देखकर हँसने लगी।

रानी ने राजकुमार का आदर किया और अपने पास पलंग पर ही बिठा लिया। रानी को देखकर राजकुमार सब कुछ भूल गया। वह रानी को पूछने लगा, “तुम कौन हो?” रानी ने बड़ी ही सुन्दर और मनमोहक अदा से जबाव दिया, "मैं एक राजकुमारी हूँ। मेरा अभी तक विवाह नहीं हुआ है। मैं उस राजकुमार से विवाह करूँगी, जो मेरी पहेली का उत्तर देगा।" राजकुमार ने कहा, "राजकुमारी ! मैं एक राजकुमार हूँ। अब तुम मुझे यह बताओ कि तुम्हारी पहेली क्या है ? मैं विश्वास दिलाता हूँ कि मैं अपना पूरा प्रयत्न करूँगा, जिससे मैं आपकी पहेली का उत्तर दे सकूँ।” रानी ने कहा, "मेरी एक शर्त है यदि तुमने मेरी पहेली को हल कर दिया तो, तुम मुझे विवाह करके ले जाना, परन्तु यदि तुमसे मेरी पहेली हल नहीं हुई, तो मैं अपनी तलवार से तुम्हारा सिर काट दूंगी।" राजकुमार उसके सौन्दर्य पर मुग्ध था ही, इसलिए उसने रानी की बात बिना किसी प्रकार की सोच-विचार किए मान ली, और न ही इस बात के बारे में अपने भाइयों को ही बतलाया।

रानी ने पहेली पाई, “बताओ, गुल ने मुस्सबर के साथ क्या किया और मुस्सबर ने गुल के साथ क्या किया ?" राजकुमार ने बहुत प्रयत्न किया, परन्तु वह इस पहेली का कोई हल न निकाल सका। रानी की पहेली को न सुलझा पाने के कारण और अपनी पराजय को स्वीकार करते हुए राजकुमार ने रानी के आगे घुटने टेक दिए। रानी ने अपनी शर्त के अनुसार म्यान में से तलवार निकाल कर राजकुमार का सिर काट दिया। राजकुमार का सिर कटते ही मड़होले महल का दरवाज़ा पहले की तरह ही बन्द हो गया।

छोटा राजकुमार मारा गया। उसके तीनों भाई उसकी प्रतीक्षा करते रहे। अन्त में उसके बड़े भाई ने कहा, "मैं पता लगाता हूँ।” अतः बड़ा राजकुमार भी घोड़े पर सवार होकर मड़होले महल के चारों ओर घूमने लगा, परन्तु मड़होले महल का उसको कोई दरवाज़ा नहीं मिला। उसने एक तरफ अपने भाई का घोड़ा बँधा हुआ देखा और निकट ही चरखा कातती हुई उस बुढ़िया को देखा। उसने शीघ्रता से उससे पूछा, “मेरा राजकुमार भाई अपना घोड़ा बाँधकर कहाँ चला गया ?" उस बुढ़िया ने उत्तर दिया, "वह पड़ा है ढोल और वह पड़ा है डग्गा । ढोल पर डग्गा लगा दो, तुम्हें सब कुछ पता चल जाएगा।"

जब राजकुमार ने ढोल पर डग्गा लगाया, तो पहले की तरह मड़होले के दरवाज़े अपने आप खुल गए। वह रानी के पास गया। रानी ने फिर से वही पहेली दोहराई। राजकुमार से वह पहेली सुलझाई न गई। इस प्रकार अपनी शर्त के अनुसार रानी ने उसका भी तलवार से सिर काट दिया।

जब दूसरा राजकुमार भी न आया, तो तीसरा राजकुमार जो बड़े भाई से छोटा था, अपने भाइयों का पता लगाने के लिए घोड़े पर सवार होकर मड़होले महल की तरफ चल पड़ा। उसने भी बुढ़िया के कहने पर ढोल पर डग्गा मारा। रानी के पास गया, उससे भी रानी की पहेली सुलझाई न गई और रानी ने उसका वध कर दिया।

