गुड़िया (कश्मीरी कहानी) : अमर मालमोही

Gudiya (Kashmiri Story) : Amar Malmohi

बड़ी बी को कई दिन तक भूखा देखकर एक पड़ोसन को उस पर दया आई और उसने उसे मुट्ठी-भर अनाज दान में दिया। बड़ी बी ने अनाज साफ किया और उसे हँडिया में पकाने लगी। साथ ही साग के दो-चार पत्ते और चुटकीभर नमक भी हँडिया में डाला। थोड़ी ही देर में खिचड़ी पककर तैयार हो गई जिसकी महक से बड़ी बी की भूख और तेज हो गई। लेकिन ज्योंही उसने खाने की नीयत से बरतन में हाथ डाला, बाहर से किसी जोगी ने आवाज दी-“अलख निरंजन!"

बड़ी बी खिचड़ी का बरतन हाथ में लेकर बाहिर आई। उसके सामने एक सम्मोहक और तेजस्वी जोगी खड़ा था। वह भी शायद भूखा था और इसीलिए सारी खिचड़ी तुरंत चट कर गया। फिर भरपेट पानी पीकर उसने बड़ी बी की ओर दृष्टि डाली। बड़ी बी ने उसके चरण थाम लिये। जोगी ने मुस्कराकर झोली में हाथ डाला और उसमें से एक छोटी-सी सुन्दर गुड़िया निकाली। गुड़िया बड़ी बी के हाथ में देकर वह खुद जाने कहाँ चला गया।

गुड़िया हाथ में लेते ही बड़ी बी का मन मस्त हो गया और वह सारी भूख-प्यास भूल गई। परन्तु अचानक यह क्या हुआ? गुड़िया तत्काल बढ़ने लगी और देखते-ही-देखते एक प्यारी-सी सुन्दर लड़की में बदल गई। तनिक हैरान, तनिक परेशान, तनिक भयभीत और तनिक प्रसन्न होकर बड़ी बी आँखें गड़ाकर जीवित गुड़िया को निहारने लगी। तभी मुर्गे ने बांग दी और गड़िया के मुख से भी आवाज निकली-“बड़ी बी!"

बड़ी बी ने कुछ नहीं कहा। बस उसे पूर्ववत् निहारती रही।
“बड़ी बी, मैं तुम्हारी बेटी हूँ।" गुड़िया ने हँसते-हंसते कहा और उसके मुख से फूल बरसने लगे-भाँति-भाँति के रंग-बिरंगी महकते फूल। बड़ी बी की सारी झोंपड़ी सुगंध से सराबोर हो गई।
"बड़ी बी!" गुड़िया बोली-“तुम्हारी सारी गरीबी अभी दूर हो जाएगी। उठो और ये फूल बेचने के लिए हाट में ले जाओ।"

बात बड़ी बी की समझ में नहीं आई। फिर भी उसने फूल समेटकर टोकरी में भरे और हाट की ओर चल पड़ी। ऐसे निराले और इस तरह महकते फूल देखकर लोग हैरान हो गए। बड़ी बी के सारे फूल देखते-देखते अच्छे दामों में बिक गए। सभी बड़ी बी के फूलों की बड़ाई करने लगे और धीरे-धीरे उनकी चर्चा चारों ओर होने लगी। वह इसलिए कि ये फूल केवल सुंदर और सजीले ही नहीं थे, बल्कि गरमी के मौसम में लू की लपटों में भी ये ताजा रहते थे। महक भी जैसी की तैसी रहती थी। अब बड़ी बी झोंपड़ी छोड़कर नई कमाई से बनवाए एक छोटे मकान में रहने लगी। गुड़िया ने उसे इस नई कमाई के बारे में किसी से कुछ कहने से पहले ही मना किया था, इसलिए वह इस बारे में चुप रहती थी।

फूलों की मांग बढ़ने से बड़ी बी ने एक तो फूलों के भाव बढ़ा दिए और दूसरे वह गुड़िया को ज्यादा से ज्यादा हँसाने की कोशिश करने लगी ताकि उसके मुख से ज़्यादा से ज्यादा फूल बरसें और ज्यादा से ज्यादा धन पाकर वह अपनी सारी इच्छाएं पूरी करे। उसके मन की बात ताड़कर एक दिन गुड़िया ने उससे कहा-बड़ी बी! अगर तुम ज्यादा लालच करोगी तो मैं कभी नहीं हँसूंगी।"

बड़ी बी बोली- हँसना अपने बस में नहीं होता, बेटी! मैं तरह-तरह की एक से बढ़कर एक गुदगुदाने वाली कहानियाँ सुनाकर तुझे हँसाती रहूँगी और तेरे मुँह से ढेर सारे फूल झरते रहेंगे।'
“यह अच्छी बात नहीं है।" गुड़िया ने कहा।
"क्यों नहीं? मैं राजमहल से भी बड़ा महल बनाऊँगी और काफी धन इकट्ठा करके देवलोक के किसी राजकुमार के साथ तेरा विवाह रचाऊँगी।"

