Gufavaasi (Hindi Story) : Ramdhari Singh Dinkar

गुफावासी (कहानी) : रामधारी सिंह 'दिनकर'

मेरे हृदय के भीतर एक गुफा है और वह गुफा सूनी नहीं रहती। आरंभ से ही देखता आ रहा हूँ कि उसमें एक व्यक्ति रहता है, जो बिलकुल मेरे ही समान है।
और जब मैं उसके सामने जाता हूँ मेरी अक्ल गायब हो जाती है और मैं उसे यह कहकर बहला नहीं सकता कि मैंने छिपकर कोई पाप नहीं किया है और जो मलिन बातें हैं, उनके लिए मुझमें लोभ नहीं जागा है।
और इस गुफावासी के सामने जाते ही ऐसा भान होने लगता है, मानो, मेरा बदन चमड़ी नहीं, शीशे से ढँका हो और वह शीशे के भीतर की सारी चीजों को देख रहा हो।
और वह हाथ उठाकर कोई दंड नहीं देता, फिर भी, मेरी रगें दुखने लगती हैं और प्राण बेचैन हो जाते हैं।
और मैं कभी यह भी नहीं कह पाता कि यह काम मैंने तुम्हारी सहमति से किया है, क्योंकि उसके सामने होते ही मेरी सभी इन्द्रियाँ मेरे खिलाफ हो जाती हैं और वे इस गुफावासी की ओर से गवाही देने लगती हैं।
और एक दिन इस गुफावासी ने मुझे कहा कि देख, ऐसा नहीं है कि तू कोई और, और मैं कोई और हूँ।
मैं तेरी वह मूर्ति हूँ, जो स्फटिक से बनायी गयी थी। किन्तु तू जो-जो सोचता है उसकी छाया मुझ पर पड़ती जाती है तू जो-जो करता है, उसका क्षरित रस मुझ पर जमता जाता है। और जन्म-जन्मान्तर में रस के इस क्षरण से और विचारों की इस छाया से मुझ पर परतें जम गयी हैं।
इसलिए, अब ऐसा कर कि नयी परतें जमने न पायें और पुरानी परतें भी छूट जाएँ। क्योंकि स्वर्ग और नरक भले ही न हों, किन्तु, जन्म-जन्मान्तर की यह यात्रा स्वयं भारी विपत्ति है और परतों के बोझ को लेकर एक जन्म से दूसरे जन्म तक उड़ने में काफी मशक्कत पड़ जाती है।

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