जब तीनों राजकुमारों में से कोई भी वापस नहीं आया, तो सबसे बड़ा राजकुमार बड़ा हैरान हो गया और घोड़े पर सवार होकर मड़होले महल की तरफ चल पड़ा। उसने वहाँ तीन घोड़े बँधे देखे और एक बुढ़िया को चरखा कातते हुए देखा। उसने शीघ्रता से उस माई से पूछा, "बुढ़िया माई ! इन घोड़ों के सवार, मेरे भाई कहाँ हैं ? जल्दी बतलाइए।" बुढ़िया ने पहले की तरह ढोल पर डग्गा लगाने के लिए कहा। राजकुमार ने डग्गा नहीं लगाया और अपने मन-ही-मन सोचा कि ज़रूर यह कोई धोखा है। उसने डग्गा पकड़कर बुढ़िया के कँधों पर दो-चार लगा दिये और उसकी चोटी पकड़कर बड़े राजसी भरे अन्दाज़ में कहा, “जल्दी बतलाओ कि राजकुमार कहाँ हैं ? नहीं तो मैं तुम्हें मार दूंगा। बुढ़िया ने काँपती हुई थिरकती-सी आवाज़ में कहा, "बेटा ! इस मड़होले महल में एक जादूगरनी रानी रहती है। वह आए हुए राजकुमार से एक पहेली पूछती है यदि राजकुमार उस पहेली को हल नहीं कर पाता है तो वह उसके सिर को अपनी तलवार से काट देती थी। अब राजकुमार ने समझ लिया कि मेरे भाई मारे गए हैं। उसने बुढ़िया को और मारा-पीटा और जान से मारने की धमकी देकर पूछा, 'बुढ़िया ! यदि तुम्हें अपने प्राण प्यारे हैं, तो बताओ कि वह पहेली क्या है ? अपनी जान सभी को प्यारी होती है रोती हुई बुढ़िया ने कहा, “रानी की पहेली यह है : गुल ने मुस्सबर के साथ क्या किया और मुस्सबर ने गुल के साथ क्या किया ? राजकुमार ने आँखें निकाल कर बुढ़िया से पूछा, 'इसका हल क्या है ? बुढ़िया ने कहा, “बेटा ! चाहे तुम मुझे मार डालो, चाहे मेरी जान बख्श दो, जितना मुझे पता था, उतना मैंने तुम्हें बता दिया। इसका हल तो मुझे भी नहीं पता है। अब राजकुमार ने पूछा, “इस पहेली का हल कहाँ से पता चल सकता है ? बुढ़िया माई ने कहा, “दक्षिण दिशा में चार सौ कोस दूर गुल नामक राजा राज्य करता है। इस पहेली का हल उससे ही पता चल सकता है।"

राजकुमार ने उसकी बात मान ली। उसने अपने भाइयों के घोड़ों को जंगल में चरने के लिए छोड़ दिया और स्वयं घोड़े पर सवार होकर गुल नामक राजा के शहर को चल पड़ा। गम और उदासी से भरा हुआ वह राजकुमार अपने भाइयों का विलाप करता हुआ, अपने ही विचारों में मग्न कई-कई रात और दिन लगातार चलता रहा। एक दिन थककर राजकुमार आराम करने के लिए एक वृक्ष के नीचे लेट गया और घोड़े को चरने के लिए छोड़ दिया। बहुत दिनों से नींद ना लेने के कारण उसे लेटते ही नींद आ गई। थोड़े समय के उपरान्त चीं-चीं की आवाज़ आई, तो राजकुमार की आँख खुल गईं। राजकुमार हड़बड़ाकर उठा तो देखता है कि एक सराल एक वृक्ष पर चढ़ रहा है और वृक्ष पर हंस और हंसनी के बच्चे सराल से डरते हुए चीं-ची कर रहे हैं। राजकुमार ने तलवार म्यान में से निकाली और सराल के टुकड़े-टुकड़े करके ढेर लगा दिया और स्वयं चादर ओढ़कर सो गया।