गुड़िया हँसने लगी। इतना हँसने लगी कि उसकी आँखें तर हो गई और उनमें आँसू की बूंदें तैरने लगीं। बड़ी बी हैरान हो गई। तभी आँसू की एक बूँद आँख से टपककर नीचे जमीन पर गिर पड़ी और मोती के एक दाने में बदल गई। बड़ी बी ने ज्यों ही मोती उठाया, गुड़िया ने उससे कहा-“बड़ी बी! अब तुम्हारे पास बहुत धन है। यह अनमोल मोती है। इसे बेचने से तुम्हें सोने की सात लाख मोहरें मिलेंगी जिनसे तुम अपने सपनों का राजमहल आसानी से बनवा सकोगी।"
“अच्छा तो रोने पर तेरी आँखों के आँसुओं के बदले मोती टपकते हैं?"

गुड़िया ने बड़ी बी की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह हँसती रही और फूल झरते रहे।
देखते-देखते बड़ी बी नगर की सबसे बड़ी धनवंती बन गई और गली-गली उसके बारे में चर्चा होने लगी। वह भी अब गुड़िया को हंसाने के बजाय उसे रुलाने की कोशिश करने लगी। मगर गुड़िया केवल हंसती रही।

इधर राजा को उसके गुप्तचरों ने सूचित किया कि बड़ी बी को जाने कहाँ से अचानक बहुत सारा धन प्राप्त हुआ है। राजा ने बड़ी बी को दरबार में बुलवाकर उससे इस बारे में पूछताछ की। बड़ी बी ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। राजा के हुक्म से उसे बंदी बनाया गया और चेतावनी दी गई कि यदि वह सारी बातें सच-सच नहीं बताएगी तो उसे फाँसी दी जाएगी और उसकी सारी जायदाद जब्त की जाएगी।

बड़ी बी को जब लगा कि मौत उसके सामने खड़ी है तो उसने राजा को बता ही दिया कि उसकी एक लड़की है जो हँसती है तो मुख से फूल झरते हैं और रोती है तो आँखों से मोती टपकते हैं। उन्हीं ढेर सारे फूलों और चंद-एक मोतियों को बेचकर उसने अपनी सारी सम्पत्ति हासिल की है।

बड़ी बी की बात सुनकर राजा खुश हुआ। उसने कोतवाल को भेजकर गुड़िया को भी दरबार में बुलवाया। ज्चोंही गुड़िया दरबार में हाजिर हुई, राजा ने उसे रोने का हुक्म दिया। लेकिन गुड़िया रोई नहीं, उलटे राजा की मूर्खता पर हंसने लगी। वह इतना हंसी कि सारा दरबार फूलों से भर गया। मगर राजा को फूलों में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसने फूलों को पैरों से रौंद डाला और गुड़िया के कोमल गालों पर दो-चार थप्पड़ जड़ दिए। वह रोने लगी।

उसकी आँखों से आंसू ही आँसू टपकने लगे. मोती नहीं। सभी स्तब्ध रह गए। क्रुद्ध राजा ने बड़ी बी को झूठ बोलने के लिए फाँसी पर लटकाए जाने का हुक्म दिया।

कोतवाल राजा के आदेश का पालन करने जा ही रहा था कि दूर से 'अलख निरंजन' का नाद सुनाई दिया। अचानक एक जोगी प्रकट हुआ और उसने गुड़िया को गोद में उठा लिया। राजा सिपाहियों को डाँटने लगा- "इस कुरूप जोगी को किसने भीतर आने दिया? राजदरबार में इसका क्या काम राजा की बात सुनकर जोगी हँसने लगा। राजा ने पूछा- “मुर्ख जोगी. हँसते क्यों हो? लगता है तुम्हें राजदरबार के कायदे-कानून मालूम नहीं।"

“अरे ओ अहंकारी, न ही तेरा यह दरबार कोई राजदरबार है और न ही तू कोई राजा है। तू निरा मूर्ख है और इसीलिए तुझे मोती फूलों से अधिक प्यारे हैं। इतना कहकर जोगी चलने लगा।

"महाराज!" बड़ी बी ने जोगी से विनती की-"कृपा करके राजा को बताइए कि मेरा कहना झूठ नहीं था कि रोने पर इस गुड़िया की आँखों से मोती टपकते हैं।
“अपने को राजा कहनेवाले प्राणी, जोगी ने राजा से कहा-“बुढ़िया की मृत्यु का पाप अपने सिर क्यों लेते हो? उसने वही कहा था जो उसे सच मालूम पड़ा। मगर सचाई यह है कि गुड़िया के आँसू की वही बूंद मोती बन जाती है जो हँसने पर उसकी आँखों में तैरने लगती है।

इतना कहकर जोगी गुड़िया समेत जाने कहाँ गायब हो गया। बड़ी बी राजदरबार में दूर-दूर तक बिखरे फूलों को बटोरने लगी।

(अनुवाद : हरिकृष्ण कौल)