जब हंस और हंसनी बच्चों के लिए दाना लेकर आए, तो बच्चों ने खाना नहीं खाया। हंस और हंसनी ने बच्चों को पूछा, “तुम दाना क्यों नहीं खा रहे हो ?" बच्चों ने कहा, “पहले तुम वृक्ष के नीचे सो रहे अतिथि को खाना तो खिलाओ, जिसने सराल को मारकर हमारी जान बचाई है। जब हंस और हंसनी ने टुकड़े-टुकड़े हुए सराल को देखा तो उन्होंने सोचा कि यदि यह मुसाफ़िर इस सराल को न मारता तो हमारे सभी बच्चों को इसने खा जाना था। इसने हमारे बच्चों की जान बचाई है, इसलिए हमें इसकी सेवा करनी चाहिए।

उन्होंने मुसाफ़िर के पाँव के तलवे को मल कर जगाया और हंस ने कहा, “तुमने हमारे बच्चों की जान बचाई है। हम तुम्हारे लिए भी कुछ भी करने को तैयार हैं। यदि तुम हमारी जान भी माँगोगे, तो हाजिर है जो कुछ तुमने माँगना है, माँग लो।" राजकुमार ने कहा, "मैं एक दुःखी राजकुमार हूँ। मैं गुल नामक राजा के पास एक पहेली पूछने के लिए जा रहा हूँ क्या तुम मेरी सहायता कर सकते हो ?" हंस ने अपने शरीर के बाल उखाड़ कर राजकुमार को देते हुए कहा, "जब कभी तुम्हें कोई विपत्ति आए, तो मेरे शरीर के बालों को आग में डाल देना। जब इनको आग लगेगी, तो मेरा शरीर जलने लगेगा और मैं उसी पल तुम्हारे पास पहुँच जाऊँगा। यदि उस समय मैं तुम्हारी कोई सहायता न कर सका, तो जान देकर भी करूँगा।"

राजकुमार ने बालों को सँभाल कर रख लिया और अपने घोड़े पर सवार होकर चलते-चलते गुल नामक राजा के दरबार में हाजिर हो गया। राजकुमार ने राजा के सामने फ़रियाद की, “महाराज ! मैं आपके पास अपना राज-पाट, घर-बार छोड़कर एक पहेली पूछने के लिए आया हूँ।" राजा ने पूछा, “बोलो क्या पहेली है ? राजकुमार ने कहा, "मैं पूछना चाहता हूँ कि गुल ने मुस्सबर के साथ क्या किया और मुस्सबर ने गुल के साथ क्या किया ?" यह सुनकर गुल राजा ने कहा, “ऐ खुदा के बन्दे ! मैं तुम्हें इस पहेली का हल तो बता दूंगा, परन्तु बताने के उपरान्त तुम्हारा सिर तलवार से काट लूँगा। बताओ, तुम्हें मंजूर है ?” राजकुमार ने तुरन्त उत्तर दिया, “महाराज ! मुझे मंजूर है।"

राजपाट के काम के पश्चात् गुल राजा ने सभी दरबारियों को भेज दिया और राजकुमार को अपने पास बुला लिया और कहा, "सुनो, खुदा के बन्दे ! मैं तुम्हें गुल और मुस्सबर की कहानी सुनाता हूँ।"

“गुल तो मेरा नाम है और मेरी रानी का नाम है, मुस्सबर । एक दिन मध्य रात्रि हुए मुझे अचानक ही जाग आ गई, तो मैंने रानी का पलंग खाली देखा। मैं बड़ा हैरान और परेशान हुआ, परन्तु मैंने दिन में भी रानी को कुछ न पूछा। दूसरे दिन मैं जानबूझकर खराटे मारने लग गया। रानी ने शृंगार किया चूरी से भरा बर्तन लेकर अँधेरी रात में महल में से निकल गई। मैं भी तलवार लेकर दबे पाँव उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। लोंगी नामक कुतिया भी मेरे पीछे चल पड़ी। रानी शहर के बाहर एक साधु की कुटिया में चली गई। मैं छुपकर कुटिया के बाहर बैठ गया। रानी के अन्दर जाते ही साधु ने उसे भांग घोटने वाली दो-तीन मगलियाँ उसके कँधों पर मारे और रोब से कहा, "तुम्हारी ऐसी की तैसी, तुमने इतनी देर क्यों कर दी। इसी पल मेरी कुटिया से बाहर निकल जाओ।" रानी ने हाथ जोड़कर कहा, "मैं आगे से ऐसी गलती नहीं करूँगी।"

मुझे यह सुनकर बहुत क्रोध आया और मैंने साधु पर तलवार से वार किया। साधु ने तलवार का वार मोगली के द्वारा रोक दिया और मेरे साथ लड़ने लगा। मैं साधु से शक्तिशाली था। मैंने उसे नीचे गिरा दिया। परन्तु रानी मुस्सबर ने मेरी टांग खींचकर मुझे धकेल दिया। अब साधु मेरे नीचे से निकल कर मेरी छाती पर चढ़ बैठा। जब वह मुझे मार डालने लगा, तो मैंने शोर मचाया। मेरे साथ मेरी लौंगी कुतिया थी। उसने अपनी वफादारी का प्रमाण देते हुए अपने तीखे दांत साधु की टांग पर गढ़ा दिए। मैंने साधु के नीचे से निकल कर दूर पड़ी हुई तलवार पकड़कर साधु का सिर धड़ से अलग कर दिया।

स्त्रियों पर तलवार से वार करना वीरों को शोभा नहीं देता। इसलिए मैंने उसी पल रानी को आदेश दिया, "हे रानी ! मेरे राज्य से बाहर निकल जाओ। मैं इसी वक्त तुम्हें छोड़ रहा हूँ। अपनी बात सुनाते हुए गुल राजा की आँखें लाल हो रही थीं और उसने कहा, "मुसाफिर ! यह है, जो गुल ने मुस्सबर के साथ किया और मुस्सबर ने गुल के साथ क्या किया? यह मैं तुम्हें फिर सुनाऊँगा। अब तुमने जो खाना-पीना है, खा-पी लो। तुम परदेसी हो। तुम्हारा सिर मैंने काट लेना है।" राजकुमार ने कहा, "मैंने कुछ नहीं खाना है, परन्तु मेरे दिल में एक इच्छा है कि मैं आपके महलों पर चढ़कर नया हुक्का, नयी चिलम, नयी नड़ी और नई टोपी में कोयलों की आग अच्छी तरह से चिलम भरकर रखी हो, और हुक्का भरकर मुझे दिया जाए तो मैं जाते समय दो घूँट उसके ले लूँ।" गुल राजा मान गया उसने आज्ञा देकर नया हुक्का तैयार करवाया और राजकुमार ने महलों पर चढ़कर हुक्का पीना आरम्भ कर दिया और अपनी पगड़ी में बाँधे हुए हंस के शरीर के बाल टोपी की आग में डाल दिए। दूर बैठे हुए उस हंस के शरीर को सेंक लगा तो वह तेज़ी से उड़ता हुआ महल में राजकुमार के समक्ष आ गया।

उसने राजकुमार को कहा, “तुम्हें क्या विपत्ति आ गई है ?" राजकुमार ने कहा, “क्या तुम मुझे यहाँ से ले जा सकते हो तो ले जाओ।" हंस ने उसे शीघ्रता से अपनी पीठ पर बिठाया और वहाँ से उड़कर महल से बहुत दूर जंगल में पहुंच गया। गुल राजा उसका मुँह ताकता ही रह गया। उसका कोई जोर न चल सका। राजकुमार के कहने पर हंस ने राजकुमार को मड़होले के पास जाकर उतारा और नमस्कार करके वापस चला गया।

राजकुमार उस चरखा कातती हुई बुढ़िया के पास गया और कहा, "बताओ कहाँ है ढोल और कहाँ है डग्गा ?” बुढ़िया ने ढोल और डग्गे की तरफ इशारा किया। राजकुमार ने जोर से ढोल को खटकाया तो मड़होले के दरवाजे खुल गए और राजकुमार भीतर चला गया। रानी ने शिकार को कहा यदि तुम इस पहेली को हल करते हो तो तुम मुझसे विवाह कर लेना नहीं तो मैं तुम्हारा सिर कलम कर दूँगी, परन्तु राजकुमार ने कहा, "मुझे यह शर्त मंजूर नहीं है। मेरे घर पहले से ही रानियाँ हैं। मुझे विवाह की ज़रूरत नहीं है। मैं तो सिर की बाजी लगाना चाहता हूँ। यदि मुझसे पहेली हल न हुई तो तुम मेरा सिर तलवार से काट देना, नहीं तो मैं तुम्हारा सिर कलम कर दूंगा। रानी ने सोचा कि गुल मुस्सबर की कहानी का इसे क्या पता हो सकता है ? इसका पता तो मुझे अथवा मेरे पति गुल राजा को ही है। रानी ने पहेली बताई कि बताओ गुल ने मुस्सबर के साथ क्या किया और मुस्सबर ने गुल के साथ क्या किया ?

राजकुमार ने गुल राजा से सुनी हुई कहानी को सुनाया और कहा, "गुल राजा की रानी मुस्सबर, रात को चोरी से साधु की कुटिया में गयी। राजा ने उसका पीछा किया। गुल राजा ने साधु को मारना चाहा, परन्तु मुस्सबर ने राजा के नीचे आए साधु को बचाने के लिए गुल की टांग खींचकर साधु का साथ दिया, जिससे साधु ने गुल राजा को दबोच लिया परन्तु गुल की लौंगी नामक कुतिया ने साधु की टांग पर तीखे दाँत गाढ़ कर गुल को छुड़ा लिया। गुल राजा ने तलवार के साथ साधु के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और मुस्सबर को छोड़ दिया। इस प्रकार रानी मुस्सबर ने गुल को साधु से मरवाना चाहा और गुल ने मुस्सबर को छोड़ दिया और उसके प्यारे साधु को मार दिया।

इतनी बात बताकर राजकुमार ने म्यान से तलवार निकाल ली। उसके दिल में अपने भाइयों का प्रतिशोध लेने के लिए क्रोध भर गया और उसने कहा, "पापिन रानी ! मैं अब तुम्हारा सिर काटने लगा हूँ। तुम जादूगरनी हो। वास्तव में बताओ कि तुम कौन हो?" अब रानी के पाँव के नीचे से ज़मीन खिसक गई। वह पलंग से नीचे उतर धरती पर खड़ी होकर काँपने लगी। अपने सिर पर लटकती हुई तलवार को देखकर उसके आँसू बहने लगे। आज उसे अपने सभी गुनाह स्मरण होने लग पड़े। उसने काँपती हुई आवाज़ में कहा, "राजकुमार ! मैं ही मुस्सबर हूँ। तुम मुझे जिन्दगी बख्श दो।" अब राजकुमार ने गरज कर कहा, "पापिन रानी ! तुमने जितनों का सिर काटा है, उन सब को जीवित कर दो।"

अब घबराई हुई रानी ने सोचा, शायद मुझ पर तरस आ जाए। ऐसा मन में सोचकर उसने जितने भी राजकुमारों के सिर काटकर उनके धड़ और सिर कुएँ में गिरा दिये थे, उन सबको जीवित कर दिया। राजकुमार के तीनों भाई भी जीवित हो गए। अन्त में उस राजकुमार ने तलवार से रानी का सिर काट दिया।

रानी मुस्सबर के सिर काटते ही वह देखते हैं कि न तो वहाँ कोई मड़होला महल है और न ही कोई चरखा कातती हुई बुढ़िया है और न ही कहीं कोई ढोल और डग्गा था।

साभार : डॉ. सुखविन्दर कौर बाठ

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